Monday, November 22, 2010
कुंबले केएससीए के नए अध्यक्ष, श्रीनाथ सचिव
आज खबर आई है क्रिकेट के कर्नाटक संघ के अध्यक्ष बने हैं क्रिकेट खिलाडी़ और कम्प्यूटर इंजिनीयर अनिल कुम्बले उनका सहयोग देंगे जवागल श्रीनाथ सचिव के रूप में। तो इसे अब क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत कहा जाना चाहिए। बैडमिंडन में प्रकाश पादुकोण कभी ऐसा प्रयास कर चुके थे। क्रिकेट संघ को राजनेताओं की सैरगाह और पॉवर स्टेटस का सिंबल माना जाता रहा है। जिन राजनेताओँ ने कभी बैट नहीं पकड़ा, बॉल नहीं थामी, जिन्हें यह तक नहीं पता कि बॉल को यदि तराजु में रखा जाएगा तो उसके बदले कितने ग्राम दाल आएगी। पर वे ही इस खेल के भाग्यविधाता बने हुए हैं। उम्मीदों की किरणे लगातार चमकती हैं और बादलों के बीच गाहे बगाहे अपने होने का अहसास करवा जाती है। कुछ ऐसी उम्मीद की यह किरण भी है। शायद इस कर्नाटक किसी बड़े बदलाव का अगुआ बने। वरना राजनेताओं का तो भगवान ही मालिक है और उनके चलाए चलने वाले क्रिकेट संघों से कोई उम्मीद करना बेमानी होगा।
Tuesday, November 2, 2010
ग्ररीबी और कांग्रेस , एक महागाथा
आग और एसीबी
Saturday, October 30, 2010
आखिर कौन है जिम्मेदार
यह प्रकरण दर्षाता है कि सरकार किस प्रकार कामचलाऊ अंदाज में समय गुजारने के लिए काम कर रही है। रोजाना नित नई योजनाओं की घोषणा करने वाले मंत्रियों को पुरानी योजनाओं की सुध लेनी की फुर्सत तक नहीं है। कोई योजना कोर्ट में पहुंची नहीं कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती है। लेकिन क्या सरकारी परियोजनाओं के अपने योजनानुसार उद्देश्य पूरा नहीं कर पाना सरकार और सरकारी अमले की जिम्मेदारी नहीं है। इस पूरे मामले में दोषी कौन रहा, किस किस की लापरवाही रही उन्हें क्यों नहीं जिम्मेदार ठहराया जाता है। क्यों नहीं उनके खिलाफ कार्रवाई होती। इस सवाल का कोई जवाब नहीं है,, या फिर है भी तो ऐसा जिसे सब जानते हैं, पर जुबां पर कोई नहीं लाना चाहता।
Friday, October 29, 2010
पटाखों ने दी खुशी के बदले सजा
Saturday, September 18, 2010
राजस्थान के 23 जिलों में खाद्यान्न असुरक्षा ,food insecurity, rajasthan,
खाद्यान्न असुरक्षा वाले जिले- बांसवाड़ा, डूंगरपुर, राजसमंद, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, सिरोही, बीकानेर,जालोर,नागौर, जोधपुर,अजमेर, भीलवाड़ा, करौली, सवाईमाधोपुर,टोंक, धौलपुर,बारां, चित्तौड़गढ़, झालावाड़ और बूंदी। ( नवगठित जिला प्रतापगढ़ भी चित्तौड़गढ़ से अलग होने के कारण इसी सूची में शामिल होगा। इस प्रकार कुल जिले 23 हो जाएंगे।)
Tuesday, September 14, 2010
सही कहा राहुल ने ...,NAREGA.
Monday, September 13, 2010
हिन्दी का मौसमी बुखार,hindi divas
हमने कहा चचा आज मन कुछ बेचैन हो रहा है।
बोले क्यों लाला क्या बात हो गई।
हमने अपनी व्यथा कथा उन्हें सुनाई। बिना पूरी बात सुने ही उन्होंने कहा,, अरे ऐसी कोई बात नहीं है तुम ज्यादा फसट्रेट मत होओ,, ये टाइमिंग की बात है, ऑटोमेटिकली ठीक हो जाएगी।
उनके इस एक वाक्य में तीन तीन अंग्रेजी के शब्द सुनते ही हमारा सोया हिन्दी प्रेम यकायक जाग उठा। सत्यानाश हो चचा, तुम्ही जैंसे लोगों ने हिन्दी का बेड़ा गर्क किया है।
क्यों भाई मैंने क्या कर दिया।
अरे अभी देखो आपने ही तो इतनी अंग्रेजी झाड़ दी। क्या आप फस्ट्रेट की जगह तनाव और टाइमिंग की जगह समय -समय तथा ऑटोमेटिकली की जगह अपनेआप का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।
अरे ऐसा क्या,, सॉरी भाई सॉरी अब से ध्यान रखूंगा।
फिर सॉरी,, अंग्रेज चले गए इन्हें छोड़ गए।
अरे गलती हो गई भतीजे, काहे गरम होते हो,, अबकी बार अगर अंग्रेजी का एक शब्द भी बोला तो तुम जो चाहो कर लेना, प्लीज भतीजे मान जाओ।
इतना सुनते ही अपने राम ने कुछ और कहने की बजाय आगे बढ़ना ही उचित समझा,, और साथ ही यह भी समझ आ गया कि हमारा सोचना ठीक ही है,, हमें ये मौसमी बुखार ही हुआ लगता है,, अब तो मौसम के गुजरने के बाद ही पता चलेगा की बुखार आगे भी बरकरार रहता है या नहीं। ,,,, आप सब गवाह हैं,,,। याद रखिएगा
Sunday, September 12, 2010
हिन्दी दिवस,hindi, hindi day,hindi divas,14 september

संविधान सभा में हिन्दी की स्थिति को लेकर 12 सितंबर, 1949 को 4 बजे दोपहर में बहस शुरू हुई और 14 सितंबर, 1949 को दिन में समाप्त हुई। बहस के प्रारंभ होने से पहले संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अंग्रेज़ी में ही एक संक्षिप्त भाषण दिया। जिसका निष्कर्ष यह था कि भाषा को लेकर कोई आवेश या अपील नहीं होनी चाहिए और पूरे देश को संविधानसभा का निर्णय मान्य होना चाहिए। भाषा संबंधी अनुच्छेदों पर उन्हें लगभग तीन सौ या उससे भी अधिक संशोधन मिले। 14 सितंबर की शाम बहस के समापन के बाद भाषा संबंधी संविधान का तत्कालीन भाग 14 क और वर्तमान भाग 17, संविधान का भाग बन गया तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा, अंग्रेज़ी से हम निकट आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्य हमारे संबंध घनिष्ठ होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परंपराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी।
इस प्रकार 14 सितंबर भारतीय इतिहास में हिन्दी दिवस के रूप में दर्ज हो गया।
(अब यह भावी संतति, यानी हम पर है कि हम हिन्दी को यह सम्मान देने के लिए उनकी सराहना करते हैं या नहीं)
संवैधानिक स्थिति के आधार पर तो आज भी भारत की राजभाषा हिंदी है और अंग्रेज़ी सह भाषा है, लेकिन वास्तविकता क्या है यह किसी से छुपी नहीं है।
13 सितंबर 1949 को प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भाषा संबंधि बहस में भाग लेते हुए कहा, किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता। क्योंकि कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती। भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बहस में भाग लेते हुए हिंदी भाषा और देवनागरी का राजभाषा के रूप में समर्थन किया और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय अंकों को मान्यता देने के लिए अपील की। उन्होंने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए संविधान सभा से अनुरोध किया कि वह ''इस अवसर के अनुरूप निर्णय करे और अपनी मातृभूमि में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में वास्तविक योग दे।'' उन्होंने कहा कि अनेकता में एकता ही भारतीय जीवन की विशेषता रही है और इसे समझौते तथा सहमति से प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम हिंदी को मुख्यतः इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि इस भाषा के बोलनेवालों की संख्या अन्य किसी भाषा के बोलनेवालों की संख्या से अधिक है - लगभग 32 करोड़ में से 14 करोड़ (1949 में)। उन्होंने अंतरिम काल में अंग्रेज़ी भाषा को स्वीकार करने के प्रस्ताव को भारत के लिए हितकर माना। उन्होंने अपने भाषण में इस बात पर बल दिया और कहा कि अंग्रेज़ी को हमें ''उत्तरोत्तर हटाते जाना होगा।'' साथ ही उन्होंने अंग्रेज़ी के आमूलचूल बहिष्कार का विरोध किया। उन्होंने कहा, ''स्वतंत्र भारत के लोगों के प्रतिनिधियों का कर्तव्य होगा कि वे इस संबंध में निर्णय करें कि हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को उत्तरोत्तर किस प्रकार प्रयोग में लाया जाए और अंग्रेज़ी को किस प्रकार त्यागा जाए।
हिन्दी,,हिन्दी में काम करें,,hindi
कई दिनों से एक प्रश्न मन में लगातार उठ रहा है। हमारे यहां सरकारी भाषा हिन्दी क्यों नहीं है। क्या कभी गौर किया है थाने में पुलिस का हवलदार जो भाषा काम में लेता है वो अंग्रेजी नहीं होती और न ही वह हिन्दी होती है। वह होती है उर्दुनुमा हिन्दी। इसी तरह कोर्ट में जो भाषा काम में ली जाती है वो होती फारसीनुमा हिन्दी। सरकारी दफ्तरों में जो भाषा काम में ली जाती है वह होती है अंग्रेजी। सभी तरह के परिपत्र अंग्रेजी में जारी होते हैं। सभी नियम उप नियम अंग्रेजी में बनते हैं। सभी एक्ट अंग्रेजी में बनते हैं। ऐसा क्यों..... इसको लेकर हम कोई आंदोलन क्यों नहीं करते।
यहां राजस्थान में राजस्थानी बोली को लेकर तो आंदोलन शुरु हो गया है,पर हिन्दी को लेकर कोई आग्रह क्यों नहीं है। मेरा अंग्रेजी से विरोध नहीं है। वह भी पढ़ाइये बल्कि पूरे मन से पढ़ाइये। ताकि हम प्रतिस्पर्धा के अनुकूल बने रह सकें। पर हमें रोजमर्रा के कामकाज में अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी को प्रतिस्थापित करना ही होगा। और अंत में मेरा फिर सभी से आग्रह हमें हिन्दी में काम करना चाहिए और इसे कम से कम नारा से ज्यादा एक आंदोलन के रूप में लें।
सादर
Saturday, August 21, 2010
डबल विक्टरी
पांचवे ओवर की आखिरी गेंद थी और राजीव ने हल्के से पुश कर रन के लिए कॉल दिया था, अंशु न चाहते हुए भी दौड़ पड़ा। उसे मालूम था कि यह स्ट्राइक अपने पास रखने की राजीव की चाल थी। चार ओवर बचे थे और टीम को अभी भी 47 रन चाहिए थे। और राजीव था कि स्ट्राइक रोटेट ही नहीं कर रहा था। चौथे ओवर में राजीव ने दो बाउंड्री लगाई और फिर लास्ट गेंद पर रन लेना चाहा, लेकिन इस बार अंशु ने रन लेने से मना कर दिया। मैदान में मौजूद हर कोई दोनों के बीच चल रहे विवाद को बखूबी समझ रहा था। अब तीन ओवर में 39 रन चाहिए थे और अंशु ने इस ओवर में तीन बाउंड्री लगाईं। यानी दो ओवर में 27 रन की दरकार थी। राजीव पूरे ओवर में दो बाउंड्री ही लगा पाया। अब मैच का आखिरी ओवर था। छह गेंद और 19 रन। स्ट्राइक अंशु के पास थी। अंशु ने लगातार तीन गेंदों पर तीन बाउंड्री जमाई। तीन गेंदों में सात रन चाहिए थे। अंशु ने फील्ड का जायजा लिया तो उसे स्कवायर लेग पॉजीशन पर कोई फील्डर नजर नहीं आया। अगली बॉल स्वायर लेग की दिशा में खेल कर 93 रन पर खेल रहे अंशु ने दो रन का कॉल कर दिया। एक रन आसानी से पूरा करने के बाद जैसे ही अंशु मुड़ा तो उसका अपने जूते के फीते में पांव उलझ गया और वह दो कदम आगे ही गिर पड़ा। उसे गिरते देख स्ट्राइक एंड पर बॉल कैरी कर रहे विकेट कीपर ने तुरन्त बॉल बॉलर को थ्रो की। उधर दूसरे छोर पर राजीव ने जैसे ही अंशु को गिरते देखा वह एक बारगी तुरन्त ठिठक अपनी क्रीज में लौटने लगा, पर पता नहीं जाने क्या हुआ कि वह तेजी से दौड़ा और पिच पर गिरे अंशु को क्रॉस कर नॉन स्ट्राइक एंड की तरफ चल पड़ा। लेकिन वह पहुंच पाता उससे पहले ही बॉलर ने थ्रो कैरी कर स्टंम्प उड़ा दिए। पार्क में खड़ा हर कोई यह देख उलझन में पड़ गया कि गिरने के कारण साफ अंशु ही रन आउट होता पर राजीव ने एकाएक उसे क्रॉस कर खुद को आउट क्यों करवा दिया। अंशु खुद भी यह देख हैरान था। बहरहाल अब दो गेंद बची थी और स्ट्राइक अंशु के पास थी, अगली गेंद अंशु से बहुत दूर बिल्कुल ऑफ क्रीज के किनारे से निकली जिसे पहले से ही रूम बना चुका अंशु छू भी नहीं पाया। अब अन्तिम गेंद थी, और जीत के लिए चाहिए था एक सिक्स। जो इस बड़े ग्राउण्ड में आसान नहीं था। अंशु ने अपने आपको पूरी तरह गेंद पर कानस्ट्रेंट किया और जैसी ही बॉल पिच पर टिप्पा खाने वाली थी, उससे पहले ही पूरी ताकत से बल्ला घुमा दिया। और यह क्या बॉल बाउण्ड्री पर खडे़ फील्डर के हाथों में, पूरा पार्क स्तब्ध, लेकिन अचानक अंशु के टीम मेट खुशी से चिल्ला पड़े। अम्पायर ने सिक्स के इशारे के लिए दोनों हाथ हवा में उठा दिए थे। फील्डर बॉल कैच करते करते बांउड्री से बाहर जा पहुंचा था। अंशु की टीम पहली बार सोसायटी ट्वेंन्टी-20 कप के फाइनल में पंहुच गई थी, और अंशु सोसाइटी कप में सेंचुरी बनाने वाला पहला बल्लेबाज बन चुका था। पार्क में मौजूद सोसायटी के सभी बच्चे जोश से चिल्लाने लगे थे। हर कोई अंशु की ओऱ बढ़ रहा था, लेकिन अंशु की आंखे किसी को तलाश कर रही थी और वह था राजीव। अंशु जानता था कि राजीव जान बूझ कर खुद आउट हुआ था, लेकिन उसने ऐसा क्यों किया। टीम के अन्य लोगों से दूर अपने दोस्तों के साथ एक पेड़ के नीचे खड़े राजीव के पास पहुंच अंशु डबडबाई आंखों से उसे देखने लगा,, एकाएक उसके मुंह से निकला थैंक्स राजीव,,,। ....पर तुमने ऐसा क्यों किया, ,, । , नहीं यार,, थैंक्स नहीं,, पिछली बार का कर्ज जो उतारना था, और फिर तुम ही हो जो सिक्स मार कर मैच जीता सकते थे। मुझे माफ कर दे यार,, मैं क्रिकेट से दगा कर रहा था,, पर अब मैंने भूल सुधार ली है,, वो खेल ही क्या जिसमें स्पोर्ट्समैन स्पिरिट न हो। ,, और दोनों एक दूसरे के गले में हाथ डाल जीत का जश्न मनाती बाकी टीम की ओर बढ़ चले। दोनों को एक साथ देख टीम दुगुनी खुशी से भर उठी। सही मायने में यह टीम के लिए डबल विक्टरी जो थी।
- अभिषेक सिंघल
(बालहंस के अगस्त द्वितीय 2010 अंक में प्रकाशित)
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Thursday, July 29, 2010
हिन्दी सिनेमा का नया शो मैन ....
Wednesday, July 28, 2010
निशाना हमेशा एक तरफ क्यों
खेल भी अब खेल हो गया
मुझे याद आता है मेरी मम्मी जिस स्कूल की प्रधानाचार्य थीं वहां संभाग स्तरीय टूर्नामेंट आयोजित हुए थे। ऐसे टूर्नामेंटों के लिए सरकारी बजट बहुत रस्मी सा होता है। समुचित व्यवस्थाओं के लिए काफी पैसा खर्च होना था। जाहिर है मम्मी अपने स्कूल के अन्य सदस्यों के साथ जनसहयोग के लिए दो तीन जनों से मिलने गईं। छोटा होने के नाते मैं यूं ही साथ था। गांव के जिन भी लोगों से वे मिली सभी ने एक ही बात कही थी, मैडम आप तो बता देना क्या कैसे करना है। गांव की बात है। हमारे गांव में बाहर की छोरियां (लड़कियां) आएंगी। सबको अच्छा लगना चाहिए। गांव की बात खराब नहीं होनी चाहिए।,,,, तो ये थी उस छोटे से गांव के लोगों की भावनाएं। जिन्होंने अपनी जेब से एक खेल आयोजन के लिए पैसा दिया। और राष्ट्रीय स्तर के ये नेता बेकार की बयानबाजी में उलझे हैं।
Tuesday, July 27, 2010
किसके लिए हुए वे शहीद

कल करगिल विजय दिवस था। करगिल कश्मीर में कबायलियों के नाम पर छद्म पाकिस्तानी सैनिकों का घुसपैठ और कब्जे का प्रयास। 1999 में हुई इस बड़ी लड़ाई में देश के सवा पांच सौ से अधिक जवान शहीद हुए और करीब सवा हजार जवान घायल हुए। लड़ाई को ग्यारह साल गुजर गए हैं। पर आश्चर्य करगिल विजय दिवस पर सरकार की ओर से कोई आयोजन नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी ने कई जगहों पर शहीदों की विधवाओं को सम्मानित किया। सरकारी स्तर पर कोई कार्यक्रम नहीं होना गहरे सवाल खड़े करता है। क्या करगिल की लड़ाई एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुई इसलिए कांग्रेस सरकार उन शहीदों का सम्मान नहीं करना चाहती, और क्या इसीलिए भाजपा सम्मान के कार्यक्रम आयोजित कर रही है। सम्मान समारोह भाजपा आयोजित कर रही है, तो इसका कोई ज्यादा गलत संदेश नहीं है। सम्मान होना चाहिए भले ही बैनर कोई भी हो। पर शहीदों को लेकर राजनीति क्यों। राजीव गांधी, इंदिरागांधी, जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस, पुण्यतिथि सहित अन्य अवसरों पर अखबारों को विभिन्न मंत्रालयों के सरकारी विज्ञापनों से भर देने वाली सरकार का क्या देश की सीमा की रक्षा कर प्राण गंवाने वालों के प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता। करगिल के इतिहास को लेकर सेना में चलने वाली लड़ाई को दरकिनार करिए। सोचिए सवा पांच सौ जिंदगियां कम नहीं होती। देश के लिए प्राण गंवाने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा की यूं वे हमारी छीछली राजनीति में दल विशेष के शहीद हो कर रह जाएंगे।
करगिल शहीदों को मेरी विनम्र श्रद्धाजंली, प्रभु उनके परिवारों को संबल प्रदान करे।
पुनश्चः हां एक बात का संतोष है, कम से कम से करगिल लड़ाई में शहीद होने वाले जवानों के परिजन बहुत ज्यादा कष्ट में नहीं है। उन्हें जो पैकेज मिला वो उनके सम्मानजनक जीवन के लिए वाकई जरूरी था। हां, कुछ गड़बड़ियां, इन मामलों में भी जिन्हें सरकार त्वरित गति से सुलझाए। जहां परिवारों का मामला हैं वहां भी सरकार को कुछ दखल देना चाहिए।
Monday, July 26, 2010
कामचलाऊ अंदाज
Saturday, July 10, 2010
केसर क्यारीःपीढ़ी का दर्द, और पथराव
Friday, July 9, 2010
प्रेम भी परहेज भी
Wednesday, June 2, 2010
अब दुख भरे दिन बीते रे भैया ,.
अरे भतीजे,, खुश हो जा,, अब दुख भरे दिन बीते रे भैया ,, अब सुख आने वाला है,,,,।
अचकचाते हुए अनमने मन से मैंने चचा से पूछ ही लिया,, कैसा सुख,, हमने तो बस सुना ही सुना है, कि सुख भी कुछ होता है,, तुम किस सुख के बारे में बात कर रहे हो,,चचा।
अरे वो अपनी शान है न अपना कोहीनूर, बस वो वापस आ रहा है,, बुरा हो आततायियों का जो यहां से ले गए,,,,।
अरे तो चचा इसमें खुश होने वाली क्या बात है,, कोहीनूर आए या जाए ,, हमारे यहां क्या कुछ बदल जाएगा,,, तुम काहे परेशान हो रहे हो...।
बस यहीं तो मात खा जाता है हमारा देस भतीजे,, अब तुम जैसे लोग ही तो हैं जिनके कारण सब बेड़ा गर्क हुआ जा रहा है.,. तुमको कोहीनूर से कुछ लेना देना नहीं,,तुम कोई कोई फर्क ही नहीं पड़ता, वहां देश की इज्जत नीलाम हुई जा रही है,, और यहां इन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता,,,,,अजीब आदमी हो,,।
क्या अजीब आदमी हैं,,, देश की इज्जत एक कोहीनूर से नीलाम हो जाएगी,, यहां रोज हर चौराहे, हाइवे और गली मोहल्ले में नीलाम हो रही है जो,, देश में आधे से ज्यादा लोग ठीक से पढ़ नहीं पा रहे और तुम कह रहे हो इज्जत नीलाम हो रही है,,,। बताओं देश के लोग ठीक अंग्रेजी तक तो बोल नहीं पाते और तुम कह रहे हो इज्जत नीलाम हो रही है।,,। कोहीनूर आ कर क्या कर लेगा,,। कहीं किसी लॉकर में बंद ही हो जाएगा न। हमारे देस में कई सरकारी अफसरों के बैंक लॉकरों में वैसे कई कोहीनूर खरीदने लायक माल पड़ा होगा। ये अलग बात है कि अब तुम उसे काला धन कहोगे,,। कोहीनूर न हो गया जी का जंजाल हो गया।
अरे भतीजे इतना काहे गर्म हो रहे,,, खाली कोहीनूर थोड़े ही ला रहे हैं, उसके साथ सुल्तानगंज की बुद्घ प्रतिमा भी ला रहे हैं।,,वैसे ये अंग्रेजी वाली बात तो तुम सही कह रहे हो,, ससुरों का पता नहीं क्या जाता है अंग्रेजी सीखने में,,, सीख लें तो आदमी बन जाएं,,, पर तुम बात भटका रहे हो..।
अरे चचा बुद्ध प्रतिमा की बात कर रहे हो,, हमारे देस में पड़ी मूरतें ही संभाल लें तो बहुत हैं,, यहां तो जिंदा आदमी मूरत हुआ जा रहा है,, वो क्या कहते हैं,, पुरातत्व वाले पता नहीं कितनी जगहों पर मूर्तियों को निकाल निकाल कर यूं ही पटक दिए हैं,, उनको रखने का ठौर नहीं,, बाहर से और ला रहे हैं,, अच्छा बताओ ले भी आओगे तो क्या उनसे बेहतर संभाल पाओगे।
अरे भतीजे तुम्हारी समझ में तो नहीं आएगी,, पर बाकी लोग तो मेरी बात से सहमत होंगे ही,, आखिर हमारा कोहीनूर हमारे पास ही होना चाहिए। बोलो है कि नहीं।
Tuesday, June 1, 2010
सुर सुर की बात
अरे कहीं नहीं, बस यूं जरा मन नासाज था इतने दिनों तक बड़े परेशान हो रहे थे।
क्यों चचा क्या बात हो गई थी.
बस यूं ही, पर आज जरा मन ठीक है, देश तरक्की कर रहा है न, इसलिए।
चचा की बात सुन हम जरा चौंके, देश तरक्की कर रहा है... आपको कैसे पता चला चचा और तुमको ये एकाएक देश की फिकर क्यों होने लगी।
अरे वाह भतीजे हमें फिकर नहीं होगी तो और किसे होगी। वो मनमोहन ने हमें तो ही सारा भार सौंप रखा है, इसी में जरा बिजी रहे थे। इतने दिनों। अब आज देखो खबर आ गई न की उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है देश,.।
चचा एक बात तो समझ में आ गई की तुम विकास दर के नतीजों की बात कर रहे हो,, पर ये मनमोहन वाली बात समझ में नहीं आई। जरा खोल कर समझाओ।
अच्छा तो सुनों,, पर किसी से कहना मत,, तुम तो जानते हो ये सुपर कॉन्फिडेन्शियल है,, देश का सवाल जो है,,,।
ठीक है चचा पर अब बता भी चुको...।
वो क्या है न कि पिछली 22 तारीख को जब मनमोहन सिंह की दूसरी पारी का एक साल पूरा हो गया न तब वो हम से मिला था। क्या हुआ न कि उस रात को जब हम सो गए तब हमारे ऊ 4जी टेक्नीकवाले फोन पर ऊ का फोन आया रहा। हमसे बोला चचा तुम तो पुराने पत्रकार हो,,आज सुबह हम खूब पत्रकारों से बतियाए पर मन नहीं भरा,, कुछ मन की कह सुन नहीं पाए। बहुत पता लगाया तब लगा कि चचा हंगामी लाल ऐसा पुराना पत्रकार है जिससे बात की जा सकती है,,सो हम तुमको फोन लगएं हैं,, तुम से कुछ मन की कहना चाहते हैं,,, ।
अब देस का प्रधानमंत्री कहे तो हम कौन जो ना कह दें,,, हमने कहो ,,, डॉक्टर साब,,,। बस इतना सुनते ही वो तो झूम गया,,, देखा यही न ,, यही अन्तर है पुराने औऱ समझदार पत्रकार में अब तुम समझदार हो तभी जानते हो हमारी डॉक्टरी का मतलब,, इसलिए न हमें डॉक्टर कहा,,, भई वाह,, दरअसल हंगामी जी,, अब मैं बहुत खुश हूं,, मैं अटल जी से भी ज्यादा प्रधानमंत्री रह कर नेहरु जी के वंश के अलावा इस देश सबसे लम्बे समय तक प्रधानमत्री रहने वाला आदमी हो रहा हूं,,,। बताओ औऱ क्या चाहिए,, जब से प्रधानमंत्री बना हूं लोग मेरे पीछे ही पड़ गए हैं राहुल को प्रधानमंत्री कब बना रहे ,, । अरे भाई वो बने जब बने...। मुझ से क्यों पूछते हो,, यह तो वही बात हुई न की घुमा फिरा कर पूछ लिया कि गद्दी से कब उतर रहे हो,,,, बताओ मैंने इस देश के लिए क्या नहीं किया। सबकुछ किया। लोग कहते थे कि कभी इस देश में दूध दही की नदियां बहती थी, मैंने तो नोटों की नदी बहा दी है,,, नरेगा नदी। नरेगा मैया बिल्कुल गंगा सी पवित्र है,,जो भी इसमें डुबकी लगाएगा उसकी सारी गरीबी ये हर लेगी...। अब पूछोगे यह तो केवल गांवों में बहने वाली नदी है,,। अरे शहरो में नदी बहाने की जगह नहीं है,,, वहां नालियां बहाई है,, अरबन रिन्युअल की,,, हर जगह नए नए तरीके की मोरी है,, जिसके जिधर जैसे चाहे मोड़ लो। अब देखो हंगामी लाल जी ,,, सारी दुनिया मंदी के चक्कर में पड़ी थी,... हम बचे या नहीं,, बोलो,, बचे की नहीं,, फिर भी जो है सो पीछ पड़े रहते हो,, हर समय सोनिया जी का डर दिखाते हो,, अरे माना उन्होंने पीएम बनाया है,,.. पर काम तो मैंने ही किया है,, वो तो केवल पब्लिक इन्ट्रेस्ट की बात करती है.. देश की बात तो मैं ही करता हूं।,,, चलो हंगामी जी अब एक बात करना मेरी सबसे बड़ी प्रोब्लम महंगाई है,, मैं चाह कर भी इसे कम नहीं कर पा रहा हूं,, । तुम ठहरे पुराने पत्रकार मुझे जरा महंगाई कम करने का कोई फामुर्ला बताओ,, कहीं से कोई रिसर्च करो,, कोई जप तप करो,, कोई गंडा ताबीज करवाओ,, कुछ करो,, प्लीज,, ।
उनकी इतनी बात सुन कर मैंने कहा,, मनमोहन जी ,, इसको कोई काबू में नहीं कर पाया,, अब आप कहते हो तो मैं कुछ ढूंढता हू,,,। आप मुझे दुबारा फोन करना।..
तब से मैं लगातार कई बाबाओं,, तांत्रिकों ,, पुराने लोगों,, से मिल कर महंगाई को काबू में करने का तोड़ ढूंढ़ रहा हूं,,। पर अब तक तो कुछ मिला नहीं,, भतीजे आज सोचा तुमसे कुछ पूछ लूं तो चला आया तुम्हारे पास,,तुम्हें यदि पता तो तुम ही बताओ,,..।
देखो चचा इसका तो एक ही इलाज है,, जो अभी तुम ही कह रहे थे,,
वो क्या...
महंगाई के अलावा हर बात का ढोल बजाओ,, बस महंगाई की बात पर चुप्पी साध जाओ,,
अभी बढ़ी हुई विकास दर का राग अलवाओ,, महंगाई का सुर अपने आप नीचा हो जाएगा,, ।
लगता है हमारी बात चचा को एकदम से जंच गई और वे तुरन्त अपना चमकता चेहरा ले आगे बढ़ गए। शायद मनमोहन को फोन घुमाने,,,।
Saturday, April 10, 2010
इस्तीफे के साइड इफेक्ट
चचा की बात सुन,, हम क्या कहें हमें कुछ नहीं,, आया,, आपको समझ आया हो तो बताना,,,।
Thursday, February 18, 2010
जिंदगी
कतरा कतरा जिंदगी
लम्हा लम्हा बंदगी
Monday, February 15, 2010
सड़क पर दौड़ता आतंक
पूना में विस्फोट हो गया...। आतंक की एक ओर दास्तां लिख गया.....। खबरों की सुर्खियां कह रही हैं,,,। इन हमलों की योजना बनाने वाले विदेशी थे.....। पर इन्हें अंजाम देने वाले हाथ,, हिन्दुस्तानी हो सकते हैं,,,। गृहमंत्री कह रहे हैं,, हमला और भी बड़ा हो सकता था, पर कम नुकसान हुआ है,, सुरक्षाबलों को बधाई,,,। किसी का कयास है कि 25 तारीख को होने वाली भारत -पाक बातचीत नहीं हो इसलिए हुए हैं हमले ....। तो कोई कह रहा है कि विदेशियों को निशाना बनाने की खातिर हो रहे हैं हमले। हमला चाहे किसी भी कारण हुआ हो,, लेकिन हुआ है,,। किसने किया क्यों किया ये बात दिगर ,, पर हर आम इंसान की चाह की हमले नही हों,, हमलावरों की पहचान हो,, और दोषियों को बख्शा नहीं जाए। फिर से आतंक का जलजला नहीं उठे। फिर ऐसे मौके नहीं आएं की अमनपसंद लोगों को बेवजह सियासतदाओं की लड़ाई में अपनी जान गंवानी पड़े। चिन्ता बहुत बड़ी है,, और उसके सरोकार उससे भी बड़े.....। पर आजाद हिन्दुस्तान की सरजमीं पर इस वाकये की गम्भीरता को बनाए रखते हुए दिल एक और सवाल उठाना चाह रहा है। और वो सवाल आतंक की इस घटना से कहीं कोई ताल्लुक नहीं रखता पर हां हर आम हिन्दुस्तानी की जिन्दगी से जरूर ताल्लुक रखता है।
क्या किसी ने सोचा है कि सुबह जब कोई आम हिन्दुस्तानी घर से अपने दुपहिया वाहन पर सवार हो कर ऑफिस के लिए निकलता है तब उसके या उसे खुशी-खुशी विदा कर रहे उसके परिजनों में से किसी के मन में लेश मात्र भी आशंका नहीं होती कि उसका परिजन सही सलामत घर वापस नहीं पहुंच पाएगा। लेकिन बिना किसी बम धमाके या आतंकी हमले की चपेट मे आए भी उसके परिजन हमेशा हमेशा के लिए उसका इन्तजार करते रह सकते हैं। और इसके लिए कोई विदेशी हाथ, कोई षडयंत्र जिम्मेदार नहीं होता। जिम्मेदार होती हैं तो बस कोलतार की वो सड़कें जो लोगों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए बनी होती है। या फिर वो वाहन जो उन सड़कों पर फर्राटे भर मंजिल को लोगों के करीब लाते हैं। जी आप सही समझ रहे हैं मैं बात कर रहा हूं सड़क हादसों में जान गंवाने वाले उन लोगों की जो कहने भर को हादसे का शिकार होते हैं, पर सोचिए क्या वाकई सड़क हादसा ऐसी आपदा हैं जिन्हें टाला नहीं जा सकता । ड्ब्लयू एच ओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की रिपोर्ट के अनुसार भारत ऐसा देश है जहां विश्व भर में सर्वाधिक लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 (रिपोर्ट में उसी वर्ष के आंकड़ों की तुलना की गई है) में भारत की सड़कों पर एक लाख 14 हजार लोगों ने प्राण गंवाए थे। (आतंकियों को इतने लोगों को शिकार बनाने के लिए जाने कितने हमले करने पड़ें।) इतना ही नहीं हर घण्टे देश में तेरह लोग सड़क हादसों में जान गंवा देते हैं। अमरीका में 2006 में 42,642 लोगों ने सड़क हादसों में जान गंवाई तो इंग्लैण्ड में कुल 3298 लोग सड़क हादसों का शिकार हुए।चीन में करीब 89000 लोग हादसों का शिकार हुए । भारत में यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है,क्योंकि यहां बहुत सारे मामले तो दर्ज ही नहीं होते।
Friday, February 5, 2010
जय युवराज,,
चाचा को यूं बेसाख्ता चिल्लाते देख हमसे रहा नहीं गया,,,,,,, अरे चचा क्या मिल गया,,, भतीजे हमें देश का सही वारिस मिल गया,,, क्यों चचा क्या बात हो गई,,, अरे देखते नहीं ,, देखते नहीं अपने युवराज ने क्या कमाल कर दिया,,मुम्बई में,, दिखा दिया की देश एक है,,,, सारे ठेकेदारों को समझा दिया,,, सबको संदेसा दे दिया ,,, कि देश एक है और अब यह सब नहीं चलेगा,,,, मुम्बई में घूम लिए,, लोकल में घूम लिए,,, इसे कहते हैं युवराज,,, कहो क्या कहते हो,,,