Wednesday, May 14, 2008
जयपुर में आतंक की दस्तक
अब तक दुनिया की चिल्लपौं से दूर एक शांत शहर के रूप में जाने जाते रहे जयपुर शहर की मानो किसी की नजर लग गई। जयपुर भी मंगलवार शाम सवा सात बजे आतंकी निशाने पर आ गया। यहां महज बारह मिनट के वाकये और दो किलोमीटर की परिधि में नौ बम ब्लास्ट हुए। इन ब्लास्ट से हताहत होने वालों की संख्या पैंसठ पार कर चुकी है, इस फेहरिस्त के अभी और लम्बा होने की आशंका है। एक ही अंदाज में हुए ये विस्फोट किसी न किसी आतंकी संगठन की कारगुजारी हैं। जयपुर ने ऐसा हादसा पहले नहीं झेला पर जयपुर में इतने बरस रहने से यह अंदाज हो गया है, कि कोई भी हादसा यहां ज्यादा दिन तक अपना असर नहीं छोड़ता। हां, कुछ दिन लग सकते हैं जिंदगी की गाडी़ को पटरी पर आने पर, जल्द ही पहले से बेहतर तरीके से फिर गाड़ी दौड़ेगी इसमें कोई शक नहीं। जो लोग इस हादसे का शिकार हुए हैं उन्हें मेरी श्रद्धाजंलि। सभी से अनुरोध है कि इस प्रकार बिना किसी दोष के द्वेष का शिकार हुए लोगों को श्रद्धा सुमन जरूर अर्पित करें।
Friday, May 9, 2008
क्या पत्रकार भगवान होते हैं?
आज एक समाचार पत्र के सम्पादकीय पृष्ठ पर जाने माने पत्रकार और फिल्म निर्माता प्रीतीश नंदी का एक लेख प्रकाशित हुआ है। लेख में नंदी ने बीस साल पहले इलस्ट्रेड वीकली में अमिताभ बच्चन पर लिखे एक लेख फिनिश्ड का जिक्र किया है। नंदी ने इस लेख को लिखने के लिए अफसोस जताया है। यह लेख कई मायनों में बेहद जोरदार है, सबसे ज्यादा तो इस मायने में कि यह पत्रकारों को उनकी औकात दिखा रहा है। एक पत्रकार होने के नाते मैं भी नंदी जी के इस कथन से सहमत हूं कि पत्रकारों को श्रद्धांजलियां लिखने में मजा आता है। उन्हें लगता है कि वे लोगों को बना और बिगाड़ सकते हैं। लेकिन सच है कि हस्तियों को बनाना या बिगाड़ना मीडिया के हाथ में नहीं है। हां, मीडिया के हाथ में एक ही बात है और वह है इस्तेमाल होना। मैने अपने पत्रकारिय अनुभव के दौरान यह बात बहुत अच्छे से जानी है कि जिन लोगों के लिए मीडिया अच्छा अच्छा लिख रहा है,यकीन जानिए की अपनी उपलब्धियों के साथ ही उनमें मीडिया को बेहतर तरीके से मैनेज करने की जबरदस्त क्षमता भी है। और जिन की बुराई मीडिया में आ रही है कहीं न कहीं वे मीडिया मैनेजमेंट में बुरी तरह विफल रहे हैं। ऐसा होने के पीछे का कारण भी बहुत साफ है कि हम अपने आपको भगवान समझने लगते हैं औऱ जो भी किसी भक्त की तरह मीडिया की सेवा या सत्कार करता है उसे प्रसिद्धी का वरदान देना अपना कर्तव्य मानते हैं। इसी के उलट जो मीडिया की यानी पत्रकार की सेवा नहीं करता, उसे ठीक से एन्टरटेन नहीं करता उसका बैंड बजाने और दो की चार लगाने में , या यूं कहें कि उसकी धृष्टता की उसे सजा देना भी मीडिया कर्मी का अधिकार माना जाने लगा है। नंदी भी अपने लेख में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए लिखते हैं, मेरे ख्याल में हम अपने मौजूदा परिवेश के बारे में लिखने की बजाय खुद को भगवान समझते हुए भविष्य के पूर्वानुमान लगाने में ज्यादा उत्सुक होते हैं। हम लोगों के बारे में कहा जाता है कि हम इसलिए हीरो बनाते हैं ताकि बाद में उन पर किचड़ उछाल सकें। नंदी ने यह लेख फिल्म निर्देशक अनुराग बासु की अमिताभ पर की गई एक टिप्पणी को लेकर लिखा है,लेकिन पत्रकार जगत को लेकर की गई उनकी यह टिप्पणी वाकई हकीकत से दो चार करवाती है। समूचे पत्रकार जगत के लिए उनका यह लेख पढ़ने लायक है, खासकर पत्रकारिता के तमाम विद्यार्थियों को भी यह लेख जरूर पढ़ना चाहिए ताकि वे इस सच से दो चार हो, कुछ लिखने से पहले समझ लें कि वे हकीकत में भगवान नहीं बल्कि एक टूल हैं जिसका काम सिर्फ इस्तेमाल होना ही है। श्री प्रीतीश नंदी जी को इस लेख के लिए साधुवाद।
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