Friday, October 29, 2010
पटाखों ने दी खुशी के बदले सजा
अखबार की सुर्खियों के बीच दो खबरें मन को बेचैन कर रही हैं। शहर के दो निजी स्कूलों में पटाखे चलाने पर बच्चों को सजा दी गई है। अब पटाखे चलाना भी जुर्म हो गया है। दीपावली में अब एक सप्ताह बचा है और त्योहारी रंग कहीं नजर नहीं आ रहा।मुझे याद आता है बचपन में हम दशहरे से ही पटाखे छोड़ने की शुरुआत कर देते थे। शाम को जब गली में बच्चों की टोली जमती थी तो हर किसी के पास कोई न कोई पटाखा जरूर होता था। स्कूल में तो टिकड़ियों और हाथगोली की बहार रहती थी। कई बच्चे सुतली बम भी लाते थे। हाथ गोलियां तो खूब जम कर चलाते थे। यहां तक कि कई बार तो खिड़की में से हाथ निकाल बरामदे में गुजर रहे मास्साब के पावों को निशाना बना कर भी हाथगोलियों के धमाके किए थे। लेकिन अब बच्चों में पटाखों को लेकर क्रेज नहीं है या त्योहारों को शिष्टाचार की बेड़ियां पहना रहे हैं। पता नहीं पर कुल मिला कर बच्चों को पटाखे जलाने जैसे अपराध, यदि यह अपराध है तो, के लिए इतनी सजा के बारे में पढ़कर अच्छा नहीं लगा।
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