Wednesday, April 8, 2009

जूता प्रूफ प्रेस कॉन्फ्रेंस

चचा हंगामी लाल बहुत चिन्तातुर स्वर मं बोले,, कहां हो लाला,., जरा हमारी सुनो,, ये देखो तुम्हारे बिरादरी भाइयों ने क्या कर दिया।

हम थोड़े सकुचाए से, बोले क्या चचा, जूता पुराण पर कह रहे हो क्या।

हां, और नहीं तो क्या, अब वो जो किए जो किए, पर हमें बड़ी फिकर हो गई है।

काहे चचा आपको किस बात की फिकर।

अरे हम भी तो परसों प्रेस कान्फ्रेंस बुलाए रहे हैं। कोई किसी बात के प्रोटेस्ट में हम पर भी जूता उछाल दिए तो। और फिर ये प्रोटेस्ट का तरीका भी बड़ा शानदार है। पूरी प्रेस मौके पर ही मौजूद, हाथों हाथ ही खबर सबके हाथ। न कोई प्रेस विज्ञप्ति का झंझट और न ही कोई सैटिंग का चक्कर। प्रोटेस्ट एकदम हाईलाइट हो जाता है।

अरे चचा, ऐसे ही न कोई इतना बड़ा प्रोटेस्ट करता है।

तुम्हारी बात में तो दम है। पर मुद्दा भले ही कितना ही संगीन क्यों न हो जूता तो चल ही गया न। जिस पर चला उसका तो बोलो राम हो गया न। अब परसों हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चल गया तो। न बाबा न। हम कोई रिस्क नहीं लेंगे। सालों से पाली पोसी इज्जत का एक ही दिन में जनाजा निकल जाएगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस कैंसिल। बस कैंसिल।

अरे, ये क्या करते हो चचा। चुनाव नहीं लड़ना क्या। प्रेस को नहीं बुलाओगे। साथ नही बिठाओगे। कुछ सेवा नहीं करोगे। उन्हें अपन दिल की बात नहीं बताओगे तो अपने मतदाताओं तक कैसे पहुंचोगे। कैसे चुनाव जीतोगे। उन्हें कैसे पता चलेगा कि एक हंगामीलाल ही है जो उनके दुख दर्द में काम आएगा।

अरे कौन किस के काम आएगा.. मैं तो मेरे ही काम आ जाऊं जो बहुत।

अरे कहने के लिए,.. चचा कहने के लिए.. जीतने के लिए ऐसा कहना जरूरी होता है। कहने से ज्यादा सब तक पहुंचाना जरूरी होता। इसके लिए प्रेस को भी बुलाना जरूरी होता है। पर तुम घबराओं मत हम कुछ इन्तजाम करते हैं।

क्या करोगे।.

न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाला फार्मुला काम में लेना पड़ेगा। प्रेस कांफ्रेंस वाले रूम में एक बढ़िया कालीन बिछवाकर सबके जूते बाहर ही खुलवा देंगे। जब जूते ही अन्दर नहीं होंगे तो कोई कैसे फैंकेगा।

अरे जूता नहीं तो कोई पैन ही फैंक देगा। तब...

अरे चचा, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। पैन तो फैंका जा सकता है। पैन लाने से किसी को रोका भी नहीं जा सकता। एक काम करते हैं। पैन का भी जुगाड़ करते हें। प्रेस रिलीज सबको पहले ही पकड़ा देंगे और पैन का भी इन्तजाम कर लेंगे।

बेल्ट का क्या करोगे.. और भी न जाने क्या क्या, फैंक सकते हैं लोग.,. तुम क्या क्या उतरवाओगे..

चचा की इस बात पर हमारी जुबान पर ताला लग गया। हम भी सोचने लगे कि वाकई यदि लोग उतरवाने पर आ गए तो क्या क्या उतरवा सकते हैं।

लेकिन यदि आपके पास कोई जूताप्रूफ प्रेस कान्फ्रेंस करवाने का फार्मुला तो जल्द से जल्द बताना। परसों हमारे चचा की प्रेस कान्फ्रेंस जो है..

Monday, April 6, 2009

वो बे-कार और हम बदहाल

अरे कहां हो बरखुर्दार, तुम लोग क्या-क्या छाप देते हो...!

आवाज सुनते ही हमें यकीन हो गया कि हो न हो चचा हंगामी लाल आज कुछ झुंझलाए हुए हैं और पूरा मीडिया पुराण हम पर ही उतारने वाले हैं, पर वो किस खबर को लेकर लाल-पीले हो रहे थे, इस उत्सुकता से भरे हम उनकी और देखने लगे।

अब देखो.. तुमने छापा,, राहुल बे-कार,,, । अरे भाई लाखों दिलों पर राज करने वाला बेकार कैसे हो सकता है। वो तो निहायत ही काम का आदमी है बेकार होओगे तुम लोग जो उसे एक कार नहीं होने पर ही बे-कार करार दे रहे हो। अरे अभी तो उसकी परख भी नहीं हुई है। पहले जांचों परखो फिर कहो..।

अरे चचा काहे परेशान हो रहे हो वो तो जरा ऐसे ही तुकबंदी मिलाने के लिए लिख दिए थे पर आप परेशान क्यों हो रहे हो। वो बे-कार . कारदार हो आपको क्या,,,।

अरे वाह, मुझे कुछ कैसे नहीं। अब तुम मीडिया वाले तो चटखारे तलाशते हो, राहुल के पास यूं तो करोड़ों रुपए की सम्पति है पर तुम्हें उसका बेकार होना ही खबरगार लगा। वो एक और करोड़पति है जिसके पास कोई पुरानी खटारा है जिसे तुमने जम कर छापा साढ़े सात हजार की फिएट पद्ममिनी कार। तुमको तो कुछ चटखारा चाहिए, सो ठीक है पर हमें फिक्र अपनी है.. हमारी पोल खुलेगी तब तो तुम लोग हमारी तो कुछ भी इज्जत नहीं रखोगे। हमें एक लाइन भी नहीं दोगे।

देंगे कैसे नहीं, चचा तुम्हें भी पार्टी का टिकट मिला है। तुम शपथ पत्र भरो हम लिखेंगे, हंगामी के पास सवा सौ की साइकिल।,,

यही तो अफसोस है, तुम यह नहीं लिख सकते,... क्योंकि यह साइकिल तो हमारे पिता जी की है.. जो अभी गांव में हैं। इस हिसाब से यह उनकी सम्पति हुई।

ओ.. , चलो कोई बात नहीं तुम कुछ तो भरो हम उसी हिसाब से कुछ न कुछ जुगाड़ लगाएंगे और तुम्हें भी खबर लायक बनाएंगे।

अरे नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या, अब देखो हमारा घर, जिस में हम रहते हैं, वो हमारा नहीं है, किराए का है,. पिता जी ने किराए पर लिया..रिटायर हो कर वो तो गांव चले गए और हम यहीं रहते रह गए। पता नहीं किसका है, लेकिन हम रहते हैं तो हमारा ही है,, पर तुम तो जानते हो कि इसका जिक्र तो हम संपत्ति में नहीं कर सकते हैं न...भले ही यह शहर के बीचोंबीच है,., कोई बता रहा था, करोड़ों का है..। रही बात टीवी, कम्प्यूटर, सोफे और भी न जाने क्या क्या की तो वो सब हमारी धर्मपत्नी लाईं थीं। सो वो भी उनका है।

चचा कोई बात नहीं बैंक में एफ डी वगैराह तो होगी..

हां, है तो सही पर इनकम टैक्स वालों के चक्कर में सब रामलाल के नाम पर करवा रखी हैं।

ये रामलाल कौन है,., पहले कभी नाम नहीं सुना।

गांव में हमारे यहां खेत पर काम करता है। वो तो उसके नाम से मैं ही अंगूठा लगा देता हूं। उसे क्या पता।

अरे चचा तुम्हारे नाम जो खाता है.. जिसमें तुम्हारी तनख्वाह आती है.,वो तो होगा ,. उसमें कितने पैसे हैं,.,.

उसमें 323 रुपए हैं।

वाह चचा बस बन गया काम.,., तुम फिकर मत करो तुम्हारी वह झांकी जमेगी की दुनिया देखेगी...

हैडिंग होगा..

बदहाल हंगामीलाल के पास 323 रुपए

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