Saturday, April 10, 2010

इस्तीफे के साइड इफेक्ट

कई दिन हो गए हमें चचा हंगामी लाल के कुछ समाचार नहीं मिल रहे थे। सो आज हम सवेरे उनके कमरे पहुंच गए। वहां पहुंचे तो क्या देखते हैं, चचा बड़ी गम्भीर मुद्रा में अखबार हाथ में लिए पता नहीं क्या सोच रहे हैं, हम कहे सलाम चचा, कैसे हैं। हमारी आवाज सुन कर उदास से चचा के चेहरे पर कुछ चमक आई, बोले आओ भतीजे, बस ठीक हैं,,,,। चचा का जवाब कुछ गड़बड़ लगा, सो दुबारा पूछा, बात क्या है चचा कुछ तो बताओ,,। अरे यार अब क्या बताऊं, बेटा बस ये जरा आजकल माओवादियों की खबरों से चिन्ता हो रही है। हम कहे, सो तो है चचा, बात ही ऐसी है चिन्ता होनी ही चाहिए,,,इतने लोग जो मर गए,,। अरे नहीं भतीजे इतने लोग मर गए इससे चिन्ता नहीं हो रही है,, दरअसल वो अपने धोतीधारी गृहमंत्री की हालत देख कर चिन्तित हो रहा हूं। बेचारे के पास देने के लिए और कुछ नहीं तो इस्तीफा ही दे दिया। ,,, पर चचा इससे तुम क्यों चिन्तित हो,, । ,, देखो भतीजे,, तुम नहीं समझोगे,, तुम्हारा राजनीति से कोई लेना देना नहीं है न इसलिए ऐसा कह रहे हो। ये इस्तीफा देने की बात कोई आसान या सहज बात नहीं है, ,, इससे बहुत ज्यादा फर्क पड़ने वाला है,, इसके बहुत से साइड इफेक्ट सामने आएंगे,,,। राजनीति में जो लोग हैं उन्हें भुगतना पड़ेगा..। अब तुम देखो ,, ये बताओ,, ये जो देश है,, ये इतना बड़ा है कि क्या बताऊं,,,, यहां रोज कुछ न कुछ होता रहता है,, कहीं ट्रेन टकरा जाती है,, कहीं पुल गिर जाता है,, कहीं चीन सीमा में घुस आता है,, लब्बो लुआब ये कि कहीं भी कुछ भी हो जाता है,, यूं बात बे बात पर इस्तीफा देने लगे तो हो गया।,,,,, और संकट इस्तीफे का नहीं है,, संकट तो इस्तीफे के बाद का है,, मान लो तुम जैसे नासमझों ने इसे ठीक मान लिया,, इसे परंपरा बना लिया तो सोचो सारे राजनेताओं को इस्तीफा देना पड़ जाएगा, फिर मंत्री बनेगा कौन,, और कैसे,, भइया तुम समझ लो ,, बिना मंत्री देश कैसे चलेगा,, प्रदेश कैसे चलेगा,,। है ही नहीं कोई दूसरा उपाय हमारे सिस्टम में....। इनसे पहले शिवराज जी ऐसे ही थोड़े न अड़ गए थे,, कि नहीं देंगे इस्तीफा,, बहुत सही किया था,, उन्हें देश की चिन्ता जो थी.,। अब सोचो यदि शिबु गुरु जी सोच लेते की भाई मुकदमा चल रहा है,, हम कैसे मुख्यमंत्री बन जाएं,, तो क्या होता,, झारखंड कैसे चलता,, कोई मुख्यमंत्री ही नहीं बनता,, बिना मुख्यमंत्री कैसा प्रदेश। पूरे झारखंड पर संकट आ जाता। ,,, वो तो भला हो जो शिबु गुरु जी सोच समझ कर राज्यहित में डटे रहे कि , चाहे कोई संकट आ जाए मैं कर्तव्य पालन से नहीं हिचकूंगा,, डटा रहूंगा..। लालू जी भी बहुत कोशिश किए, डटे रहे,, शिवराज जी भी डटे रहे ,, तमाम लोग डटे रहे,, इन सबन ने मिल कर बड़ी मुश्किल से राजनेताओं को हर परिस्थिति में उनका काम करते रहने का मार्ग प्रशस्त किया था। अब ये चिदम्बरम फिर से उस लीक को बिगाड़ रहे हैं,,, अरे ऐसे नहीं होता,, वो तो भला हो मनमोहन का जो सब समझते हैं,, स्वीकार ही नहीं किया,, जो स्वीकार लेते तो बड़ी मुसीबत हो जाती ,,। अरे मैं देश के हिसाब से नहीं कह रहा, वो तो जो होगा सो होगा,, नक्सलियों से भिड़ने के लिए जो लोग हैं वो जुटेंगे,, उनका काम है,, हम सब उनके साथ हैं,,, । पर मैं राजनेताओं के हिसाब से कह रहा हूं,, हर राजनेता के लिए बड़ी मुसीबत हो जाती,, चलो अन्त भला तो सब भला,,,।
चचा की बात सुन,, हम क्या कहें हमें कुछ नहीं,, आया,, आपको समझ आया हो तो बताना,,,।