Saturday, December 22, 2007

केसीके जर्नलिज्म अवार्ड

केसीके अवार्ड
राजस्थान पत्रिका समूह ने समूह संस्थापक एवं मूर्धन्य पत्रकार कर्पूर चंद्र कुलिश की स्मृति में कर्पूर चंद्र कुलिश अवार्ड २००७ ( केसीके अवार्ड- २००७) की घोषणा की है।पुरस्कार का उद्देश्य व्यावसायिक मूल्यों में नीति, नैतिकता, अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा और मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने का उल्लेखनीय कार्य करने वाले मीडिया लीडर एवं पत्रकारों को सम्मान देना है। वर्ष २००७ के अवार्ड की थीम मानव विकास है। केसीके अवार्ड के विजेता को ११,००० यू एस डॉलर ( करीब साढ़े चार लाख रुपए) का एक पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। पुरस्कार के अलावा दस श्रेष्ठ प्रविष्टियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जाएगा जिन्हें प्रशस्ति पत्र व पदक प्रदान किए जाएंगे। प्रविष्टि में शामिल में न्यूज स्टोरी किसी दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित होनी चाहिए। अधिक जानकारी के लिए www. rajasthanpatrika.com/kckaward पर विजिट किया जा सकता है। पुरस्कार के लिए प्रविष्टियों की अन्तिम तिथि ३१ जनवरी २००८ है।

Saturday, December 8, 2007

गुजरात तय करेगा देश का भविष्य

गुजरात चुनाव वाकई महज एक राज्य के चुनाव तक सीमित रहने वाले चुनाव नहीं रह गए हैं। दरअसल ये चुनाव कहीं न कहीं दक्षिण औऱ वाम पंथ की लड़ाई को निर्णायक दौर में पहुंचाने वाले हो गए लगते हैं। भाजपा में कोई कारआमद नेतृत्व नहीं होने के चलते गुजरात के चुनाव के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा असर करेंगे। यदि गुजरात के नरेन्द्र भाई जीते तो उनके राज्य की राजनीति से आगे राष्ट्र् की राजनीति पर चमकने को तय मानिए। यदि वे खेत रहे तो राष्ट्रीय परिदृश्य से भाजपा के खेत होने की शुरुआत मानिए। भला हो बुद्धदेव का जो नंदीग्राम रच दिया औऱ वामपंथ औऱ दक्षिणपंथ का पलड़ा बराबर कर दिया वरना नरेन्द्र मोदी अकेले ही गोधरा को लेकर कोसे जाते और मुकाबला कड़ा नहीं हो पाता लेकिन अब मुकाबला आर पार का है। गुजरात तय करेगा कि हिन्दुस्तान में कौन जीतेगा। शायद इसीलिए राष्ट्रीय राजनीति में कम महत्वपूर्ण माने जाने वाला राज्य गुजरात के चुनाव में राष्ट्रीय मीडिया प्रणप्राण से जुट गया है। कवरेज करने नहीं बल्कि नतीजे प्रभावित करने में। कल की बात कर रहा हूं। एक औऱ तो अपने पंकज भाई एनडीटीवी पर पोरबंदर को चोरबंदर कहते हुए पिछले पांच साल में बंद हुई फैक्ट्रीयों का हिसाब किताब कर रहे थे। तो दूसरी ओऱ और आजतक औऱ हेडलाइन्स टुडे पर मोदी के समर्थन में ऑरकुट जैसी वेबसाइटों पर चल रहे अभियानों के बारे में जानकारी दी जा रही थी। कितना भयंकर विरोधाभास है, एक और ऑरकुट को संस्कृति पर खतरा बताने वाले लोग उसी की सहायता ले रहे हैं तो दूसरी ओऱ एक चैनल पूरी तरह विपक्ष की भाषा बोलता लग रहा है। सामान्यतया इस तरह के आरोप नेता प्रतिपक्ष अपनी प्रेस कांफ्रेंस में लगाता रहता है और प्रेस इसे इसी रूप में कवर करती है। स्वतंत्र प्रेक्षक के रूप में भारतीय मीडिया केवल माहौल की खबरें प्रसारित करने तक सीमित रहता दिखता रहा है। वो तथ्य प्रस्तुत करता है पर उसके नतीजे श्रोताओं, दर्शकों, पाठकों पर छोड़ता आया है, लेकिन इस बार खेल दूसरा लग रहा है। मीडिया तथ्य दे रहा है उसके नतीजे, निष्कर्ष दे रहा है और निर्णय के लिए एक लाइन भी दे रहा है। अब ये नीति कितनी कारगर होगी। कौन जीतेगा ये तो वक्त बताएगा लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि जब हर ओर से मोदी की एक तरफा जीत की खबरें आ रही हैं तो मोदी ने विकास का गीत गाते गाते, सोहराबुद्दीन मामले को उछालते हुए हिन्दुत्व की टेर क्यों लगाई। कुछ तो बात है? ......गुजरात के नतीजों का देश की जनता को बेसब्री से इन्तजार है। खासकर राजस्थान की जनता को जिसकी वर्तमान मुख्यमंत्री के कार्यकाल को आज ही के दिन चार साल पूरे हुए हैं। गुजरात के चुनाव मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के अगले साल की दिशा औऱ उनकी कार्यशैली को तय करेंगे। आज चार साल का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर जयपुर में विशाल रैली आयोजित की गई। इस सरकारी सफलता के जश्न में काफी तादात में लोग जुटे। जयपुर की हर सड़क पर अभूतपूवॆ जाम था। एक किलोमीटर की दूरी पार करने में लोगों को एक घण्टा लग गया। पर सरकारी जश्न था इसलिए सब कोई हंस कर सह रहा था। जो मिला वही पूछ रहा था कि रैली कैसी रही । एक दो लोगों ने बताया है कि कोई एक लाख लोगों ने शिरकत की है। इस लिहाज से रैली सफल कही जाएगी। लेकिन इस भीड़ से भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होगा गुजरात की मतपेटी से निकलने वाला जिन्न। वह जिन्न राजस्थान ही बल्कि पूरे देश की भावी राजनीति को तय करने वाला है। यदि नरेन्द्र मोदी फिर गुजराते अगले मुख्यमंत्री होते हैं तो तय मानिए की वे भी मायावती की ही तरह एक न एक दिन लाल किले से भाषण देने के दावेदार बन जाएंगे। देखिए क्या होता है। पर गुजरात की दिलचस्प लड़ाई विधानसभा क्षेत्रों के साथ ही न्यूज चैनलों पर भी है। देखते रहिए औऱ मुस्कुराते रहिए,क्योंकि होगा वही जो मतदाता चाहेगा। और वो चाहता है किसी को कहता नहीं बस करता है. परिणाम अपना रंग दिखाएंगे और उसके बाद यही चैनल उसका विश्लेषण करते रहेंगे।

Friday, December 7, 2007

लिंक रोड , न केवल डेस्टिनेशन बल्कि जिंदगियां भी लिंक

लड़कियां-लड़कियां-लड़कियां ही लड़कियां, जिधर देखो उधर लड़कियां जाने अपनी अतिशय खूबसूरती के कारण या बदसूरती के कारण, लेकिन स्कार्फ बांधे चेहरा छुपाए, टाइट जींस औऱ शॉर्ट और बदन से चिपके हुए टॉप में अपने बदन के आकारों की नुमाइश करती लड़कियां। दो-दो चार चार के समूह में लड़कियां, हंसती खिलखिलाती औऱ किसी लड़के को अपनी और देखता पा कर झटका सा खाती लड़कियां। सड़क के इस छोर से उस छोर तक जहां देखो वहां खड़ी हैं लड़कियां।
शहर के एक मशहूर गर्ल्स कॉलेज के आगे से गुजरिए लड़कियां दिखाई देंगी। आप कहेंगे लड़कियां गर्ल्स कॉलेज बाहर नहीं तो क्या किसी ओनली फॉर बॉयज कॉलेज के बाहर दिखेंगी? सही है बात सामान्य है पर नजारा खास है। कॉलेज के बाह एक सर्कल है औऱ सर्कल जाहिर है चौराहे के बीच है। जब चौराहा है तो चार रास्ते भी हैं। एक रास्ता देश के प्रथम प्रधानमंत्री के नाम पर है तो दूसरा विश्वविद्यालय के घने जंगलों में खोना चाहता है। जो चौथा रास्ता है वो शहर की एक अन्य जीवनरेखा जा मिलता है औऱ अपने आप में मील का पत्थर है। कहने को यह रास्ता महज लिंक रोड है लेकिन जानने वाले जानते हैं कि यह आम रास्ता कितना खास है।
सूबे के बहुत से खास लोगों की ख्वाबगाह इसी रास्ते पर है। तो हम जान रहे थे कि ये लिंक रोड खास क्यों है। शुरुआत में ही जिन ढकी सी उघड़ी सी, शर्मिली सी, बेहया सी लड़कियों का जिक्र हुआ है वे अक्सर इसी लिंक रोड पर पाई जाती हैं। वैसे तो यह लिंक रोड छोटी सी है कुछ सौ मीटर लम्बी। पर आशिकमिजाज लोग इसे पार करने में घण्टों लगा देते हैं। उन्हें आशिकमिजाज कहना आशिकी की तौहीन हो सकती है। पर इस लिंक रोड पर ऐसी कई तौहीनें रोज होती रहती है।
लड़की धीमे- धीमे चली जा रही है। पीछे पीछे एक लड़का चला जा रहा है। लड़के के होठ हिल रहे हैं। मानो कुछ कह रहा है, लगता है लड़की सुन रही है, तभी तो बार बार उसका सिर हिलता जा रहा है, राम जाने हां कर रही है या नो कमेंट्स कह रही है। पर चाल बदस्तूर जारी है। सड़क खत्म हो रही है पर बात खत्म नहीं हो रही । न लड़की टल रही है न लड़का हट छोड़ रहा है। बात पूरी नहीं हुई इसलिए लड़की ने साइड बदली औऱ वापस चलना शुरु कर दिया। अब तक जो ट्रेक अप था अब डाउन हो गया है। ट्रेन पहले जा रही थी अब आ रही है। सिचुएशन वही है, अब लड़के के हाथ भी हिल रहे हैं। दोनों के बीच गैप कम हो गया है। लड़की अब सिर हिलाते हिलाते बीच बीच में कभी कभार हंस भी रही है। वापस सड़क खत्म हो रही है। और ये क्या सड़क खत्म हो गई। लड़की फुटपाथ के एक किनारे पर ठहर गई। उसे ठहरा देख लड़के ने अपना हाथ हवा में हिलाया और एक होंडा मोटरसाइकिल आ कर लड़के के पास रुक गई। मोटरसाइकिल लाने वाले सज्जन ने बड़ी आत्मीयता से उतर कर हेलमेट लड़के को थमाया। तब तक कुछ दूर खड़ी लड़की ने स्कार्फ निकाल और मुहं पर बांधने लगी। लड़के ने हेलमेट पहना औऱ मोटरसाइकिल पर सवार हो किक से उसे स्टार्ट किया। मोटरसाइकिल घुमाई और लड़की के पास रोकी। देखने वाले समझ रहे थे कि दोनों के बीच सब खत्म हो गया लेकिन ये क्या, लड़की बिना समय गंवाए मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठी और मोटरसाइकिल ये जा और वो जा.......।
इस दौरान लिंक रोड पर लड़कियों की संख्या बराबर उतनी ही बनी हुई थी। हां, इस बीच लड़कों के साथ बाइक पर बैठ कर जाने वाली लड़कियों की तादाद भी खासी थी। कुल मिला कर लिंक रोड लड़कियों को कॉलेज से शहर की जीवन रेखा मानी जाने वाली सड़क तक तो पहुंचा ही रही है, लेकिन साथ ही उनकी जीवन रेखा भी संवार रही है। है ना कमाल, लिंक रोड। आपके शहर में भी ऐसी कई लिंक रोड होंगी जरा कुछ देर रुक कर देखिएगा कैसे रोचक नजारे होते हैं। मुस्करा ना पड़ें तो कहियेगा।

Tuesday, December 4, 2007

पानी अमृत या कुछ और जयपुर आइए और देखिए



जयपुर को आप किस रूप में जानते हैं, जाहिर है गुलाबी शहर के रूप में या देश के पहले नियोजित शहर के रूप में ही जानते होंगे। बहुत ज्यादा हुआ तो अब रिअल एस्टेट के क्षेत्र में उभरते बड़े डेस्टिनेशन के रूप में जानते होंगे। राजस्थान की राजधानी के रूप में भी आपका इससे परिचय तो होगा ही। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि यह शहर पानी के लिए भी जाना जाएगा। और वो भी नेगेटिव रूप में। इन दिनों जयपुर में पानी अमृत नहीं है। यहां दूषित पानी पीने से लोग मर रहे हैं। भारत के सबसे बड़े राज्य की राजधानी में पिछले कई दिनों से यह कहर बरप रहा है। सड़ी गली पाइप लाइनों में मिले सीवर के मल ने नल से निकल कर लोगों के प्राण हरने शुरु कर दिये हैं। जब से जयपुर आया हूं यहां के अखबारों में एक खबर हर दूसरे तीसरे रोज एक स्थायी कॉलम की तरह पढ़ता आया हूं। नलों से निकला लाल पानी। बदबूदार पानी, या नीला पानी। यानी पानी के दूषित होने की बात कहने वाले समाचार यहां के अखबारों की पेज तीन की लीड बनते आये हैं। लेकिन जाने क्या बात है कि इतना सब होने के बाद भी कभी यहां की पेयजल व्यवस्था दुरुस्त नहीं हुई। अब जब दूषित पानी से मौतों का सिलसिला शुरु हुआ है अफसर औऱ मंत्री अपना मुंह छिपाते घूम रहे हैं । लेकिन इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ना। हम हिन्दुस्तानियों की फितरत ही एेसी है कि हमसे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, खुद हमें भी नहीं। कुछ दिन हम हल्ला मचाएंगे, जोर जोर से चिल्लाएंगे। और फिर चुप हो जाएंगे। चुप्पी तब तक जब तक फिर से कोई घटना नहीं घट जाए। फिर हल्ला औऱ फिर चुप्पी। यही क्रम है । और इस क्रम को सरकारी बाबुओं अफसरों की जमात अच्छी तरह समझ चुकी है। वो बर मौके का इन्तजार करती है,कब किस गाय से कितना दूध दूहना है,कब उसे बेकार कह उसकी बोली लगानी है,कब उसका रोम रोम बेच खाना है, और कब उसके बिक जाने पर हल्ला कर लोगों को याद दिलाना है कि है कि गाय तो हमारे लिए पूजनीय है, जो हुआ सो हुआ पर अब यह सुनिश्चित करना है कि फिर कोई दूसरा गाय का दूध न दूह पाए। लोग इकट्ठे होंगे हां, में हां मिलाएंगे, वाह क्या अफसर है, कहेंगे। और दूसरे दिन उसी अफसर के हाथों किसी अन्य गाय का दूध दूहे जाते देखेंगे। यही हाल जयपुर के जलदाय विभाग के अफसरों का है। सालों से खराब पाइप लाइन की दुहाई दे रहे हैं। लेकिन हर बार साल छह महीने में बदल जाने की खबरें प्रकाशित कर इतिश्री कर देतेहैं । जाने हकीकत में पाइपलाइन बदलती भी या नहीं। बस हमारी तो एक ही दुआ है कि कम से कम भगवान तो जयपुर पर कृपा बनाए रखें और गोविन्ददेव जी के इस शहर में अब पानी अमृत की जगह जहर न बने।

Monday, December 3, 2007

ब्लॉग वर्ल्ड के साथियों, मदद करो...नारद के फोन्ट नहीं दिख रहे


साथियों, काफी कोशिशों के बावजूद में एग्रीगेटर नारद और कई चिट्ठों में लिखी देवनागरी स्क्रिप्ट नहीं पढ़ पा रहा हूं , मुझे स्क्रीन पर शब्दों के स्थान पर केवल डॉट्स दिखाई दे रहे हैं। और ऐसा केवल चिट्ठों की प्रिविष्ठिओं के साथ हो रहा है। साइड बार में लिखे शब्द आसानी से पढ़े जा रहे हैं। मैंने इन्टरनेट ऑप्शन्स में जा कर ठभई कोिश की है। लेकिन बात कुछ बन नहीं पाई है। मेरे सिस्टम में विण्डोज एक्स पी लोड है। यदि कोई साछई मेरी मदद करेगा को आसानी होगी। कृपया बताएं कि किस प्रकार नारद का फोण्ट पढ़ा जा सकता है। सधन्यवाद।

Sunday, December 2, 2007

आजा नच ले में माधुरी के जलवों पर बहन जी की लगाम


इस शुक्रवार को सिल्वर स्क्रीन पर माधुरी दीक्षित की आजा नचले का पदार्पण हुआ। पांच साल बाद हुई माधुरी यह वापसी जितनी धमाकेदार होनी चाहिए थी, उतनी धमाकेदार साबित नहीं हो पा रही थी। शुक्रवार शान्ति के साथ बीता तय होने लगा कि माधुरी की वापसी मजेदार नहीं की शाम करीब आठ -साढ़े आठ बजे न्यूज चैनलों का स्क्रॉल बार दनदनाने लगा। ब्रेकिंग न्यूज मायावती ने लगाया आजा नच ले पर बैन, आजा नच ले यूपी में बैन। बस फिल्म को जैसे जीवनदान मिल गया हो। पूरी रात सारे न्यूज चैनलों पर आजा नचले के बैकग्राउण्ड में एंकर फिल्म और माधुरी के बारे में बताते रहे। जब मामला जातिवाद की राजनीति से जुड़ जाए तो उसे तूल पकड़ते कितनी देर लगती है, देखते ही देखते और भी कुछ राज्यों के बैन लगाने की खबर प्रसारित होने लगी। वाह रे राजनीति। ओमकारा जैसी गालियों से भरी फिल्म पूरे हिन्दुस्तान में पूरे शान से चली। और भी पता नहीं कितनी फिल्मों में जाने कितने डॉयलाग्स के मन चाहे मतलब निकाले जा सकते थे, लेकिन बहन जी को इसी फिल्म के एक गीत के बोल अखरने थे औऱ तुरन्त दान महादान की तर्ज पर सीधे बैन का फरमान जारी कर दिया। हो सकता है अगली बार से निर्माता उत्तर प्रदेश में फिल्म दिखाने से पहले बहनजी को स्पेशल स्क्रीनिंग की परम्परा शुरु कर दें। सेंसर बोर्ड को जिस पर आपत्ति नहीं हो उसे बहनजी बैन कर सकती हैं, और बहनजी की देखा देखी और राज्य भी। समांतर सेंसर बोर्ड की नई परम्परा शुरु हो सकती है। बढ़िया है फिल्म पर कई कैचिंया चलेंगी तो फिल्म औऱ मजबूत ही होगी। बहरहाल विवाद सुलझ गया है, फिल्म निर्माता ने माफी मांग ली है औऱ माधुरी का जलवा फिर से यूपी के सिनेमाघरों में दिख रहा है। एक डुबती फिल्म को बहनजी ने बचा लिया। पर इससे फिल्म निर्माताओं को बहुत कुछ समझ आ गया होगा।