Friday, November 9, 2018

मृत्यु इच्छा और जीवन की आस

' डॉक्टर, मैं अपने जीवन का अन्त नहीं कर सकता, मुझे मरने से बचा लो। आपको मुझे बचाना ही होगा। इसलिए नहीं कि मुझे मरने से डर लगता है, बल्कि इसलिए कि जब भी जीवन की कठिनाइयों से घबरा कर उसने मुझ से मरने की बात कही, मैंने हर बार उसे समझाया, उससे वादा लिया कि वो कभी ऐसा कुछ नहीं करेगी। सच कहूँ तो मुझे मृत्यु के सिवाय हर चीज़ से डर लगता है। एक बार मैं उसके साथ एक झील की सैर पर गया था। हम पैडल बोट में बैठे थे और पास से एक तेज़ स्पीड में मोटरबोट गुज़री थी जिसकी लहरों से हमारी पैडल बोट डगमगा उठी थी, पता है डॉक्टर उस पल मुझे बहुत डर लगा था। और मुझे डरते देख उसने मेरा हाथ थाम कहा था, कुछ नहीं होगा प्रिय कुछ नहीं और बस वह एक पल था जब मुझे वाक़ई डर नहीं लगा।
डॉक्टर, आप पूछना चाह रहे होंगे ना कि जब मैं अपने जीवन का अन्त नहीं करना चाहता तो फिर क्यों मुझे ऐसा करने की इच्छा होती है? क्यों मुझे लगता है कि जैसे अगला ही पल ऐसा हो कि मुझे फिर साँस ना लेनी पड़े। मैं इस दुनिया के इन रास्तों से दोबारा नहीं गुज़र पाऊँ। तो सुनिए डॉक्टर, मुझे भी प्यार हुआ था। हालाँकि ऐसा संभव नहीं था पर ऐसा हुआ। शायद इसलिए कि क्यूँकि हर जीवन की एक कहानी होती है और हर एक को ज़िन्दगी में कभी ना कभी प्रेम भाव का अहसास होता ही है। शायद प्रकृति ने जैसे विभिन्न प्रकार के जीव रचे हैं उसी प्रकार सारे भाव सबको अनुभूत करवाना भी उस ईश्वर का एक नियम है । शायद अपनी यही रस्म पूरी करने को उसने मुझे उससे मिलाया। जानते हैं डॉक्टर, एक वक़्त था जब मुझे लगता था जैसे ये सारे फ़िल्मी गीत बस महज़ तुकबंदी हैं लेकिन उससे मुलाक़ात के बाद फिर पता चला कि नहीं यह गीत महज़ शब्दों को जोड़कर तुक मिलाकर मीटर में डालकर लिखी चंद पंक्तियाँ नहीं है बल्कि यह तो हज़ारों लाखों दिलों से निकली आवाज़ें हैं जो दो अलग अलग लोगों के मनोभावों की अभिव्यक्ति हैं। बस यही अभिव्यक्ति यही है अभी मेरी सारी तकलीफ़। मैं। अपनी पीड़ा अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ ।
डॉक्टर, वह मेरा जन्मदिन था जब पहली बार उसकी रेशमी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी थी। और बस उसके बाद कोई जन्मदिन नहीं गुज़रा जब उसने मुझे किसी भी प्रकार से विश नहीं किया हो ..... बस पिछले जन्मदिन तक....। डॉक्टर, आप कहेंगे कि सारी कहानियाँ मुकम्मल नहीं होतीं। तुम्हारी भी नहीं हुई। पर मुकम्मलता का अर्थ अलग अलग होता है हमारी कहानी यूं ही रहेगी, यूं ही चलेगी इसका अंदाजा तो कहानी के शुरू होने से पहले ही था। इस सबके बीच भी हम साल दर साल एक दूसरे को जानते समझते और याद करते रहते थे। कहीं कहीं किन्हीं किन्हीं खिड़कियों से बतिया लेते थे । किन्हीं दरवाज़ों से झाँक लेते थे। किन्हीं दरारों से मन को भाव सरका देते थे। जीवन के संघर्षों की बात करूँ तो मैं वो अथाह संघर्षों से दो चार होती रही। कभी अकेली कभी उसके परिवार के सम्बल से। मैं तो बस दूर से देखता भर रहा। चाह कर भी कभी उसके संघर्षों का साथी नहीं बन पाया। कभी जब उसने पुकारा भी तो मेरी भीरूता आड़े आ गई। पर सच है स्त्री संघर्षों से कभी हार नहीं मानती वह तमाम संघर्षों से पार पा अविजित ही जीवन भँवर का संग्राम विजित करती है। डॉक्टर वह भी अपने परायों के घर बहार के सभी संघर्षों से पार पाती रही। और मैं बस दूर से उसे देखती रहा। उसके कई साहसी निर्णयों से घबराया पर उसके साहस के समक्ष नतमस्तक रहा। कई बार लगता रहा कि जाने कितने संकटों संघर्षों का कारक तो मैं ही हूँ। पर सच कहूँ तो डॉक्टर अकबर के महल में जलते दिए को देख ठंडी यमुना में रात गुज़ार देने वाले ज़र शख़्स की तरह ही जीवन चक्र चल रहा था। पर डॉक्टर पिछला जन्मदिन था जब आस निराश हो गई। पहली बार था जब इन्तज़ार बस इन्तज़ार ही रह गया। और अब उस तक पहुँचा नहीं जा सकता । उस तक अपनी बात पहुँचाई नहीं जा सकती। और विडम्बना यह कि यह पता भी नहीं कि क्यूँ नेह का यह धागा यूँ टूट गया। पता है डॉक्टर मन की पीड़ा बहुत भारी हो जाती है शायद तब अत्यधिक असहनीय जब आप इसे किसे से साझा नहीं कर पा रहे हों । कुछ तो कहो डॉक्टर , किसी तरह तो मेरी इस मृत्यु इच्छा से मुझे मु्क्त करो।
और एकाएक मैंने डॉक्टर के दोनों कंधों को पकड़कर उसे कस कर झिंझोड़ दिया। मेरी इस प्रकार की विकलता देख डॉक्टर ने ख़ुद को मेरी पकड़ से छुड़वाया और अपनी कुर्सी से खड़ी हो गयी । उसने अपने कमरे की खिड़की के पर्दे को सरका दिया । खिड़की में से फ़्लाइओवर पर अस्त होता सूरज दिख रहा था।
‘देखो, वो सूरज अस्त हो रहा है, कुछ देर में अंधेरा हो जाएगा। गहरा क्यूँकि आज अमावस है। आज चाँद भी नहीं होगा। पर क्या इस अंधेरे से तुमको डर लग रहा है? मैंने कहा , नहीं।
क्यूँ ?
यह अंधेरा तो कुछ देर का है अभी थोड़ी देर बाद लोग सो जाएँगे ।यही जाता हुआ सूरज फिर लौट कर आएगा तब सुबह हो जाएगी। जब लोग उठेंगे तब हर तरफ़ उजाला होगा ।
तो बस फिर मत घबराओ, जैसे सूरज लौटा है वैसे ही जो तुमसे दूर हुआ है वो भी लौट कर आएगा । बस रात के गुज़रने का इन्तज़ार करो। चाहे जाग कर चाहे सो कर। बस इस रात को गुज़र जाने दो । तुम्हारे जीवन की भी सुबह भी होगी । तुम भी उस रेशमी आवाज़ को फिर सुनोगे। बस अपना भरोसा मत ख़त्म होने देना।
थैंक्यू डॉक्टर, मैं रहूँगा यहीं इस छोर उस सुबह के होने तक। बस देखना है तो इतना कि जीवन की जंग में जीत किसकी होती है, मृत्यु इच्छा की या आस के उजास की।
- अभिषेक सिंघल