फिर
चाँद मुस्कुराया
अपनी दोनों हथेलियों को उसने
एक दूजे से मिलाया
जैसे मिला रहा हो
दो ध्रुवों के आसमान
चांदनी मुस्काई
भाग्य का क्यूँ करते हो भरोसा
ज़ब कहते हो भरम है जीवन
क्यूँ देखते हो बार बार हथेलियाँ
छिपती नहीं बेबस चाँद की फीकी हँसी
किसी बादल की ओट में
ज़बरन ओढ़ चपलता
पगली
तुम साथ हो तो रेखाएँ भी हैं
परिक्रमा पथ पर सितारे भी हैं
जगमग
भले अमावस्या की राह बढ़ रहे हैं
पर पूनो के उजियारे का भरोसा है
कौन जाने कितना वक़्त
बने रहे हम यूँ ही नादान
जब जागेगी समझदारी
बनेगी चौकीदार दुनियादारी
तपेगा क़ायदों का सूरज
उड़ जाएगी संबंधों की नमी
रह जाएगी यादों की उष्णता
तब भले ही बदल जाएँ
इन रेखाओं की दशा
रहेगा अँजुरी भर जल का वचन
अटका छिपा सहेजा हुआ
रेखाओं की इन खाईयों में
गुज़रते समय में स्मृति पाषाण बन
गहरे गहरे और गहरे
धँसता चला जाएगा वो जल
उन्हीं इन हथेलियों में
जिनमें सदा रहेगा तुम्हारी हथेलियों का ताप
सच है हथेलियाँ मिलाने से
नहीं मिल जाते दो ध्रुव
रह जाता है बीच में आसमान