Saturday, September 18, 2010

राजस्थान के 23 जिलों में खाद्यान्न असुरक्षा ,food insecurity, rajasthan,

राजस्थान प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न उपलब्धता एक संकट के रूप में उभर रही है। संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और इन्स्टीट्युट ऑफ ह्युमन डवलपमेंट की खाद्यान्न सुरक्षा एटलस  के अनुसार  राजस्थान के 33 में से 23 जिलों में खाद्यान्न और पोषण के गम्भीर संकट से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। प्रदेश के सात जिलों को छोड़कर अन्य में पांच साल से कम आयु की शिशु मृत्यु दर प्रति हजार शिशुओं पर 100 से भी अधिक है। और यह राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। इसी प्रकार पांच जिलों को छोड़ कर प्रदेश के अन्य हिस्सों में हर दूसरा बच्चा औसत से कम वजन का है। हालांकि जहां देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों का प्रतिशत 28 है राजस्थान में यह 22 फीसदी ही है।
खाद्यान्न असुरक्षा वाले जिले- बांसवाड़ा, डूंगरपुर, राजसमंद, बाड़मेर, जैसलमेर, पाली, सिरोही, बीकानेर,जालोर,नागौर, जोधपुर,अजमेर, भीलवाड़ा, करौली, सवाईमाधोपुर,टोंक, धौलपुर,बारां, चित्तौड़गढ़, झालावाड़ और बूंदी।  ( नवगठित जिला प्रतापगढ़ भी चित्तौड़गढ़ से अलग होने के कारण इसी सूची में शामिल होगा। इस प्रकार कुल जिले 23 हो जाएंगे।)

Tuesday, September 14, 2010

सही कहा राहुल ने ...,NAREGA.

राहुल गांधी ने स्वीकारा है कि देश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार है। उनके पिता राजीव गांधी ने भी स्वीकारा था कि दिल्ली से चला एक रुपया गांव तक जरूरतमंद के पास पहुंचते पहुंचते घिस कर 14 पैसे रह जाता है। उनकी दादी इंदिरा गांधी ने भी भ्रष्टाचार को स्वीकारा था। तो देश का सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य की देश के सबसे शक्तिशाली परिवार के सभी प्रमुख लोग भ्रष्टाचार को स्वीकारते तो हैं पर वह खत्म नहीं होता है। राहुल ने थोड़ी व्यवहारिक बात कही कि आरोप हर कोई लगाता है, पर नियंत्रण के वक्त कोई भी साथ नहीं होता है। नियंत्रण कि बात करने वाला अकेला खड़ा मिलता है। राहुल की यही बात राजस्थान में शत प्रतिशत सच साबित हो रही है। नरेगा में भ्रष्टाचार की गंगा नहीं बल्कि समुद्र बहने के आरोप लगे थे। सामाजिक अंकेक्षणों और राज्य सरकार की जांचों में भ्रष्टाचार होना साबित हो रहा था। इस पर प्रदेश के पंचायती राज मंत्री भरत सिंह ने मुख्यमंत्री की सहमति से भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के उपाय किए थे। लेकिन जैसे उन्होंने बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। उनकी ही पार्टी के  विधायक उनका विरोध करने लगे। केकड़ी के कांग्रेसी विधायक रघु शर्मा ने तो विधानसभा में ही भरत सिंह को मानसिक अवसाद ग्रस्त करार देते हुए उनके डॉक्टरी इलाज जैसी गंभीर बात तक कह दी। विधानसभा के बाहर पूरे प्रदेश के सरपंच आंदोलन पर उतारू हो गए यह किसी से छुपा नहीं है। अब खबर है कि राजस्थान सरकार नरेगा में खरीद के अधिकार फिर से ग्राम पंचायत स्तर पर देने पर विचार कर रही है। सरपंचों की मांगों पर विचार करने वाली समिति ने इसकी सिफारिश सरकार को की है। इसी अधिकार को वापस पाने के लिए प्रदेश भर के सरपंच संघर्ष कर रहे थे। यानी जिस भ्रष्टाचार को रोकने की पहल की गई थी। वो पहल अब वापस हो जाएगी। लूट लो जितना चाहो उतना। राहुल की ही बात को उसकी ही पार्टी की एक प्रदेश सरकार साबित कर रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ पहल करने वाला अकेला ही खड़ा रह जाएगा। अब इसे क्या कहा जाए,,,।

Monday, September 13, 2010

हिन्दी का मौसमी बुखार,hindi divas

कल हिन्दी दिवस है और हम हिन्दी के सिपाही बनने के लिए बेचैन हो रहे हैं। पर पता नहीं क्यों मुझे लग रहा है जैसे हमें कोई श्मशानिया बैराग जागने लगा हो। मन बहुत बेचैन होने लगा है। कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या किया जाए। चलो चचा हंगामी लाल से ही कुछ पूछा जाए। थोड़ी खोज खबर करने पर चचा मिल ही गए।
हमने कहा चचा आज मन कुछ बेचैन हो रहा है।
बोले क्यों लाला क्या बात हो गई।
हमने अपनी व्यथा कथा उन्हें सुनाई। बिना पूरी बात सुने ही उन्होंने कहा,, अरे ऐसी कोई बात नहीं है तुम ज्यादा फसट्रेट मत होओ,, ये टाइमिंग की बात है, ऑटोमेटिकली ठीक हो जाएगी।
उनके इस एक वाक्य में तीन तीन अंग्रेजी के शब्द सुनते ही हमारा सोया हिन्दी प्रेम यकायक जाग उठा। सत्यानाश हो चचा, तुम्ही जैंसे लोगों ने हिन्दी का बेड़ा गर्क किया है।
क्यों भाई मैंने क्या कर दिया।
अरे अभी देखो आपने ही तो इतनी अंग्रेजी झाड़ दी। क्या आप फस्ट्रेट की जगह तनाव और टाइमिंग की जगह समय -समय तथा ऑटोमेटिकली की जगह अपनेआप का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।
अरे ऐसा क्या,, सॉरी भाई सॉरी अब से ध्यान रखूंगा।
फिर सॉरी,, अंग्रेज चले गए इन्हें छोड़ गए।
अरे गलती हो गई भतीजे, काहे गरम होते हो,, अबकी बार अगर अंग्रेजी का एक शब्द भी बोला तो तुम जो चाहो कर लेना, प्लीज भतीजे मान जाओ।

इतना सुनते ही अपने राम ने कुछ और कहने की बजाय आगे बढ़ना ही उचित समझा,, और साथ ही यह भी समझ आ गया कि हमारा सोचना ठीक ही है,, हमें ये मौसमी बुखार ही हुआ लगता है,, अब तो मौसम के गुजरने के बाद ही पता चलेगा की बुखार आगे भी बरकरार रहता है या नहीं। ,,,, आप सब गवाह हैं,,,। याद रखिएगा

Sunday, September 12, 2010

हिन्दी दिवस,hindi, hindi day,hindi divas,14 september

ham १४ सितंबर को ही हिन्दी दिवस क्यों मनाते हैं...


हिन्दी दिवस एक बार फिर से सम्मुख है। हम हिन्दी की बात कर रहे हैं। उसको अपनाए जाने की बात कर रहे हैं। पर हिन्दी दिवस मनाते ही क्यों हैं, हिन्दी तो एक शाश्वत भाषा है उसका कोई जन्मदिवस कैसे हो सकता है। पर हमारे यहां है, जिस धरती की वह भाषा है जहां उसका विकास उद्भव हुआ वहां उसका दिवस है। और दिवस भी यों नहीं बल्कि यह दिन याद कराता है कि हिन्दी उसका दर्जा देने के लिए देश की संविधान सभा में जम कर बहस हुई। हिन्दी के पक्षधर भी हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेजी में बोले।
संविधान सभा में हिन्दी की स्थिति को लेकर 12 सितंबर, 1949 को 4 बजे दोपहर में बहस शुरू हुई और 14 सितंबर, 1949 को दिन में समाप्त हुई। बहस के प्रारंभ होने से पहले संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अंग्रेज़ी में ही एक संक्षिप्त भाषण दिया। जिसका निष्कर्ष यह था कि भाषा को लेकर कोई आवेश या अपील नहीं होनी चाहिए और पूरे देश को संविधानसभा का निर्णय मान्य होना चाहिए। भाषा संबंधी अनुच्छेदों पर उन्हें लगभग तीन सौ या उससे भी अधिक संशोधन मिले। 14 सितंबर की शाम बहस के समापन के बाद भाषा संबंधी संविधान का तत्कालीन भाग 14 क और वर्तमान भाग 17, संविधान का भाग बन गया तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा, अंग्रेज़ी से हम निकट आए हैं, क्योंकि वह एक भाषा थी। अंग्रेज़ी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है। इससे अवश्य हमारे संबंध घनिष्ठ होंगे, विशेषतः इसलिए कि हमारी परंपराएँ एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि या तो इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुद्धिमानी का कार्य किया है और मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी संतति इसके लिए हमारी सराहना करेगी।
इस प्रकार 14 सितंबर भारतीय इतिहास में हिन्दी दिवस के रूप में दर्ज हो गया।
(अब यह भावी संतति, यानी हम पर है कि हम हिन्दी को यह सम्मान देने के लिए उनकी सराहना करते हैं या नहीं)
संवैधानिक स्थिति के आधार पर तो आज भी भारत की राजभाषा हिंदी है और अंग्रेज़ी सह भाषा है, लेकिन वास्तविकता क्या है यह किसी से छुपी नहीं है।
13 सितंबर 1949 को प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भाषा संबंधि बहस में भाग लेते हुए कहा, किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता। क्योंकि कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती। भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बहस में भाग लेते हुए हिंदी भाषा और देवनागरी का राजभाषा के रूप में समर्थन किया और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय अंकों को मान्यता देने के लिए अपील की। उन्होंने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए संविधान सभा से अनुरोध किया कि वह ''इस अवसर के अनुरूप निर्णय करे और अपनी मातृभूमि में राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में वास्तविक योग दे।'' उन्होंने कहा कि अनेकता में एकता ही भारतीय जीवन की विशेषता रही है और इसे समझौते तथा सहमति से प्राप्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम हिंदी को मुख्यतः इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि इस भाषा के बोलनेवालों की संख्या अन्य किसी भाषा के बोलनेवालों की संख्या से अधिक है - लगभग 32 करोड़ में से 14 करोड़ (1949 में)। उन्होंने अंतरिम काल में अंग्रेज़ी भाषा को स्वीकार करने के प्रस्ताव को भारत के लिए हितकर माना। उन्होंने अपने भाषण में इस बात पर बल दिया और कहा कि अंग्रेज़ी को हमें ''उत्तरोत्तर हटाते जाना होगा।'' साथ ही उन्होंने अंग्रेज़ी के आमूलचूल बहिष्कार का विरोध किया। उन्होंने कहा, ''स्वतंत्र भारत के लोगों के प्रतिनिधियों का कर्तव्य होगा कि वे इस संबंध में निर्णय करें कि हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं को उत्तरोत्तर किस प्रकार प्रयोग में लाया जाए और अंग्रेज़ी को किस प्रकार त्यागा जाए।

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हिन्दी में काम करें,,
कई दिनों से एक प्रश्न मन में लगातार उठ रहा है। हमारे यहां सरकारी भाषा हिन्दी क्यों नहीं है। क्या कभी गौर किया है थाने में पुलिस का हवलदार जो भाषा काम में लेता है वो अंग्रेजी नहीं होती और न ही वह हिन्दी होती है। वह होती है उर्दुनुमा हिन्दी। इसी तरह कोर्ट में जो भाषा काम में ली जाती है वो होती फारसीनुमा हिन्दी। सरकारी दफ्तरों में जो भाषा काम में ली जाती है वह होती है अंग्रेजी। सभी तरह के परिपत्र अंग्रेजी में जारी होते हैं। सभी नियम उप नियम अंग्रेजी में बनते हैं। सभी एक्ट अंग्रेजी में बनते हैं। ऐसा क्यों..... इसको लेकर हम कोई आंदोलन क्यों नहीं करते।
यहां राजस्थान में राजस्थानी बोली को लेकर तो आंदोलन शुरु हो गया है,पर हिन्दी को लेकर कोई आग्रह क्यों नहीं है। मेरा अंग्रेजी से विरोध नहीं है। वह भी पढ़ाइये बल्कि पूरे मन से पढ़ाइये। ताकि हम प्रतिस्पर्धा के अनुकूल बने रह सकें। पर हमें रोजमर्रा के कामकाज में अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी को प्रतिस्थापित करना ही होगा। और अंत में मेरा फिर सभी से आग्रह हमें हिन्दी में काम करना चाहिए और इसे कम से कम नारा से ज्यादा एक आंदोलन के रूप में लें।
सादर