Monday, October 29, 2007

पिछली बार प्रकाशित ब्लोग बज




राजस्थान पत्रिका के जयपुर सिटी सप्लीमेंट में दिनाकं २५ अक्तूबर को प्रकाशित। आप सब के उत्साहवर्द्धक रेस्पोंसे से प्रेरित होकर मैं पिछली बार प्रकाशित कालम अपलोड कर रहा हूँ। इमेज पड़ने मैं कठिनाई हो रही होगी । मैं कोशिः करूंगा कि टेक्स्ट को दुबारा कोम्पोसे कर के दूं, आप सभी अनुरोध है कि इसे सकारात्मक तरिक्र से लिया जाये।


ब्लॉग बज तो राजस्थान पत्रिका में भी है,,,

आज इरफान साहेब के ब्लोग मैंन पढा कि अविनाश जी जनसत्ता मैं ब्लोगालिखी लिख रह हैं। ब्लोग वर्ल्ड के साथियों को बताना चाहूँगा कि राजस्थान पत्रिका काफी अर्से से ब्लोग्बज़ प्रकाशित कर रह है, प्रत्येक गुरुवार को। कोशिश करूंगा कि पिछले प्रकाशित कालम आप सबको उपलब्ध करवाऊँ . सादर.

यह कारवां तो अब बिखरने लगा है...

- अभिषेक

भारतीय जनता पार्टी का कारवां लगता है बिखरने लगा है। पार्टी विद ए डिफरेन्स का नारा बुलंद करने वाली यह पार्टी अब पार्टी विद डिफरेन्सेज हो गई लगती है। भाजपा की यह अधोगति केवल भाजपा के ही हित या अहित को प्रभावित करती हो, ऐसा नहीं है,बरसों से सम्भाला संवारा लोकतंत्र भी इससे कहीं अन्दर तक आहत हो रहा है। सालों के प्रयास के बाद 90 के दशक में जा कर लगने लगा था कि अब देश में सही मायने में लोकतंत्र की स्थापना होगी और देश में दो दलीय व्यवस्था सुदृढ़ होगी। लेकिन शायद भाजपा के लौहपुरुषों और कर्णधारों को यह मंजूर नहीं था। तभी तो अपने बाद उन्होंने किसी अन्य की वह हस्ती नहीं बनने दी जो पार्टी को संभाल सके। न संघ यह समझ पाया और न भाजपा कि नेता नियुक्त नहीं होते,वे तो बनते हैं। प्रमोद महाजन औऱ साहिब सिंह जैसों को विधाता ने छीन लिया तो उमाभारती जैसों को प्रक्रिया और स्वाभिमान, जैसा वे कहती हैं, की लड़ाई ने। कल्याण सिहं राजनाथ सिंह की आपसदारी ने यूपी को डुबोया तो केन्द्र में वैंकया नायडु,सुषमा स्वराज, अरुण जेटली जैसों की महत्वकांक्षा ने सबकुछ लुटाने की सी स्थिति बना दी। भाजपा शासित राज्यों की तो बात ही क्या करें। चाहे मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ हो या राजस्थान हर जगह कुलड़ी में गुड़ फोड़ा जा रहा है। नेताओं की कतार खड़ी है दूसरे नेताओँ की जड़ों मे मट्ठा दालने में। वैसे असंतोष कोई नई बात नहीं है,सवर्दा ही वंचित वर्ग असंतुष्ट रहता है।पर उसका समय पर इलाज हो जाना जरूरी है,निरंकुशता स्थितियों को विकृत कर देती है। कुल मिला कर भाजपा की स्थिति निराश करती है। इन सबसे उपर संघ की भूमिका भी बदलने लगी है।पहले वहां निपटारे होते थे। मनोमालिन्य दूर होते थे अब वहां पेशियां होती हैं, फैसले होते हैं, सबसे बड़ी बात कई बार तो उसके न्यायकर्ता की भूमिका पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं। और सिद्धान्तों का चोला भी लगता है अब उतर गया है। तभी कर्नाटक मे पहले इतनी छिछालेदार के बाद अब फिर से कुमारस्वामी का साथ मंजूर कर सरकार बनाने का दावा कर लिया है। कहते हैं राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता पर इतना जल्दी तो गिरगिट भी नहीं बदलता। कुमारस्वामी को पहले पता नहीं था क्या कि उनका दल टूट सकता है। दल टूटा तो चले भाजपा की गोद मे और ये भी इतने बे मुरोव्वत की तुरन्त बैठा लिया और पहुंच गए राजभवन।खैर यह तो वक्त की बात है, लेकिन इस और इस जैसी अन्य कई घटनाएं एक बात साफ कर रही हैं,कि हमारे यहां दो दलीय व्यवस्था का सितारा बुलंद होना बहुत संभव नहीं लगता।और हम कांग्रेस के इर्द-गिर्द छोटे-छोटे तात्कालिक महत्वकांक्षाओं वाले राजनैतिक घटकों से ही त्रस्त रहेंगे जो देश की किसी भी बड़ी परियोजना को सफल होने देने मे भरसक रोड़े अटकाएंगे।क्योंकि उन्हें पूरे देश से कोई मतलब नहीं, उन्हें तो सिर्फ अपने से मतलब है। और यह सब होगा देश की किमत पर। बात जहां तक भाजपा के कारवां के बिखरने की है तो मुझे एक कहावत याद आ रही है...
राम किसी को मारे नहीं, नहीं हत्यारा राम,
पापी खुद ही मर जाए कर कर खोटे काम,,,,,,

Saturday, October 27, 2007

गोधरा को क्यों नही छोड़ता मीडिया

- अभिषेक

गोधरा और गुजरात इतने अर्से बाद भी मीडिया की सुर्खियां हैं, हर बार एक ही नजर से। लेकिन मैं आज नजर की बात नहीं करूंगा। मैं बात करूंगा मीडिया की जिम्मेदार होने की। पिछले दो दिन से स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर जो कुछ चैनलों पर जो कुछ दिखाया जा रहा है वो कितने गोधरा औऱ गुजरात रच देगा इसकी किसीको परवाह है। इसमें कोई शक नहीं कि जो हुआ वो दुखःद था। चाहे पहले की दुर्घटना सुनियोजित थी या बाद में प्रतिक्रिया के रूप में भीड़ की अराजक और अमानवीय कार्रवाई किसी साजिश का हिस्सा रही हों,कुल मिलाकर दोनों ही हादसे मानवीयता के प्रतिकूल और कलंक थे। इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं,गुनहगार हैं, उसके लिए हमारा तंत्र है, राज्य सरकार पर भरोसा नहीं तो केन्द्र सरकार है। केन्द्रीय एजेंसियां हैं। उनकी जांच में जो सामने आता है वो न्यायालय में पेश हो और वहां से जो निर्णय हो उसका पालन हो।
मीडिया को तो ऐसी किसी जांच की छूट नहीं होनी चाहिए। चलिए कोई मीडिया की खोजी ताकत को अंगीकार कर छूट ले भी लेता हो तो उससे जिम्मेदारी से काम लेने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन लगता है टीआरपी की सुर्खियों ने मीडीया के जिम्मेदारी को निगल लिया है। तभी तहलका का कलंक पूरे उत्साह के साथ तमाम हिन्दुस्तान के लोगों को दिखाया जा रहा है। चंद लोगों के बयान से बताया जा रहा है कि गुजरात का सच क्या था। हो सकता है कि तहलका के इस स्टिंग में जो बाते कही गई हैं वो बातें उन लोगो ने कही हों। लेकिन ऐसा होने पर भी इन बयानों को सीधे सार्वजनिक करने की बजाय जांच एंजेसियों को सौंप जाना चाहिए था.जांच एजेंसियों और अन्य की राय के बाद इन्हें सार्वजनिक किया जाना था। इन दिनों एक चिन्ता और तेजी से वास्तविक समस्या के रूप में सिर उठाने लगी है, और वह है मीडिया की प्रतिबद्धता। सामान्यतया मीडिया हाउस किसी न किसी राजनैतिक दल या विचारधारा से जुड़े हुए पाए जाते रहे हैं। लेकिन फिर भी वे निष्पक्षता के एक धागे से बंधे दिखाई देते रहे हैं। लेकिन अब यह धागा टूटता दिख रहा है और मीडिया हाउस सीधे तौर पर अपने राजनैतिक विचार को पोषित करने और विरोधी विचार को हतोत्साहित करते दिखाई देने लगे हैं। आप सोचिए तहलका की स्टिंग टीम के अब तक के सारे शिकार राजग के घटक ही क्यों हुए। संघ, भाजपा से जुड़े लोगों की ही पोल खोलने के लिए तहलका क्यों जुटा रहा है। क्यों नहीं अन्य दलों के लोगों के लिए तहलका का स्टिंग जाल फैला। हो सकता हो यह संयोग वश ही हुआ कि तहलका के न्यूजरूम में एन्टी एनडीए खबरों को ही बड़ी खबर माना गया हो। लेकिन ऐसा संयोग सवाल खड़े करता है औऱ जवाब भी मांगता है।

लुआब यह कि,दूसरों कि निष्पक्षता और कर्तव्यपरायणता पर उंगली उठाने वाले मीडिया को स्वयं भी इन सबकों को याद रखना होगा तभी यह चौथा स्तंभ, स्तंभ के रूप में खड़ा रह पाएगा।

सवाल लड़के और लक्ष्मी का....

लड़का और लड़की अब भी हमारे लिए भेदभाव की बात है. हमने कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन लड़के और लड़की का भेद अब भी हमारे समाज में कितनी गहराई तक घुसा हुआ है इसका मुजाहिरा मेरी बेटी के जन्म के साथ। बेटी के जन्म हुआ सरकारी अस्पताल में,इसी सरकारी अस्पताल में मेरे बेटे का भी जन्म हुआ था। पत्नी का प्रसव करवाने में सहायता देने वाला नर्सिंग स्टाफ सारा का सारा लगभग दोनों समय एक सा ही था। बेटे जन्म के समय अन्दर से ही चिल्ला कर बताने वाली आवाज बेटी के जन्म के समय कई बार पूछने के बाद बहुत धीरे से निकली, लक्ष्मी आई है। जब हमने बिटिया के जन्म की बधाई (बक्शीश) दी तो इतने खुश जैसे उन्हें इतने की उम्मीद ही नहीं हो। इसके बाद जब परिजनों, परिचितों को सूचना मिलने पर उनके बधाई संदेश मिले तो सबमें एक बात कॉमन थी, बधाई हो लक्ष्मी आई है....। हमने तो अभी बिटिया का नाम ही नहीं रखा था और सब उसे लक्ष्मी पुकार रहे थे। सब का तात्पर्य समृद्धि की देवी लक्ष्मी से था, यह हम समझ रहे थे,हमें याद नहीं आ रहा था कि जब हमारे यहां बेटे का जन्म हुआ था तब किसी ने विष्णु,शिव,राम, हनुमान या गणेश के आगमन का संदेश देते हुए हमें बधाई दी हो,पर कन्या जन्म के समय सब का एक ही स्वर था,लक्ष्मी आई है। एक बात और खास थी कि बड़े पत्रकारों, लेखकों सहित मेरे गांव के मित्र के ठेठ देहाती पापा तक सभी की एक ही बोली थी। कुछ लोग थोड़े साहसी भी थे, पूछ बैठते, पहला तो बेटा है ना, मेरे हां कहने पर कहते, चलो अच्छा हुआ फैमिली कम्पलीट हो गई। अब आप ही अन्दाजा लगाइए और सोचिए की हम लड़के और लड़की का भेद मिटाने में कितना कामयाब हुए हैं या हमारी सोच अभी भी कहां अटकी है।
- अभिषेक

मेरे घर आई नन्हीं परी....

मेरे घर आई नन्हीं परी....
दोस्तो,आप सब को यह सूचना देते हुऐ मुझे बहुत हर्ष हो रहा है कि मेरे आंगन में विगत 15 तारीख को एक बालिका का जन्म हुआ है। कुछ इसी कारण से बढ़ी व्यस्तताओं के चलते और कुछ तकनीकी खामी के चलते मैं आपसे रूबरू नहीं हो पाया इसके लिए क्षमा चाहता हूं। कोशिश करूंगा की अब कुछ नियमित रह सकूं।..
- अभिषेक

Thursday, October 11, 2007

एंग्रीयंगमैन और हिन्दुस्तानी दादा जी, अमिताभ बच्चन



पिछले दिनों एक ब्लॉग का चक्कर लगाते समय अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार में से महान कौन,इस बहस पर दिलचस्प तर्क वितर्क पढ़े। बहस का नतीजा क्या निकला ये तो पता नहीं, पर मुझे इस बहस को पढ़ते समय भी और आज अमिताभ के जन्म दिन पर मीडिया में चल रही खबरें देखते समय याद आता है सालों पहले, ये मानिए,87 की बात होगी, लगभग हर शख्स की हेयर स्टाइल एक सी होती थी। बीच की मांग,जिससे दोनों तरफ के बाल सिर पर छज्जा सा बनाते थे और लम्बी कलम जो कानों की नोक तक आती थी। मैं उस समय प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। राजस्थान के चित्तोड़गढ़ जिले के एक अन्दरूनी गांव ( वैसे लोग उसे कस्बा कहते थे) राशमी में उस समय मां की पोस्टिंग थी। पहाड़ी की तलहटी के नीचे बसा गांव सामान्य गांव सा ही था, जगह जगह बड़ पीपल के पेड़ थे। टेकरी पर माताजी का मंदिर था। एक तालाब था जो सूखा होने के चलते क्रिकेट खेलने के काम आता था। सबसे नजदीकी थिएटर कपासन में हुआ करता था। यह सारा परिचय इसलिए की आप गांव की स्थिति का भली भांति अंदाजा लगा सकें। तब मेरा एक दोस्त होता था किशऩ। उसकी हेयरस्टाइल से लगाकर सीनीयर स्कूल के गणित के मास्टर जी सभी की हेयरस्टाइल एक सी, अमिताभ शैली। तबके बाद सालों साल जितने भी लोग मिले उनमें अधिकांश को उसी शैली के बालों में देखा।
समय गुजर गया है, गंगा में बहुत पानी बह गया है। अब जरा अपने आस पास बुजुर्गों के चेहरों पर नजर दौड़ाइये। कल तक मूंछ को खिजाब से काला करते और गाल सफाचट रखते लोग अब फ्रेंट कट रख रहे हैं। वो भी बिना खिजाब के। वाकई यह होता है अमिताभ का अमिताभ होना जो सालों से हिंदुस्तानियों के प्रजेंटेशन का तरीका बाना हुआ है .एंग्रीयंगमैन से एक आम हिन्दुस्तानी घर के दादाजी की छवि तक का यह सफर बेमिसाल है। अमिताभजी के जन्मदिन पर उन्हें बधाई।
- अभिषेक

Tuesday, October 9, 2007

stock

बोम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के 30 शेयर आधारित सेंसेक्स ने मंगलवार को 18 हज़ार का स्तर पार कर एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया। सेंसेक्स मंगलवार को 18280 के स्तर पर बंद हुआ. सेंसेक्स को 1000 अंक की दूरी तय करने में केवल नौ कारोबारी सत्र लगे.
इससे पहले बीएसई का सेंसेक्स 26 सितंबर को 17,000 को पार कर गया था। सबसे कम समय में 16000 से 17000 अंकों के बीच एक हजार अंकों का फ़ासला तय किया था . इससे पहले, वर्ष मार्च 2006 में सेंसेक्स ने महज 19 दिनों में ही 11000 से 12000 तक का सफ़र तय किया था।

ब्लॉगिंग: ऑनलाइन विश्व की आजाद अभिव्यक्ति

( मुझे किसी परिचित ने यह् आलेख मेल किया है। वैसे तो ये इन्टरनेट पर पहले भी होगा पर एक बार फिर साभार आदर के साथ)
(कादम्बिनी के अक्तूबर 07 अंक में प्रकाशित लेख का मूल, पूर्ण आलेख)
- बालेन्दु शर्मा दाधीच
"दूसरे धर्मों का तो पता नहीं पर मैंने अपने धर्म में इतने दंभी, स्वार्थी और बेवकूफ लोग देखे हैं कि मुझे पछतावा है कि मैं क्यों जैन पैदा हुआ? अब जैन में तो हर चीज करने में पाप लगता है.... कुछ जैन संप्रदाय मूर्ति पूजा करते हैं तो कुछ मूर्तिपूजा के खिलाफ हैं। अब एक जैन मंदिर में जाकर लाइट चालू करके, माइक पे वंदना करके यह संतोष व्यक्त करते हैं कि मुझे स्वर्ग मिलेगा तो कुछ 'स्थानकवासी' जैन मानते हैं कि बिजली चालू करने से पाप लगता है और मूर्ति बनाने से बहुत छोटे जीव मरते हैं इसलिए पाप लगता है। यहां दोनों संप्रदाय एक ही भगवान की पूजा करेंगे लेकिन अलग ढंग से। फिर आठ दिन भूखे रहकर यह मान लेंगे कि उनका पाप मिट गया। यानी आपने तीन खून किए हों या लाखों लोगों के रुपए लूटे हों फिर भी कुछ दिन भूखे रहने से पाप मिट जाएंगे।" (तत्वज्ञानी के हथौड़े)। "मैं अपने आपको मुसलमान नहीं मानता मगर मैं अपने मां-बाप की बहुत इज्जत करता हूं, सिर्फ और सिर्फ उनको खुश करने के लिए उनके सामने मुसलमान होने का नाटक करता हूं, वरना मुझे अपने आपको मुसलमान करते हुए बहुत गुस्सा आता है। मैं एक आम इन्सान हूं, मेरे दिल में वही है जो दूसरों में है। मैं झूठ, फरेब, मानदारी, बेईमानी, अच्छी और बुरी आदतें, कभी शरीफ और कभी कमीना बन जाता हूं, कभी किसी की मदद करता हूं और कभी नहीं- ये बातें हर इंसान में कॉमन हैं। एक दिन अब्बा ने अम्मी से गुस्से में आकर पूछा- क्या यह हमारा ही बच्चा है? तो वो हमारी तरह मुसलमान क्यों नहीं? कयामत के दिन अल्लाह मुझसे पूछेगा कि तेरे एक बेटे को मुसलमान क्यों नहीं बनाया तो मैं क्या जवाब दूं? पहले तो अब्बा-अम्मी ने मुझे प्यार से मनाया, फिर खूब मारा-पीटा कि हमारी तरह पक्का मुसलमान बने... यहां दुबई में दुनिया भर के देशों के लोग रहते हैं और ज्यादातर मुसलमान। मुझे शुरू से मुसलमान बनना पसंद नहीं और यहां आकर सभी लोगों को करीब से देखने और उनके साथ रहने के बाद तो अब इस्लाम से और बेजारी होने लगी है। मैं यह हरगिज नहीं कहता कि इस्लाम गलत है, इस्लाम तो अपनी जगह ठीक है। मैं मुसलमानों और उनके विचारों की बात कर रहा हूं।" (नई बातें, नई सोच)। ये दोनों टिप्पणियां दो अलग-अलग लोगों ने लिखी हैं। दो ऐसे साहसिक युवकों ने, जो प्रगतिशीलता का आवरण ओढ़े किंतु भीतर से रूढ़िवादिता
ब्लॉगिंग है एक ऐसा माध्यम जिसमें लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी। ऐसा माध्यम जो भौगोलिक सीमाओं से पूरी तरह मुक्त, और राजनैतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग स्वतंत्र है। जहां अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है, न अल कायदा से डरने को।
को हृदयंगम कर परंपराओं और मान्यताओं को बिना शर्त ढोते रहने वाले हमारे समाज की संकीर्णताओं के भीतर घुटन महसूस करते हैं। क्या इस तरह की बेखौफ, निश्छलतापूर्ण और ईमानदार टिप्पणियां किसी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित की जा सकती हैं? क्या क्रुद्ध समाजों की उग्रतम प्रतिक्रियाओं से भरे इस दौर में ऐसे प्रतिरोधी स्वर किसी दूरदर्शन या आकाशवाणी से प्रसारित हो सकते हैं? क्या को धार्मिक, सामाजिक या राजनैतिक मंच इस मानदार किंतु विद्रोही आक्रोश की अभिव्यक्ति का मंच बन सकता है? ऐसा संभवत: सिर्फ एक मंच है जिसमें अभिव्यक्ति किन्हीं सीमाओं, वर्जनाओं, आचार संहिताओं या अनुशासन में कैद नहीं है। वह मंच है इंटरनेट पर तेजी से लोकप्रिय हो रही ब्लॉगिंग का। औपचारिकता के तौर पर दोहरा दूं कि ब्लॉगिंग शब्द अंग्रेजी के 'वेब लॉग' (इंटरनेट आधारित टिप्पणियां) से बना है, जिसका तात्पर्य ऐसी डायरी से है जो किसी नोटबुक में नहीं बल्कि इंटरनेट पर रखी जाती है। पारंपरिक डायरी के विपरीत वेब आधारित ये डायरियां (ब्लॉग) सिर्फ अपने तक सीमित रखने के लिए नहीं हैं बल्कि सार्वजनिक पठन-पाठन के लिए उपलब्ध हैं। चूंकि आपकी इस डायरी को विश्व भर में कोई भी पढ़ सकता है इसलिए यह आपको अपने विचारों, अनुभवों या रचनात्मकता को दूसरों तक पहुंचाने का जरिया प्रदान करती है और सबकी सामूहिक डायरियों (ब्लॉगमंडल) को मिलाकर देखें तो यह निर्विवाद रूप से विश्व का सबसे बड़ा जनसंचार तंत्र बन चुका है। उसने कहीं पत्रिका का रूप ले लिया है, कहीं अखबार का, कहीं पोर्टल का तो कहीं ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के मंच का। उसकी विषय वस्तु की भी को सीमा नहीं। कहीं संगीत उपलब्ध है, कहीं कार्टून, कहीं चित्र तो कहीं वीडियो। कहीं पर लोग मिल-जुलकर पुस्तकें लिख रहे हैं तो कहीं तकनीकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। ब्लॉग मंडल का उपयोग कहीं भाषाएं सिखाने के लिए हो रहा है तो कहीं अमर साहित्य को ऑनलाइन पाठकों को उपलब्ध कराने में। इंटरनेट पर मौजूद अनंत ज्ञानकोष में ब्लॉग के जरिए थोड़ा-थोड़ा व्यक्तिगत योगदान देने की लाजवाब कोशिश हो रही है। सीमाओं से मुक्त अभिव्यक्ति ब्लॉगिंग है एक ऐसा माध्यम जिसमें लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी। ऐसा माध्यम जो भौगोलिक सीमाओं से पूरी तरह मुक्त, और राजनैतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग स्वतंत्र है। जहां अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है, न अल कायदा से डरने को। इस माध्यम में न समय की कोई समस्या है, न सर्कुलेशन की कमी, न महीने भर तक पाठकीय प्रतिक्रियाओं का इंतजार करने की जरूरत। त्वरित अभिव्यक्ति, त्वरित प्रसारण, त्वरित प्रतिक्रिया और विश्वव्यापी प्रसार के चलते ब्लॉगिंग अद्वितीय रूप से लोकप्रिय हो ग है। ब्लॉगों की दुनिया पर केंद्रित कंपनी 'टेक्नोरैटी' की ताजा रिपोर्ट (जुलाई २००७) के अनुसार ९.३८ करोड़ ब्लॉगों का ब्यौरा तो उसी के पास उपलब्ध है। ऐसे ब्लॉगों की संख्या भी अच्छी खासी है जो 'टेक्नोरैटी' में पंजीकृत नहीं हैं। समूचे ब्लॉगमंडल का आकार हर छह महीने में दोगुना हो जाता है। सोचिए आज जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं, तब अभिव्यक्ति और संचार के इस माध्यम का आकार कितना बड़ा होगा? आइए फिर से अभिव्यक्ति के मुद्दे पर लौटें, जहां से हमने बात शुरू की थी। हालांकि ब्लॉगिंग की ओर आकर्षित होने के और भी कई कारण हैं
जो चाहें, लिखें और अगर चाहते हैं कि इसे दूसरे लोग भी पढ़ें तो ब्लॉग पर डाल दें। किसी को जँचेगा तो पढ़ लेगा वरना आगे बढ़ जाएगा। ब्लॉगिंग वस्तुत: एक लोकतांत्रिक माध्यम है। यहां कोई न लिखने के लिए मजबूर है, न पढ़ने के लिए।
लेकिन अधिकांश विशुद्ध, गैर-व्यावसायिक ब्लॉगरों ने अपने विचारों और रचनात्मकता की अभिव्यक्ति के लिए ही इस मंच को अपनाया। जिन करोड़ों लोगों के पास आज अपने ब्लॉग हैं, उनमें से कितने पारंपरिक जनसंचार माध्यमों में स्थान पा सकते थे? स्थान की सीमा, रचनाओं के स्तर, मौलिकता, रचनात्मकता, महत्व, सामयिकता आदि कितने ही अनुशासनों में निबद्ध जनसंचार माध्यमों से हर व्यक्ति के विचारों को स्थान देने की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। लेकिन ब्लॉगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और मनमौजी किस्म की रचनात्मक दुनिया है। वहां आपकी 'भई आज कुछ नहीं लिखेंगे' नामक छोटी सी टिप्पणी का भी उतना ही स्वागत है जितना कि जीतेन्द्र चौधरी की ओर से वर्डप्रेस पर डाली गई सम्पूर्ण रामचरित मानस का। 'भड़ास' नामक सामूहिक ब्लॉग के सूत्र वाक्य से यह बात स्पष्ट हो जाती है- कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिए... मन हल्का हो जाएगा..। चौपटस्वामी नामक ब्लॉगर की लिखी यह टिप्पणी पढ़िए- "(हमारे यहां) धनिया में लीद मिलाने और कालीमिर्च में पपीते के बीज मिलाने को सामाजिक अनुमोदन है। रिश्वत लेना और देना सामान्य और स्वीकृत परंपरा है और उसे लगभग रीति-रिवाज के रूप में मान्यता प्राप्त है। कन्या-भ्रूण की हत्या यहां रोजमर्रा का कर्म है और अपने से कमजोर को लतियाना अघोषित धर्म है। गणेशजी को दूध पिलाना हमारी धार्मिक आस्था है। हमारा लड़का हमें गरियाते और जुतियाते हुए भी श्रवणकुमार है, पर पड़ोसी का ठीक-ठाक सा लड़का भी बिलावजह दुष्ट और बदकार है।" यानी कि सौ फीसदी अभिव्यक्ति की एक सौ एक फीसदी आजादी! वरिष्ठ ब्लॉगर अनूप शुक्ला (फुरसतिया) कहते हैं- "अभिव्यक्ति की बेचैनी ब्लॉगिंग का प्राण तत्व है और तात्कालिकता इसकी मूल प्रवृत्ति है। विचारों की सहज अभिव्यक्ति ही ब्लॉग की ताकत है, यही इसकी कमजोरी भी। यही इसकी सामर्थ्य है, यही इसकी सीमा भी। सहजता जहां खत्म हुई वहां फिर अभिव्यक्ति ब्लॉगिंग से दूर होती जाएगी।" जो चाहें, लिखें और अगर चाहते हैं कि इसे दूसरे लोग भी पढ़ें तो ब्लॉग पर डाल दें। किसी को जंचेगा तो पढ़ लेगा वरना आगे बढ़ जाएगा। ब्लॉगिंग वस्तुत: एक लोकतांत्रिक माध्यम है। यहां कोई न लिखने के लिए मजबूर है, न पढ़ने के लिए। जो अच्छा लिखते हैं, उनके ठिकानों पर स्वत: भीड़ हो जाती है, उनके ब्लॉगों में टिप्पणियों की बहार आ जाती है। ऐसे कई ब्लॉग हीरो ब्लॉगिंग की दुनिया ने दिए हैं जो सिर्फ अपने लेखों, भाषा या रचनात्मकता के लिए ही नहीं, तकनीकी मार्गदर्शन देने (गैर-अंग्रेजी ब्लॉगरों को इसकी जरूरत पड़ती ही है) और नए ब्लॉगरों व ब्लॉग परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भी जाने जाते हैं। ब्लॉग विश्व के चर्चित लोग दुनिया के विख्यात ब्लॉगरों में एंड्र्यू सलीवान (एंड्र्यूसलीवान.कॉम), रॉन गंजबर्गर (पोलिटिक्स१.कॉम), ग्लेन रोनाल्ड (इन्स्टापंडित.कॉम), डंकन ब्लैक, पीटर रोजास, जेनी जार्डिन, बेन ट्रोट, जोनाथन श्वार्ट्ज, जेसन गोल्डमैन, रॉबर्ट स्कोबल, मैट ड्रज (ड्रजरिपोर्ट.कॉम) आदि शामिल हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को महाभियोग की हद तक ले जाने वाले मोनिका लुइन्स्की प्रकरण का पर्दाफाश मैट ड्रज ने ही अपने ब्लॉग पर किया था। चीनी अभिनेत्री जू जिंगले का ब्लॉग संभवत: दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग है जिसे पांच करोड़ से भी अधिक बार पढ़ा जा चुका है। ब्लॉगिंग का चस्का बहुत सी विख्यात हस्तियों को भी लगा है जिनमें टेनिस सुंदरी अन्ना कोर्निकोवा, हॉलीवुड अभिनेत्री पामेला एंडरसन, गायिका ब्रिटनी स्पीयर्स, अभिनेत्री व सुपरमॉडल कर्टनी लव, फिल्म निर्देशक व अभिनेता केविन स्मिथ आदि शामिल हैं। हमारे देश में
भारत के कई अंग्रेजी ब्लॉग काफी लोकप्रिय हो गए हैं जिनमें गौरव सबनीस का वान्टेड प्वाइंट, अमित वर्मा का इंडिया अनकट, रश्मि बंसल का यूथ सिटी, अमित अग्रवाल का डिजिटल इनिस्परेशन, दीना मेहता का दीनामेहता.कॉम आदि प्रमुख हैं।
फिल्म अभिनेता आमिर खान (लगानडीवीडी.कॉम), जॉन अब्राहम, बिपासा बसु (बिपासाबसुनेट.कॉम), राहुल बोस, राहुल खन्ना, शेखर कपूर, सुचित्रा कृष्णमूर्ति, अनुपम खेर, कवि अशोक चक्रधर, रेडिफ चेयरमैन अजीत बालाकृष्णन, इंडियावर्ल्ड.कॉम बनाकर उसे छह सौ करोड़ रुपए में सिफी.कॉम को बेचने वाले राजेश जैन, वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई , नौकरी.कॉम के सी ई ओ संजीव बीखचंदानी आदि भी सक्रिय ब्लॉगर हैं। आमिर खान के ब्लॉग पर तो पिछली पोस्ट के जवाब में सत्रह सौ पाठकों की टिप्पणियां दर्ज हैं! भारत के कई अंग्रेजी ब्लॉग काफी लोकप्रिय हो गए हैं जिनमें गौरव सबनीस का वान्टेड प्वाइंट, अमित वर्मा का इंडिया अनकट, रश्मि बंसल का यूथ सिटी, अमित अग्रवाल का डिजिटल इनिस्परेशन, दीना मेहता का दीनामेहता.कॉम आदि प्रमुख हैं। आई आई टी के छात्र रहे अमित अग्रवाल तो आई.बी.एम. में अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर पूरी तरह अपने ब्लॉग पर ही केंद्रित हो गए हैं और कहा जा रहा है कि नौकरी की तुलना में ब्लॉग से उनकी कमाई कहीं ज्यादा है। संदर्भ आया है तो बता दें कि ब्लॉगों पर मुख्यत: विज्ञापनों और प्रायोजित लेखों के माध्यम से कमाई होती है। दुनिया में ब्लॉगिंग से सर्वाधिक कमा करने वालों में केविन रोस नामक किशोर प्रमुख हैं जिसने महज डेढ़ साल की अवधि में छह करोड़ डालर (लगभग २५ करोड़ रुपए) की राशि अर्जित की है। ब्लॉगर पाउला नील मूनी ने सर्वाधिक आय अर्जित करने वाले ब्लॉग-उद्यमियों की जो सूची बनाई है उसमें मारकस फ्राइंड़ (३.६ करोड़ डालर), वेबलॉग्स के जेसन कैलाकैनिस (१.१ करोड़ डालर), रोजेलिन गार्डनर (४३ लाख डालर) आदि प्रमुख हैं। गूगल के एड-सेंस कार्यक्रम और कई अन्य कंपनियों की विज्ञापन योजनाओं के तहत सैकड़ों ब्लॉगर अच्छी खासी रकम बना रहे हैं। यह बात अलग है कि अभी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में ब्लॉगरों को इस किस्म की कमाई नहीं हो रही। रवि रतलामी का हिंदी ब्लॉग, रचनाकार और टेक ट्रबल आदि ब्लॉगों का संचालन करने वाले रवि रतलामी को भी कुछ हजार की आय होने लगी है। उनका कहना है- "पिछले वर्ष मैंने व्यावसायिक चिट्ठाकारी में प्रवेश किया था। साल भर के भीतर मुझे जो धनराशि मिली है, उसका कोई तीस प्रतिशत हिंदी ब्लॉगों से मिल रहा है। मेरे विचार में हिंदी में भी संभावनाएं खूब हैं। हां, इसमें थोड़ा समय जरूर लग सकता है।" अगर आपने झटपट ब्लॉग बनाकर फटाफट धन कमाने की योजना बना ली हो तो जान लीजिए कि यह को आसान काम नहीं है। अपने ब्लॉग
हिंदी ब्लॉगिंग के प्रमुख हस्ताक्षरों में जीतेन्द्र चौधरी, अनूप शुक्ला, आलोक कुमार, देवाशीष, रवि रतलामी, पंकज बेंगानी, समीर लाल, रमण कौल, जगदीश भाटिया, मसिजीवी, पंकज नरूला, प्रत्यक्षा, अविनाश, अनुनाद सिंह, शशि सिंह, सृजन शिल्पी, ई-स्वामी, सुनील दीपक, संजय बेंगानी, जयप्रकाश मानस, नीरज दीवान आदि के नाम लिए जा सकते हैं।
के लिए अमित अग्रवाल ही रोजाना सैंकड़ों ब्लॉगों, उतनी ही आरएसएस फीड (ब्लॉगों के लेखों को अपेक्षाकृत आसान फॉरमेट में कंप्यूटर या इंटरनेट ब्राउजर पर पढ़ने की सुविधा) और दर्जनों वेबसाइटों का अध्ययन करते हैं। रोजाना बारह से चौदह घंटे तक काम करना, पचासों मेल संदेशों का जवाब देना और सर्च इंजनों को खंगालना उनके दैनिक कर्म में शामिल है। लेकिन फिर भी, कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है। हिंदी ब्लॉगिंग के प्रमुख हस्ताक्षरों में जीतेन्द्र चौधरी, अनूप शुक्ला, आलोक कुमार (जिन्होंने पहला हिंदी ब्लॉग लिखा और उसके लिए 'चिट्ठा' शब्द का प्रयोग किया), देवाशीष, रवि रतलामी, पंकज बेंगानी, समीर लाल, रमण कौल, मैथिली, जगदीश भाटिया, मसिजीवी, पंकज नरूला, प्रत्यक्षा, अविनाश, अनुनाद सिंह, शशि सिंह, सृजन शिल्पी, ई-स्वामी, सुनील दीपक, संजय बेंगानी आदि के नाम लिए जा सकते हैं। जयप्रकाश मानस, नीरज दीवान, श्रीश बेंजवाल शर्मा, अनूप भार्गव, शास्त्री जेसी फिलिप, हरिराम, आलोक पुराणिक, ज्ञानदत्त पांडे, रवीश कुमार, अभय तिवारी, नीलिमा, अनामदास, काकेश, अतुल अरोड़ा, घुघुती बासुती, संजय तिवारी, सुरेश चिपलूनकर, तरुण जोशी, अफलातून जैसे अन्य उत्साही लोग भी ब्लॉग जगत पर पूरी गंभीरता और नियम के साथ सक्रिय हैं और इंटरनेट पर हिंदी विषय वस्तु को समृद्ध बनाने में लगे हैं। अगर आप ब्लॉगों की दुनिया से अनजान हैं, तो संभवत: ये नाम भी आपने नहीं सुने होंगे। लेकिन अगर आप ब्लॉगजगत में सावन की तेज हवा में उड़ती पतंग का सा फर्राटा भी मार लें तो इन सबकी अनूठी रचनात्मकता, हिंदी प्रेम और ब्लॉगी जुनून का लोहा मानने पर मजबूर हो जाएंगे। इस लेख के शुरू में जिन दो ब्लॉगों पर लिखी टिप्पणियां उद्धृत की गई हैं, उन्हें रवि कामदार और शुएब संचालित करते हैं। प्रसंगवश, इसी ब्लॉगविश्व में मीडिया की आत्मालोचना पर केंद्रित 'वाह मीडिया' नामक ब्लॉग के माध्यम से छोटी सी उपस्थिति मेरी भी है। ब्लॉगिंग में है कुछ अलग बात! अंग्रेजी में तो ब्लॉगिंग की उम्र दस वर्ष हो गई है। इन दस वर्षों में संचार और अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनने के साथ-साथ उसने सामूहिकता और सामुदायिकता पर आधारित अनेकों नई विधाओं को जन्म दिया है। दुनिया का पहला ब्लॉग किसने बनाया, इस बारे में मतैक्य नहीं है। लेकिन इस बारे में को विवाद नहीं है कि ब्लॉगिंग की शुरूआत १९९७ में हुई । अप्रैल १९९७ में न्यूयॉर्क के डेव वाइनर ने स्क्रिप्टिंग न्यूज नामक एक वेबसाइट शुरू की जिसने ब्लॉगिंग की अवधारणा को स्पष्ट किया और लोगों को अपने विचार इंटरनेट पर प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया। दिसंबर १९९७ में जोर्न बार्गर ने रोबोटविसडम.कॉम की शुरूआत की और पहली बार इसे 'वेब लॉग' का नाम दिया। पीटरमी.कॉम के पीटर मरहोल्ज ने वेबलॉग के स्थान पर उसके छोटे रूप 'ब्लॉग' का प्रयोग किया। तब से इंटरनेट पर ब्लॉगों जो तेज हवा बही, उसने पहले आंधी और अब तूफान का रूप ले लिया है। हालांकि ब्लॉगिंग के आगमन के पहले से ही अभिव्यक्ति के नि:शुल्क मंच इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। नब्बे के दशक के शुरू में ही जियोसिटीज.कॉम, ट्राइपोड.कॉम, ८के.कॉम, होमपेज.कॉम, एंजेलफायर.कॉम, गो.कॉम आदि ने आम लोगों को अपने निजी इंटरनेट होमपेज बनाने की सुविधा दी थी और इनमें से अधिकांश आज भी सक्रिय हैं। उन पर लाखों लोगों ने अपनी वेबसाइटें बनाई भी लेकिन उन्हें ब्लॉगिंग की तर्ज पर अकूत लोकप्रियता नहीं मिली क्योंकि वेबसाइट बनाने के लिए थोड़ा-बहुत तकनीकी ज्ञान आवश्यक है। दूसरी तरफ ब्लॉग का निर्माण और संचालन लगभग मेल पाने-भेजने जितना ही आसान है। ब्लॉगर, वर्डप्रेस, माईस्पेस, लाइवजर्नल, ब्लॉग.कॉम, टाइपपैड, पिटास, रेडियो यूजरलैंड आदि पर ब्लॉग और पोस्ट करना बहुत आसान है। सरल, तेज, विश्वव्यापी, विशाल, नि:शुल्क और इंटर-एक्टिव होने के साथ-साथ को संपादकीय, कानूनी या संस्थागत नियंत्रण न होना ब्लॉगिंग की बुनियादी शक्तियां (और कमजोरी भी) हैं जिन्होंने इसे इंटरनेट आधारित अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों की तुलना में अधिक लोकप्रिय बनाया है। ब्लॉगिंग विश्व ने उन लोगों की स्मृतियों को भी जीवित रखा है जो सरकारी दमनचक्र, समाजविरोधी तत्वों के जुल्म या फिर आतंकवादी कार्रवाइयों के शिकार हुए। चीन में भले ही थ्येनआनमन चौक पर हुई अमानवीय सैन्य कार्रवाई के खिलाफ मुंह खोलना बहुत बड़ा अपराध हो, पर ब्लॉगिंग की दुनिया में ऐसी रोकटोक नहीं। 'यान्स ग्लटर' नामक ब्लॉग का संचालन करने वाली यान शाम शैकलटन १९८९ में थ्येनआनमन चौक पर हुए सैनिक नरसंहार में मारे गए युवकों के प्रति अपनी भावनाओं को इस तरह व्यक्त करती हैं- 'मैं भूलूंगी नहीं। मैं आपको हमेशा याद रखने का वादा करती हूं। मैं ऐसा दोबारा नहीं होने दूंगी। मैं पूरी दुनिया को आपकी, थ्येनआनमन चौक के छात्रों की याद दिलाती रहूंगी। मेरे बड़े भाइयो और बहनों!' दमन के विरुद्ध विद्रोह और लोकतंत्र की चाहत को भी ब्लॉगिंग ने स्वर दिए हैं। बहरीन में शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करते लोगों के सरकारी
ब्लॉग लेखन आम तौर पर बहुत गंभीर लेखन नहीं माना जाता लेकिन ड्रज रिपोर्ट, बगदाद ब्लॉगर आदि की जिम्मेदाराना भूमिकाओं और ट्रेन्ट लोट के इस्तीफे के बाद समाचार माध्यम के रूप में भी उसकी साख और विश्वसनीयता में वृद्धि हुई है।
दमन को वहीं के एक ब्लॉगर 'चनाद बहरीनी' (ब्लॉगर का छद्म नाम) ने अपने चित्रों में कैद किया और ब्लॉग के माध्यम से दुनिया भर को उसकी जानकारी दी। कुछ वर्ष पहले अमेरिकी सीनेटर ट्रेन्ट लोट ने १९४८ के राष्ट्रपति चुनाव में हैरी ट्रूमैन के प्रतिद्वंद्वी और रंगभेद समर्थक उम्मीदवार स्ट्रॉम थरमंड का समर्थन किया। मीडिया ने इस पर खास ध्यान नहीं दिया तो ब्लॉगर समुदाय ने जोर-शोर से यह मुद्दा उठाया और सीनेटर से इस्तीफा दिलवाकर ही दम लिया। इस घटना में ब्लॉगरों ने मीडिया के वैकल्पिक स्वरूप के रूप में अपनी उपयोगिता सिद्ध की। यही बात इराक युद्ध के दौरान भी 'बगदाद ब्लॉगर' के नाम से प्रसिद्ध एक गुमनाम ब्लॉगर ने 'सलाम पैक्स' के नाम से लिखे अपने ब्लॉग के माध्यम से दिखाई। वह इराक युद्ध की विनाशलीला का आंखों देखा हाल उपलब्ध कराता रहा और उसकी टिप्पणियों का दुनिया भर के मीडिया ने उपयोग किया। ब्लॉगिंग को लोकप्रिय बनाने में उसकी अहम भूमिका मानी जाती है। इराक युद्ध के दौरान जब बीबीसी और वॉयस ऑफ अमेरिका में इस ब्लॉगर पर केंद्रित कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया तो उसके पिता को पहली बार अहसास हुआ कि संभवत: ये कार्यक्रम मेरे शर्मीले पुत्र के बारे में हैं जो चुपचाप कमरे में बैठकर इंटरनेट पर कुछ करता रहता है। उन्हें लगा कि सद्दाम हुसैन की खुफिया एजेंसियों को पता चलने वाला है और वे पक्के तौर पर बहुत बड़े संकट में फंसने जा रहे हैं। लेकिन सौभाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ और सलाम का नाम ब्लॉगिंग के इतिहास में दर्ज हो गया। (संयोगवश, सलाम ने इराक युद्ध के बाद लंदन के 'गार्जियन' अखबार में कॉलम भी लिखा)। ब्लॉग लेखन आम तौर पर बहुत गंभीर लेखन नहीं माना जाता लेकिन ड्रज रिपोर्ट, बगदाद ब्लॉगर आदि की जिम्मेदाराना भूमिकाओं और ट्रेन्ट लोट के इस्तीफे के बाद समाचार माध्यम के रूप में भी उसकी साख और विश्वसनीयता में वृद्धि हुई है। पिछले अप्रैल माह में अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय में अनजान हमलावरों ने अंधाधुंध फायरिंग कर कई छात्रों को मार डाला तब ब्लॉगर अनुराग मिश्रा ने हमारे अपने 'इंडिया टीवी' के लिए रिपोर्टिंग की। इंडिया टीवी से जुड़े नीरज दीवान, जो स्वयं 'कीबोर्ड के सिपाही' नामक ब्लॉग चलाते हैं, कहते हैं- "उस घटना पर किसी भारतीय द्वारा अमेरिका से दी जा रही वह पहली जानकारी थी। अनुराग भाषा, शैली में पूर्णत: सक्षम और विश्वस्त ब्लॉगर हैं। वे उसी विश्वविद्यालय के छात्र भी हैं। उस वक्त मेरे पास उनसे बेहतर कोई और विकल्प नहीं था। अनुराग ने जन-पत्रकार की भूमिका बखूबी निभाई ।" हिंसा व आतंक के खिलाफ और लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होने वाले ये गुमनाम सिपाही स्वयं भी लोकतंत्र विरोधियों के दमन का शिकार होते रहे हैं। ईरान सरकार ने अराश सिगारची नामक ब्लॉगर को उसकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति से खफा होकर १४ साल के लिए जेल में डाल दिया है। अनार्कएंजेल नामक एक ब्लॉगर के खिलाफ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने मौत का फतवा भी जारी किया है। सिंगापुर में दो चीनी ब्लॉगरों को स्थानीय कानूनों की आलोचना करने ओर मुसलमानों के खिलाफ टिप्पणियां करने के लिए जेल में डाल दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े एक राजनयिक को उसके ब्लॉग में लिखी टिप्पणियों के कारण सूडान ने तीन दिन में देश छोड़ने का आदेश दिया था। यानी चुनौतियों की कोई कमी भी नहीं। नई दिशाएं, नए स्वरूप बहरहाल, ब्लॉगिंग अब नए क्षेत्रों, न दिशाओं में आगे बढ़ रही है। असल में ब्लॉग तो अपनी अभिव्यक्ति, अपनी रचनाओं को विश्वव्यापी इंटरनेट उपयोक्ताओं के साथ बांटने का मंच है, और ऐसे मंच का प्रयोग सिर्फ लेखों, राजनैतिक टिप्पणियों और साहित्यिक रचनाओं के लिए किया जाए, यह किसी किताब में नहीं लिखा है। ब्लॉग पर फोटो या वीडियो डाल दीजिए, वह फोटो ब्लॉग तथा वीडियो ब्लॉग कहलाएगा। संगीत डाल दीजिए तो वही म्यूजिक ब्लॉग हो जाएगा। रेडियो कार्यक्रम की तरह अपनी टिप्पणियों को रिकॉर्ड करके ऑडियो फाइलें डाल दीजिए तो वह पोडकास्ट कहलाएगा। किसी ब्लॉग को कई लोग मिलकर चलाएं तो वह कोलेबरेटिव या सामूहिक ब्लॉग बन जाएगा। हिंदी में 'बुनोकहानी' नामक ब्लॉग पर कई ब्लॉगर मिलकर कहानियां लिख रहे हैं। यह इसी श्रेणी में आएगी। किसी परियोजना विशेष से जुड़े लोग यदि आपस में विचारों के आदान-प्रदान के लिए ब्लॉग बनाएंगे तो वह प्रोजेक्ट ब्लॉग माना जाएगा और अगर कोई कंपनी अपने उत्पादों या सेवाओं का प्रचार करने या फिर अपने कर्मचारियों के बीच वैचारिक आदान-प्रदान के लिए ब्लॉग बनाती है तो इसे कारपोरेट ब्लॉग कहेंगे। यानी ब्लॉग आपकी जरूरतों के अनुसार ढल सकता है। यूट्यूब (आम लोगों की ओर से पोस्ट किए गए वीडियो), फ्लिकर (आम लोगों के खींचे चित्र), विकीपीडिया (आम लोगों द्वारा लिखे गए लेख) जैसी परियोजनाएं भी ब्लॉगों की ही तर्ज पर विकसित हुई हैं। अब आम लोगों के भेजे समाचारों की वेबसाइटें भी लोकप्रिय हो रही हैं। अंग्रेजी समाचार चैनल आईबीएन ने पिछले साल इस दिशा में पहल की थी जो बहुत सफल हुई । भारत में मेरीन्यूज.कॉम भी नागरिक पत्रकारिता (सिटीजन जर्नलिज्म) पर आधारित एक चर्चित वेबसाइट है। ब्लॉगिंग के और भी बहुत से रूप तथा उपयोग हैं। आजकल मेल पर जिस तरह से वायरसों और स्पैम (अनचाही तथा घातक डाक) का हमला हो रहा है उसे देखते हुए बहुत सी कंपनियां ब्लॉगों को संदेशों के आदान-प्रदान के सुरक्षित माध्यम के रूप में भी इस्तेमाल कर रही हैं। यह सामाजिक मेलजोल का भी एक माध्यम है। अपने ब्लॉग पर टिप्पणियां करने वाले अनजान व्यक्तियों के साथ संदेशों का आदान-प्रदान करते-करते उनके साथ मित्रता हो जाना स्वाभाविक है। धीरे-धीरे एक ही विषय में रुचि रखने वाले लोगों के बीच सामुदायिकता की भावना पैदा हो जाती है। ऐसे ब्लॉगर समय-समय पर मिल-बैठकर चर्चाएं भी करते हैं जैसे कि १४ जुलाई को दिल्ली में पहले कैफे कॉफी डे पर और फिर एक नए ब्लॉग एग्रीगेटर के दफ्तर पर हुई । शैशव काल में है हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी में अभी ब्लॉगिंग अपने शैशव काल में है। अंग्रेजी में जहां ब्लॉगिंग १९९७ में शुरू हो गई थी वहीं हिंदी में पहला ब्लॉग दो मार्च २००३ को लिखा गया। समय के लिहाज से अंग्रेजी और हिंदी के बीच महज छह साल की दूरी है लेकिन ब्लॉगों की संख्या के लिहाज से दोनों के बीच कई प्रकाश-वर्षों का अंतर है। अंग्रेजी
अंग्रेजी में जहां ब्लॉगिंग १९९७ में शुरू हो गई थी वहीं हिंदी में पहला ब्लॉग दो मार्च २००३ को लिखा गया। समय के लिहाज से अंग्रेजी और हिंदी के बीच महज छह साल की दूरी है लेकिन ब्लॉगों की संख्या के लिहाज से दोनों के बीच कई प्रकाश-वर्षों का अंतर है।
में और कुछ नहीं तो साढ़े तीन करोड़ ब्लॉग मौजूद हैं जबकि हिंदी में करीब एक हजार। हालांकि अप्रत्याशित रूप से ब्लॉगिंग विश्व में एशिया ने ही दबदबा बनाया हुआ है। टेक्नोरैटी के अनुसार विश्व के कुल ब्लॉगों में से ३७ प्रतिशत जापानी भाषा में हैं और ३६ प्रतिशत अंग्रेजी में। को आठ प्रतिशत ब्लॉगों के साथ चीनी भाषा तीसरे नंबर पर है। ब्लॉगों के मामले में हिंदी अपने ही देश की तमिल से भी पीछे है जिसमें दो हजार से अधिक ब्लॉग मौजूद हैं। लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत निराश नहीं है। कुवैत में रहने वाले वरिष्ठ हिंदी ब्लॉगर जीतेन्द्र चौधरी कहते हैं- २००३ में शुरू हुए इस कारवां में बढ़ते हमसफरों की संख्या से मैं संतुष्ट हूं। आज हम लगभग ९०० ब्लॉगर हैं और साल के अंत तक हम लगभग ११०० का आंकड़ा छू सकते हैं। जीतेंद्र चौधरी के आशावाद के विपरीत रवि रतलामी मौजूदा हालात से संतुष्ट नहीं दिखते, "जब तक हिंदी ब्लॉग लेखकों की संख्या एक लाख से ऊपर न पहुंच जाए और किसी लोकप्रिय चिट्ठे को नित्य दस हजार लोग नहीं पढ़ लें तब तक संतुष्टि नहीं आएगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की गति अत्यंत धीमी है। पर पर इंटरनेट और कंप्यूटर में हिंदी है भी तो बहुत जटिल भाषा- जिसमें तमाम दिक्कतें हैं।" दुनिया की दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा होने के लिहाज से देखें तो हिंदी में ब्लॉगों की संख्या अपेक्षा से बहुत कम दिखेगी। लेकिन इसके कारण स्पष्ट हैं। टेलीफोन, कंप्यूटर, इंटरनेट, बिजली और तकनीकी ज्ञान जैसी बुनियादी आवश्यकताएं पूरी किए बिना कंप्यूटर और इंटरनेट को तेजी से लोकप्रिय बनाने की आशा नहीं की जा सकती। दूसरे, आर्थिक रूप से हम इतने सक्षम और निश्चिंत नहीं हैं कि ऐसी किसी तकनीकी सुविधा पर समय, श्रम और धन खर्च करना पसंद करें, जो अपरिहार्य नहीं है। तीसरे, हमारा समाज संभवत: पश्चिम के जितना अभिव्यक्तिमूलक भी नहीं है। बहरहाल, आर्थिक तरक्की के साथ-साथ इन सभी क्षेत्रों में स्थितियां बदल रही हैं जिसका असर ब्लॉग की दुनिया में भी दिख रहा है। पिछले छह महीने में नए हिंदी ब्लॉग बनने की गति कुछ तेज हुई है। चिट्ठाकार आलोक कहते हैं, "ब्लॉगिंग की गति में आई तेजी के कई कारण हैं। एक तो हिंदी में लेखन के अलग-अलग तंत्रों (सॉफ्टवेयरों) का विकास, दूसरे विन्डोज एक्सपी का अधिक प्रयोग जिसमें हिंदी में काम करना विंडोज ९८ की तुलना में अधिक आसान है, तीसरे ब्लॉगर जैसी वेबसाइटों में मौजूद सुविधाओं में वृद्धि (जिनसे ब्लॉगिंग की प्रक्रिया निरंतर आसान हो रही है), और चौथे पत्र-पत्रिकाओं में इंटरनेट, ब्लॉग आदि के बारे में छप रहे लेख।" पुणे के सॉफ्टवेयर इंजीनियर देवाशीष चक्रवर्ती, जिन्होंने नवंबर २००३ में नुक्ताचीनी नामक ब्लॉग शुरू किया, ने हिंदी ब्लॉगिंग में अहम भूमिका निभा है। नुक्ताचीनी के अलावा वे पॉडभारती नामक पोडकास्ट और नल प्वाइंटर नामक अंग्रेजी ब्लॉग चलाते हैं। उन्होंने श्रेष्ठ ब्लॉगों को पुरस्कृत करने के लिए 'इंडीब्लॉगीज' नामक पुरस्कारों की शुरूआत भी की है। देवाशीष कहते हैं, "भारतीय भाषाओं में ब्लॉग जगत में निरंतर विकास होगा, इसमें को संदेह नहीं है। अधिकांश भाषाओं के अपने ब्लॉग एग्रीगेटर हैं, और स्थानीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने भी भाषायी ब्लॉगरों को काफी प्रचारित एवं प्रोत्साहित किया है। गूगल और माइक्रोसॉफ्ट की कुछ तकनीकों से भी भाषायी ब्लॉगिंग को गति मिली है।" इस बीच, तरकश समूह ने भी ब्लॉग पोर्टल के रूप में एक अच्छी शुरूआत की है और वह तरकश जोश (अंग्रेजी), टॉक एंड कैफे (अंग्रेजी) और पॉडकास्ट का संचालन कर रहा है। इस बीच नारद के कुछ प्रतिद्वंद्वी ब्लॉग एग्रीगेटर भी सामने आए हैं जिनमें ब्लॉगवाणी, चिट्ठाजगत और हिंदीब्लॉग्स.कॉम प्रमुख हैं। इन सबने हिंदी ब्लॉग जगत को विविधता दी है और उसकी विषय वस्तु को समृद्ध किया है। अक्षरग्राम और नारद बहरहाल, अगर कुछ समर्पित ब्लॉगरों ने मिलकर प्रयास न किए होते तो शायद हिंदी में ब्लॉगिंग की हालत बहुत कमजोर होती। अलग-अलग
जीतेंद्र चौधरी का कहना है, "इंटरनेट पर हिंदी का प्रचार-प्रसार हिंदी ब्लॉगिंग के जरिए बढ़ सकता है क्योंकि हर ब्लॉगर अपने साथ कम से कम दस पाठक जरूर लाएगा। अगर उन दस पाठकों में से चार ने भी ब्लॉगिंग शुरू की तो एक श्रृंखला बन जाएगी और ध्यान रखिए, इंटरनेट पर जितनी ज्यादा सामग्री हिंदी में उपलब्ध होगी, जनमानस का इंटरनेट के प्रति रुझान भी बढ़ता जाएगा।
देशों में रहने ब्लॉगरों के कुछ समूहों ने हिंदी ब्लॉगिंग को संस्थागत रूप देने और नए ब्लॉगरों को प्रोत्साहित करने का अद्वितीय काम किया है। उन्होंने हिंदी में काम करने की दिशा में मौजूद तकनीकी गुत्थियां सुलझाने, नए लोगों को तकनीकी मदद देने, हिंदी टाइपिंग और ब्लॉगिंग के लिए सॉफ्टवेयरों का विकास करने, ब्लॉगों को अधिकतम लोगों तक पहुंचाने के लिए ब्लॉग एग्रीगेटरों (एक सॉफ्टवेयर जो विभिन्न ब्लॉगों पर दी जा रही सामग्री को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने में सक्षम है) का निर्माण करने, सामूहिक रूप से अच्छी गुणवत्ता वाली रचनाओं का सृजन करने और ब्लॉगरों के बीच नियमित चर्चा के मंच बनाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। 'चिट्ठाकारों की चपल चौपाल' के नाम से चर्चित अक्षरग्राम नेटवर्क ऐसा ही एक समूह है। इसके सदस्यों में पंकज नरूला (अमेरिका), जीतेन्द्र चौधरी (कुवैत), ईस्वामी, संजय बेंगानी, अमित गुप्ता, पंकज बेंगानी, निशांत वर्मा, विनोद मिश्रा, अनूप शुक्ला और देवाशीष चक्रवर्ती शामिल हैं। यह समूह ब्लॉग एग्रीगेटर 'नारद' और 'चिट्ठा विश्व' (आजकल निष्क्रिय), 'अक्षरग्राम', हिंदी विकी 'सर्वज्ञ', ब्लॉगरों के बीच वैचारिक-आदान प्रदान के मंच 'परिचर्चा', सामूहिक रचनाकर्म पर आधारित परियोजना 'बुनो कहानी', ब्लॉग पत्रिका 'निरंतर' आदि का संचालन करता है। ब्लॉग जगत से जुड़े अधिकांश सदस्य इन सभी से न सिर्फ परिचित हैं, बल्कि किसी न किसी तरह जुड़े हुए भी हैं। हिंदी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में पिछले चार वर्षों के दौरान हुई धीमी प्रगति के बावजूद इस समूह ने अपनी लगन और उत्साह में कमी नहीं आने दी। इस बारे में जीतेंद्र चौधरी का कहना है, "इंटरनेट पर हिंदी का प्रचार-प्रसार हिंदी ब्लॉगिंग के जरिए बढ़ सकता है क्योंकि हर ब्लॉगर अपने साथ कम से कम दस पाठक जरूर लाएगा। अगर उन दस पाठकों में से चार ने भी ब्लॉगिंग शुरू की तो एक श्रृंखला बन जाएगी और ध्यान रखिए, इंटरनेट पर जितनी ज्यादा सामग्री हिंदी में उपलब्ध होगी, जनमानस का इंटरनेट के प्रति रुझान भी बढ़ता जाएगा। और एक गर्मागर्म विवाद इतने समर्पित लोगों की प्रिय परियोजना 'नारद' को लेकर पिछले दिनों एक विवाद भी खड़ा हो गया जब एनडीटीवी चैनल के पत्रकार अविनाश दास की ओर से संचालित 'मोहल्ला' नामक सामूहिक ब्लॉग पर धर्म के संवेदनशील मुद्दे पर छपी कुछ टिप्पणियों पर आपत्तियां उठाई गईं। 'मोहल्ला' ज्वलंत मुद्दों पर गंभीर टिप्पणियों के लिए जाना जाता रहा है और उसके माध्यम से हिंदी ब्लॉगजगत को कुछ अच्छे टिप्पणीकार मिले हैं। चूंकि 'नारद' एक ब्लॉग एग्रीगेटर है, जिस पर सभी पंजीकृत ब्लॉगों की टिप्पणियां दिखाई देती हैं, सो 'मोहल्ला' की यह विवादास्पद टिप्पणी भी वहां प्रदर्शित हुई । कई ब्लॉगरों की नजर में यह टिप्पणी ईश-निंदा के दायरे में आती है और वे मानते हैं कि उसे लेकर भारतीय दंड विधान के तहत कार्रवाई भी संभव है। अन्य ब्लॉगर इसे 'सेकुलर' टिप्पणी मानते हैं और उन्हें लगता है कि इसके विरोध में संघवादियों का हाथ है। इस तरह की आशंकाओं ने 'नारद' की अनुभवी टीम को भी डरा दिया और उसने 'मोहल्ला' को इस एग्रीगेटर से हटाने का फैसला किया। इस मुद्दे पर हिंदी ब्लॉग जगत में साफ विभाजन दिखाई दिया और आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। एक ओर 'मोहल्ला' के खिलाफ हिंदुत्ववादियों की मुहिम शुरू हो गई तो दूसरी ओर 'मोहल्ला' के प्रति सहानुभूति रखने वालों ने 'नारद' को उखाड़ फेंकने का अभियान शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया में कुछ अन्य लोग भी जुट गए और लानत-मलामत का अप्रिय दौर शुरू हुआ जिसने हिंदी ब्लॉग जगत का माहौल प्रदूषित किया। कुछ ब्लॉगरों ने टिप्पणी की कि अविनाश का को 'हिडन एजेंडा' है जिसे वे ब्लॉग जगत पर थोपना चाहते हैं। कुछ अन्य ने कहा- मोहल्ला को प्रतिबंधित करने का कदम उन कट्टरपंथी मध्ययुगीन मुल्लाओं से अलग नहीं है जो कलाकारों, लेखकों, औरतों, फिल्मकारों की आजादी से खौफ खाते हैं और उनके खिलाफ फतवे जारी करते हैं। वे हर प्रकार की असहमतियों को दबा देना चाहते हैं। इस विवाद ने स्वाभाविक रूप से, नारद की टीम को बहुत व्यथित किया और जीतेंद्र चौधरी ने टिप्पणी की,
मुझे लगता है कि मोहल्ला प्रकरण एक अनावश्यक विवाद था। मुझे न जीतेंद्र चौधरी की निष्पक्षता, राजनैतिक तटस्थता और ब्लॉगिंग विधा के प्रति समर्पण में कोई संदेह है और न ही इस आरोप पर विश्वास होता है कि अविनाश और उनके साथियों ने हिंदुत्व के विरुद्ध कोई साजिश की है। मुझे तो यह विवाद कम्युनिकेशन-गैप और अति उत्साह का परिणाम लगता है। हड़बड़ी में उठाए गए कुछ कदमों और उनकी तीखी, त्वरित प्रतिक्रियाओं ने बात का बतंगड़ बना दिया।
"आज दिल व्यथित है, बहुत ज्यादा। कुछ चिट्ठाकारों द्वारा नारद की निंदा किए जाने और कुछ अन्य लोगों द्वारा उसे बढ़ावा दिए जाने के बाद। आज मैं आत्मचिंतन करने पर मजबूर हो गया हूं कि आखिर हम इतना सब किसके लिए कर रहे हैं? ऐसे लोगों के लिए जिन्हें इतनी समझ नहीं कि वे अपनी मनमानी ना होने पर किसी की भी बेइज्जती करने से न चूकें या उनके लिए जो इन लोगों को परोक्ष रूप से उकसा रहे हैं, या फिर उनके लिए जो मूक दर्शक बने सब कुछ देख रहे हैं। मैं बहुत गंभीरतापूर्वक नारद, अक्षरग्राम और उससे जुड़ी अन्य परियोजनाओं से हटने की सोच रहा हूं।" दूसरी ओर अविनाश और उनके साथी ब्लॉगरों को इन टिप्पणियों से चोट पहुंची कि उनकी विचारधारा मुस्लिम तुष्टीकरण की है और हिंदुत्व के विरुद्ध वे को सुनियोजित साजिश बनाकर चल रहे हैं। इस दौरान उनके ब्लॉग को कैंसर की उपमा दी गई , और 'महाशक्ति' ने लिखा- "इन लोगों की स्थिति मोहल्ले के गंदे सुअर की तरह है कि आप उन्हें कितना भी अच्छा खाना दीजिए किंतु अपशिष्ट पदार्थ के बिना उनका पेट नहीं भरता।" इन टिप्पणियों से दुखी अविनाश ने लिखा- मोहल्ले के सरोकार अल्पसंख्यकों, दलितों और स्त्रियों से जुड़े हैं और उनकी हिमायत करने वाला विमर्श हम आगे भी जारी रखेंगे। दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर दोषारोपण किया, एक-दूसरे को आहत किया, एक-दूसरे पर सांप्रदायिक और हिंदूविरोधी के लेबल चस्पा किए। कुछ अन्य लोग भी वाणिज्यिक या राजनैतिक कारणों से इस मुकाबले में हाथ सेंकने कूद पड़े। उन्होंने अपने तरीके से इसका लाभ भी उठाया और नुकसान में रहे तो विवाद से सीधे जुड़े हुए दोनों पक्ष ही। मुझे लगता है कि यह एक अनावश्यक विवाद था। मुझे न जीतेंद्र चौधरी की निष्पक्षता, राजनैतिक तटस्थता और ब्लॉगिंग विधा के प्रति समर्पण में कोई संदेह है और न ही इस आरोप पर विश्वास होता है कि अविनाश और उनके साथियों ने हिंदुत्व के विरुद्ध कोई साजिश की है। मुझे तो यह विवाद कम्युनिकेशन-गैप और अति उत्साह का परिणाम लगता है। हड़बड़ी में उठाए गए कुछ कदमों और उनकी तीखी, त्वरित प्रतिक्रियाओं ने बात का बतंगड़ बना दिया। इस बीच विभिन्न लोगों की ओर से आ कुछ विवादास्पद टिप्पणियों ने आग को और हवा दी। बहरहाल, मामला फिलहाल ठंडा पड़ चुका है और 'मोहल्ला' 'नारद' पर लौट चुका है। एक तरह से इसे हिंदी ब्लॉगिंग की परिपक्वता की निशानी भी माना जा सकता है कि वह इस तरह के विवाद से अंतत: बाहर निकलने में सफल रही। हम प्रिय-अप्रिय अनुभवों से सीखते हुए ही आगे बढ़ते हैं और मजबूत भी बनते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि धीरे-धीरे ब्लॉगर साथी इन अप्रिय स्मृतियों से उबर कर फिर से एक साथ, अपने सार्थक काम में जुट जाएंगे। सीमाएं और चुनौतियां हिंदी ब्लॉगिंग के स्वस्थ विकास के लिए कुछ मुद्दों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। जिस तरह ब्लॉगरों की संख्या में वृद्धि की दर दूसरी भाषाओं की तुलना में काफी कम है, उसी तरह यहां पाठकों का भी टोटा है। हिंदी ब्लॉग विश्व को चिंतन करना होगा कि वह आम पाठक तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा? क्या इसलिए कि हिंदी ब्लॉगिंग में विविधता का अभाव है? क्या इसलिए कि इसमें मौजूद अधिकांश सामग्री समसामयिक विषयों पर टिप्पणियों, निजी कविताओं, पुराने लेखों तथा प्रसिद्ध लेखकों की रचनाओं को इंटरनेट पर डालने तक सीमित है? क्या इसलिए कि हिंदी ब्लॉगों की भाषा अभी विकास के दौर से गुजर रही है और पूरी तरह मंजी नहीं है? क्या इसलिए कि हिंदी ब्लॉगों की सामग्री सुव्यवस्थित ढंग से उपलब्ध नहीं है बल्कि छिन्न-भिन्न है जिसमें मतलब की चीज ढूंढना चारे के ढेर में सुई ढूंढने के समान है? या फिर इसलिए कि पत्र-पत्रिकाओं में खूब छपने के बावजूद हिंदी पाठक अभी तक ब्लॉगिंग को तकनीकी अजूबा मानते हुए उनसे दूर हैं? इंटरनेट आधारित साहित्यिक पत्रिका सृजनगाथा.कॉम के संपादक और ब्लॉगर जयप्रकाश मानस कहते हैं, "जहां तक हिंदी ब्लॉगिंग की भाषा का प्रश्न है, वह अभी परिनिष्ठित हिंदी को स्पर्श भी नहीं कर सकी है। वहां भाषा का सौष्ठव कमजोर है। अधिकांश ब्लॉगर नगरीय परिवेश से हैं, ऊपर से हिंदी के खास लेखक और समर्पित लेखक ब्लॉग से अभी कोसों दूर हैं, सो वहां भाषाई कृत्रिमता और शुष्कता ज्यादा है। वहां व्याकरण की त्रुटियां भी साबित करती हैं कि अभी हिंदी ब्लॉगिंग में भाषा का स्तर अनियंत्रित है।" अविनाश भी इससे सहमत दिखते हैं, "हिंदी ब्लॉगिंग की अभी कोई शक्ल नहीं बन पाई है। विविधता के हिसाब से भी अभी विषयवार ब्लॉग नहीं हैं। लेकिन जो हैं, वे जड़ता तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।" हालांकि कई लेखक लीक से हटकर चलने की कोशिश जरूर कर रहे हैं। अतुल अरोरा और सुनील दीपक के संस्मरण और यात्रा वृत्तांत, रवि
जयप्रकाश मानस कहते हैं, "जहां तक हिंदी ब्लॉगिंग की भाषा का प्रश्न है, वह अभी परिनिष्ठित हिंदी को स्पर्श भी नहीं कर सकी है। वहां भाषा का सौष्ठव कमजोर है।
रतलामी, श्रीश शर्मा, जीतेन्द्र चौधरी, देबाशीष, पंकज नरूला, ईस्वामी, अमित गुप्ता, प्रतीक पांडेय आदि के तकनीकी आलेखों का स्तर बहुत अच्छा है। प्रत्यक्षा जैसी कथालेखिका, अशोक चक्रधर, बोधिसत्व जैसे कवि और जयप्रकाश मानस, प्रमोद सिंह, प्रियंकर जैसे साहित्यकार-ब्लॉगर, आलोक पुराणिक जैसे सक्रिय व्यंग्यकार और रवीश कुमार, चंद्रभूषण, इरफान जैसे पत्रकार भी अच्छी, विचारोत्तेजक ब्लॉगिंग कर रहे हैं। लेखक ने स्वयं अपने ब्लॉग 'वाहमीडिया' को विविधता के लिहाज से मीडिया की आत्मालोचना पर केंद्रित रखा है। कमल शर्मा का 'वाह मनी' आर्थिक विषयों पर केंद्रित है और आलोक का 'स्मार्ट मनी' निवेश संबंधी सलाह देता है। 'फुरसतिया' और 'मोहल्ला' पर क ऊंचे दर्जे के साक्षात्कार और लेख पढ़े जा सकते हैं। नीलिमा हिंदी ब्लॉग जगत में पाठकों-लेखकों संबंधी आंकड़ों की गहन छानबीन कर रही हैं। मनीषा स्त्री विमर्श के मुद्दों पर साहसिक लेखन कर रही हैं। लेकिन विविधता अभी और भी चाहिए। जीतेन्द्र चौधरी भी यह बात मानते हैं- "लेखन के विषयों और गुणवत्ता पर काफी कुछ किया जाना बाकी है। आसपास कई ऐसे चिट्ठाकार आए हैं जिनके लेखन में विविधता है और लेखन भी काफी उत्कृष्ट कोटि का है। लेकिन बहुसंख्यक ब्लॉग ऐसे हैं जो निजी डायरी के रूप में ही चल रहे हैं।" अनगढ़ भाषा कोई अड़चन नहीं! वैसे एक मजेदार तथ्य यह भी है कि भाषा के लिहाज से बेहद कमजोर माने जाने वाले कुछ ब्लॉग लोकप्रियता में परिमार्जित भाषा वाले ब्लॉगों से कहीं आगे हैं। तत्वज्ञानी के हथौड़े की भाषा देखिए- "वेसे अगर आपके जमाने कि बात करे तो भी लता से बहेतर बहुत सी गायिकाए होन्गी लेकिन आपकि कमजोर संगीत सुझकि बजह से वह आपको दिखी नहि! शायद आप पोप्युलर गाने हि सुनते थे इसिलिए शमशाद बेगम को भुल गए। शायद लताजी फिल्मो में राजनिति करती थी और इसलिए कोई और आपके जमाने मे से उभर नहि पाया? मुझे अफसोस होता है कि आप लोगो ने केवल २-३ अछछी गायिकाए दी!" और शुएब को देखिए, "अपने विचारों को शेर करने के लिए मेरा ब्लॉग काफी है और मेरी डाईरी यही ब्लॉग है। भारत मेरा पहला धर्म है जहां मैं पैदा होवा और उसी के बनाए कानून के मुताबिक कोर्ट में शादी करूंगा मगर एसी लड़की मिलेगी कहां?" कहना न होगा कि व्याकरण संबंधी त्रुटियों के बावजूद ये दोनों ब्लॉगर सर्वाधिक पढ़े जाने वालों में से हैं। भाषा की बात चली है तो कुछ शीर्षकों की मिसालें भी दी जा सकती हैं, "सब मोहल्ले का लौंडपना है", "क्या इस देश को चूतिया बनाया जा रहा है?" कुछ टिप्पणियों पर भी निगाह डालिए, 1। "आपके चिट्ठे की टिप्पणियों में बेनामों की विष्ठा के अलावा कोई भी नामधारी टिप्पणी क्यों नहीं है?", 2। "बेंगाणी एक गंदा नैपकिन है", 3. "ये लोग (एक ब्लॉगर) आतंकवादी से भी खतरनाक हैं। ये हमेशा आग लगाने की फिराक में रहते हैं।" जयप्रकाश मानस कहते हैं, "सार्थक अर्थों में वैचारिक, अर्थशास्त्रीय, चिकित्सा, इतिहास, लोक अभिरुचि और साहित्यिक ब्लॉग नहीं के बराबर हैं। हिंदी ब्लॉगरों के उत्साह को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए ब्लॉगिंग के विषयों और उसके कोणों में विविधता और विश्वसनीयता आवश्यक है अन्यथा इनकी स्थिति भी वैसी ही हो जाएगी जैसे किसी दैनिक अखबार के संपादक को कई बार किसी कल्पित नाम से 'संपादक के नाम पत्र' छापना पड़ता है।' लेखकों के साथ-साथ हिंदी ब्लॉगों के पाठक कैसे बढ़ें? रवि रतलामी के अनुसार, "फिलहाल हिंदी ब्लॉग जगत के अधिकतर पाठक वे ही हैं जो किसी न किसी रूप से स्वयं ब्लॉगिंग से जुड़े हुए हैं। उनमें से अधिकतर स्वयं सक्रिय रूप से ब्लॉग लिखते हैं।" अनूप शुक्ला भी यह बात स्वीकार करते हैं, "पाठक तब बढ़ेंगे जब हिंदी में तकनीक का प्रसार होगा। हमारे समाज में कंप्यूटर और नेट का पूरी तरह से उपयोग होना बाकी है। जैसे-जैसे मीडिया में ब्लॉगिंग का प्रचार होगा, वैसे-वैसे पाठक संख्या में भी वृद्धि होगी।" आलोक कुमार इस संदर्भ में बड़ी कंपनियों के पहल करने की जरूरत महसूस करते हैं, "बड़े पोर्टल और बड़ी कंपनियां हिंदी भाषियों की जरूरतों को पूरा करने में पीछे रह गई हैं। इस समय जो भी बड़ी कंपनियां व पोर्टल आगे आकर हिंदी के स्थल बनाएंगे उनके पीछे हिंदी भाषियों की बहुत बड़ी टोली हो लेगी।" यानी हिंदी ब्लॉगिंग को भी बड़े संस्थानों के समर्थन की जरूरत है। शायद आलोक कुमार ठीक कहते हैं। ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर और संस्थागत आधार पर तैयार किए गए सॉफ्टवेयरों की तुलनात्मक स्थिति को देखकर भी यह धारणा पुष्ट होती है कि आम लोगों द्वारा किए जाने वाले असंगठित तकनीकी प्रयासों को किसी न किसी दिशानिर्देशक या व्यवस्थागत समर्थन के बिना उतनी बड़ी सफलता नहीं मिल पाती जिसके वे वास्तव में हकदार होते हैं। (लेखक हिंदी पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक हैं और
'वाह मीडिया' (हिंदी) तथा 'localisationlabs' (अंग्रेजी) नामक ब्लॉग चलाते हैं)। email: balendu@gmail.com

Monday, October 8, 2007

इन्द्रधनुष का एक साल.....-



- अभिषेक

राजस्थान की पहली वेब पत्रिका इन्द्रधनुष को एक साल हो गया। राजस्थान के इन्टरनेट प्रेमियों के लिए यह वाकई बहुत सुकूनपरक है। इन्द्रधनुष की हिट स्टेटिक्स तो मुझे नहीं पता पर हां, उसकी कंटेट स्टेटिक्स मैं जरुर जानता हूं। वाकई बहुत उम्दा। इन्द्रधनुष की पहली सालगिरह के मौके पर जयपुर में एक जलसा भी हुआ। प्रगतिशील लेखक संघ के बैनर तले। इस गोष्ठी में अच्छी तादात में शहर के साहित्यप्रेमी जुटे। वक्ताओं में वेब पत्रकारिता के शुरुआती योद्धाओं में से एक माने जाने वाले यशवन्त व्यास और साहित्यकार नंद भारद्वाज थे। रामकुमार सिंह के रूप मे पत्रकारिता के युवा हस्ताक्षर भी पोडियम पर थे। यशवन्त जी तो स्वयं इन्टरनेट पर अवरसोल डॉट कॉम नाम से एक पोर्टल चलाते हैं। रामकुमार जी भी तकनीकप्रिय व्यक्ति हैं। तीनों ने बहुत सी सारगर्भित अंदाज में अपनी बात कही। यह समारोह मुझ जैसे ब्लॉगर के लिए दोहरी खुशी का अवसर था। एक तो किसी वेबपत्रिका के संपादकमंडल और तकनीकि कर्मियों में इतना धैर्य रहा कि वे तमाम मुश्किलात के बावजूद भी इस कार्य को एक साल तक न केवल जीवित रख सके बल्कि इसे नई ऊंचाई भी देते रहे। जिसका सीधा सा मतलब था कि लोगों को इन्टरनेट रास आ रहा है। मेरे लिए खुशी का दूसरा कारण इन्टरनेट की किसी पत्रिका का वर्चुअल वर्ल्ड से निकल कर भौतिक जगत में पदार्पण करना। और उस जलसे में इतने लोगों का आना। मेरा इन्द्रधनुष के संपादक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल से व्यक्तिगत परिचय होने के नाते मैं उनकी सक्रियता पर अक्सर उन्हें सीधे बधाई देता रहता हूं। पर आज उन्हें इस ब्लॉग के माध्यम से भी बधाई देता हूं। जयपुर औऱ राजस्थान में इन्टनेट जिस प्रकार से लोकप्रिय हो रहा है उसमें उनका काफी योगदान है। मेरा उन्हें साधुवाद। इन्द्रधनुष की प्रबंध संपादक अंजली सहाय का भी इस उपक्रम को पूरा समर्थन देने के लिए साधुवाद। प्रगतिशील लेखक संघ के प्रेमचंद ने इस गोष्ठी का सफल संचालन किया. अन्त में इस समारोह के दौरान इऩ्द्रधनुष के संपादक के नाते राजस्थान में कई वेब पत्रिकाएँ होने और उनसे रचनात्मक मुकाबले की ख्वाहिश व्यक्त करने पर शुक्रिया के साथ ही आमीन......।

फोटो साभार, महेश स्वामी, जयपुर
http://www.indradhanushindia.org/

Saturday, October 6, 2007

बीएसएनएल की मेहरबानी के चलते...

- अभिषेक
सबसे पहले तो मैं आपसे इतने दिनों तक कोई सम्पर्क नहीं रख पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। पर यह काफी कोशिशों के बाद अब जब यह सम्पर्क हो रहा है तो मैं इस पुनः सम्पर्क स्थापना के लिए बीएसएनएल के कर्मठ सरकारी कमर्चारियों का तहेदिल से शुक्रगुजार हूं।
दरअसल यह् हम भारतीयों का सौभाग्य है कि है हम लोगों को आपस में जोड़े रखने के लिए भारत संचार निगम लिमिटेड के कर्मठ कार्यकर्ता हर दम तैयार और तत्पर रहते हैं। बस उन्हें प्राइवेटाइजेशन के इस दौर में प्रोफेशनली काम करना आ जाए। फिर देखिए वे कैसे आपकी सेवा करते हैं। अब मेरा मामला ही लीजिए, चलते चलते फोन मृत हो गया, डेड हो गया। मेरे घर के आस पास सौभाग्या या दुर्भाग्य से कोई अन्य बीएसएनएल फोन नहीं है, मेरे पास जो चल कोशिकिय फोन है वो भी वायु संचार यानी एयरटेल का है। और मेरे ऑफिस में सारे फोन इन्द्रधनुष के हैं। अब फोन के डेड होने की कम्पलेंट कैसे हो। किसी ने बताया कि अपने फोन की पहली तीन डीजिट के बाद दो लगा कर 198 पर कम्पलेंट दर्ज करवा दो। कोशिश की,कम्पयूटर पर पहले से दर्ज एक मोहतरमा बोलीं, हिन्दी के लिए दो,अंग्रेजी के लिए एक दबाओ, बीप के बाद खराब टेलिफोन का नम्बर दबाओ, और अन्त में बोलीं की यह नम्बर इस एक्सचेंज का नहीं है। धन्यवाद। तीन दिन तक बीएसएनएल के कई दफ्तरों में कई तरह कोशिश कर ली। कम्पलेंट दर्ज नहीं तो कार्रवाई नहीं। सोचा चलो उपोभोक्ता केन्द्र में जाकर कम्पलेंट दर्ज करवा दें। ऑफिस के सामने एक बड़े वाले उपभोक्ता केन्द्र में भी पहुंचे। वहां जो सज्जन मिले , प्लान चेंज हो सकता है,नया कनेक्शन मिल सकता है,लेकिन शिकायत के लिए आपको वहीं 198 का तरीका ही अपनाना पड़ेगा। वाह क्या उपभोक्ता सेवा है....। कई दिन तक बीएसएनएल के कई दफ्तरों में फोन की कम्पलेंट दर्ज करवाने की कोशिश की पर नहीं हुई। इस दौरान लाइनमैन महोदय, बीएसएनएल स्विच रूम, कन्ट्रोल रूम,विशेष इन्क्वायरी सेवा, और दूसरे इलाके के एसडीई साहब जाने कितने लोगों से गुहार लगाई गई। पर कुछ नहीं हुआ। अन्ततः आज अपने इलाके के एसडीई साहब से बात की अपने पत्रकारना लहजे में उन्हें फोन के खराब होने की सूचना भर दी औऱ शाम होने तक लाइनमैन हमारे दरवाजे पर था। फोन जीवित हो गया है, और हम फिर से आपके सम्पकर् में आ गये हैं। .. आशा है बीएसएनएल कुछ करेगा.....