Thursday, December 24, 2009

क्या इडियट हैं हम

आप कोई भी चैनल बदलें, किसी भी समय देखें, इन दिनों आमिर खान अपनी नई फिल्म 3 इडियट्स के प्रचार में जोर- शोर से जुटे नजर आएंगे। आमिर के बारे में कहा जा रहा है कि वे 100 प्रतिशत प्रोफेशनल हैं। इतने की अपने फायदे के लिए के किसी भी हद तक जा कर कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखते हैं। अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए नए-नए तरीके इस्तेमाल करते हैं। 3 इडियट्स को चर्चा में लाने के लिए उन्होंने क्या क्या नहीं किया। कैच मी इफ यू कैन अभियान की बात दरकिनार भी कर दी जाए तो तो मीडिया को गाहे बगाहे गॉसिप परोसकर वे अपना काम करते रहते हैं। शाहरुख, सलमान और खुद के खान होने से खानवाद का जो नारा मीडिया ने उछाला है वे उसे भी जमकर कैश कर रहे हैं। पर मुझे याद आते हैं सालों पहले के आमिर खान। तब वे आमिर खान नहीं, चॉकलेटी आमिर हुआ करते थे। कयामत से कयामत तक में एक रोमांटिक लवर बॉय की जो भूमिका उन्होंने की थी, उसके लिए कोई अतिरिक्त प्रचार भी नहीं हुआ था। फिल्म की प्रारम्भिक बनावट और मासूम अदाकारी में ही इतना दम था क फिल्म आप से आप ही हिट और सुपरहिट होती चली गई। फिर दौर आया जो जीता वही सिकन्दर, हम हैं राही प्यार के, गुलाम, रंगीला और सरफरोश का उन सब फिल्मों के लिए आमिर ने अलग से कोई विशेष प्रचार अभियान नहीं चलाया पर फिल्मों ने कारोबार किया। लगान ने इतिहास रचा औऱ अभिनेता आमिर निर्माता आमिर बन गया। अब तक फिल्म में केवल अपनी भूमिका और उसका असर देख कर उसे निभा जाना भर उनकी खासियत हुआ करती थी। अपनी फिल्मों के साथ ही खुद को भी पूरा समय देना उनकी फितरत हुआ करता था। लेकिन जबसे उन्हें समझ आया कि फिल्म् को बनाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है उसे कायदे के साथ बेचना, उन्होंने फिल्म को बेचना शुरू कर दिया। कहावत है कि, बेहतर सेल्समैन वह होता है जो गंजे को कंघी बेच दे, लगता है आमिर ने वह कहावत सुन ली है और अब इसे आत्मसात करने की डगर पर कदम दर कदम बढ़ रहे हैं। जाने तू या जाने ना, गजनी और तारे जमीं पर के दौरान भी उन्होंने जमकर अपनी मार्केटिंग स्किल्स का मुजाहिरा किया। लेकिन 3 इडियट कुछ ज्यादा ही खास है। चेतन भगत की फाइव पांइट, समवन नोट टु डू इन आईआईटी, पर आधारित इस फिल्म का कथानक मूल उपन्यास से अलग किसी नए रूप में दिखे तो चौंकिएगा नहीं। आमिर की अदा है कि वे अपनी फिल्मों में इतना डूब जाते हैं कि मूल कथानक को मूल नहीं रहने देते। आईआईटी की कॉलेज लाइफ को लेकर बन रही यह फिल्म देश के उन लाखों असफल जे आईआईटीयन्स को तो अपील करेगी ही जो आईआईटी प्रवेश परीक्षा में बैठने के बावजूद आईआईटी में पढ़ नहीं सके और यही इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी है। चेतन ने अपनी किताब में आईआईटी के एजुकेशन और मार्किंग सिस्टम को चुनौती दी थी। उन्होंने बताया कि कैसे 1 से 10 अंकों परफोर्मेंस पैरामीटर अच्छे खासे स्टूडेंट को बुकवर्म में बदल देता है और वह अपने जीवन के सुनहरे सालों को यू हीं गंवा देता है। पढ़ाई और बुकवर्म की बात को ध्यान में रखते हुए भले ही सतही तौर पर कहीं यह लगता हो कि आईआईटी का मार्किंग सिस्टम छात्र की निजी जिंदगी को खत्म कर रहा हो पर यह भी ध्यान रखना होगा कि वही सिस्टम, वही पढ़ाई आईआईटी को बेजोड़ बनाती है।अलग मुकाम देती है। नहीं भूलना चाहिए की आज चेतन जो लिख रहे हैं, वो अच्छा है या बुरा, इसके मूल्यांकन से भी पहले, इसलिए में चर्चा में आ जाता है क्योंकि उसे एक आईआईटीयन ने लिखा है। छात्र जीवन में मौज, मस्ती सभी के जीवन का अंग होती है। मुझे भी याद आता है जब मैं प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ता था, ( मम्मी की पोस्टिंग उन दिनों चित्तौड़गढ़ जिले के गांव गंगरार में हुआ करती थी।) तब स्कूल से दोस्तों के साथ गायब होना औऱ घर के पास एक बड़े बरगद के पेड़ के कोटर में बस्ते छिपा कर, छोटी साइकिल (अधिया, पविया) को किराये पर ले पैडल मारते हुए गांव से करीब दो-तीन किलोमीटर दूर स्टेशन पर पहुंच जाते। जहां ट्रेन के आने का इन्तजार करते, पटरी के पास बैठे रहते, स्टेशन पर घूमते रहते। दूर से ट्रेन आती दिखती तो जेब में रखे दस-बीस पैसे के एल्युमीनियम के सिक्के पटरी पर रख दिया करते थे। इंजन के पहले दूसरे पहिये के गुजरते ही सिक्के पटरी से नीचे गिर जाते। ट्रेन गुजरने के बाद बेढ़ब हुए सिक्कों के नए आकार प्रकार को देखते औऱ खुश हुआ करते थे। क्या इडियटपन था वो भी।
बहरहाल, अपने अजीब से प्रचार अभियान के माध्यम से देशभर को इडियट बना चुके आमिर की फिल्म चंद घंटों बाद ही जनता के सामने होगी। देखना होगा कि फिल्म 3 घंटों में कितनों को इडियट बनाती है और आखिर में कौन इडियट साबित होगा।

Tuesday, December 15, 2009

नया साल, उम्मीद पुरानी

मोबाइल पर चचा हंगामी लाल का मैसेज था,
लम्हा लम्हा वक्त गुजर जाएगा,
१६ दिन बाद नया साल आएगा
आज ही आपको हैप्पी न्यू इयर कह दूं , वर्ना,,
कोई और बाजी मार जाएगा
विश यू है प्पी न्यू इयर २०१० ...
चचा का यह मैसेज पढ़ कर हमारे चेहरे पर मुस्कान थी,, अरे एक साल गुजर गया, अभी कल ही की तो बात है जब सबको हैप्पी न्यू इयर बोला था,, नए साल के लिए कसमें खाईं थी, संकल्प लिए थे,, देखते ही देखते साल कैसे गुजर गया.... । लेकिन मन ने दूसरे ही पल कहा,, हां,, साल तो गुजर गया पर देखते ही देखते कहां गुजरा,॥ इस साल ने तो कई टीस दी हैं,,। हर लम्हा जेब पर और भी भारी हो,, गुजरा....। साल के शुरू में जहां चीनी २० -२१ रुपए किलो थी वो अब साल खत्म होते होते अड़तीस रुपए किलो तक पहुंच गई। साल के सरकने की दर पर मंदी का साया बना रहा,, बहुत सपने सोचे थे॥ नई सरकार बनेगी॥ कुछ राहत मिलेगी॥ पेट्रोल के दाम कम होंगे॥ वो तो हुआ नहीं,, उलटे मुई सब्जी भी रसोई से गायब हो गई अब सूने फ्रिज ,,(दूध तो पहले ही मंहगा था, बस सब्जियों से से फ्रीज में थोड़ी रौनक रहती थी) मंडी में मंदी छाने का इंतजार कर रहे हैं। हर सब्जी में मिल कर सब्जी को बिजनेस क्लास से इकोनोमी क्लास में लाने वाला आलू खुद ही बिजनेस क्लास में शिफ्ट हो गया। साल के शुरू में सोचा था, कुछ बचत हो जाएगी तो कुछ जरूरी चीजें खरीद ली जाएंगी,, पर बचत तो दूर ओवर ड्राफ्ट हो गया,, खैर अब फिर से नया साल आ रहा है,, नई उम्मीदें हैं... सॉरी क्षमा चाहता हूं,, साल नया है,, पर उम्मीदें वही पुरानी हैं,, क्या करूं,, इस साल कुछ हो नहीं पाया,, बस जैसे तैसे साल गुजर गया,, चचा के मैसेज में एक बात तो सही है कि लम्हा लम्हा वक्त गुजर गया... लम्हा चाहे भारीपन से गुजरे या हल्केपन से , पर गुजरता जरूर है...
चलिए,, सभी पढ़ने वालों को आने वाले नए साल की शुभकामनाएं,,,,,

Monday, December 14, 2009

हंगामी लाल की राज्य वार

बहुत दिन से दूसरे शहर की नौकरी बजा रहे हैं, छुट्टी में घर पहंचे तो शाम पड़ते ही चचा हंगामी लाल आ पहुंचे। बहुत दिन बाद मिल रहे थे, हम और वो दोनों बहुत खुश थे। बातों ही बातों में चचा बोल पड़े, अब मिल लो जितना मिलना हो,, क्योंकि कुछ दिन बाद तो तुम हमसे मिलने किसी अस्पताल में आओगे,,
हम चकराए, क्या हुआ चचा,, क्या बात हो गई,, भगवान बचाए अस्पताल के चक्करों से,,,
अरे वो क्या है,, बीमारी जैसी कोई बात नही है,, दरअसल हम अनशन पर बैठने वाले हैं सो जब कमजोर होंगे तो अस्पताल ही में जाएंगे न॥
अरे पर आप अनशन कर काहे रहे हो
अरे वो नए नए राज्य बनाने की मांग हो रही है,, न उसी मामले में हम भी सोच रहे हैं कि एक बार हम भी अनशन कर ही दे,,,
अरे चचा ,, तुमको कौन सा राज्य चाहिए,,,,
मुझे कोई राज्य वाज्य नहीं चाहिए ,,,
तो चचा फिर ये अनशन क्यों...
अरे मेरी तो एक ही मांग है॥ सरकार एक काम करे,,, फिर से सारे राज्यों का गठन कर दे,, भाषा का चक्कर छोड़े और सम्पर्क,, सहजता,, भौगोलिक स्थिति का ध्यान करे... पूर्वांचल, उत्तराचंल, हिमाचल, तेलंगाना,, आंध्रा,, से लेकर केरल,, और राजस्थान से लेकर बंगाल तक,, कुल मिलाकर कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक औऱ जैसलमेर से लेकर इटानगर, गंगटोक तक सबको दुबारा से बना दो,, सबसे कह दो कि ,, भाई ,, अबकी बार सबको भारतीय मान कर राज्य बना रहे हैं,... किसी की भी अलग पहचान नहीं है,, ,, क्या बोलो,, क्या कहते हो॥ छे़ड़ दूं यह राज्य वार,,,
चचा की बात सुन हम चुप,।,,, सन्न,,,
हम कहे चचा तुम्हारी बात और मुद्दे में दम है,।,,, अनशन करो नहीं करो,, उसका फल क्या होगा,, यह तो मुझे पता नहीं,, तुम्हारी राज्य वार का अंजाम भी मैं नहीं जानता.. पर हां तुम्हारी बात जरूर जनता की ईसंसद में पहुंचा दूंगा,, शायद तुम्हें अनशन नहीं करना पड़े.....

तो सभी इन्टरनेट के पाठकों तक हमारे चचा हंगामीलाल का यह मुद्दा पहुंचा रहा हूं,,,,
सादर