Saturday, November 29, 2008

धमाका.. धमाका.. धमाका.. धमाका

धमाका.. धमाका.. धमाका.. धमाका .. मुंबई में एक और धमाका ..
अब तक का सबसे बड़ा धमाका.,,
१५० मर गए ,,
सवा तीन सौ घायल हो गए,,
५१ घंटों तक मुंबई में गोलियां गूंजती रहीं ...
पुलिस - सेना - कमांडो सभी ने मिल कर इतना बड़ा हमला नाकाम कर दिया,, चंद लोगों ने पूरा मुंबई जाम कर दिया ,, देश को हिला दिया,, राजनेता हिल गए .,., प्रधानमंत्री संतरी और तमाम जीव जंतरी सभी हिल गए ,,, अब दो -तीन दिन तक हिलते ही रहेंगे ,, बस दो दिन , तीन दिन । बहुत हुआ तो चार दिन हिल लेंगे। देश विदेश के अख़बारों की सुर्खियों पर मुंबई २६ /११ छाया रहेगा,, सरकार के बयान आ गए हैं, और आ जायेंगे ,,, ।
राजनेता अपना काम यानि राजनीती कर रहे हैं , राजनीती नही करने की अपील के साथ, ,,, आतंकी को बख्शा नही जाएगा ,, दुनिया के किसी भी कोने में हो हम नही छोडेंगे ...आतंक का मुहँ तोड़ जवाब देंगे,, (पहले आतंकी को ढूंढ तो लो ) जब हो जाएगा उसे पकड़ लेंगे तो पक्की कारवाई करेंगे ... लेकिन इन सब में एक ही अड़चन है,, पुलिस है, पर कडा कानून नही है,, और कडा कानून हम बना नही सकते ,,, क्योंकि हमारी सरकार का मानना है की कोई भी कडा कानून मानवाधिकारों का हनन हो सकता है,, आप भले ही कहते रहिये की जो मरे हैं उनका भी मानवाधिकार है पर ,,, होता होगा,, मानवाधिकार तो वोटाधिकार से तय होता है। आप जितने बड़े वोट बैंक ....... आपका मानवाधिकार भी उतना ही बड़ा ,,, तो कुल मिला कर आप यह समझ लो की जो कानून है वो तो यही रहेगा,, अब आप इस कानून में कुछ कर सकते हो, उखाड़ सकते हो तो उखाड़ लो ,,। लेकिन हमारे जांबांज पुलिस वालों का क्या कीजिये जो तमाम प्रेशर में भी कुछ कर जाते है आतंक के गुरु को पकड़ लेते हैं । पर वो क्या कहते हैं न की हमारे तो संविधान मैं ही लिखा है की सौ दोषी भले छूट जायें पर एक निर्दोष नही मरना चाहिए सो हम, सो निर्दोषों के खून के बाद भी एक दोषी को बचाने में जुटे रहते हैं ।
अब मुंबई के बाद भी यही होगा। ,, हमारे रहनुमा इसी प्रकार गाल बजा बजा कर बयान देंगे और हमारे पर हुकुम चलते रहेंगे ,। हम मन में सोचेंगे अबकी बार चुनाव आने दो । इन्होने नहीं किया तो हम ही कुछ करेंगे । पर
हम इन्हे ही चुनेगे ,, क्योंकि इनकी पार्टी इन्हे ही टिकेट देगी। हम वोट भी देंगे और गाली भी देंगे ,, पर नाग नाथ या सांपनाथ में से किसी एक को ही चुनेंगे,, । ये हमें कानून की सीख देंगे ,, एकजुट होने को कहेंगे । पर होगा क्या । हम यूँ ही मरेंगे । इस तंत्र मैं यही होना है। कोई निजात नही है। शायद सब नही जानते की क्यों मुंबई ओपरेशन इतना लंबा खिंचा । अन्दर जो बंधक थे वो वो कौन थे जरा नाम सामने आने दीजिये सब सामने आ जयेगा,, । पर हाँ अब इस तंत्र पर ,,शमा चाहूँगा भीड़तंत्र पर भरोसा नही रहा । क्या वाकई ऐ वेडनस डे जैसी बेबसी हो गई लगती है,,, । बस ज्यादा कुछ नही लिखा जा रहा ,, अब कोई तारतम्यता नही बची है बैठना भी नही है,, पर कोई तो समझाओ भाई हमारे वोट लेते हो तो हमारी सुरक्षा भी करो । क्या हमने अपना इंतजाम ख़ुद ही करना होगा ???????