Monday, November 22, 2010

कुंबले केएससीए के नए अध्यक्ष, श्रीनाथ सचिव

कुंबले केएससीए के नए अध्यक्ष, श्रीनाथ सचिव
आज खबर आई है क्रिकेट के कर्नाटक संघ के अध्यक्ष बने हैं क्रिकेट खिलाडी़ और कम्प्यूटर इंजिनीयर अनिल कुम्बले उनका सहयोग देंगे जवागल श्रीनाथ सचिव के रूप में। तो इसे अब क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत कहा जाना चाहिए। बैडमिंडन में प्रकाश पादुकोण कभी ऐसा प्रयास कर चुके थे। क्रिकेट संघ को राजनेताओं की सैरगाह और पॉवर स्टेटस का सिंबल माना जाता रहा है। जिन राजनेताओँ ने कभी बैट नहीं पकड़ा, बॉल नहीं थामी, जिन्हें यह तक नहीं पता कि बॉल को यदि तराजु में रखा जाएगा तो उसके बदले कितने ग्राम दाल आएगी। पर वे ही इस खेल के भाग्यविधाता बने हुए हैं। उम्मीदों की किरणे लगातार चमकती हैं और बादलों के बीच गाहे बगाहे अपने होने का अहसास करवा जाती है। कुछ ऐसी उम्मीद की यह किरण भी है। शायद इस कर्नाटक किसी बड़े बदलाव का अगुआ बने। वरना राजनेताओं का तो भगवान ही मालिक है और उनके चलाए चलने वाले क्रिकेट संघों से कोई उम्मीद करना बेमानी होगा।

Tuesday, November 2, 2010

ग्ररीबी और कांग्रेस , एक महागाथा

कांग्रेस के युवराज और देश की राजनीतिक गणित को ध्यान मे रखें तो कभी देश के प्रधानमंत्री बनने की संभावना रखने वाले राहुल गांधी ने लम्बे इन्तजार के बाद आखिरकार मुख्यधारा की राजनीति की शुरुआत कर दी है। राहुल का मंत्र और मंतव्य बिल्कुल साप है, वो अपनी दादी, इंदिरागांधी के नक्शेकदम पर राजनीति की बिसात बिछा रहे हैं। इंदिरा गांधी ने नारा दिया, गरीबी हटाओ, राहुल का नारा है गरीब के लिए काम करो। एक आत्मविश्वासी वक्ता के रूप में राहुल ने स्पष्ट संदेश दिया कि गरीब ही कांग्रेस का आधार है। राहुल ने उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में पार्टी के खत्म होने का जिक्र करते हुए कहा कि यहां कांग्रेस पार्टी मरी नहीं है। लेकिन उनका यह स्पष्टीकरण भी सकेत देता है कि कहीं न कहीं कोई तीर है जो दिल में गहरे धंसा हुआ है। राहुल का निशाना साफ है उत्तर भारत औऱ दक्षिण भारत के दो सबसे बड़े राज्य। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इन दोनों राज्यों में देश पर राज करने की कुंजी छीपी है। और दोनों ही जगहों पर कांग्रेस का हाल बेहाल है। पार्टी को फिर से जगाने के लिए राहुल का फार्मुला कहता है कि गरीब की सुनो। क्या राहुल के इस नारे में इंदिरा इज इंडिया की तर्ज पर जब तक गरीब है तब तक कांग्रेस है का भाव छुपा है। सवाल जितना सहज दिख रहा है उतना है नहीं। आखिर राहुल जिन गरीबों के विकास की बात कर रह हैं, वो आजादी के छह दशक बाद भी इतने गरीब क्यों हैं । देश का नब्बे प्रतिशत पैसा महज दस प्रतिशत लोगों के पास ही क्यों हैं। क्या वाकई कांग्रेस गरीबों के लिए काम कर रही है या गरीबी हटाओ के नारे की तरह गरीब का विकास भी एक नारा भर है। कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती, आखिर पचास साल से अधिक तो कांग्रेस ने ही देश पर राज किया है। सामाजिक विकास के नाम पर नरेगा जैसी कामचलाऊ नीतियां जिनसे देश का छद्म आर्थिक विकास हो रहा है, हमें कहां ले जाएंगी इस पर कोई विचार क्यों नहीं कर रहा। नरेगा ने देश में अकुशल मजदूरों की फौज खड़ी करने में मदद की है। यहां तक कि संगठित क्षेत्र में काम कर रहे मजदूर भी अब नरेगा का रुख कर रहे हैं। नरेगा का अनुदान न तो गांव का विकास कर रहा है और नही इससे किसी को कोई योग्यता हासिल हो रही है। नरेगा की आदत पड़ जाने के बाद जब नरेगा की समीक्षा की जाएगी तब क्या होगा। कहीं यह भी आरक्षण की तरह एक औऱ स्थायी गलफांस न बन जाए। वोट वैंक के चक्कर में हर सरकार के लिए इसे ढोना एक मजबूरी बन जाएगा। अभी नरेगा ने कृत्रिम समृद्धि का बाजार लहलहा दिया है। आर्थिक विकास की दर लगातार बढ़ रही है इसमें भी कहीं न कहीं नरेगा की भूमिका है। लेकिन जब यह बुलबुला फूटेगा तब क्या होगा। इसका सीधा जवाब है, कुछ नहीं होगा बस गांव में गरीब बना रहेगा। मुद्दा बना रहेगा। वोटर बचा रहेगा। क्योंकिं यह समृद्धि अस्थायी है। शायद उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के गरीब यह सत्य जान गए थे। इसलिए वहां के नतीजे बदले नजर आए लेकिन यह दुर्भाग्य है कि जिन हाथों में भाग्य सौंपा गया उनमें भी वो चाहत नहीं थी कि वे सूरत औऱ सीरत बदलें।

आग और एसीबी

जब एक मंत्री के निर्देशित काम ही नहीं हो रहे हों तो उस विभाग के काम काज से आम आदमी को क्या उम्मीद करनी चाहिए। राजस्थान के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल के अनुसार प्रदेश की राजधानी जयपुर के विकास के लिए बना जयपुर विकास प्राधिकरण उनके लिखे पत्रों का ही जवाब नहीं देता। अब इसे क्या कहा जाए जेडीए अधिकारियों की ढिठता या फिर उनकी नकेल कसने में अधिकारियों की ढिलाई। पता नहीं लेकिन यदि वास्तव में ऐसा है तो यह चिंताजनक है, कि कोई विभाग अपने ही मंत्री के पत्रों का जवाब नहीं दे रहा हो, उस मंत्री को खुलेआम कहना पड़ रहा हो कि वे अपने कर्मचारियों अधिकारियों की शिकायत एसीबी में भेज देंगे। इससे तो लगता है कि विभागीय जांच, कार्रवाई के तंत्र को लकवा मार गया है। कुछ तो बात है वरना बिना आग के धुंआ नहीं उठता। अब राख के ढेर में लोग जुटे हैं उस चिंगारी की तलाश में जिसने यह आग लगाई।