Monday, September 28, 2009

अब अगले रावण का इन्तजाम ....

लो फिर जल गया रावण। हर साल हम रावण जलाते हैं। पिछले साल से ज्यादा। मुझे आश्चर्य होता है कि इतने रावण आते कहां से हैं। अब तो नया ट्रेंड चला है, हर घर में रावण जलता है। बच्चे भी रावण जलाते हैं। मानो रावण अब खेल हो गया है। जयपुर में तो बकायदा रावण की मंडी लगती है। जिस आकार प्रकार का रावण चाहिए ले जाओ और जलाओ। परंपरा जब शुरु हुई होगी तो पहले पहल गांव शहर का एक रावण होता होगा। लेकिन अब क्या हो गया जो इतने रावणों की जरूरत पड़ने लग गई। प्रतीक भी समाज का आईना ही होता है। ज्यादा बुराई ज्यादा रावण। ग्लैमराइज्ड बुराई, ग्लैमराइज्ड दहन। चलो कोई बात नहीं,,अगले बरस के लिए फिर से बुराई के रावण तैयार करें, पहले से ज्यादा भव्य हो इसके लिए मेहनत करें। आखिर रावण दहन से ही सत्य की जय होगी। सत की जय के लिए असत का वास जरूरी है। सो सोसाइटी जुटी है असत को जमाने, पालने और पौसने में आखिर अगली बार फिर से विजय पर्व जो मनाना है। खैर... अभी तो आज के पर्व की बधाई स्वीकार करें।...

Saturday, September 26, 2009

चाय नाश्ता के रेट और छठा वेतन आयोग

आज फिर चचा हंगामी लाल का फोन आ गया। इसी के साथ चचा ने हमारे सामने एक खुलासा भी किया कि अब चचा गाहे बगाहे फोन करते रहेंगे और हम उनके फोन से बिल्कुल भी नहीं चौंके। हमने जब चचा से इस मेहरबानी का कारण जानना चाहा तो उनका कहना था , देखो भतीजे अब तुम इतनी दूर हो रोज रोज तो आया नहीं जा सकता और रोज कुछ न कुछ ऐसा होता रहेगा कि हमें तुमसे बतियाए बिना चैन नहीं पड़ेगा, सो तुम तैयार रहना अपन फोन पर ही गपशप लगा लेंगे। ठीक है चचा पर आज क्या मुद्दा है। चचा कहने लगे बड़ा जोरदार मुद्दा है, एक बात बताओ तुम चाय नाश्ता करते हो,,
हां,
कितने रुपए खर्च कर देते हो,
अरे वो चार रुपए की पेशल ( चाय वाला छोटू ऐसे ही बोलता है) कट और एक समोसा पांच रुपए का कुल नौ रुपए होते हैं, अपने तो...
तो तुम से तो कहीं अच्छे अपने राजस्थान पुलिस के सिपाही हैं जो ढाईलाख का चायनाश्ता करते हैं।
ढाई लाख का,,चचा ऐसा ढाई लाख में क्या खाते होंगे,, फाइव स्टार में जहां थरूर और कृष्णा रहते थे वहां भी चाय का प्याला ढाई सौ में तो मिल ही जाता हो,,,(पढ़ने वाले लोग यदि इसमें संशोधन चाहें तो आमंत्रित है) और बादाम का हलुआ भी साथ में खाओ तो कुल मिला कर खर्चा सात- आठ सौ हजार रुपए से ज्यादा नहीं हो सकता,, नहीं चचा आपकी बात हजम नहीं हुई, ।
अरे बावले ये चाय नाश्ता तो संज्ञा है,, टर्म है,, नाम है,, काम तो कुछ और ही है, सवाल तो यह है कि ये चाय नाश्ते की जो रेट है एक सिपाही की है,, जरा सोच इससे ऊपर एएसआई, एसआई, सीआई, सीओ, डिप्टी, एएसपी, एसपी, आईजी, एडीजी और डीजी फिर सेक्रेट्री,, ,, रेट बढ़ते बढ़ते कहां तक पहुंचेगी,।,
चचा ये तो वाकई सोचने वाली बात है, शिष्टाचार की कीमत भी बढ़ गई, मुझे अभी कुछ दिन पहले एक पुलिस अधिकारी एक थानेदार के महज दस हजार की रकम लेने के लिए एसीबी के जाल फंसने की घटना का जिक्र करते हुए कह रहा था, सारा स्टेटस गिरा दिया, ,, , फंसना ही था तो कम से कम एक बिन्दी तो और लगवाता तब तो कुछ समझ भी आता,। पर चचा ये सिपाही ने कुछ ज्यादा ही नहीं ले लिया,
अरे भतीजे मुझे भी ऐसा लगा था, सो मैंने एक दूसरे सिपाही को टटोला की यार तुम्हारे बिरादरी भाई ने ज्यादा चाय नाश्ता ले लिया,, इतना तो नहीं लेना चाहिए था, आखिर लेने का भी कोई कायदा होना चाहिए,,, उसका जवाब था,, हंगामीलाल जी सारा कायदा पुलिस वालों के लिए ही है, मंहगाई देखी इस स्पीड से रॉकेट उड़ाया होता तो चांद से आगे पहुंच जाता...। छठा वेतनमान लगने बाद वैसे भी ग्रेड रिवाइज हो गए हैं तो चाय नाश्ता के रेट भी रिवाइज होने ही थे। अब आप क्या जानो कैसे काम चलता है,, ससुरी चीनी 39 रुपए किलो गई है, दाल, चावल ,, आलू, मुर्गी, मच्छी सब महंगे हो गए हैं, वो एक पत्रिका में खबर छपी थी जिसकी हर महीने की पचास हजार आमदनी है वो भी महंगाई में कटौती कर रहा है, और आप को हमारी रेट्स ही ज्यादा लग रही हैं। खैर आप चिन्ता मत करना कभी आपका मामला फंसे तो बताना स्पेशल स्टाफ डिस्काउण्ट दिलवा देंगे। तो भतीजे मैंने तो तुम्हें सिर्फ इसलिए फोन किया था कि कभी कोई बात तो बता देना उसके डिस्काउण्ट को भी चैक कर लेंगे,, कुछ फायदा हो तो क्या बुराई है।
उनकी बात सुन कर मैंने ,,, जी चचा,, कह कर फोन रखना ही उचित समझा।

Friday, September 25, 2009

खींचतान की चिंता और क्रिकेट की चिता

सुबह सुबह मोबाइल की घंटी से नींद टूटना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है, अक्सर ऐसा ही होता है जब मोबाइल हमें गुड मार्निंग कहता है। आज भी जब मोबाइल बजा तो उनींदें से हमने फोन का हरा बटन दबाते हुए कहा, हैलो, लेकिन दूसरी ओर की आवाज सुनते ही हमारी सारी खुमारी हवा हो गई। फोन पर चचा हंगामी लाल हैलो, हैलो कर रहे थे।
क्या चचा, आज इतनी सुबह, सब खैरियत तो है,,
खाक खैरीयत होगी,, लड़ाई किसी की और नुकसान हमारा,,,
क्या नुकसान हो गया चचा, किस की लड़ाई की बात कर रहे हो,,
वो गेंद बल्ला खिलाने वाले अफसर नेताओं के टण्टे मे मेरा हजारों का नुकसान हो गया,,,,
किस की बात कर रहे हो,,
अरे तुम आजकल कहां रहते हो जो तुम्हें खबर ही नहीं, पता है,, यहां होने वाला क्रिकेट मैच अब यहां नहीं होगा,, बडौदा में होगा।
अरे तो उससे तुम्हें क्या,,, तुम तो मैच टीवी पर देख लेना,, फिर चाहे यहां हो या बड़ौदा में,,, तुम्हारी बला से
तुम भी भतीजे,, मैच यहां होता तभी तो हमारी कमाई होती,, अबकी बार प्लान बनाया था कि स्टेडियम के बाहर तिरंगी झंडियां, टोपियां और पेंटिंग का सामान लेकर बैठूंगा,, खूब बिक्री होगी,, तुम तो जानते ही हो कि क्रिकेट इस देश के लोगों के लिए क्या है, भगवान है, और भगवान की तो हम पर कृपा होती ही,,। लेकिन बुरा हो इन आरसीए वालों का। जाने क्या सूझी की आपस में ही लड़ पड़े। अरे भाई जब काम आता नहीं तो क्यों करने चले हो। जो करना जानते हैं उन्हीं को क्यों नहीं करने देते। पर ये खेल का मैदान भी जोरदार है,, खेल तो केवल वही सकता है जिसे खेलना आता हो, लेकिन खिलाने का इन्तजाम करने में पनवाड़ी तक जुट सकता है। जिसकी मर्जी हो जो खेल जाए। अब इनके इस चक्कर में तो मेरा नुकसान हो गया।
हां, चचा सो तो है,, तुम ठीक कह रहे हो, नुकसान तो हो ही गया,, लेकिन क्या करें, हिन्दुस्तान में क्या दुनिया में सभी जगह खेल संघों का ऐसा ही हाल है, हां वहां वो थोड़ा प्रोफेशनल हो जाते हैं, पैसा लगाते हैं और उसकी सही उपयोगिता हो इसकी परवाह करते हैं, यहां तो सब जगह यूं ही चलता है, अब देख लो, हॉकी में भी यही हुआ, मशीन गन थामने वाले हाथ हॉकी स्टिक थामने वालों का चयन करने लगे। बिगड़ते हाल देख सरकार ने नई हॉकी कमेटी भी बना दी लेकिन हॉकी सुधरी क्या। चचा,, यूं उम्मीद करोगे की खेल की हालात सुधर जाएगी तो मुश्किल होगा,, लोग हैं एक दूसरे का विरोध करेंगे ही,, एक को दूसरे का काम बुरा लगेगा ही,,
पर भतीजे यो तो मामला बिगड़ता ही जाएगा, आखिर इस मर्ज की दवा क्या है,,
चचा मैं कोई हकीम लुकमान तो हूं नहीं जो हर मर्ज की दवा मेरे पास हो लेकिन एक बात एकदम साफ है कि हिन्दुस्तान में जम्हूरियत का शासन है,, कामयाबी से चल रहा है, हर पांच साल में चुनाव हो जाते हैं, सरकार बदल जाती है, जब उस सरकार के पास पानी, बिजली, सड़क, शांति व्यवस्था, सुरक्षा, बैंक, का जिम्मा है तो खेल को दोयम दर्जे का मान उसे क्यों यो ही लोगों के हवाले कर दिया गया है,। यदि लोगों के हवाले करना भी है तो कोई व्यवस्था करो। जैसे सहकारिता में होता है, जब चुनाव होंगे तब होंगे, जो जीतेगा वो टर्म पूरी करेगा। यों थोड़ी ना कि बीच मे जब मर्जी आए,, चलो भाई हम बीस लोग हो गए अब हम काम करेंगे तुम चलो घर जाओ,, । बीस लोग उस समय कहां गए थे जब चुनाव हुए थे। कोई कायदा कानून है कि नहीं,, क्या हुआ चचा एकदम सुट्ट क्यों साध गए।
अरे वो तुम्हारी बात ही सोच रहा हूं कि कोई कायदा कानून है कि नहीं, ,, मुझे तो लगतान नहीं की कोई कायदा कानून ही है, होता भी है तो उसे जिसकी लाठी होती है वही अपने हिसाब से बदल देता है। यहां के मर्ज की भी यही दवा है, अमुक आदमी नहीं जीत जाए इसलिए उसके आदमी को वोट ही मत देने दो, कानून ही ऐसे बनाओ की मन चाहा ही जीते। जीत जाएं फिर कानून बदल दो,, फिर भी बात नहीं बने तो अदालत तो है ही जो,, यथा स्थिति बनाने के आदेश तो दे ही देगी।
चचा की बात को कुछ ज्यादा ही गम्भीर होते देख मैंने उन्हें रोकने की गरज से कहा,
चचा, क्यों बेकार में दुबले हो रहे हो, बात झंडिया बेचने की है तो उन्हें तो कभी बेच देंगे,
भतीजे तुम समझ नहीं रहे तो बात जितनी झंडियों के बेचने की है उतनी अपने सूबे के इकबाल की बुलन्दगी की भी है,,, इस सब से सूबे का कितना नुकसान होगा, मुझे तो उसकी चिन्ता है,,
चचा की चिन्ता अब मेरी भी चिंता बन गई थी, शायद सूबे के सभी लोगों की चिन्ता भी बन गई है,, कहीं ये खींचतान सूबे में क्रिकेट की चिता नहीं बन जाए,,,।

Wednesday, September 23, 2009

चाहिए एफिशिएंट ब्यूरोक्रेसी

कुछ दिन पहले की बात है,, एक बुजुर्ग महिला,उसका चेहरा ही उसकी उम्र को बयां करने के लिए काफी था, कोटा के दौरे पर आई एक मंत्री से वृद्धावस्था पेंशन की गुहार ले कर मिली। मंत्री महोदया ने वही किया जो उन्हें करना चाहिए था, उस बृद्धा को जिला कलेक्टर के पास ले जा कर उसकी मदद करने के लिए कहा। उस वृद्धा को पेंशन मिली या नहीं, मिली यह एक अलग सवाल है,, लेकिन उससे भी बड़ा दूसरा सवाल है कि उस वृद्धा को पेंशन लेने के लिए एक मंत्री का आसरा क्यों लेना पड़ा। जाहिर है मंत्री से मुलाकात से पहले भी वह कई सरकारी कारिन्दों से मिली होगी। लेकिन सरकारी कारिन्दों से उसकी मुलाकात का क्या हश्र हुआ होगा। सोचने वाली बात है। हम इतना बड़ा तंत्र विकसित कर चुके हैं लेकिन तंत्र में एफिशियंसी नहीं ला पाएं हैं। अब हमारी पहली प्राथमिकता तंत्र में एफिशिएंसी लाने की होनी चाहिए। हर कीमत पर हर हालत में एफिशिएंट प्रशासन होने पर ही हमारी तरक्की संभव है,,, ।