Saturday, September 20, 2008

रेलवे का नल, पानी और हवा


ट्रेन अपनी पूरी गति से भागी चली जा रही थी। पत्नी बच्चों के साथ घर लौट रहा श्याम खाली पड़े रिजर्वेशन डिब्बे में चैन से एक बर्थ पर पसर कर सो रहा था। अचानक बच्चे के झिंझोंड़े से उसकी नींद टूटी। बच्चा हाथ में पानी की खाली बोतल ले, कह रहा था, पापा पानी ला दो। ट्रेन एक स्टेशन पर खड़ी थी, और स्टेशन उस इलाके के अच्छे स्टेशनों में से एक था। नींद से उठा श्याम बोतल ले कर डिब्बे से बाहर निकला तो सामने ही शीतल जल लिखी ग्रेनाइट के पत्थर मे सजी, टोंटी देख उसके चेहरे का तनाव गायब हो गया। तुरन्त टोंटी को उठाया और बोतल उसके नीचे। पर यह क्या, टोंटी में से पानी नहीं सूं सूं की आवाज ही आ रही थी। इधर उधर नजर उठाई तो दूर एक खम्भे के चारों औऱ चार टोंटियां लगीं दिखीं। इस बीच स्टेशन पर हर तरफ रेहड़ीयों पर ठण्डा पानी जोर शोर से बिक रहा था। पर नलों में से नदारद था। जाहिर है उस खम्भे के साथ लगीं टोंटियों में भी पानी की जगह हवा ही बह रही थी। पास से गुजर रहे एक स्टेशन कर्मी से पूछा, भाईसाहब यहां पानी नहीं मिलेगा क्या? अरे इतनी बोतलें बिक रही हैं। खरीद लो। ये नहीं स्टेशन पर पानी नहीं है क्या? है, वहां आगे एक प्याऊ है। श्याम भागते भागते प्याऊ तक गया तो पाया कुछ सेवाभावी बुजुर्ग लोगों को पानी पिला रहे थे, बोतलों को कीप से भर रहे थे। पानी क्या था मानों शरबत था, श्याम का मन तृप्त था। पर स्टेशनल की टोंटियों में पानी की कमी अखर रही थी, जाने क्या सूझा। वह सीधा स्टेशन मास्टर के कमरे में घुस गया और कहा, आपके स्टेशन पर कहीं भी पानी नहीं है, आप कुछ करते क्यों नहीं. अरे प्याऊ लगवा तो रखी है, और क्या करें, इससे ज्यादा कुछ चाहिए तो चिठ्ठी लिख देना, रेलमंत्री के नाम, उनका बहुत नाम है, बड़े बड़े कॉलेज में मैनेजमेंट पढ़ा रहे हैं. इसे भी मैनेज करवा देंगे। इन टोंटियों में हवा की जगह पानी बहा देंगे। क्या समझे। श्याम कुछ समझता उससे पहले इंजन की सीटी सुन वह लपका और भागता भागता अपने डिब्बे में चढ़ा। उसकी पत्नी का कहना था, बहुत देर लगा दी आपने, दस रुपए की बोतल ही खरीद लेते। ,,,,,,,