Friday, August 17, 2018

यादों में सदा रहोगे ओ लोकतंत्र के अटल सेनानी ....


आखिर आज वह हो ही गया जो एक दिन होना ही था। पर यह दिन आ ही जाएगा इसको मानने को मन कभी तैयार नहीं था। समाचार माध्यम में काम करते समय पिछले एक दशक में कई बार यह लगा कि अटल अब गए तब गए और फिर चमत्कार होता और अटल हमारे बीच अटल से मौजूद रहते। परसों रात से ही जो हलचल हो रही थी लग रहा था कि एक बार फिर अटल हमारे बीच लौट आएंगे। लेकिन कल शाम जब यह आधिकारिक सूचना मिली तब से हाथ बस कांप से गए, मन थक गया और क्लान्त ह्रदय यह मानने को ही तैयार नहीं हुआ कि अटल हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन अब इस समय जब रुंधे मन से यह लिख रहा हूं तो सामने स्क्रीन पर प्रज्वलित चिता दिख रही है और उसकी धधकती लपटों में अटल की पार्थिव देह को विलीन होता देख रहा हूं। अब अटल बस मन चेतना और भारत के लोकतंत्र में जीवित रहेंगे। अटल स्वतंत्र भारत की थाती हैं। वे भारत रत्न तो थे ही पर भारतीय लोकतंत्र के पहले सच्चे प्रतीक रहे हैं। अटल  स्वतंत्रता के संग्राम के सिपाही तो थे ही पर उनकी ज्यादा बड़ी भूमिका भारत के लोकतंत्र को एक मुकाम देना रही। एक लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका कैसी होनी चाहिए ? किस प्रकार से विपक्ष को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए इसका उदाहरण उन्होंने समय समय पर रखा। कैसे बिना किसी पारिवारिक पृष्ठभूमि के लोकतंत्र के जरिए एक साधारण व्यक्ति राजनीति के शिखर पर पहंच देश का नेतृत्व करता है इसके भी वे पहले स्वयंमूर्त उदाहरण रहे। नेतृत्व करते हुए भी उन्होंने कई उदाहरण पेश किए। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र की सभी भूमिकाएँ निभाईं और हर भूमिका को एक ऊंचाई दी। वे एक ऐसे जन नेता थे जो कहीं भी कभी भी किसी भी विषय पर जब कुछ कहते तो कोई भी बिना सुने नहीं रह पाता। उन्होंने जन जन की बात कही, और पूरे खुले मन से कही। आज हर ओर उन्हें कवि ह्रदय राजनेता के रूप में याद किया जा रहा है, निस्संदेह वे कविमना थे और अपनी बात कविता के छंदों के जरिए कहते थे , लेकिन उनके तो भाषण ही इतने काव्यमय हो जाते थे कि सुनने वाला बस सीधे कानों से दिल  के जरिए ही सुनता समझता था। अपने भाषणों में वे श्रोताओं की नब्ज पकड़ना जानते थे, उनके दिल की बात कहना चाहते थे। ऐसा राजनेता भारत में अभी दूसरा नहीं हुआ है जो आशुभाषण के जरिए अपनी बात कहता हो और जो कहता हो वो सुनने वाले को अपनी ही बात लगे। मुझे याद है जब वे पहली बार प्रधानमंत्री बने तो हम इतने खुश थे कि मैंने अपनी दोनों जेबों में टॉफियां भर लीं थीं और जो भी मिला उसे टॉफियां थमा दीं। ऐसा लग रहा था कि जैसे परिवार का ही कोई प्रधानमंत्री बन गया हो। वक्त का काम है गुजरना और उसके साथ ही जीवन चक्र अपनी गति को पूरा करता है। अटल जी के जीवन चक्र ने भी अपनी पूर्णता पायी। चाहे पंचभूत में यूं विलीन हो जाओ पर भारत की  यादों में सदा रहोगे ओ लोकतंत्र के अटल सेनानी .... तुम्हें कोटी कोटी नमन्

#RIPatalbiharivajpeyee