Tuesday, February 27, 2018

How We Struggles with our own Life... हम अपनी जिन्दगी जीते हैं तो फिर अपनी ही जिंदगी से क्यों करते हैं संघर्ष ?


 एक वाक्य आम है और हम अक्सर  इसे अपने आस पास वालों, मित्रों, परिचितों अपने शुभचिंतकों से सुनते हैं या स्वयं भी गाहे बगाहे प्रयोग में लाते रहते हैं और वह है..
जीवन एक संघर्ष है। क्या वाकई जीवन एक संघर्ष है और यह संघर्ष हम परिस्थितियों से जितना करते हैं  क्या उससे ज्यादा हम अपने स्वयं के जीवन से ही तो संघर्ष नहीं करते हैं?
जरा अभी इस समय जब आप यह पढ़ रहे हैं तो अपने शरीर की ओर देखिए। अपने मन की ओर देखिए। आपको किसी तरह का तनाव, कसावट, थकान अवश्य महसूस हो रही होगी। कभी यह सीने में, जबड़े में, गर्दन में या कंधों में दर्द के रूप में होती है या कभी यह दिमाग के भारीपन के रूप में। या कभी किंकर्तव्यविमूढ़ता के रूप में।
यह थकान, दर्द, कसावट, भारीपन आखिर आ कहां से रहा है? जबकि हमें कोई गंभीर चिकित्सकीय बीमारी नहीं है, फिर भी ऐसा हो रहा है। दरअसल शायह हम किसी पर चिढ़े हुए हैं। किसी चीज बात या शख्स के कारण झल्लाए हुए हैं। तनाव में हैं। या हम पर बोझ है इस बात का कि कितना कुछ करना है, जो हम कर नही पाए हैं। या जो कुछ हमारे आस पास हो रहा है हम उससे पसंद नहीं कर रहे हैं और उससे खिन्न हैं। और यही मूल है जो उत्पन्न करता है एक तरह का प्रतिरोध। हमारे सामान्य जीवन से विपरित होने करने की इच्छा। जो वर्तमान से करती है संघर्ष। नतीजा होता है कसावट, थकान, तनाव और हमारे बदन में यहां वहां दर्द। हममें से हर एक इसे अनुभव करता है। और अक्सर रोज अनुभव करता है।
यह तनाव व दर्द सामान्य है पर यह अप्रसन्नता उत्पन्न करता है। वर्तमान हालात के प्रति असंतोष को बढ़ावा देता है। अन्य लोगों या स्वयं से संघर्ष करने के लिए उकसाता है। जो काम हम कर रहे होते हैं उससे विरक्ति का भाव जगाता है। 

 तो क्या इससे बचा नहीं जा सकता? क्या हम यूं ही स्वयं से लड़ते संघर्ष करते हुए अनचाहे दूसरों को भी अपने संघर्ष का केन्द्र बनाते रहेंगे?
शायद इससे बचा जा सकता है,कोशिश करें-
- ध्यान करें कि इस समय आपके शरीर के किस हिस्से में तनाव की स्थिति है
- यह ध्यान करें कि आप किस बात के विरोध में तने हुए हैं- हो सकता है यह किसी अन्य के बारे में हो या  फिर जिन हालात से आप दो चार हो रहे हों यह उनके बारे में हो।
- तनाव को शिथिल हो जाने दें। अपने आपको बिल्कुल ढीला छोड़ दें। खास कर उस हिस्से को जहां आप तनाव महसूस कर रहे हों वहां की मांस पेशियों को एकदम शिथिल हो जाने दें।
- उन्हीं हालात का सामना करें, क्योंकि हालात से भागना कोई उपाय नहीं है, लेकिन तनाव रहित, मुस्कान भरे दोस्ताना व्यवहार के साथ। 
दिन भर या जब भी ख्याल आए एक बात दोहराते रहें। बस इतना भर दोहराएं- इस पल के लिए बिल्कुल शांत होना चाहिए...। इसे अपने आपको ध्यान दिलाते रहें। 
यह क्या करेगा? क्या यह जीवन का संघर्ष दूर कर देगा?

शायद नहीं, यह जीवन का संघर्ष दूर नहीं करेगा। पर हां, यह खुद से संघर्ष को दूर कर देगा। आप परिस्थितियों से मुकाबला कर पाएंगे और आपको अधिक उर्जा प्राप्त होगी। इससे हमें दिन भर के हालात का मुकाबला करने में कम तनाव और ज्यादा संतुष्टि मिलेगी। हम किसी काम को कम प्रतिरोध के साथ कर पाएंगे। हमें उसमें कम बाधाओं का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उसकी एक बाधा तो हम दूर कर ही चुके हैं स्वयं से विरोध की। कुछ वर्षों पूर्व राजकुमार हीरानी की हिन्दी फिल्म थ्री इडियट में भी नायक आमिर खान ने आल इज वेल के माध्यम से यही संदेश दिया था कि कैसे भी हालात में हम यदि अपने आपको तनाव मुक्त करते हैं तो जीवन के संघर्ष को कम करने का सबसे बड़ा उपाय है और इस प्रकार हम खुद से संघर्ष को खत्म कर सकते हैं। 

Monday, February 26, 2018

why we are not stick to our goals..आखिर जैसा हम सोचते हैं वैसा हम कर क्यों नहीं पाते?


अक्सर होता है हम हर साल, हर माह, हर सप्ताह और हर दिन ही कुछ सोचते हैं कि कल से आज से या अब से हम यह काम करेंगे। यह पढ़ेंगे,  वो लिखेंगे, वर्कआउट करेंगे, डाइट कंट्रोल करेंगे, ध्यान करेंगे, योग करेंगे, कोई काम पेंडिंग नहीं रखेंगे और बहुत से ऐसे काम होते हैं जिनके लिए हम ऐसे निर्णय लेते हैं। लेकिन होता क्या है? एक दिन, दो दिन और बड़ी हद एक सप्ताह या बहुत कर लिय तो एक महीने बाद हम अपने द्वारा सोचे गए रूटीन पर टिके नहीं पाते हैं। यानी जैसा हम सोचते है वैसा हम कर ही नहीं पाते।
क्या हम इतने गैर जिम्मेदार हैं? इतने लापरवाह हैं? इतने अनुशासनहीन हैं? या यूं कहें कि हम झूठे हैं। जैसा नेता जनता को आश्वासन के झांसे देते हैं वैसे ही हम खुद को भी झांसे देते हैं, क्योंकि हम बहुत बड़े झांसेबाज हैं? जब भी हम खुद का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि समय यूं ही गुजर गया है और कैलेण्डर पर बस तारीखें बदली हैं। 
आखिर क्या कारण हैं कि हम अपनी योजनाओं पर टिके नहीं रहते?
- जो सोचा है उसे गम्भीरता से नहीं लेना-
 हम जो सोचते हैं उसे करने के लिए उसे सोचना भर पूरा मान लेते हैं। हमें लगता है कि यह बहुत आसान है और हम उसे आसानी से कर लेंगे, और इसलिए हम उस काम को गम्भीरता से नहीं लेते। इसलिए वह हमारी प्राथमिकताओं में भी नहीं होता।
-समय आने पर भूल जाते हैं- 
हम सोचते हैं कि हम रोज रात को सोने से पहले कुछ ना कुछ अवश्य पढ़ेंगे। पर जब सोने का समय आता है तो भूल जाते हैं कि हमने सोचा था कि सोने से पहले कुछ न कुछ पढ़ना है। और सुबह उठ कर जब हमें याद आता है हम फिर सोचते हैं कि चलो कोई नहीं आज याद रखेंगे। और यह आज फिर कभी लौट कर नहीं आता है। 
-तकलीफ से बचने की आदत-
यह याद रखना चाहिए कि बिना कष्ट, मेहनत के कभी भी सुखद परिणाम नहीं आते। कभी जब कोई कार्य हमें किसी प्रकार का कष्ट देने लगता है तो हम उससे बचने लगते हैं। जिम जाने वाले लोग अक्सर शुरुआती तीन चार दिन तो बहुत शौक से जाते हैं पर उसके बाद जब व्यायाम अपना असर दिखाने लगता है और बदन में दर्द शुरू होने लगता है तो हम उससे बचने के बहाने ढ़ूंढने लगते हैं और मन करता है कि आज नहीं जाएं। कल चले जाएंगे। एक दिन में कुछ फर्क नहीं पड़ता। नतीजा होता है रूटीन टूटना और धीरे धीरे जिम जाना बंद हो जाना। 
-मन ललचाए, रहा ना जाए-
कहते हैं ना कि मन तो चंचल होता है। और हमारे सोचे गए कामों को पूरा होने से रोकने वाला सबसे बड़ा दुश्मन यह मन ही होता है। क्योंकि अक्सर हमारा मन उस काम को करने के लिए करता ही नहीं है, और हम खुद से ही कह देते हैं, मन नहीं कर रहा। डाइटिंग करने वाले तो इस मन के सबसे बड़े शिकार होते हैं, कोई भी अनहैल्दी फूड खाने के लिए मन ललचाता है और हम एक बार में क्या होता है, यह सोच कर गप्प से खा जाते हैं। नतीजा डाइटिंग का इरादा मन मसोस कर कोने में पड़ा रह जाता है।
ऐसे और भी कई कारण हो सकते हैं पर कुल मिला कर कहानी यही कहती है कि हम जो सोचते हैं वो हम कर नहीं पाते। लेकिन क्या वाकई ऐसा है कि हम अपने सोचे गए कार्यों को कभी नहीं कर पाएंगे? फिर दूसरे लोग कैसे कर लेते हैं? कैसे इतने लोग रोजाना जिम में व्यायाम करने पंहुचते हैं? कैसे इतने लोग रोजाना मार्निंग इवनिंग वॉक कर लेते हैं? कैसे लोग इतना काम कर लेते हैं? कैसे? कैसे? कैसे?  
इसके लिए कुछ उपाय हो सकते हैं-
अपने सोचे गए काम को सबसे ज्यादा गम्भीरता से लें-  केवल सोचने से बात नहीं बनेगी। इसके लिए सोचे गए काम को गम्भीरता से लेना भी जरूरी है। अपने आपको तकलीफ में डालना जरूरी है। सोचे गए काम को लिख लें। इसके लिए आवश्यक योजना बना लें। भले ही यह आपको बहुत छोटा कार्य लग रहा हो। पर फिर भी छोटी ही योजना बनाएं। किसी और को बताएं कि वह आपको समय पर याद दिलाए। आवश्यकतानुसार फोन में रिमाइंडर सेट करें। जिस समय इसे करना है उस  समय के स्लॉट को खाली करें। यह सुनिश्चित करें कि आप उस काम को भूलें नहीं।उसके लिए आवश्यकतानुसार जगह जगह रिमाइंडर चिपकाएं। यह भले ही आपको हास्यास्पद लगेगा लेकिन जब भी आपकी नजर उस पर पड़ेगी आपको वह काम करने की याद दिलाएगा।
मन ललचाए तो इसे मानें परीक्षा-
जब भी आपका मन उस काम को नहीं करने के लिए ललचाए। इसे परीक्षा मान कर मन की बात मानने से इनकार कर दें। जैसे जैसे आप मन की बात मानने से इनकार करते जाएंगे आपका मन आपके निर्णय का विरोध करना छोड़ता चला जाएगा। याद रखें मन की बात मान कर अपने निर्णय के साथ मोलभाव नहीं करने लगें। जैसे - आज नहीं करते। पांच मिनट बाद कर लेंगे। एक बार में कुछ नहीं होता। अगली बार से ध्यान रखेंगे। ऐसा करते ही आपका निर्णय प्रभावित होगा और परिणाम यही आएगा कि आप वह नहीं कर सकेंगे जो करना चाहते थे। 
सोचे गए काम के महत्व को बार बार याद करें-
जो काम आपने सोचा है उसका क्या परिणाम आपको मिलने वाला है और उस लिहाज से वह कार्य आपके लिए कितना महत्वपूर्ण यह बार बार ध्यान रखें ताकि आपको अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहने की प्रेरणा मिलती रहे। 
बस इतना याद रखें कि जो काम आपने एक बार सोच लिया और जिस तरह से करने के लिए सोच लिया वह करने से आपको कोई नहीं रोक सकता और आप वह काम करके ही रहेंगे। क्योंकि वह काम करने के लिए आपने स्वयं ने निर्णय लिया है और आप ही उसके लिए जिम्मेदार हैं।