Saturday, July 10, 2010

केसर क्यारीःपीढ़ी का दर्द, और पथराव

लम्बे समय बाद कश्मीर में सेना सड़कों पर गश्त कर रही है। 11 जून से शुरू हुआ प्रदर्शनों का सिलसिला एक माह बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा। जब लगने लगा था कि केसर क्यारी में अमन का माहौल है, पंजाब के बाद एक और मोर्चे पर लोकतांत्रिक व्यवस्था की जीत होती नजर आ रही थी। फिर एकाएक क्या हुआ कि सालों की मेहनत से जमा विश्वास यूं बहता दिखने लगा। क्यों लोग यूं सड़कों पर उतर, अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं। सुरक्षा बलों की जांच के तथ्य कहते हैं इसमें पाकिस्तानी हाथ है। पाकिस्तान में बैठे हुक्मरान यहां पर उनके पिट्ठू नेताओं के जरिए हालात को हवा देने में लगे हैं। पथराव के लिए लोगों को पैसे दिए जा रहे हैं। इस तरह की बातचीत को रिकॉर्ड किया जा रहा है। इस सबमें शामिल लोगों की पहचान कर उनसे सच जानने का प्रयास किया जा रहा है। ये तथ्य अपनी जगह हैं, पर कहीं न कहीं एक बात तो तय है कि घाटी में काम कर रही जनता की सरकार से कोई गलती जरूर हुई है। पिछले एक माह में केन्द्र सरकार ने कई बार कहा कि कश्मीर में राजनीतिक पहल की जरूरत है, फिर कहां है वो राजनीतिक पहल। क्यों नहीं है वहां के नेताओं में अवाम के बीच जाने की हिम्मत। क्यों नहीं वो लोगों का विश्वास लौटा पाते। एक ओर कश्मीरी युवक आईएएस जैसी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं। तो दूसरी तरफ महज तेरह साल के मासूम पथराव जैसे कामों में क्यों कर जूनून का अनुभव कर रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि शांति बहाली के दौर में पुनर्निर्माण की जो प्रक्रिया तेजी से चलनी चाहिए उसमें कमी रह गई। लोगों के जीवन के लिए जरूरी इमदाद को उन तक पहुंचाने में कसर रह गई। और कहीं यही कसर तो असंतोष को भड़काने के लिए बारूद नहीं बन गया। क्यों छोटे बच्चे और युवा पथराव में, प्रदर्शन में जुटे हैं। जिस उम्र में स्कूल कॉलेज जाना चाहिए, करियर की चिन्ता करनी चाहिए वहां वो क्यों विध्वंसात्मक गतिविधियों में इन्वॉल्व हैं। क्यों अपने ही लोगों के खिलाफ पथराव को बहादूरी समझ रहे हैं। तेरह साल के मासूम पत्थरमार को तो पता भी नहीं होगा कि वो क्यों पथराव कर रहा है। दरअसल कहीं कश्मीर की एक पूरी नई पीढ़ी स्वविकास की राह पर चलने से वंचित तो नहीं हो गई। खबरें आ रही हैं कि कश्मीर में कई प्रमुख नेता उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व से खुश नहीं हैं। क्या हो गया कि महज कुछ साल पहले जो नेतृत्व नई हवा का झोंका लग रहा था अब गर्मी में ओढ़ा हुआ सा कम्बल लगने लगा है। बहुत देर होने से पहले सही इलाज करना जरूरी होगा। हालात काबू में आ चुके थे, उन्हें बिगड़ने देने का खतरा उठाना मूर्खता होगा। अवाम को स्वविकास के अवसर देने होंगे। स्कूल, कॉलेज और फिर सम्मानित नौकरी। वैसा ही सम्मानित जीवन जो भारत की पहचान है, सुनिश्चित करना होगा। तभी पिछले चुनाव में बढ़िया जीवन की आस में आतंकी बंदूकों की परवाह किए बिना मतदान के लिए उमड़ी जनता का भरोसा कायम रह पाएगा।

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