Tuesday, December 2, 2008

शोर थमा अब जोर से चुनो

लो थम गया चुनाव का शोर। भाषण का जोर। भाषाओँ का सभ्य असभ्य आक्रमण । विकास से भ्रष्टाचार तक पाँव रखने और हाथ थामने का दौर। जादू के जोर से वोट की बोट तैराने का करिश्मा । नेताओ की फौज और कार्यकर्ताओं का टोटा । बगावत के सुर और मान मनोवल के बोल। पुराणी पंगत और पुराने ही जीमनखोर। अख़बारों की कतरन और नारों की खबरें। सामंतवाद और आतंकवाद का राग। राम और रहीम की दुहाई। गरीब की जोरू सबकी भोजाई । यानी चुनाव प्रचार के इन दिनों में वो सब था जो आम चुनाव में होता है, बस नही था तो लोगों में जोश नही था। प्रचार थम गया जो कभी परवान ही नही चढा था। अशोक के पराक्रम से वसुंधरा के शौर्य तक । इन चुनावों में कुछ भी नया नही था। कोई मुद्दा नही था। कोई लहर नही थी। है तो बस वोट डालने की मजबूरी । हिन्दुस्तानी होने के नाते वोट डालना है ये जरूरी है ,, पर किसे और क्यों डालें इसका कोई जवाब नही है। सो रस्म अदायगी के इस फेर में किसी न किसी की लोटरी खुलेगी । कोई जीतेगा कोई हारेगा । सब किस्मत होगा । जो जीतेगा वो बोलेगा में इसलिए जीता वो इसलिए हारा ,,,, पर हकीक़त तो इतनी ही है की सब किस्मत है ॥ जो जीतेगा वोही जीतेगा । दोनों ही दलों की सत्ता संगठन को मानाने से इंकार कराती है और संघठन है की अपनी चाल से चलता है। तो मानिये की देश के भाग की तरह हमरे राज के भाग भी किस को रजा और किस को रंक बनते है इसके बटन भले ही परसों दबंगेपर कोई इस मुगालते मैं नही रहे की उसका बटन कोई फ़ैसला करेगा। हम तो नही कर रहे पर आप भी मत नही करना।

No comments: