Tuesday, July 27, 2010

किसके लिए हुए वे शहीद


कल करगिल विजय दिवस था। करगिल कश्मीर में कबायलियों के नाम पर छद्म पाकिस्तानी सैनिकों का घुसपैठ और कब्जे का प्रयास। 1999 में हुई इस बड़ी लड़ाई में देश के सवा पांच सौ से अधिक जवान शहीद हुए और करीब सवा हजार जवान घायल हुए। लड़ाई को ग्यारह साल गुजर गए हैं। पर आश्चर्य करगिल विजय दिवस पर सरकार की ओर से कोई आयोजन नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी ने कई जगहों पर शहीदों की विधवाओं को सम्मानित किया। सरकारी स्तर पर कोई कार्यक्रम नहीं होना गहरे सवाल खड़े करता है। क्या करगिल की लड़ाई एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुई इसलिए कांग्रेस सरकार उन शहीदों का सम्मान नहीं करना चाहती, और क्या इसीलिए भाजपा सम्मान के कार्यक्रम आयोजित कर रही है। सम्मान समारोह भाजपा आयोजित कर रही है, तो इसका कोई ज्यादा गलत संदेश नहीं है। सम्मान होना चाहिए भले ही बैनर कोई भी हो। पर शहीदों को लेकर राजनीति क्यों। राजीव गांधी, इंदिरागांधी, जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस, पुण्यतिथि सहित अन्य अवसरों पर अखबारों को विभिन्न मंत्रालयों के सरकारी विज्ञापनों से भर देने वाली सरकार का क्या देश की सीमा की रक्षा कर प्राण गंवाने वालों के प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता। करगिल के इतिहास को लेकर सेना में चलने वाली लड़ाई को दरकिनार करिए। सोचिए सवा पांच सौ जिंदगियां कम नहीं होती। देश के लिए प्राण गंवाने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा की यूं वे हमारी छीछली राजनीति में दल विशेष के शहीद हो कर रह जाएंगे।
करगिल शहीदों को मेरी विनम्र श्रद्धाजंली, प्रभु उनके परिवारों को संबल प्रदान करे।


पुनश्चः हां एक बात का संतोष है, कम से कम से करगिल लड़ाई में शहीद होने वाले जवानों के परिजन बहुत ज्यादा कष्ट में नहीं है। उन्हें जो पैकेज मिला वो उनके सम्मानजनक जीवन के लिए वाकई जरूरी था। हां, कुछ गड़बड़ियां, इन मामलों में भी जिन्हें सरकार त्वरित गति से सुलझाए। जहां परिवारों का मामला हैं वहां भी सरकार को कुछ दखल देना चाहिए।

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