Wednesday, June 2, 2010

अब दुख भरे दिन बीते रे भैया ,.

फोन की घंटी बजी,,, जो बजती ही चली गई,,, अटेंड किया तो चचा की आवाज आई।
अरे भतीजे,, खुश हो जा,, अब दुख भरे दिन बीते रे भैया ,, अब सुख आने वाला है,,,,।
अचकचाते हुए अनमने मन से मैंने चचा से पूछ ही लिया,, कैसा सुख,, हमने तो बस सुना ही सुना है, कि सुख भी कुछ होता है,, तुम किस सुख के बारे में बात कर रहे हो,,चचा।
अरे वो अपनी शान है न अपना कोहीनूर, बस वो वापस आ रहा है,, बुरा हो आततायियों का जो यहां से ले गए,,,,।
अरे तो चचा इसमें खुश होने वाली क्या बात है,, कोहीनूर आए या जाए ,, हमारे यहां क्या कुछ बदल जाएगा,,, तुम काहे परेशान हो रहे हो...।
बस यहीं तो मात खा जाता है हमारा देस भतीजे,, अब तुम जैसे लोग ही तो हैं जिनके कारण सब बेड़ा गर्क हुआ जा रहा है.,. तुमको कोहीनूर से कुछ लेना देना नहीं,,तुम कोई कोई फर्क ही नहीं पड़ता, वहां देश की इज्जत नीलाम हुई जा रही है,, और यहां इन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता,,,,,अजीब आदमी हो,,।
क्या अजीब आदमी हैं,,, देश की इज्जत एक कोहीनूर से नीलाम हो जाएगी,, यहां रोज हर चौराहे, हाइवे और गली मोहल्ले में नीलाम हो रही है जो,, देश में आधे से ज्यादा लोग ठीक से पढ़ नहीं पा रहे और तुम कह रहे हो इज्जत नीलाम हो रही है,,,। बताओं देश के लोग ठीक अंग्रेजी तक तो बोल नहीं पाते और तुम कह रहे हो इज्जत नीलाम हो रही है।,,। कोहीनूर आ कर क्या कर लेगा,,। कहीं किसी लॉकर में बंद ही हो जाएगा न। हमारे देस में कई सरकारी अफसरों के बैंक लॉकरों में वैसे कई कोहीनूर खरीदने लायक माल पड़ा होगा। ये अलग बात है कि अब तुम उसे काला धन कहोगे,,। कोहीनूर न हो गया जी का जंजाल हो गया।
अरे भतीजे इतना काहे गर्म हो रहे,,, खाली कोहीनूर थोड़े ही ला रहे हैं, उसके साथ सुल्तानगंज की बुद्घ प्रतिमा भी ला रहे हैं।,,वैसे ये अंग्रेजी वाली बात तो तुम सही कह रहे हो,, ससुरों का पता नहीं क्या जाता है अंग्रेजी सीखने में,,, सीख लें तो आदमी बन जाएं,,, पर तुम बात भटका रहे हो..।
अरे चचा बुद्ध प्रतिमा की बात कर रहे हो,, हमारे देस में पड़ी मूरतें ही संभाल लें तो बहुत हैं,, यहां तो जिंदा आदमी मूरत हुआ जा रहा है,, वो क्या कहते हैं,, पुरातत्व वाले पता नहीं कितनी जगहों पर मूर्तियों को निकाल निकाल कर यूं ही पटक दिए हैं,, उनको रखने का ठौर नहीं,, बाहर से और ला रहे हैं,, अच्छा बताओ ले भी आओगे तो क्या उनसे बेहतर संभाल पाओगे।
अरे भतीजे तुम्हारी समझ में तो नहीं आएगी,, पर बाकी लोग तो मेरी बात से सहमत होंगे ही,, आखिर हमारा कोहीनूर हमारे पास ही होना चाहिए। बोलो है कि नहीं।

Tuesday, June 1, 2010

सुर सुर की बात

चचा हंगामी लाल आज बहुत दिनों बाद नजर आए तो हमने कहा चचा कहां चले गए थे, इतने दिन।
अरे कहीं नहीं, बस यूं जरा मन नासाज था इतने दिनों तक बड़े परेशान हो रहे थे।
क्यों चचा क्या बात हो गई थी.
बस यूं ही, पर आज जरा मन ठीक है, देश तरक्की कर रहा है न, इसलिए।
चचा की बात सुन हम जरा चौंके, देश तरक्की कर रहा है... आपको कैसे पता चला चचा और तुमको ये एकाएक देश की फिकर क्यों होने लगी।
अरे वाह भतीजे हमें फिकर नहीं होगी तो और किसे होगी। वो मनमोहन ने हमें तो ही सारा भार सौंप रखा है, इसी में जरा बिजी रहे थे। इतने दिनों। अब आज देखो खबर आ गई न की उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है देश,.।
चचा एक बात तो समझ में आ गई की तुम विकास दर के नतीजों की बात कर रहे हो,, पर ये मनमोहन वाली बात समझ में नहीं आई। जरा खोल कर समझाओ।
अच्छा तो सुनों,, पर किसी से कहना मत,, तुम तो जानते हो ये सुपर कॉन्फिडेन्शियल है,, देश का सवाल जो है,,,।
ठीक है चचा पर अब बता भी चुको...।
वो क्या है न कि पिछली 22 तारीख को जब मनमोहन सिंह की दूसरी पारी का एक साल पूरा हो गया न तब वो हम से मिला था। क्या हुआ न कि उस रात को जब हम सो गए तब हमारे ऊ 4जी टेक्नीकवाले फोन पर ऊ का फोन आया रहा। हमसे बोला चचा तुम तो पुराने पत्रकार हो,,आज सुबह हम खूब पत्रकारों से बतियाए पर मन नहीं भरा,, कुछ मन की कह सुन नहीं पाए। बहुत पता लगाया तब लगा कि चचा हंगामी लाल ऐसा पुराना पत्रकार है जिससे बात की जा सकती है,,सो हम तुमको फोन लगएं हैं,, तुम से कुछ मन की कहना चाहते हैं,,, ।
अब देस का प्रधानमंत्री कहे तो हम कौन जो ना कह दें,,, हमने कहो ,,, डॉक्टर साब,,,। बस इतना सुनते ही वो तो झूम गया,,, देखा यही न ,, यही अन्तर है पुराने औऱ समझदार पत्रकार में अब तुम समझदार हो तभी जानते हो हमारी डॉक्टरी का मतलब,, इसलिए न हमें डॉक्टर कहा,,, भई वाह,, दरअसल हंगामी जी,, अब मैं बहुत खुश हूं,, मैं अटल जी से भी ज्यादा प्रधानमंत्री रह कर नेहरु जी के वंश के अलावा इस देश सबसे लम्बे समय तक प्रधानमत्री रहने वाला आदमी हो रहा हूं,,,। बताओ औऱ क्या चाहिए,, जब से प्रधानमंत्री बना हूं लोग मेरे पीछे ही पड़ गए हैं राहुल को प्रधानमंत्री कब बना रहे ,, । अरे भाई वो बने जब बने...। मुझ से क्यों पूछते हो,, यह तो वही बात हुई न की घुमा फिरा कर पूछ लिया कि गद्दी से कब उतर रहे हो,,,, बताओ मैंने इस देश के लिए क्या नहीं किया। सबकुछ किया। लोग कहते थे कि कभी इस देश में दूध दही की नदियां बहती थी, मैंने तो नोटों की नदी बहा दी है,,, नरेगा नदी। नरेगा मैया बिल्कुल गंगा सी पवित्र है,,जो भी इसमें डुबकी लगाएगा उसकी सारी गरीबी ये हर लेगी...। अब पूछोगे यह तो केवल गांवों में बहने वाली नदी है,,। अरे शहरो में नदी बहाने की जगह नहीं है,,, वहां नालियां बहाई है,, अरबन रिन्युअल की,,, हर जगह नए नए तरीके की मोरी है,, जिसके जिधर जैसे चाहे मोड़ लो। अब देखो हंगामी लाल जी ,,, सारी दुनिया मंदी के चक्कर में पड़ी थी,... हम बचे या नहीं,, बोलो,, बचे की नहीं,, फिर भी जो है सो पीछ पड़े रहते हो,, हर समय सोनिया जी का डर दिखाते हो,, अरे माना उन्होंने पीएम बनाया है,,.. पर काम तो मैंने ही किया है,, वो तो केवल पब्लिक इन्ट्रेस्ट की बात करती है.. देश की बात तो मैं ही करता हूं।,,, चलो हंगामी जी अब एक बात करना मेरी सबसे बड़ी प्रोब्लम महंगाई है,, मैं चाह कर भी इसे कम नहीं कर पा रहा हूं,, । तुम ठहरे पुराने पत्रकार मुझे जरा महंगाई कम करने का कोई फामुर्ला बताओ,, कहीं से कोई रिसर्च करो,, कोई जप तप करो,, कोई गंडा ताबीज करवाओ,, कुछ करो,, प्लीज,, ।
उनकी इतनी बात सुन कर मैंने कहा,, मनमोहन जी ,, इसको कोई काबू में नहीं कर पाया,, अब आप कहते हो तो मैं कुछ ढूंढता हू,,,। आप मुझे दुबारा फोन करना।..
तब से मैं लगातार कई बाबाओं,, तांत्रिकों ,, पुराने लोगों,, से मिल कर महंगाई को काबू में करने का तोड़ ढूंढ़ रहा हूं,,। पर अब तक तो कुछ मिला नहीं,, भतीजे आज सोचा तुमसे कुछ पूछ लूं तो चला आया तुम्हारे पास,,तुम्हें यदि पता तो तुम ही बताओ,,..।
देखो चचा इसका तो एक ही इलाज है,, जो अभी तुम ही कह रहे थे,,
वो क्या...
महंगाई के अलावा हर बात का ढोल बजाओ,, बस महंगाई की बात पर चुप्पी साध जाओ,,
अभी बढ़ी हुई विकास दर का राग अलवाओ,, महंगाई का सुर अपने आप नीचा हो जाएगा,, ।
लगता है हमारी बात चचा को एकदम से जंच गई और वे तुरन्त अपना चमकता चेहरा ले आगे बढ़ गए। शायद मनमोहन को फोन घुमाने,,,।