पूना में विस्फोट हो गया...। आतंक की एक ओर दास्तां लिख गया.....। खबरों की सुर्खियां कह रही हैं,,,। इन हमलों की योजना बनाने वाले विदेशी थे.....। पर इन्हें अंजाम देने वाले हाथ,, हिन्दुस्तानी हो सकते हैं,,,। गृहमंत्री कह रहे हैं,, हमला और भी बड़ा हो सकता था, पर कम नुकसान हुआ है,, सुरक्षाबलों को बधाई,,,। किसी का कयास है कि 25 तारीख को होने वाली भारत -पाक बातचीत नहीं हो इसलिए हुए हैं हमले ....। तो कोई कह रहा है कि विदेशियों को निशाना बनाने की खातिर हो रहे हैं हमले। हमला चाहे किसी भी कारण हुआ हो,, लेकिन हुआ है,,। किसने किया क्यों किया ये बात दिगर ,, पर हर आम इंसान की चाह की हमले नही हों,, हमलावरों की पहचान हो,, और दोषियों को बख्शा नहीं जाए। फिर से आतंक का जलजला नहीं उठे। फिर ऐसे मौके नहीं आएं की अमनपसंद लोगों को बेवजह सियासतदाओं की लड़ाई में अपनी जान गंवानी पड़े। चिन्ता बहुत बड़ी है,, और उसके सरोकार उससे भी बड़े.....। पर आजाद हिन्दुस्तान की सरजमीं पर इस वाकये की गम्भीरता को बनाए रखते हुए दिल एक और सवाल उठाना चाह रहा है। और वो सवाल आतंक की इस घटना से कहीं कोई ताल्लुक नहीं रखता पर हां हर आम हिन्दुस्तानी की जिन्दगी से जरूर ताल्लुक रखता है।
क्या किसी ने सोचा है कि सुबह जब कोई आम हिन्दुस्तानी घर से अपने दुपहिया वाहन पर सवार हो कर ऑफिस के लिए निकलता है तब उसके या उसे खुशी-खुशी विदा कर रहे उसके परिजनों में से किसी के मन में लेश मात्र भी आशंका नहीं होती कि उसका परिजन सही सलामत घर वापस नहीं पहुंच पाएगा। लेकिन बिना किसी बम धमाके या आतंकी हमले की चपेट मे आए भी उसके परिजन हमेशा हमेशा के लिए उसका इन्तजार करते रह सकते हैं। और इसके लिए कोई विदेशी हाथ, कोई षडयंत्र जिम्मेदार नहीं होता। जिम्मेदार होती हैं तो बस कोलतार की वो सड़कें जो लोगों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए बनी होती है। या फिर वो वाहन जो उन सड़कों पर फर्राटे भर मंजिल को लोगों के करीब लाते हैं। जी आप सही समझ रहे हैं मैं बात कर रहा हूं सड़क हादसों में जान गंवाने वाले उन लोगों की जो कहने भर को हादसे का शिकार होते हैं, पर सोचिए क्या वाकई सड़क हादसा ऐसी आपदा हैं जिन्हें टाला नहीं जा सकता । ड्ब्लयू एच ओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) की रिपोर्ट के अनुसार भारत ऐसा देश है जहां विश्व भर में सर्वाधिक लोग सड़क हादसों में जान गंवाते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2007 (रिपोर्ट में उसी वर्ष के आंकड़ों की तुलना की गई है) में भारत की सड़कों पर एक लाख 14 हजार लोगों ने प्राण गंवाए थे। (आतंकियों को इतने लोगों को शिकार बनाने के लिए जाने कितने हमले करने पड़ें।) इतना ही नहीं हर घण्टे देश में तेरह लोग सड़क हादसों में जान गंवा देते हैं। अमरीका में 2006 में 42,642 लोगों ने सड़क हादसों में जान गंवाई तो इंग्लैण्ड में कुल 3298 लोग सड़क हादसों का शिकार हुए।चीन में करीब 89000 लोग हादसों का शिकार हुए । भारत में यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है,क्योंकि यहां बहुत सारे मामले तो दर्ज ही नहीं होते।
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