Saturday, August 21, 2010

डबल विक्टरी

मैच में सिर्फ पांच ओवर बचे थे और अंशु की टीम को अभी भी 55 रन बनाने थे। नोन स्ट्राइक छोर पर खड़ा अंशु हिसाब लगा रहा था हर ओवर में कम से कम 11 रन चाहिए। सोसायटी पार्क के उनके क्रिकेट ग्राउण्ड के चारों तरफ बच्चो की भीड़ जुटी थी। इन्टर सोसाइटी ट्वेन्टी-20 कप का आज सेमी फाइनल था। अंशु की सोसायटी पिछले दो बार से सेमीफाइनल में पहुंचकर हार चुकी थी, इस बार फाइनल में पहुंचना उनके लिए कप जीतने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था। अंशु की टीम के पांच विकेट गिर चुके थे, और स्ट्राइक इस समय राजीव के पास थी। वो राजीव जो हमेशा किसी इन्टरनेशनल प्लेयर की कॉपी करने में जुटा रहता था। अंशु कैसे भूल सकता था पिछला सेमीफाइनल जब इसी राजीव ने उसे सेंचुरी से दो रन पहले रन आउट करवा दिया था। वह सोसायटी कप की पहली सेंचुरी होती। नॉन स्ट्राइक एंड से राजीव ने उसे कॉल किया था, वो तुरन्त दौड़ पड़ा था, लेकिन पता नहीं राजीव को क्या हुआ कि वो एकाएक पलटा और वापस अपनी क्रीज में पहुंच गया, हकबकाया अंशु कुछ समझ पाता और पलट कर वापस अपनी क्रीज तक पहुंचता उससे पहले ही डायरेक्ट थ्रो से स्टम्प बिखर गए। उस समय तो उसे कुछ समझ नहीं आया कि राजीव ने ऐसा क्यों किया, वो हाफ पिच तक पहुंच चुका था और आसानी से रन पूरा हो जाता। बाद में उसने एक दिन राजीव को अपने दोस्तों को कहते सुना था कि सोसायटी कप की पहली सेंचुरी तो वही मारेगा। तब उसे समझ आया कि राजीव का उस सेमीफाइनल मैच में एकाएक पलटना यूं ही नहीं था, बल्कि राजीव चाहता था कि वह सेंचुरी नहीं बना पाए इसलिए उसने उसे रन आउट करवा दिया था। उसने तुरन्त राजीव से जा कर इस बारे में बात करनी चाही, लेकिन राजीव ने न केवल इससे साफ इन्कार कर दिया बल्कि उल्टा अंशु से झगड़ने लगा था। बस उस दिन से दोनों में बोलचाल तक बंद हो गई। पूरी सोसायटी जानती थी कि एक ही टीम में खेलने के बावजूद राजीव व अंशु आपस में बात तक नहीं करते। साथ ही सभी यह भी जानते थे कि पूरे इलाके में इसी सोसायटी का पार्क सबसे बड़ा था और यहां बाउंड्री भी सबसे बड़ी थी। जिसमें इन बच्चों में आज तक केवल अंशु ने ही दो छक्के जमाए थे। उसके अलावा ओर कोई यह नहीं कर सका था।
पांचवे ओवर की आखिरी गेंद थी और राजीव ने हल्के से पुश कर रन के लिए कॉल दिया था, अंशु न चाहते हुए भी दौड़ पड़ा। उसे मालूम था कि यह स्ट्राइक अपने पास रखने की राजीव की चाल थी। चार ओवर बचे थे और टीम को अभी भी 47 रन चाहिए थे। और राजीव था कि स्ट्राइक रोटेट ही नहीं कर रहा था। चौथे ओवर में राजीव ने दो बाउंड्री लगाई और फिर लास्ट गेंद पर रन लेना चाहा, लेकिन इस बार अंशु ने रन लेने से मना कर दिया। मैदान में मौजूद हर कोई दोनों के बीच चल रहे विवाद को बखूबी समझ रहा था। अब तीन ओवर में 39 रन चाहिए थे और अंशु ने इस ओवर में तीन बाउंड्री लगाईं। यानी दो ओवर में 27 रन की दरकार थी। राजीव पूरे ओवर में दो बाउंड्री ही लगा पाया। अब मैच का आखिरी ओवर था। छह गेंद और 19 रन। स्ट्राइक अंशु के पास थी। अंशु ने लगातार तीन गेंदों पर तीन बाउंड्री जमाई। तीन गेंदों में सात रन चाहिए थे। अंशु ने फील्ड का जायजा लिया तो उसे स्कवायर लेग पॉजीशन पर कोई फील्डर नजर नहीं आया। अगली बॉल स्वायर लेग की दिशा में खेल कर 93 रन पर खेल रहे अंशु ने दो रन का कॉल कर दिया। एक रन आसानी से पूरा करने के बाद जैसे ही अंशु मुड़ा तो उसका अपने जूते के फीते में पांव उलझ गया और वह दो कदम आगे ही गिर पड़ा। उसे गिरते देख स्ट्राइक एंड पर बॉल कैरी कर रहे विकेट कीपर ने तुरन्त बॉल बॉलर को थ्रो की। उधर दूसरे छोर पर राजीव ने जैसे ही अंशु को गिरते देखा वह एक बारगी तुरन्त ठिठक अपनी क्रीज में लौटने लगा, पर पता नहीं जाने क्या हुआ कि वह तेजी से दौड़ा और पिच पर गिरे अंशु को क्रॉस कर नॉन स्ट्राइक एंड की तरफ चल पड़ा। लेकिन वह पहुंच पाता उससे पहले ही बॉलर ने थ्रो कैरी कर स्टंम्प उड़ा दिए। पार्क में खड़ा हर कोई यह देख उलझन में पड़ गया कि गिरने के कारण साफ अंशु ही रन आउट होता पर राजीव ने एकाएक उसे क्रॉस कर खुद को आउट क्यों करवा दिया। अंशु खुद भी यह देख हैरान था। बहरहाल अब दो गेंद बची थी और स्ट्राइक अंशु के पास थी, अगली गेंद अंशु से बहुत दूर बिल्कुल ऑफ क्रीज के किनारे से निकली जिसे पहले से ही रूम बना चुका अंशु छू भी नहीं पाया। अब अन्तिम गेंद थी, और जीत के लिए चाहिए था एक सिक्स। जो इस बड़े ग्राउण्ड में आसान नहीं था। अंशु ने अपने आपको पूरी तरह गेंद पर कानस्ट्रेंट किया और जैसी ही बॉल पिच पर टिप्पा खाने वाली थी, उससे पहले ही पूरी ताकत से बल्ला घुमा दिया। और यह क्या बॉल बाउण्ड्री पर खडे़ फील्डर के हाथों में, पूरा पार्क स्तब्ध, लेकिन अचानक अंशु के टीम मेट खुशी से चिल्ला पड़े। अम्पायर ने सिक्स के इशारे के लिए दोनों हाथ हवा में उठा दिए थे। फील्डर बॉल कैच करते करते बांउड्री से बाहर जा पहुंचा था। अंशु की टीम पहली बार सोसायटी ट्वेंन्टी-20 कप के फाइनल में पंहुच गई थी, और अंशु सोसाइटी कप में सेंचुरी बनाने वाला पहला बल्लेबाज बन चुका था। पार्क में मौजूद सोसायटी के सभी बच्चे जोश से चिल्लाने लगे थे। हर कोई अंशु की ओऱ बढ़ रहा था, लेकिन अंशु की आंखे किसी को तलाश कर रही थी और वह था राजीव। अंशु जानता था कि राजीव जान बूझ कर खुद आउट हुआ था, लेकिन उसने ऐसा क्यों किया। टीम के अन्य लोगों से दूर अपने दोस्तों के साथ एक पेड़ के नीचे खड़े राजीव के पास पहुंच अंशु डबडबाई आंखों से उसे देखने लगा,, एकाएक उसके मुंह से निकला थैंक्स राजीव,,,। ....पर तुमने ऐसा क्यों किया, ,, । , नहीं यार,, थैंक्स नहीं,, पिछली बार का कर्ज जो उतारना था, और फिर तुम ही हो जो सिक्स मार कर मैच जीता सकते थे। मुझे माफ कर दे यार,, मैं क्रिकेट से दगा कर रहा था,, पर अब मैंने भूल सुधार ली है,, वो खेल ही क्या जिसमें स्पोर्ट्समैन स्पिरिट न हो। ,, और दोनों एक दूसरे के गले में हाथ डाल जीत का जश्न मनाती बाकी टीम की ओर बढ़ चले। दोनों को एक साथ देख टीम दुगुनी खुशी से भर उठी। सही मायने में यह टीम के लिए डबल विक्टरी जो थी।
- अभिषेक सिंघल

(बालहंस के अगस्त द्वितीय 2010 अंक में प्रकाशित)

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