Thursday, December 24, 2009
क्या इडियट हैं हम
बहरहाल, अपने अजीब से प्रचार अभियान के माध्यम से देशभर को इडियट बना चुके आमिर की फिल्म चंद घंटों बाद ही जनता के सामने होगी। देखना होगा कि फिल्म 3 घंटों में कितनों को इडियट बनाती है और आखिर में कौन इडियट साबित होगा।
Tuesday, December 15, 2009
नया साल, उम्मीद पुरानी
लम्हा लम्हा वक्त गुजर जाएगा,
१६ दिन बाद नया साल आएगा
आज ही आपको हैप्पी न्यू इयर कह दूं , वर्ना,,
कोई और बाजी मार जाएगा
विश यू है प्पी न्यू इयर २०१० ...
चचा का यह मैसेज पढ़ कर हमारे चेहरे पर मुस्कान थी,, अरे एक साल गुजर गया, अभी कल ही की तो बात है जब सबको हैप्पी न्यू इयर बोला था,, नए साल के लिए कसमें खाईं थी, संकल्प लिए थे,, देखते ही देखते साल कैसे गुजर गया.... । लेकिन मन ने दूसरे ही पल कहा,, हां,, साल तो गुजर गया पर देखते ही देखते कहां गुजरा,॥ इस साल ने तो कई टीस दी हैं,,। हर लम्हा जेब पर और भी भारी हो,, गुजरा....। साल के शुरू में जहां चीनी २० -२१ रुपए किलो थी वो अब साल खत्म होते होते अड़तीस रुपए किलो तक पहुंच गई। साल के सरकने की दर पर मंदी का साया बना रहा,, बहुत सपने सोचे थे॥ नई सरकार बनेगी॥ कुछ राहत मिलेगी॥ पेट्रोल के दाम कम होंगे॥ वो तो हुआ नहीं,, उलटे मुई सब्जी भी रसोई से गायब हो गई अब सूने फ्रिज ,,(दूध तो पहले ही मंहगा था, बस सब्जियों से से फ्रीज में थोड़ी रौनक रहती थी) मंडी में मंदी छाने का इंतजार कर रहे हैं। हर सब्जी में मिल कर सब्जी को बिजनेस क्लास से इकोनोमी क्लास में लाने वाला आलू खुद ही बिजनेस क्लास में शिफ्ट हो गया। साल के शुरू में सोचा था, कुछ बचत हो जाएगी तो कुछ जरूरी चीजें खरीद ली जाएंगी,, पर बचत तो दूर ओवर ड्राफ्ट हो गया,, खैर अब फिर से नया साल आ रहा है,, नई उम्मीदें हैं... सॉरी क्षमा चाहता हूं,, साल नया है,, पर उम्मीदें वही पुरानी हैं,, क्या करूं,, इस साल कुछ हो नहीं पाया,, बस जैसे तैसे साल गुजर गया,, चचा के मैसेज में एक बात तो सही है कि लम्हा लम्हा वक्त गुजर गया... लम्हा चाहे भारीपन से गुजरे या हल्केपन से , पर गुजरता जरूर है...
चलिए,, सभी पढ़ने वालों को आने वाले नए साल की शुभकामनाएं,,,,,
Monday, December 14, 2009
हंगामी लाल की राज्य वार
हम चकराए, क्या हुआ चचा,, क्या बात हो गई,, भगवान बचाए अस्पताल के चक्करों से,,,
अरे वो क्या है,, बीमारी जैसी कोई बात नही है,, दरअसल हम अनशन पर बैठने वाले हैं सो जब कमजोर होंगे तो अस्पताल ही में जाएंगे न॥
अरे पर आप अनशन कर काहे रहे हो
अरे वो नए नए राज्य बनाने की मांग हो रही है,, न उसी मामले में हम भी सोच रहे हैं कि एक बार हम भी अनशन कर ही दे,,,
अरे चचा ,, तुमको कौन सा राज्य चाहिए,,,,
मुझे कोई राज्य वाज्य नहीं चाहिए ,,,
तो चचा फिर ये अनशन क्यों...
अरे मेरी तो एक ही मांग है॥ सरकार एक काम करे,,, फिर से सारे राज्यों का गठन कर दे,, भाषा का चक्कर छोड़े और सम्पर्क,, सहजता,, भौगोलिक स्थिति का ध्यान करे... पूर्वांचल, उत्तराचंल, हिमाचल, तेलंगाना,, आंध्रा,, से लेकर केरल,, और राजस्थान से लेकर बंगाल तक,, कुल मिलाकर कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक औऱ जैसलमेर से लेकर इटानगर, गंगटोक तक सबको दुबारा से बना दो,, सबसे कह दो कि ,, भाई ,, अबकी बार सबको भारतीय मान कर राज्य बना रहे हैं,... किसी की भी अलग पहचान नहीं है,, ,, क्या बोलो,, क्या कहते हो॥ छे़ड़ दूं यह राज्य वार,,,
चचा की बात सुन हम चुप,।,,, सन्न,,,
हम कहे चचा तुम्हारी बात और मुद्दे में दम है,।,,, अनशन करो नहीं करो,, उसका फल क्या होगा,, यह तो मुझे पता नहीं,, तुम्हारी राज्य वार का अंजाम भी मैं नहीं जानता.. पर हां तुम्हारी बात जरूर जनता की ईसंसद में पहुंचा दूंगा,, शायद तुम्हें अनशन नहीं करना पड़े.....
तो सभी इन्टरनेट के पाठकों तक हमारे चचा हंगामीलाल का यह मुद्दा पहुंचा रहा हूं,,,,
सादर
Tuesday, October 6, 2009
प्याज तो बहाना है,,
Friday, October 2, 2009
फोलोइंग गांधी की
हां , चचा कहो क्या बात है,,,
वो क्या है भतीजे की एक बात मन में आ रही है,, दरअसल सुबह से गांधी जी के बारे में इतनी सारी बातें सुनी हैं कि आज से गांधी जी को फॉलो करने का विचार बन रहा है,,
ये तो बहुत अच्छी बात है, चचा,,, नेकी औऱ पूछ पूछ ,, तुरन्त शुरू कर दो,,
पर यार ,,
अरे इसमें पर वर क्या,,,,
वो बात दरअसल ये है कि गांधी जी को फोलो करने में एक अड़चन है,,, मैं तो अभी ही नया कुरता सिलवा कर लाया था, और गांधी जी तो ऊपर कुछ भी नहीं पहनते थे,,,
अरे चचा ,, पहनने और न पहनने का क्या है, गांधी जी को फोलो करने के लिए क्या कमर नंगी रखनी जरूरी है,, आप तो बिन्दास जो मर्जी आए पहओ और गांधी को फोलो करो,,
हां, कह तो तुम ठीक रहे हो, पर एक शंका और है,,
वो क्या,,
देखो तुम तो जानते ही हो कि अपना धंधा तो लोगों को पैसा देना और ब्याज कमाना है,, अब उस धन्धे मे ब्याज और मूल वसूलने के लिए कभी कभी किसी को पिटवाना भी पड़ता है,, और गांधी जी तो अहिंसा की बात करते थे,,, अब बिना ठोकपीट अपना धंधा कैसे चलेगा,,,,
अरे चचा गांधी जी ने ये थोड़े ही न कहा था कि धंधा मत करो,, घो़ड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या,, सो तुम तो परेशान मत होओ,, धंधा अपनी जगह है,, बिंदास करो,, वैसे भी धंधे के लिए की गई मारपीट हिंसा नहीं होती यह तो कर्तव्य है,,, जो करना ही होगा,
हां,, यह भी ठीक है,, अब बस एक आखरी शंका का समाधान और कर दो,,
वो देखो चचा,, मैं हो रहा हूं लेट, काम का टाइम है,, तुम तो बस इतना करो कि जैसा चल रहा है, वैसा हीचलने दो,, जैसे जी रहे हो वैसे ही जीते रहो,, बस इतना करो कि हर काम से पहले गांधी को याद करो और गांधी बाबा की जय कह कर काम शुरू करो,, आखिर हमारे नेता लोग भी ऐसे ही करते हैं,,
हां, यह ठीक रहा तो आज से हम भी गांधी के फोलोअर हो गए हैं,। अब गांधी का नाम ले कर ब्याज वसूलने निकल पड़ता हूं। तुम भी गांधी को फोलो करो, बहुत बढ़िया रहेगा, बहुत बढ़िया सिद्धान्त है गांधी बाबा के, जय हो महात्मा गांधी की,,,। इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया
हमने भी राहत की सांस ले ,, हे राम कह दफ्तर पर अपनी सीट का रुख किया,,,।
Thursday, October 1, 2009
गांव की सड़क ऐसी क्यों नहीं,,,,
हरजी की इन बातों मे क्या छुपा है, आप खुद अंदाजा लगा लें, सारी बात यूं की यूं आपके लिए पेश है,,
Monday, September 28, 2009
अब अगले रावण का इन्तजाम ....
Saturday, September 26, 2009
चाय नाश्ता के रेट और छठा वेतन आयोग
हां,
कितने रुपए खर्च कर देते हो,
अरे वो चार रुपए की पेशल ( चाय वाला छोटू ऐसे ही बोलता है) कट और एक समोसा पांच रुपए का कुल नौ रुपए होते हैं, अपने तो...
तो तुम से तो कहीं अच्छे अपने राजस्थान पुलिस के सिपाही हैं जो ढाईलाख का चायनाश्ता करते हैं।
ढाई लाख का,,चचा ऐसा ढाई लाख में क्या खाते होंगे,, फाइव स्टार में जहां थरूर और कृष्णा रहते थे वहां भी चाय का प्याला ढाई सौ में तो मिल ही जाता हो,,,(पढ़ने वाले लोग यदि इसमें संशोधन चाहें तो आमंत्रित है) और बादाम का हलुआ भी साथ में खाओ तो कुल मिला कर खर्चा सात- आठ सौ हजार रुपए से ज्यादा नहीं हो सकता,, नहीं चचा आपकी बात हजम नहीं हुई, ।
अरे बावले ये चाय नाश्ता तो संज्ञा है,, टर्म है,, नाम है,, काम तो कुछ और ही है, सवाल तो यह है कि ये चाय नाश्ते की जो रेट है एक सिपाही की है,, जरा सोच इससे ऊपर एएसआई, एसआई, सीआई, सीओ, डिप्टी, एएसपी, एसपी, आईजी, एडीजी और डीजी फिर सेक्रेट्री,, ,, रेट बढ़ते बढ़ते कहां तक पहुंचेगी,।,
चचा ये तो वाकई सोचने वाली बात है, शिष्टाचार की कीमत भी बढ़ गई, मुझे अभी कुछ दिन पहले एक पुलिस अधिकारी एक थानेदार के महज दस हजार की रकम लेने के लिए एसीबी के जाल फंसने की घटना का जिक्र करते हुए कह रहा था, सारा स्टेटस गिरा दिया, ,, , फंसना ही था तो कम से कम एक बिन्दी तो और लगवाता तब तो कुछ समझ भी आता,। पर चचा ये सिपाही ने कुछ ज्यादा ही नहीं ले लिया,
अरे भतीजे मुझे भी ऐसा लगा था, सो मैंने एक दूसरे सिपाही को टटोला की यार तुम्हारे बिरादरी भाई ने ज्यादा चाय नाश्ता ले लिया,, इतना तो नहीं लेना चाहिए था, आखिर लेने का भी कोई कायदा होना चाहिए,,, उसका जवाब था,, हंगामीलाल जी सारा कायदा पुलिस वालों के लिए ही है, मंहगाई देखी इस स्पीड से रॉकेट उड़ाया होता तो चांद से आगे पहुंच जाता...। छठा वेतनमान लगने बाद वैसे भी ग्रेड रिवाइज हो गए हैं तो चाय नाश्ता के रेट भी रिवाइज होने ही थे। अब आप क्या जानो कैसे काम चलता है,, ससुरी चीनी 39 रुपए किलो गई है, दाल, चावल ,, आलू, मुर्गी, मच्छी सब महंगे हो गए हैं, वो एक पत्रिका में खबर छपी थी जिसकी हर महीने की पचास हजार आमदनी है वो भी महंगाई में कटौती कर रहा है, और आप को हमारी रेट्स ही ज्यादा लग रही हैं। खैर आप चिन्ता मत करना कभी आपका मामला फंसे तो बताना स्पेशल स्टाफ डिस्काउण्ट दिलवा देंगे। तो भतीजे मैंने तो तुम्हें सिर्फ इसलिए फोन किया था कि कभी कोई बात तो बता देना उसके डिस्काउण्ट को भी चैक कर लेंगे,, कुछ फायदा हो तो क्या बुराई है।
उनकी बात सुन कर मैंने ,,, जी

Friday, September 25, 2009
खींचतान की चिंता और क्रिकेट की चिता
क्या चचा, आज इतनी सुबह, सब खैरियत तो है,,
खाक खैरीयत होगी,, लड़ाई किसी की और नुकसान हमारा,,,
क्या नुकसान हो गया चचा, किस की लड़ाई की बात कर रहे हो,,
वो गेंद बल्ला खिलाने वाले अफसर नेताओं के टण्टे मे मेरा हजारों का नुकसान हो गया,,,,
किस की बात कर रहे हो,,
अरे तुम आजकल कहां रहते हो जो तुम्हें खबर ही नहीं, पता है,, यहां होने वाला क्रिकेट मैच अब यहां नहीं होगा,, बडौदा में होगा।
अरे तो उससे तुम्हें क्या,,, तुम तो मैच टीवी पर देख लेना,, फिर चाहे यहां हो या बड़ौदा में,,, तुम्हारी बला से
तुम भी भतीजे,, मैच यहां होता तभी तो हमारी कमाई होती,, अबकी बार प्लान बनाया था कि स्टेडियम के बाहर तिरंगी झंडियां, टोपियां और पेंटिंग का सामान लेकर बैठूंगा,, खूब बिक्री होगी,, तुम तो जानते ही हो कि क्रिकेट इस देश के लोगों के लिए क्या है, भगवान है, और भगवान की तो हम पर कृपा होती ही,,। लेकिन बुरा हो इन आरसीए वालों का। जाने क्या सूझी की आपस में ही लड़ पड़े। अरे भाई जब काम आता नहीं तो क्यों करने चले हो। जो करना जानते हैं उन्हीं को क्यों नहीं करने देते। पर ये खेल का मैदान भी जोरदार है,, खेल तो केवल वही सकता है जिसे खेलना आता हो, लेकिन खिलाने का इन्तजाम करने में पनवाड़ी तक जुट सकता है। जिसकी मर्जी हो जो खेल जाए। अब इनके इस चक्कर में तो मेरा नुकसान हो गया।
हां, चचा सो तो है,, तुम ठीक कह रहे हो, नुकसान तो हो ही गया,, लेकिन क्या करें, हिन्दुस्तान में क्या दुनिया में सभी जगह खेल संघों का ऐसा ही हाल है, हां वहां वो थोड़ा प्रोफेशनल हो जाते हैं, पैसा लगाते हैं और उसकी सही उपयोगिता हो इसकी परवाह करते हैं, यहां तो सब जगह यूं ही चलता है, अब देख लो, हॉकी में भी यही हुआ, मशीन गन थामने वाले हाथ हॉकी स्टिक थामने वालों का चयन करने लगे। बिगड़ते हाल देख सरकार ने नई हॉकी कमेटी भी बना दी लेकिन हॉकी सुधरी क्या। चचा,, यूं उम्मीद करोगे की खेल की हालात सुधर जाएगी तो मुश्किल होगा,, लोग हैं एक दूसरे का विरोध करेंगे ही,, एक को दूसरे का काम बुरा लगेगा ही,,
पर भतीजे यो तो मामला बिगड़ता ही जाएगा, आखिर इस मर्ज की दवा क्या है,,
चचा मैं कोई हकीम लुकमान तो हूं नहीं जो हर मर्ज की दवा मेरे पास हो लेकिन एक बात एकदम साफ है कि हिन्दुस्तान में जम्हूरियत का शासन है,, कामयाबी से चल रहा है, हर पांच साल में चुनाव हो जाते हैं, सरकार बदल जाती है, जब उस सरकार के पास पानी, बिजली, सड़क, शांति व्यवस्था, सुरक्षा, बैंक, का जिम्मा है तो खेल को दोयम दर्जे का मान उसे क्यों यो ही लोगों के हवाले कर दिया गया है,। यदि लोगों के हवाले करना भी है तो कोई व्यवस्था करो। जैसे सहकारिता में होता है, जब चुनाव होंगे तब होंगे, जो जीतेगा वो टर्म पूरी करेगा। यों थोड़ी ना कि बीच मे जब मर्जी आए,, चलो भाई हम बीस लोग हो गए अब हम काम करेंगे तुम चलो घर जाओ,, । बीस लोग उस समय कहां गए थे जब चुनाव हुए थे। कोई कायदा कानून है कि नहीं,, क्या हुआ चचा एकदम सुट्ट क्यों साध गए।
अरे वो तुम्हारी बात ही सोच रहा हूं कि कोई कायदा कानून है कि नहीं, ,, मुझे तो लगतान नहीं की कोई कायदा कानून ही है, होता भी है तो उसे जिसकी लाठी होती है वही अपने हिसाब से बदल देता है। यहां के मर्ज की भी यही दवा है, अमुक आदमी नहीं जीत जाए इसलिए उसके आदमी को वोट ही मत देने दो, कानून ही ऐसे बनाओ की मन चाहा ही जीते। जीत जाएं फिर कानून बदल दो,, फिर भी बात नहीं बने तो अदालत तो है ही जो,, यथा स्थिति बनाने के आदेश तो दे ही देगी।
चचा की बात को कुछ ज्यादा ही गम्भीर होते देख मैंने उन्हें रोकने की गरज से कहा,
चचा, क्यों बेकार में दुबले हो रहे हो, बात झंडिया बेचने की है तो उन्हें तो कभी बेच देंगे,
भतीजे तुम समझ नहीं रहे तो बात जितनी झंडियों के बेचने की है उतनी अपने सूबे के इकबाल की बुलन्दगी की भी है,,, इस सब से सूबे का कितना नुकसान होगा, मुझे तो उसकी चिन्ता है,,
चचा की चिन्ता अब मेरी भी चिंता बन गई थी, शायद सूबे के सभी लोगों की चिन्ता भी बन गई है,, कहीं ये खींचतान सूबे में क्रिकेट की चिता नहीं बन जाए,,,।
Wednesday, September 23, 2009
चाहिए एफिशिएंट ब्यूरोक्रेसी
Monday, August 17, 2009
पार्टी विद अ डिफरेंस...
भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान इकाई में इन दिनो चल रही उठापठक को लेकर कल फेस बुक पर एक परिचित की टिप्पणी पढ़ने को मिली... वाकई भारतीय जनता पार्टी, पार्टी विद अ डिफरेंस...। दरअसल मामला राजस्थान में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के साथ शुरू हुआ और सुस्त नेतृत्व के कारण इतना बिगड़ा। भाजपा विधानसभा चुनाव में राजस्थान हारने जा रही है यह पार्टी में सभी को मालूम था। सभी से मतलब एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के राजनीतिक पंडितों तक सभी को। हर कोई जानता था कि चुनाव बहुत आसान नहीं होगा। लेकिन मोदी फार्मुला चलाने औऱ तीन खेमों में बंटी पार्टी ने टिकटों की आपसी बंदरबांट के बाद चुपचाप चुनाव लड़ा और सभी क्षत्रप अजीबो गरीब अहम की लड़ाई में पार्टी को दांव पर लगता देखते रहे। हार हुई, लेकिन लोकसभा चुनाव में कोई सीख नहीं लेने की कसम खाते हुए उसी तिकड़ी के डिफरेंसेज के साथ राजस्थान में जबरदस्त नुकसान झेला गया। अब हार की समीक्षा में यह तय किया गया की सारे घर के बदल डालो। तो तीन में से दो ने अपना रास्ता पकड़ा लेकिन तीसरे को अपनी ताकत का गुमान हो गया। और नई पार्टी तक बनाने की बात हो गई। पता नहीं क्या सदबुद्धि मिली की बाद में कहा जाने लगा कि आदेश सिरमाथे। पर इस सबके बीच उन परिचित की उक्त व्यग्योक्ति सही प्रतीत होती दिखी।
दरअसल भाजपा पार्टी विद ए डिफरेंस तभी तक है जब यह आरएसएस की मूल विचारधारा और निरपेक्षता के सिद्धान्त पर काम करती रहे। जहां भी इसमें या इसके लोगों में सत्ता का भाव विद्यमान हुआ नहीं कि वह डिफरेंस अपनी डायवसिर्टी खो देता है। मुझे पिछले दिनों ही भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता से मुलाकात की याद आती है जब उनका कहना था राजनीति में कोई घर लुटाने नहीं आता। सबको कुछ न कुछ पाने की बनने की आस होती है,,,। और यह हकीकत है इससे मुंह नहीं चुराना चाहिए। लेकिन यह सब हासिल करने के लिए जनसेवा की ही राह चुननी होती है। उनके इस कथन के बाद मुझे सालों पहले कांग्रेस के एक वरिष्ठ दिग्गज नेता से हुई मुलाकात की याद आ गई। वे उस समय विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थीं। उनका भी यही कहना था राजनीति में पद एक चार्म है और सभी उसके लिए ही काम करते हैं। उन्होने इसे महत्वकांक्षा का नाम देते हुए कहा था कि महत्वाकांक्षी होना कोई बुरी बात नहीं है। दोनों ही कथन एक से हैं ,, बस बोलने वालों का चोला अलग है। भारतीय जनता पार्टी में सत्ता के सुर बोलने वालों की तादात लगातार बढ़ रही है। यहां तक की संघ के नाम पर भी लोग सत्ता के सुख को आजमाना चाह रहे हैं। और जब लक्ष्य एक है ,, सत्ता तो शायद पार्टी या पार्टी के लोगों के डिफरेंट होने का दावा खोखला ही रहता है। अब भारतीय जनता पार्टी की हालत देख कर सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या ,, यह वही पार्टी है जिसे किसी विचारधारा पर आधारित पार्टी कहा जाता है। क्या एक हार किसी पार्टी को इस स्तर तक तोड़ सकती है कि संगठन गौण हो जाए। क्या वाकई में भाजपा का सालों पुराना इतिहास रहा है। ,, इन सबसे परे और सबसे बड़ा सवाल जब लक्ष्य एक है राजनीतिक पद और सत्ता प्राप्त करना तो अलग अलग दल-पार्टी का महत्व ही क्या बचता है। भारतीय जनता पार्टी की यह स्थिति केवल पार्टी ही नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र का भी कठिन समय है। यदि समय रहते भाजपा नहीं सम्भली तो यह देश का दुर्भाग्य ही होगा। एक स्तंभकार लिखते हैं आडवाणी फिर से स्वस्थ हो रहे हैं और उनके परिवार के लोग उनकी छवि को स्वच्छ बनाने में जुट गए हैं। वे लम्बे समय तक नेता प्रतिपक्ष बने रह सकते हैं। यानी आडवाणी स्वयं ही सत्ता से दूर नहीं होना चाहते। वे फिर से नेतृत्व के लिए तैयार हो रहे हैं। ऐसा होने पर वे दूसरों को कैसे दूर होने की सलाह दे पाएंगे और कैसे पार्टी में जोश जगा पाएंगे। यह भी लोकतंत्र का दुर्भाग्य ही है कि कोई राजनेता अपनी हार होने पर उसे स्वीकारना नहीं चाहता और पार्टी व देश उसे सहने पर मजबूर है।
Thursday, July 9, 2009
चलो आम आदमी को मजबूत बनाएं
आज जब दरवाजे पर दस्तक हुई तो बड़ा अजीब लगा। जब से नए शहर में आए हैं तब से हमारे दरवाजे पर यह पहली दस्तक थी। सच पूछो तो शायद इस शहर में दरवाजों पर दस्तक देने का रिवाज ही नहीं है। खैर हम अचकचाए से, हड़बड़ाए से दौड़ते दौड़ते से दरवाजे तक पहुंचे और एकदम से दरवाजा खोला, तो जो चेहरा हमें देख रहा था, या यूं कहूं की घूर रहा था, उसे देख हमारी तो बांछें ही खिल गई। दरवाजे पर खड़े थे अपने चचा हंगामी लाल। बेसाख्ता मुंह से निकला,, अरे चचा आप और यहां।
क्या करते बरखुरदार तुम तो वहां से चले आए और हमारा हाल भी नहीं लिया सोचा चलो एक पंथ दो काम कर आऊं।
यह तो बहुत बढ़िया किया चाचा आपने पर ये एक पंथ दो काम वाला चक्कर समझ नहीं आया।
अरे भतीजे बड़ा सीधा सा चक्कर है। मैं घर से निकला था आम आदमी की तलाश में। सोचा चलो तुम्हारे शहर के आस पास ही तलाशा जाए आम आदमी, सो चला आया।
पर चचा ये आम आदमी की तलाश.. वो भी एकाएक,,, भला ऐसी भी क्या सूझी।
अरे भाई आम आदमी का जमाना फिर से लौट आया है। गरीब की बात करने वाले अब आम आदमी की बात कर रहे हैं। केन्द्र से लेकर राज्य तक आम आदमी को ही मजबूत करने की बात हो रही है। सो हम भी चल पड़े हैं उसे ढूंढने और मजबूत करने।
पर चचा आप कैसे मजबूत करोगे।
अरे भाई जैसे ये सरकार वाले करेंगे हम बिना कार करेंगे। सर तो हमारे पास है ही।
चचा बात कुछ समझ नहीं आई।
अरे इसमें समझ नहीं आने वाली क्या बात है। वो भी मजबूती की बात कर रहे हैं हम भी मजबूती की बात कर रहे हैं। जैसे ही आम आदमी मिला नहीं कि उसे पकड़ कर खट से खड़ा कर देंगे। देखो ये फट्टे देख रहे हो..(वो हमें अपने साथ लाए लकड़ी के फट्टे दिखाने लगे.. ) बस इनसे उसके पैरों को घुटनों से बांध देंगे।
इससे क्या होगा..
अरे इतना भी नहीं समझते..। खड़ा आदमी बैठता कैसे है.. घुटने मुड़ने से ही न.. लेकिन हम तो ऐसा इंतजाम करेंगे की वो अपने घुटने मोड़ ही नहीं पाए। उसके घुटनों को पक्की मजबूती देंगे।
लेकिन चचा ये तो केवल पैरों का इंतजाम हुआ..
चिन्ता मत करो भतीजे हमने सब सोच लिया है,, हमें यह भी पता है कि आम आदमी बहुत कमजोर है,,, इसलिए हम भी सरकार की तरह पट्टों का खूब सारा स्टॉक साथ लेकर चल रहे हैं.. जहां भी कमजोर होगा वहीं मजबूती के लिए पट्टे बांध देंगे... बोलो है ना पुख्ता इंतजाम...।
अब चचा के इतने पुख्ता इंतजामों के बाद भी असहमत होने की गुस्ताखी कौन कर सकता है,,,,। कम से कम मेरी तो हिम्मत नहीं है.. आपकी आप बताएँ...।
Tuesday, May 19, 2009
जय हो, भारत भाग्य विधाता जय हो...
चचा हंगामी लाल बहुत दिनों तक शहर से बाहर रह कर रात ही लौटे थे। हमें उनके आने की सूचना मिल गई थी सो सोचा रहे थे कि चाय वाय पीने के बाद जरा चचा से उनके हाल पूछ आएंगे। पर ये क्या चचा तो सुबह होने के साथ ही हमारे कमरे में हाजिर थे। आते ही बोले भाई दिल खुश हो गया, हमने कहा, क्यों चचा ऐसी क्या बात हो गई। अरे बात कैसे नहीं हुई। देखा नहीं लोगों ने कितना सोच समझ कर काम किया है, साले सब खोमचे वालों की छुट्टी कर दी। ऐसी सरकार बनाई है कि बस पूछो मत। क्या जम कर जिताया है। ऐसी ऐसी जगह जिताया है जहां जीत की कोई उम्मीद ही नहीं थी। हम अवाक्। चचा तो मजबूत नेता निर्णायक सरकार का नारा बुलन्द किए हुए थे। अचानक उन्हें क्या हो गया। हमारे मुंह से निकला अरे चचा तो फिर वो मजबूत नेता और निर्णायक सरकार का क्या हुआ। अरे वही तो हुआ है लल्ला। जनता ने दिखा दिया की जो वाम दलों के दबाव में नहीं घबराया, अमरीका से सौदा करके ही रहा ,,वो क्या कहते हैं,, न्यूक्लियर डील, वो ही तो मजबूत नेता हुआ और उसी की सरकार को निर्णायक साबित कर दिया। इसे ही कहते हैं जनता जनार्दन बता दिया कि कौन है मजबूत नेता। चचा पर वो जीतने वाले लोग तो कहते हैं इसमें राहुल बाबा का हाथ है। हां वो तो है ही राहुल बाबा का ही हाथ है, वो राहुल बाबा ने ही तो इतने जवान साथियों को उतार कर जय जवान का नारा बुलन्द किया है, कितनी रैलियां की, कहते हैं ज्यादातर में जीत हासिल की। लेकिन लल्ला तुम्हें एक बात बताऊं, जरा राज की बात है,., ये नए लोग जीते इसलिए नहीं की उन पर राहुल का हाथ था, बल्कि इसलिए जीते क्योंकि जनता को अब इनसे ही उम्मीदें हैं, इन नए लोगो का दामन थोडा उजला है, सो जनता ने कहा भाई पुरानों को देख लिया बहुत सह लिया,, तुम नए हो शायद कोई कमाल दिखा जाओ ,, जाओ और कुछ करो ताकि हमें भी जीने का मौका मिले। मंदी और महंगाई की चक्की के पाटों में पीस रहे नौकरी पेशा आदमी को कुछ राहत मिल सके। अभी तो मामला दुधारी तलवार है,, महंगाई बढ़ रही है और तनख्वाह वहीं अटकी है। ...। लल्ला कुल मिलाकर यह नाउम्मीदी के बीच उम्मीद की जीत है...। चचा की बात हमारी भी समझ में आ रही थी। फिर भी चचा कुछ और बोले इसलिए कुरेद बैठे,, तो चचा अब वो सर्वहारा, सर्वजन औऱ सम्यक समाज का क्या होगा..। जोर के ठहाके के साथ चचा बोले होगा क्या,, कल से ही देख नहीं रहे की रायसीना की पहाड़ी के नीचे खोमचे सज गए हैं... और आवाज आ रही है,.समर्थन ले लो ,,समर्थन लेलो,, पैसे नहीं चाहिए ,, कुछ भी नहीं चाहिए, बस ले जाओ,, हमारे पास यूं ही पड़ा है.. ले जाओ,, । लेकिन इस बार वाकई जय हो जनता की जो ऐसा तगड़ा काम किया। ..... जय हो.,.,. चचा की बात से मुतमईन हम भी जोर से स्वर दे बैठे,, जय हो...जय हो.. भारत भाग्य विधाता.. जय हो।
Wednesday, April 8, 2009
जूता प्रूफ प्रेस कॉन्फ्रेंस
चचा हंगामी लाल बहुत चिन्तातुर स्वर मं बोले,, कहां हो लाला,., जरा हमारी सुनो,, ये देखो तुम्हारे बिरादरी भाइयों ने क्या कर दिया।
हम थोड़े सकुचाए से, बोले क्या चचा, जूता पुराण पर कह रहे हो क्या।
हां, और नहीं तो क्या, अब वो जो किए जो किए, पर हमें बड़ी फिकर हो गई है।
काहे चचा आपको किस बात की फिकर।
अरे हम भी तो परसों प्रेस कान्फ्रेंस बुलाए रहे हैं। कोई किसी बात के प्रोटेस्ट में हम पर भी जूता उछाल दिए तो। और फिर ये प्रोटेस्ट का तरीका भी बड़ा शानदार है। पूरी प्रेस मौके पर ही मौजूद, हाथों हाथ ही खबर सबके हाथ। न कोई प्रेस विज्ञप्ति का झंझट और न ही कोई सैटिंग का चक्कर। प्रोटेस्ट एकदम हाईलाइट हो जाता है।
अरे चचा, ऐसे ही न कोई इतना बड़ा प्रोटेस्ट करता है।
तुम्हारी बात में तो दम है। पर मुद्दा भले ही कितना ही संगीन क्यों न हो जूता तो चल ही गया न। जिस पर चला उसका तो बोलो राम हो गया न। अब परसों हमारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चल गया तो। न बाबा न। हम कोई रिस्क नहीं लेंगे। सालों से पाली पोसी इज्जत का एक ही दिन में जनाजा निकल जाएगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस कैंसिल। बस कैंसिल।
अरे, ये क्या करते हो चचा। चुनाव नहीं लड़ना क्या। प्रेस को नहीं बुलाओगे। साथ नही बिठाओगे। कुछ सेवा नहीं करोगे। उन्हें अपन दिल की बात नहीं बताओगे तो अपने मतदाताओं तक कैसे पहुंचोगे। कैसे चुनाव जीतोगे। उन्हें कैसे पता चलेगा कि एक हंगामीलाल ही है जो उनके दुख दर्द में काम आएगा।
अरे कौन किस के काम आएगा.. मैं तो मेरे ही काम आ जाऊं जो बहुत।
अरे कहने के लिए,.. चचा कहने के लिए.. जीतने के लिए ऐसा कहना जरूरी होता है। कहने से ज्यादा सब तक पहुंचाना जरूरी होता। इसके लिए प्रेस को भी बुलाना जरूरी होता है। पर तुम घबराओं मत हम कुछ इन्तजाम करते हैं।
क्या करोगे।.
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाला फार्मुला काम में लेना पड़ेगा। प्रेस कांफ्रेंस वाले रूम में एक बढ़िया कालीन बिछवाकर सबके जूते बाहर ही खुलवा देंगे। जब जूते ही अन्दर नहीं होंगे तो कोई कैसे फैंकेगा।
अरे जूता नहीं तो कोई पैन ही फैंक देगा। तब...
अरे चचा, यह तो मैंने सोचा ही नहीं था। पैन तो फैंका जा सकता है। पैन लाने से किसी को रोका भी नहीं जा सकता। एक काम करते हैं। पैन का भी जुगाड़ करते हें। प्रेस रिलीज सबको पहले ही पकड़ा देंगे और पैन का भी इन्तजाम कर लेंगे।
बेल्ट का क्या करोगे.. और भी न जाने क्या क्या, फैंक सकते हैं लोग.,. तुम क्या क्या उतरवाओगे..
चचा की इस बात पर हमारी जुबान पर ताला लग गया। हम भी सोचने लगे कि वाकई यदि लोग उतरवाने पर आ गए तो क्या क्या उतरवा सकते हैं।
लेकिन यदि आपके पास कोई जूताप्रूफ प्रेस कान्फ्रेंस करवाने का फार्मुला तो जल्द से जल्द बताना। परसों हमारे चचा की प्रेस कान्फ्रेंस जो है..
Monday, April 6, 2009
वो बे-कार और हम बदहाल
अरे कहां हो बरखुर्दार, तुम लोग क्या-क्या छाप देते हो...!
आवाज सुनते ही हमें यकीन हो गया कि हो न हो चचा हंगामी लाल आज कुछ झुंझलाए हुए हैं और पूरा मीडिया पुराण हम पर ही उतारने वाले हैं, पर वो किस खबर को लेकर लाल-पीले हो रहे थे, इस उत्सुकता से भरे हम उनकी और देखने लगे।
अब देखो.. तुमने छापा,, राहुल बे-कार,,, । अरे भाई लाखों दिलों पर राज करने वाला बेकार कैसे हो सकता है। वो तो निहायत ही काम का आदमी है बेकार होओगे तुम लोग जो उसे एक कार नहीं होने पर ही बे-कार करार दे रहे हो। अरे अभी तो उसकी परख भी नहीं हुई है। पहले जांचों परखो फिर कहो..।
अरे चचा काहे परेशान हो रहे हो वो तो जरा ऐसे ही तुकबंदी मिलाने के लिए लिख दिए थे पर आप परेशान क्यों हो रहे हो। वो बे-कार . कारदार हो आपको क्या,,,।
अरे वाह, मुझे कुछ कैसे नहीं। अब तुम मीडिया वाले तो चटखारे तलाशते हो, राहुल के पास यूं तो करोड़ों रुपए की सम्पति है पर तुम्हें उसका बेकार होना ही खबरगार लगा। वो एक और करोड़पति है जिसके पास कोई पुरानी खटारा है जिसे तुमने जम कर छापा साढ़े सात हजार की फिएट पद्ममिनी कार। तुमको तो कुछ चटखारा चाहिए, सो ठीक है पर हमें फिक्र अपनी है.. हमारी पोल खुलेगी तब तो तुम लोग हमारी तो कुछ भी इज्जत नहीं रखोगे। हमें एक लाइन भी नहीं दोगे।
देंगे कैसे नहीं, चचा तुम्हें भी पार्टी का टिकट मिला है। तुम शपथ पत्र भरो हम लिखेंगे, हंगामी के पास सवा सौ की साइकिल।,,
यही तो अफसोस है, तुम यह नहीं लिख सकते,... क्योंकि यह साइकिल तो हमारे पिता जी की है.. जो अभी गांव में हैं। इस हिसाब से यह उनकी सम्पति हुई।
ओ.. , चलो कोई बात नहीं तुम कुछ तो भरो हम उसी हिसाब से कुछ न कुछ जुगाड़ लगाएंगे और तुम्हें भी खबर लायक बनाएंगे।
अरे नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या, अब देखो हमारा घर, जिस में हम रहते हैं, वो हमारा नहीं है, किराए का है,. पिता जी ने किराए पर लिया..रिटायर हो कर वो तो गांव चले गए और हम यहीं रहते रह गए। पता नहीं किसका है, लेकिन हम रहते हैं तो हमारा ही है,, पर तुम तो जानते हो कि इसका जिक्र तो हम संपत्ति में नहीं कर सकते हैं न...भले ही यह शहर के बीचोंबीच है,., कोई बता रहा था, करोड़ों का है..। रही बात टीवी, कम्प्यूटर, सोफे और भी न जाने क्या क्या की तो वो सब हमारी धर्मपत्नी लाईं थीं। सो वो भी उनका है।
चचा कोई बात नहीं बैंक में एफ डी वगैराह तो होगी..
हां, है तो सही पर इनकम टैक्स वालों के चक्कर में सब रामलाल के नाम पर करवा रखी हैं।
ये रामलाल कौन है,., पहले कभी नाम नहीं सुना।
गांव में हमारे यहां खेत पर काम करता है। वो तो उसके नाम से मैं ही अंगूठा लगा देता हूं। उसे क्या पता।
अरे चचा तुम्हारे नाम जो खाता है.. जिसमें तुम्हारी तनख्वाह आती है.,वो तो होगा ,. उसमें कितने पैसे हैं,.,.
उसमें 323 रुपए हैं।
वाह चचा बस बन गया काम.,., तुम फिकर मत करो तुम्हारी वह झांकी जमेगी की दुनिया देखेगी...
हैडिंग होगा..
बदहाल हंगामीलाल के पास 323 रुपए
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Saturday, March 28, 2009
अध्यक्ष जी की दिलेरी और लोकसभा का टिकट
हमें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था।पर चचा थे कि हंस हंस कर हमें बताए जा रहे थे।
अरे भइया, तुम नहीं मान रहे थे कि हमें लोकसभा का टिकट मिल जाएगा। देखो मिल गया।
और हम उनके दिखाए अखबार में भारत जनसहयोग पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों की सूची में हंगामीलाल नाम देख कर दंग रह गए थे।
चचा ये हंगामी लाल कोई और होगा। तुम्हारा राजनीति से क्या लेना देना।ये पार्टी वाले तुम्हें क्यों कर टिकट देने लग गए।
अरे मैं ही हूं भाई मानो। अच्छा तुम नहीं मानते तो मत मानो। मैं तो कल ही अपने चुनाव क्षेत्र में जा रहा हूं, प्रचार करने। वैसे यदि तुम वहां किसी को जानते हो तो बताओ। मैं तो वहां पहली बार ही जाउंगा, हालांकि मेरे लकड़दादा जिस गांव में रहते थे वह वहीं कहीं था, लेकिन मुझे तो गांव के नाम के अलावा कुछ भी नहीं पता।
अरे चचा जान पहचान का क्या वो तो पार्टी वाले होंगे न वो तो तुम्हें जानते ही होंगे।
अरे कैसी पार्टी, किसकी पार्टी। मैं तो वहां किसी पार्टी वाले को भी नहीं जानता। मैं भी उनसे पहली बार ही मिलूंगा।
अरे.. न पार्टी वाले तुम्हें जानते हैं, न तुम क्षेत्र में किसी को जानते हो, फिर कैसे वहां चुनाव लड़ने जा रहे हो? अरे तुम्हें टिकट किस ने दे दिया?
टिकट कैसे नहीं देते तुम्हें तो पता है यहां आने से पहले मैं अहमदाबाद में रहता था। अब पार्टी के अध्यक्ष जी तब अहमदाबाद आए हुए थे। उस दौरान हर कोई उन्हें अपने यहां ठहराने से बिदक रहा था। बिचारे जैसे तैसे पार्टी कार्यालय में दिन काट रहे थे। मैंने उनके बारे में अखबार में पढ़ा तो पता चला कि वो अपने ही यहां के निकले। बस मैंने कहा कि चलो यार परदेस में अपने देस का कोई मिला है तो मिल आऊं। वहां जब उनकी हालत देखी तो उन्हें अपने साथ रहने ले आया। तब कुछ दिन वो मेरे साथ रहे थे। अभी जब लोकसभा-लोकसभा सुना और देखा की कोई भी कहीं भी चुनाव लड़ रहा है। जीत रहा है। तो अपन ने भी सोचा की एक बार भाग्य आजमा लिया जाए। बैठे बैठे बोर हो रहे हैं, चल कर चुनाव ही लड़ लें। जीते तो पौ बारह, हारे तो अपने पास क्या है जो कोई ले जाएगा। सो इसी चक्कर में पिछले दिनों अध्यक्ष जी से मिल कर उन्हें पुराने दिन याद दिला दिए। पर कहना पड़ेगा ये अध्यक्ष भाईसाहब हैं दिलेर आदमी। वर्ना आजकल की दुनिया में कौन किस को याद रखता है। लेकिन उन्होंने सब याद रखते हुए टिकट दे दिया।
... सारी बात सुन कर हमें भी लगा कि चचा को चुनाव लड़ ही लेना चाहिए। क्या हुआ जो उन्हें उनके क्षेत्र में कोई नहीं जानता। क्या हुआ जो वे वहां पैराशूट से उतरेंगे। क्या हुआ जो वहां किसी कार्यकर्ता को टिकट देने की बजाय पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। अब तो पार्टी के लिए दरी बिछाने और उठाने वालों का फर्ज बनाता ही है कि पार्टी ने एक बार जिसे भी भेज दिया उसे जिताएं। और यदि चचा जीत गए तो अपनी तो पांच उंगुलियां घी में और सिर कढ़ाई में होगा। हम भी सांसद के खास होंगे।,, इतना सब सोचते सोचते हमारे मुंह से निकला.. हां चचा वाकई तुम्हारे अध्यक्ष जी हैं तो दिलेर आदमी....।
Saturday, March 21, 2009
यह पहल लोकतंत्र को मजबूत करेगी
कांग्रेस ने बिहार की 37 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उसकी यह पहल लोकतंत्र को मजबूत करने वाली साबित हो सकती है। आखिर उत्तर प्रदेश और बिहार हिन्दुस्तान के दो बड़े राज्य हैं जो लोकसभा में एक बहुत बड़ा प्रतिनिधित्व रखते हैं। यहां कांग्रेस के मजबूत होने से कालान्तर में द्विदलीय व्यस्था को मजबूती मिलेगी। और तीसरे मोर्चे के दलों का अस्तित्व कुछ सिमटेगा। जिससे लोकतंत्र में ब्लैकमेल करने वाली ताकतों की ताकत कुछ कमजोर होगी। हो सकता है इस पहल का फायदा अभी कांग्रेस को नहीं हो लेकिन बाद में उसे इसका फायदा जरूर मिलेगा। और कुछ नहीं तो कांग्रेस को इन जगहों पर अपना कार्यकर्ता आधार ही मजबूत करने का मौका मिलेगा।
चुनाव के खेल में अलगाव का जहर
चाचा हंगामी लाल का पिछले कई दिनों से कोई संदेश नहीं था। जाहिर है हमें उनकी चिन्ता होनी थी सो हुई। दफ्तर की व्यस्तताओँ के बीच आज कल करते करते आखिर हमने थोड़ा वक्त निकाला और पहुंच गए उनके घर। मन में घबराए हुए तमाम आशंकाओं को साथ हमने घर की कुण्डी खटखटाई तो, आवाज आई, दरवाजा खुला है, आ जाओ। अन्दर पहुंच कर पाया कि चचा बिल्कुल मजे से टीवी के सामने डटे हुए थे और टीवी पर खबर चल रही थी, वरूण को अग्रिम जमानत...। उन्होंने हमें देखते ही कहा., आओ बर्खुरदार क्या हाल हैं, आखिर हमारी याद आ ही गई। क्या चचा तबियत तो ठीक है। अरे हमारी तबियत का क्या वो तो बिल्कुल ठीकठाक है। इन दिनों बस अरूण-वरूण के हंगामे के चलते जरा टीवी से फुर्सत नहीं मिल रही है। अरे आपको ये अरूण वरूण से क्या लेना देना। अरे लेना देना कैसे नहीं। अरुण की तो फिर भी जाने दो पर वरूण की तो बिल्कुल घर की सी बात है। संजय का खून हमारा कुछ कैसे नहीं लगेगा। बिचारा अकेला पांडव है। आखिर उसका भी तो कुछ हक बनता है राज पर। खैर यह तो उसकी बात है पर हम तो खुद ही बड़े परेशान हैं कल ही सामने वाले ने हमें धमकी दे दी थी कि वह हमें किसी चक्कर में उलझाएगा। हमने तो बस कुछ अपने चौतरें पर खड़े हो कर यही कहा था कि जो भी हमारा दुश्मन हो उसे कीड़े पड़ें लेकिन सामने वाले को क्या सूझा की अपने पूरे कुनबे को लेकर हमें घेर लिया। सब मिल कर कहने लगे हमने उनका ही नहीं उनके पूरे खानदान का अपमान कर दिया औऱ उन्हें बद्दुआ दी है। जिसके लिए हमें खमियाजा भुगतना पड़ेग। इतना ही नहीं चार कोस दूर रहने वाले हमारे भाई के घर पर भी कुछ लोग पहुंच गए, जिन्हें न तो हमारा भाई जानता है और न ही हम, सबकी एक ही रटन्त थी कि हमने उन्हें बद्दुआ दी है। बस इसी मारे हम घर में घुसे बैठे हैं। बाहर निकले कहीं कुछ बोला किसी ने कुछ समझा तो आफत गले पड़ी समझो। इसलिए हमने तो घर में ही रहने में भलाई समझी है। सो दिल लगाने के लिए टीवी देखने लगे तो पता चला कि बिचारा अकेला पांडव भी इसी चक्कर में उलझा पड़ा है। उसका कहना है कि उसने तो किसी के खिलाफ कुछ नहीं कहा। बस अपनी कौम की बहबूदी की दुआ की थी, लेकिन लोगों का क्या जो इसे अपने ऊपर ले बैठे। खैर देखें क्या होता है। जो भी होगा ठीक ही होगा। कोई हमें भी घर से बाहर खुली हवा में सांस लेने का मौका जरूर देगा। हम चुपचाप सकपकाए से चचा का मुंह देख रहे थे कि बाहर शोर उभरा। यहीं हैं, वो यहीं रहता है, उसी ने कहा है, ,,. चचा ने कहा लो फिर आ गए तुम यहां से सरक लो जब माहौल ठण्डा होगा मैं खुद ही तुम्हारे पास आ जाऊंगा। पर ऐसा कब होगा। जल्द ही बस चुनाव निपट जाए फिर तो पूरा मोहल्ला एक होगा। न वो अलग होंगे न मैं अलग होऊंगा। बस चुनाव तक अलगाव रहेगा। मैंने कहा तो चचा ये चुनाव चुनाव खेलना बंद करो। कम से कम आपसी रिश्तों में जहर तो नहीं घुलेगा। इतना कह हम वहां से निकल लिए।....
Monday, March 2, 2009
सोश्यल इंजिनियरिंग की जादूगरी
Thursday, February 26, 2009
बिस्तर पर सुख की नींद का फार्मुला
चचा हंगामी लाल कुछ उदास लग रहे थे। मैंने कहा चचा क्या हुआ आज मुंह क्यों लटका है। ये रोनी सी सूरत क्यों बना रखी है। अरे क्या मुंह लटकाएं अब इस आजाद देश में चैन की नींद सोना भी गुनाह हो गया है। कोई सुख से चैन की नींद सोने की जुगत करे तो उसे जेल पहुंचाने की तैयारियां होनी शुरू हो जाती हैं। चाचा की बात सुनते ही हमारी खोपड़ी घूम गई, सिर भन्ना गया। अरे ऐसा कैसे कह रहे हो। ऐसा भी कहीं होता है। क्या हो गया। चचा बोले अब देखो भाई सुखीराम ने चैन की नींद सोने का ही जुगाड़ तो किया था। सब मिल कर पीछे पड़ गए। मुझे एक बात बताओ, तुम भी तो सोने के लिए डनलप का गद्दा इस्तेमाल करते हो। करते हो न। अब यदि सुखीराम ने सोने के लिए नोटबेड का इस्तेमाल कर लिया तो क्या गलत किया। भाई ये उसकी मजबूरी हो गई थी क्या करता गद्दे के नीचे नोट बिछाए बिना उसे नींद ही नहीं आती थी। और तुमने उसी को मुद्दा बना दिया। हम कहे, पर वो तो इधर-उधर का पैसा था। उसका अपना थोड़े ही था। अरे अपना कैसे नहीं था। अच्छा बताओ उसने पैसा कैसे बनाया। ठेकेदार से ही तो लिया था। तो इसमें क्या गलत किया। मुझे तो एक मेरे परिचित बता रहे थे कि ये तो ठेके के क्लॉज में ही शामिल होता है। तीन से छह प्रतिशत का तो अनलिखा कानून होता है। अब उसने अपना हिस्सा ही तो लिया था। बस उसकी गलती थी तो इतनी की उसने सुख की नींद के लिए उनका बिस्तर बिछा लिया। यदि वो उसे स्विट्जरलैण्ड के बैंक में भेज देता तो कुछ नहीं होता। कोई नहीं बोलता, क्योंकि जो बोल रहे हैं उनके भी दामन साफ नहीं हैं। ... और फिर वो तो जिस कुनबे में रहता था वहां तो हर कोई नोटप्रेमी ही था। मुखिया तक नोट के बल पर राज चला रहे थे। उनका तो कुछ हुआ नहीं बस फंस गया ये बिचारा चैन की नींद सोने का जतन करने वाला। मैंने कहा, पर इससे तुम्हें क्या फर्क पड़ता है। सुखीराम चाहे सोए या चारे की रेल में सफर कर सबको मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाए तुम क्यों परेशान हो रहे हो। चचा बोले, अरे वाह अजीब अहमक हो मैं क्यों परेशान नहीं होऊँ। आज सुबह से ही परेशान हूं। मेरी भी तकिए के नीचे पैसे रखकर सोने की आदत है। कभी किसी ने पकड़ लिया तो। कल ही रात सोते समय जेब में पड़ी रेजगारी तकिए के नीचे रख सो गया था। जरा देर में ही सपना आया की सब तरफ लोग खड़े धिक्कार रहे हैं। तुरन्त नीदं खुल गई एक एक सिक्का टटोलकर हटाया। फिर भी सारी रात नींद नहीं आई। चचा की बात में दम था, हम भी कभी कभार पर्स सिरहाने रख सो जाया करते थे। सो चिंता होना जायज था। मैंने कहा चचा एक बात बताओ ये जब सुखीराम के बिस्तर से नोटों का गद्दा बरामद हुआ था तब जो कोतवाल था वो तो उसका रिश्तेदार था न फिर कैसे फंस गया। अरे वही तो गड़बड़ हो गई उस दौरान कुछ तनातनी सा माहौल चल रहा था। मैंने कहा तो तुम चिन्ता मत करो अपने इलाके का कोतवाल अपना पक्का यार है। कुछ उससे पंगा नहीं पड़ने देंगे। वह दिन रात कहेगा तो रात कहेंगे। तुम मस्त हो कर तकिए के, गद्दे के नीचे मर्जी आए जितने सिक्के रख कर सोओ, (नोट रखने की अपनी हैसियत नहीं है) जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। एक सुखीराम के पकड़े जाने से कुछ नहीं होता यहां तो हर शाख पर सुखीराम हैं जिनके घोंसले नोटों से भरे पड़े हैं।
Wednesday, February 25, 2009
सवाल एक लाख का, जवाब अगली पोस्ट में
आज तो गजब हो गया। चाचा हंगामी लाल सुबह सबेरे ही आ धमके। मैंने उन्हें देखा तो समझा शायद अखबार लेने आए होंगे सो मैंने सारे अखबार उनकी तरफ सरका दिए पर ये क्या उन्होंने अखबारों की तरफ हाथ भी नहीं बढ़ाया। और बोले भइया वो जरा रिमोट देना। मैंने कहा क्यों क्या हो गया ? तो कहने लगे भाई बड़े गजब के आदमी हो, क्या इतना भी नहीं जानते की आज हमारी जय हो होने वाली है। मैंने कहा चचा आपको कैसे पता कि हमारी ही जय हो होगी। शर्तिया हमारी ही जय हो होगी। देख लेना । मैने कहा अच्छा तुम्हें क्या ऑस्कर वालों का फोन आया है जो इतने कॉन्फिडेन्स से कह रहे हो। ऑस्कर वालों का तो नहीं लेकिन यहां के मल्टीप्लेक्स और टीवी चैनल वालों का फोन जरूर आया था। कह रहे थे कि हॉलीवुड के फिल्म प्रोड्युसरों की नजर यहां के मल्टीप्लेक्स पर और टीवी स्क्रीन पर है। उन्हें भरोसा है कि उनकी फिल्मों को यहां देखने वाले मिल जाएंगे। यहां के लोग वहां की फिल्म नहीं देखेंगे तो यहां के विषय औऱ हालात को घोट घाट कर कुछ बनाएंगे जो कमाल कर जाएगा। मैंने कहा चचा फिर भी इतना कॉन्फीडेंस क्यों। तो कहने लगे कल रात स्टीवन स्पीलबर्ग सपने में आए रहे । कहने लगे चाचा मंदी की मार बहुत पड़ रही है। क्या करें कैसे उभरे। फिल्म तो बना देते हैं पर कारोबार नहीं हो रहा। कुछ उपाय बताओ, तो हम कहे देखो इसका बहुत आसान सा रामबाण नुस्खा है, तुम विदेशी सौदागरों को तो पहले से ही पता भी है कि संसार में कुछ कमाने के लिए कुछ बेचना है तो हिन्दुस्तान में बेचो। जम के कमाई होगी। वहां सब केवल खरीदने वाले ही मिलते हैं। अभी कुछ साल पहले तुम लोग ऐसा ही एक चमत्कार कर भी चुके हो। लाइन से सुन्दरियों की लाइन लगा दी थी। नतीजा तुम्हारे ही सामने है वहां का कॉस्मेटिक बजार भारत के भरोसे कुलांचे भरने लगा था। अब फिर से यही चमत्कार दोहराओ। उनकी समझ बात आ गई होगी तो अभी कुछ ही देर में जय हो का नारा बुलन्द हो ही जाएगा। चचा की बात कुछ मेरी भी समझ में आने लगी थी। पांच सात फिल्मों को सही रेस्पोन्स मिल गया तो समझो उनकी लॉटरी लग गई। टीवी पर चलीं तो विज्ञापन का बजट मिल जाएगा। चलो कुछ भी हमारी तो जय हो ही जाएगी। हम यही सोचे बैठे चाय के घूंट लगा रहे थे की चचा हंगामी लाल ने सवाल उछाल दिया, बच्चू तुम्हारे लिए सीधे ही लाख रुपए का सवाल है- जरा जवाब देना
भारत यदि हॉलीवुड का बाजार बन गया तो क्या होगा
- बॉलीवुड के फिल्मकार मौलिक हो जाएंगे, क्योंकि वो जहां से आइडिया चुराते थे वो ही उनके कॉम्पीटिशन में होंगे
- हमारे शाहरुख और सलमान की सिक्स पैक बढ़कर ट्वेल्व पैक हो जाएगी और वो पचपन साल में भी हीरो बने दिखेंगे (वहां तो ऐसा ही होता है)
- हमारे सेंसर बोर्ड की जरूरत ही खत्म हो जाएगी क्योंकि सेंसर बोर्ड भी आखिर कितनी कैंची चलाएगा
- हमारी अंग्रेजी सुधर जाएगी
सही जवाब देने वाले इनामी राशि के चैक के बारे में अगली पोस्ट के बाद ही पता चल पाएगा। मैं भी इस सवाल के जवाब देने की गुत्थी सुलझाने में जुटा हूं आपको जवाब सूझे या कोई और ऑप्शन सूझे जरूर बताएं।