Saturday, March 21, 2009

चुनाव के खेल में अलगाव का जहर

चाचा हंगामी लाल का पिछले कई दिनों से कोई संदेश नहीं था। जाहिर है हमें उनकी चिन्ता होनी थी सो हुई। दफ्तर की व्यस्तताओँ के बीच आज कल करते करते आखिर हमने थोड़ा वक्त निकाला और पहुंच गए उनके घर। मन में घबराए हुए तमाम आशंकाओं को साथ हमने घर की कुण्डी खटखटाई तो, आवाज आई, दरवाजा खुला है, आ जाओ। अन्दर पहुंच कर पाया कि चचा बिल्कुल मजे से टीवी के सामने डटे हुए थे और टीवी पर खबर चल रही थी, वरूण को अग्रिम जमानत...। उन्होंने हमें देखते ही कहा., आओ बर्खुरदार क्या हाल हैं, आखिर हमारी याद आ ही गई। क्या चचा तबियत तो ठीक है। अरे हमारी तबियत का क्या वो तो बिल्कुल ठीकठाक है। इन दिनों बस अरूण-वरूण के हंगामे के चलते जरा टीवी से फुर्सत नहीं मिल रही है। अरे आपको ये अरूण वरूण से क्या लेना देना। अरे लेना देना कैसे नहीं। अरुण की तो फिर भी जाने दो पर वरूण की तो बिल्कुल घर की सी बात है। संजय का खून हमारा कुछ कैसे नहीं लगेगा। बिचारा अकेला पांडव है। आखिर उसका भी तो कुछ हक बनता है राज पर। खैर यह तो उसकी बात है पर हम तो खुद ही बड़े परेशान हैं कल ही सामने वाले ने हमें धमकी दे दी थी कि वह हमें किसी चक्कर में उलझाएगा। हमने तो बस कुछ अपने चौतरें पर खड़े हो कर यही कहा था कि जो भी हमारा दुश्मन हो उसे कीड़े पड़ें लेकिन सामने वाले को क्या सूझा की अपने पूरे कुनबे को लेकर हमें घेर लिया। सब मिल कर कहने लगे हमने उनका ही नहीं उनके पूरे खानदान का अपमान कर दिया औऱ उन्हें बद्दुआ दी है। जिसके लिए हमें खमियाजा भुगतना पड़ेग। इतना ही नहीं चार कोस दूर रहने वाले हमारे भाई के घर पर भी कुछ लोग पहुंच गए, जिन्हें न तो हमारा भाई जानता है और न ही हम, सबकी एक ही रटन्त थी कि हमने उन्हें बद्दुआ दी है। बस इसी मारे हम घर में घुसे बैठे हैं। बाहर निकले कहीं कुछ बोला किसी ने कुछ समझा तो आफत गले पड़ी समझो। इसलिए हमने तो घर में ही रहने में भलाई समझी है। सो दिल लगाने के लिए टीवी देखने लगे तो पता चला कि बिचारा अकेला पांडव भी इसी चक्कर में उलझा पड़ा है। उसका कहना है कि उसने तो किसी के खिलाफ कुछ नहीं कहा। बस अपनी कौम की बहबूदी की दुआ की थी, लेकिन लोगों का क्या जो इसे अपने ऊपर ले बैठे। खैर देखें क्या होता है। जो भी होगा ठीक ही होगा। कोई हमें भी घर से बाहर खुली हवा में सांस लेने का मौका जरूर देगा। हम चुपचाप सकपकाए से चचा का मुंह देख रहे थे कि बाहर शोर उभरा। यहीं हैं, वो यहीं रहता है, उसी ने कहा है, ,,. चचा ने कहा लो फिर आ गए तुम यहां से सरक लो जब माहौल ठण्डा होगा मैं खुद ही तुम्हारे पास आ जाऊंगा। पर ऐसा कब होगा। जल्द ही बस चुनाव निपट जाए फिर तो पूरा मोहल्ला एक होगा। न वो अलग होंगे न मैं अलग होऊंगा। बस चुनाव तक अलगाव रहेगा। मैंने कहा तो चचा ये चुनाव चुनाव खेलना बंद करो। कम से कम आपसी रिश्तों में जहर तो नहीं घुलेगा। इतना कह हम वहां से निकल लिए।....

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