सुबह सुबह मोबाइल की घंटी से नींद टूटना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है, अक्सर ऐसा ही होता है जब मोबाइल हमें गुड मार्निंग कहता है। आज भी जब मोबाइल बजा तो उनींदें से हमने फोन का हरा बटन दबाते हुए कहा, हैलो, लेकिन दूसरी ओर की आवाज सुनते ही हमारी सारी खुमारी हवा हो गई। फोन पर चचा हंगामी लाल हैलो, हैलो कर रहे थे।
क्या चचा, आज इतनी सुबह, सब खैरियत तो है,,
खाक खैरीयत होगी,, लड़ाई किसी की और नुकसान हमारा,,,
क्या नुकसान हो गया चचा, किस की लड़ाई की बात कर रहे हो,,
वो गेंद बल्ला खिलाने वाले अफसर नेताओं के टण्टे मे मेरा हजारों का नुकसान हो गया,,,,
किस की बात कर रहे हो,,
अरे तुम आजकल कहां रहते हो जो तुम्हें खबर ही नहीं, पता है,, यहां होने वाला क्रिकेट मैच अब यहां नहीं होगा,, बडौदा में होगा।
अरे तो उससे तुम्हें क्या,,, तुम तो मैच टीवी पर देख लेना,, फिर चाहे यहां हो या बड़ौदा में,,, तुम्हारी बला से
तुम भी भतीजे,, मैच यहां होता तभी तो हमारी कमाई होती,, अबकी बार प्लान बनाया था कि स्टेडियम के बाहर तिरंगी झंडियां, टोपियां और पेंटिंग का सामान लेकर बैठूंगा,, खूब बिक्री होगी,, तुम तो जानते ही हो कि क्रिकेट इस देश के लोगों के लिए क्या है, भगवान है, और भगवान की तो हम पर कृपा होती ही,,। लेकिन बुरा हो इन आरसीए वालों का। जाने क्या सूझी की आपस में ही लड़ पड़े। अरे भाई जब काम आता नहीं तो क्यों करने चले हो। जो करना जानते हैं उन्हीं को क्यों नहीं करने देते। पर ये खेल का मैदान भी जोरदार है,, खेल तो केवल वही सकता है जिसे खेलना आता हो, लेकिन खिलाने का इन्तजाम करने में पनवाड़ी तक जुट सकता है। जिसकी मर्जी हो जो खेल जाए। अब इनके इस चक्कर में तो मेरा नुकसान हो गया।
हां, चचा सो तो है,, तुम ठीक कह रहे हो, नुकसान तो हो ही गया,, लेकिन क्या करें, हिन्दुस्तान में क्या दुनिया में सभी जगह खेल संघों का ऐसा ही हाल है, हां वहां वो थोड़ा प्रोफेशनल हो जाते हैं, पैसा लगाते हैं और उसकी सही उपयोगिता हो इसकी परवाह करते हैं, यहां तो सब जगह यूं ही चलता है, अब देख लो, हॉकी में भी यही हुआ, मशीन गन थामने वाले हाथ हॉकी स्टिक थामने वालों का चयन करने लगे। बिगड़ते हाल देख सरकार ने नई हॉकी कमेटी भी बना दी लेकिन हॉकी सुधरी क्या। चचा,, यूं उम्मीद करोगे की खेल की हालात सुधर जाएगी तो मुश्किल होगा,, लोग हैं एक दूसरे का विरोध करेंगे ही,, एक को दूसरे का काम बुरा लगेगा ही,,
पर भतीजे यो तो मामला बिगड़ता ही जाएगा, आखिर इस मर्ज की दवा क्या है,,
चचा मैं कोई हकीम लुकमान तो हूं नहीं जो हर मर्ज की दवा मेरे पास हो लेकिन एक बात एकदम साफ है कि हिन्दुस्तान में जम्हूरियत का शासन है,, कामयाबी से चल रहा है, हर पांच साल में चुनाव हो जाते हैं, सरकार बदल जाती है, जब उस सरकार के पास पानी, बिजली, सड़क, शांति व्यवस्था, सुरक्षा, बैंक, का जिम्मा है तो खेल को दोयम दर्जे का मान उसे क्यों यो ही लोगों के हवाले कर दिया गया है,। यदि लोगों के हवाले करना भी है तो कोई व्यवस्था करो। जैसे सहकारिता में होता है, जब चुनाव होंगे तब होंगे, जो जीतेगा वो टर्म पूरी करेगा। यों थोड़ी ना कि बीच मे जब मर्जी आए,, चलो भाई हम बीस लोग हो गए अब हम काम करेंगे तुम चलो घर जाओ,, । बीस लोग उस समय कहां गए थे जब चुनाव हुए थे। कोई कायदा कानून है कि नहीं,, क्या हुआ चचा एकदम सुट्ट क्यों साध गए।
अरे वो तुम्हारी बात ही सोच रहा हूं कि कोई कायदा कानून है कि नहीं, ,, मुझे तो लगतान नहीं की कोई कायदा कानून ही है, होता भी है तो उसे जिसकी लाठी होती है वही अपने हिसाब से बदल देता है। यहां के मर्ज की भी यही दवा है, अमुक आदमी नहीं जीत जाए इसलिए उसके आदमी को वोट ही मत देने दो, कानून ही ऐसे बनाओ की मन चाहा ही जीते। जीत जाएं फिर कानून बदल दो,, फिर भी बात नहीं बने तो अदालत तो है ही जो,, यथा स्थिति बनाने के आदेश तो दे ही देगी।
चचा की बात को कुछ ज्यादा ही गम्भीर होते देख मैंने उन्हें रोकने की गरज से कहा,
चचा, क्यों बेकार में दुबले हो रहे हो, बात झंडिया बेचने की है तो उन्हें तो कभी बेच देंगे,
भतीजे तुम समझ नहीं रहे तो बात जितनी झंडियों के बेचने की है उतनी अपने सूबे के इकबाल की बुलन्दगी की भी है,,, इस सब से सूबे का कितना नुकसान होगा, मुझे तो उसकी चिन्ता है,,
चचा की चिन्ता अब मेरी भी चिंता बन गई थी, शायद सूबे के सभी लोगों की चिन्ता भी बन गई है,, कहीं ये खींचतान सूबे में क्रिकेट की चिता नहीं बन जाए,,,।
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