Friday, October 2, 2009

फोलोइंग गांधी की

शाम चार बजे जब मोबाइल बजा और स्क्रीन पर चचा का नम्बर दिखा तो चौंकना स्वाभाविक था, हमारे चचा सुबह सुबह एक्टिव होते है,, आज बेवक्त क्यों फोन किया,, जरूर कोई खास बात होगी सो हम भी तुरन्त दफ्तर में अपनी सीट से उठकर ( पत्रकार होने का यह भी एक नुकसान है जब सारा देश छुट्टी का मजा लेता है तब आप दफ्तर में काम में जुटे होते हैं) बाहर को सरक लिए ,,
हां , चचा कहो क्या बात है,,,
वो क्या है भतीजे की एक बात मन में आ रही है,, दरअसल सुबह से गांधी जी के बारे में इतनी सारी बातें सुनी हैं कि आज से गांधी जी को फॉलो करने का विचार बन रहा है,,
ये तो बहुत अच्छी बात है, चचा,,, नेकी औऱ पूछ पूछ ,, तुरन्त शुरू कर दो,,
पर यार ,,
अरे इसमें पर वर क्या,,,,
वो बात दरअसल ये है कि गांधी जी को फोलो करने में एक अड़चन है,,, मैं तो अभी ही नया कुरता सिलवा कर लाया था, और गांधी जी तो ऊपर कुछ भी नहीं पहनते थे,,,
अरे चचा ,, पहनने और न पहनने का क्या है, गांधी जी को फोलो करने के लिए क्या कमर नंगी रखनी जरूरी है,, आप तो बिन्दास जो मर्जी आए पहओ और गांधी को फोलो करो,,
हां, कह तो तुम ठीक रहे हो, पर एक शंका और है,,
वो क्या,,
देखो तुम तो जानते ही हो कि अपना धंधा तो लोगों को पैसा देना और ब्याज कमाना है,, अब उस धन्धे मे ब्याज और मूल वसूलने के लिए कभी कभी किसी को पिटवाना भी पड़ता है,, और गांधी जी तो अहिंसा की बात करते थे,,, अब बिना ठोकपीट अपना धंधा कैसे चलेगा,,,,
अरे चचा गांधी जी ने ये थोड़े ही न कहा था कि धंधा मत करो,, घो़ड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या,, सो तुम तो परेशान मत होओ,, धंधा अपनी जगह है,, बिंदास करो,, वैसे भी धंधे के लिए की गई मारपीट हिंसा नहीं होती यह तो कर्तव्य है,,, जो करना ही होगा,
हां,, यह भी ठीक है,, अब बस एक आखरी शंका का समाधान और कर दो,,
वो देखो चचा,, मैं हो रहा हूं लेट, काम का टाइम है,, तुम तो बस इतना करो कि जैसा चल रहा है, वैसा हीचलने दो,, जैसे जी रहे हो वैसे ही जीते रहो,, बस इतना करो कि हर काम से पहले गांधी को याद करो और गांधी बाबा की जय कह कर काम शुरू करो,, आखिर हमारे नेता लोग भी ऐसे ही करते हैं,,
हां, यह ठीक रहा तो आज से हम भी गांधी के फोलोअर हो गए हैं,। अब गांधी का नाम ले कर ब्याज वसूलने निकल पड़ता हूं। तुम भी गांधी को फोलो करो, बहुत बढ़िया रहेगा, बहुत बढ़िया सिद्धान्त है गांधी बाबा के, जय हो महात्मा गांधी की,,,। इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया
हमने भी राहत की सांस ले ,, हे राम कह दफ्तर पर अपनी सीट का रुख किया,,,।

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