Monday, September 28, 2009
अब अगले रावण का इन्तजाम ....
लो फिर जल गया रावण। हर साल हम रावण जलाते हैं। पिछले साल से ज्यादा। मुझे आश्चर्य होता है कि इतने रावण आते कहां से हैं। अब तो नया ट्रेंड चला है, हर घर में रावण जलता है। बच्चे भी रावण जलाते हैं। मानो रावण अब खेल हो गया है। जयपुर में तो बकायदा रावण की मंडी लगती है। जिस आकार प्रकार का रावण चाहिए ले जाओ और जलाओ। परंपरा जब शुरु हुई होगी तो पहले पहल गांव शहर का एक रावण होता होगा। लेकिन अब क्या हो गया जो इतने रावणों की जरूरत पड़ने लग गई। प्रतीक भी समाज का आईना ही होता है। ज्यादा बुराई ज्यादा रावण। ग्लैमराइज्ड बुराई, ग्लैमराइज्ड दहन। चलो कोई बात नहीं,,अगले बरस के लिए फिर से बुराई के रावण तैयार करें, पहले से ज्यादा भव्य हो इसके लिए मेहनत करें। आखिर रावण दहन से ही सत्य की जय होगी। सत की जय के लिए असत का वास जरूरी है। सो सोसाइटी जुटी है असत को जमाने, पालने और पौसने में आखिर अगली बार फिर से विजय पर्व जो मनाना है। खैर... अभी तो आज के पर्व की बधाई स्वीकार करें।...
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