Wednesday, September 23, 2009
चाहिए एफिशिएंट ब्यूरोक्रेसी
कुछ दिन पहले की बात है,, एक बुजुर्ग महिला,उसका चेहरा ही उसकी उम्र को बयां करने के लिए काफी था, कोटा के दौरे पर आई एक मंत्री से वृद्धावस्था पेंशन की गुहार ले कर मिली। मंत्री महोदया ने वही किया जो उन्हें करना चाहिए था, उस बृद्धा को जिला कलेक्टर के पास ले जा कर उसकी मदद करने के लिए कहा। उस वृद्धा को पेंशन मिली या नहीं, मिली यह एक अलग सवाल है,, लेकिन उससे भी बड़ा दूसरा सवाल है कि उस वृद्धा को पेंशन लेने के लिए एक मंत्री का आसरा क्यों लेना पड़ा। जाहिर है मंत्री से मुलाकात से पहले भी वह कई सरकारी कारिन्दों से मिली होगी। लेकिन सरकारी कारिन्दों से उसकी मुलाकात का क्या हश्र हुआ होगा। सोचने वाली बात है। हम इतना बड़ा तंत्र विकसित कर चुके हैं लेकिन तंत्र में एफिशियंसी नहीं ला पाएं हैं। अब हमारी पहली प्राथमिकता तंत्र में एफिशिएंसी लाने की होनी चाहिए। हर कीमत पर हर हालत में एफिशिएंट प्रशासन होने पर ही हमारी तरक्की संभव है,,, ।
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