Friday, September 28, 2007

हर फिक्र को धुंए में उड़ाने वाले देवआनंद


हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया, मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया, बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया.....हम दोनों फिल्म का यह गीत और इस पर देव साहब की अदाकारी का ही कमाल है कि आज भी जाने कितने लोग जब हाथ में सिगरेट थामते हैं तो अपने आप को देव आनंद की शैली में बर्बादी पर जश्न मनाने का सा अहसास कराते हैं। कभी बुड्ढे नहीं होने का दम भरने वाले देव आनंद वाकई बुड्ढे नहीं हुए हैं। 85 बरस की इस उम्र में जब अच्छे लोग जवाब दे जाते हैं, देव साहब रोमांसिंग विद देवआंनद के साथ एक बार फिर चर्चा में हैं। उनकी यह सदा जवान बने रहने की कोशिश कहीं सच से मुहं चुराने की जुगत तो नहीं लगती..नहीं देव साहब एक ऐसे शख्स के रूप में सामने आए हैं जो हर वक्त अपनी पहचान के आस पास रहना चाहता है। कुछ लोग इसे भले ही कुछ भी कहें पर मैं तो इसे जीवटता को सलाम ही कहूंगा। टीवी पर जब भी उनकी फिल्म देखता हूं लगता है, जैसे अपनों के बीच से कोई आम इंसान सा नायक। जो बहुत रोमानी है, पर हम सा ही है। जिसमें यदि कुछ खास है तो अंदाज...।यही तो अंदाज है देवअंदाज...यह सब कुछ केवल उनके आदर में.....सम्मान में.....
- अभिषेक

1 comment:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

देव आनंद की शख्सियत को आपने बहुत खूबसूरती से शब्दों में क़ैद किया है. बधाई.
हम लोगों को नाज़ है कि हम उस पीढी के हैं जिसने देव आनन्द के जादू को देखा-जिया है.

दुर्गाप्रसाद