Monday, September 17, 2007

लालू की हो़ड़ में मुशर्रफ और पाकिस्तान का लोकतंत्र

अभिषेक
इन दिनों पाकिस्तान से कई खबरें लगातार आ रही हैं। पहले नवाज शरीफ की घर वापसी को लेकर कई दिनों से हंगामा मचा रहा फिर बात बेनजीर भुट्टो के मियां मुशर्रफ के साथ कथित समझौते के किस्से हवा में तैर रहे थे। कि हवा में एक नया ही शगूफा छिड़ गया है,लेकिन अबकि बार मामला थोड़ा गम्भीर हो गया है।दरअसल बात पाकिस्तान तक ही रहती तो ठीक थी, पर बात हिन्दुस्तान तक आ गई है। पाकिस्तानी हुक्मरान हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं का अनुकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। सुना है मुशर्रफ लालू की तर्ज पर अपनी बेगम सबिहा को प्रेसीडेंट का चुनाव लड़ाना चाहते हैं। बस यहीं से मामला गम्भीर हो गया है। बड़े बड़े मसलों पर गम्भीर होने से इंकार कर देने वाले आईआईएम के कॉरपोरेट ट्रेनर लालू भी गम्भीर लग रहे हैं।
कहने लगे ये भी भला कोई बात हुई। ये हमारा लोकतांत्रिक तरीका मुशर्रफ को नहीं अपनाना चाहिए। अरे भाई उसे का जरुरत है, ये सब करने की। उस पर थोड़े ही न कोई गयैन का चारा खाबै का केस चल रहा है। केवल कपड़न का ही तो मामला है। क्या फर्क पड़ता है जो हरा नहीं सफेद पहन ले। पर हमारा फार्मुला तो नहीं चुराए। हम कितनी मुश्किल से ये लोकतांत्रिक टूल डिजाइन किए थे। राबड़ी को रसोई से निकाल कर कुर्सी पर बैठा दिये। सबकुछ कितना मुस्किल था। हम तो इस फार्मुला को पेटेंट भी नहीं करवा सके मुशर्रफ इसे अपनाने चला है। पर कोई नहीं अभी कुछ नहीं बिगड़ा है हम तुरन्त ही इसे पेटेंट करवा देते हैं। ऊ को बिना रॉयल्टी लिए नहीं छोड़े। रॉयल्टी भी लेनी जरूरी है। दरअसल असल बात है कि हमें रुपए पैसे का लालच नहीं है। वो तो चारा जैसे कई मामलों में बहुत सारा इकट्ठा हो गया है। बात है हमारी परम्पराओं की। वो पाकिस्तान के लोग कैसे एक दम से हड़प लेंगे। बात हमारे स्वाभिमान की है, आज मेरा फार्मुला चुराया है कल को कोई रथ यात्रा निकालने लगा तो। कोइ और नहीं तो हमारे यहां जैसा लाल सलाम वाला मामला वहां भी हो गया तो हमारे यहां के लाल सलाम वालों का क्या होगा। अभी तो वे संसार में लाल सलाम वालों कि प्रजाति के गिने चुने प्राणियों में कुछ हैं। उन्हें संसार में लाल सलाम के पुरावशेष होने का गर्व है पर यदि उनसे यह गर्व का भाव छिन गया तो सोचो क्या होगा। वे कई मामलों की पैरोकारी करनी बंद कर देंगे। और देश को उनके से सजग पैरोकारों से मरहम रहना पड़ सकता है। यदि एसा हो जाएगा तो संसद नियमित चलने लगेगी। सांसदों को सदन में बैठना पड़ेगा, एसा हो गया तो अक्सर क्षेत्र के दौरे के नाम पर किसी रमणीय सथल की यात्रा करने वाले नेता जी को संसद में बैठना पड़ेगा। देश के जाने कितने आलतू फालतू के मसलों को पारित करना पड़ेगा। सरकार ने अब तक जिन मुद्दों को लोकहित में अटका रखा था उन्हें बाहर निकालना पड़ेगा। और भी पता नहीं क्या क्या हो जाएगा। इसलिए यदि कोई इसे पाकिस्तान का घरेलु मामला कहे तो वह गलत होगा। कैसे भी करके उसे इस से रोकना होगा। पर फिर क्या गारंटी है वह इसी प्रकार के परिणाम वाला मनमोहनीय डिप्लोमेटिक डेमोक्रेटिक टूल का इस्तेमाल नहीं कर देगा। उसमें तो ज्यादा फायदे है। खुद तो त्याग कर दो और सारा खेल किसी ओऱ के हाथ में दे दो। खुद को केवल अपने हाथों की कुछ उंगलियों में डोर बांधनी होगी और समय समय पर उसको हलका हलका दायें बायें भर करना है । कुल मिला कर हमारे लोकतांत्रिक टूल्स पर पाकिस्तानी हुक्मरानों की नजर पड़ चुकी है। देखना है तो सिर्फ ये कि हमारे अपने हुक्मरान किस प्रकार इस चक्रव्यूह से बचते हैं या अपना अनूठापन और विश्वगुरू की पदवी बरकरार रखने के लिए कोई नया लोकतांत्रिक मॉ़डल प्रस्तुत करते हैं।