Saturday, September 15, 2007

सेतु समुद्रम के बहाने ही सही ....

- अभिषेक

भारतीय राजनीति एक बार फिर से राम के इर्द गिर्द ध्रुवित होने लगी है। पहले राजीव के राम और बाद में भाजपा के राम को मनमोहन के राम ने पीछे छोड़ दिया है। यह नव वैश्विकरण का एक और आयाम है, इससे आम तौर पर भारतवासी अनभिज्ञ थे। माना यही जाता था कि भारत में राम और कृष्ण के अस्तित्व पर बात करना यह कहना होगा कि सूरज रात्रि में निकलता है। पर यह मनमोहन सरकार का ही कमाल है कि अब तक सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों की ठीक प्रकार से देखभाल तक नहीं कर पाने वाली आर्कियोलॉजी सर्वे अब राम के होने ना होने का हिसाब लगा रही है। जहां दिन की शुरुआत ही राम- राम से होती है, वहां राम ही नहीं हैं। वाकई कितनी बड़ी चिन्ता की बात हो गई। है। पर सरकार को सद्बबुद्धी आ गई। गलती सुधर गई है। अब राम हैं। एक दिन पहले नहीं थे। पर अब हैं। सेतुसमुद्रम से होने वाले फायदे नुकसान का तो पता नहीं पर हां अगले चुनाव के लिए राम एक बार फिर मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करने के लिए हाजिर हो गए हैं। अब किसे परवाह है महंगाई की या मंत्री महोदय के रिश्वतखोर होने की । अब तो सबकुछ भगवान राम ही तय करेंगे।
पहले भी कई बार राम ने ही कईयों की चुनावी वैतरणी को तारा था। इस बार भी कईयों को चुनावी समुद्र से पार उतारने के लिए राम सेतु के रूप में सामने आ गए हैं। इसे भी विडम्बना ही कहेंगे कि राम को सामने लाने और उन्हें सकुशल (वनपीस)बनाए रखने का श्रेय इस बार जिस दल को जाता है, उस दल का तो दावा ही राम से दूरी बनाए रखने का है। और जो दल अब तक राम को कभी आगे तो कभी पीछे रख कर अपना काम और नाम चला रहा था उसका इस सारे खेल में केवल दर्शक का सा नाता रहा। हमेशा गरीब का हाथ कहलाने वाले हाथ ने ही इस बार सारा कमाल दिखा दिया। पहले कहा राम कभी थे ही नहीं। फिर कहा राम पर कोई सवाल नहीं। यानी हमने राम को बचा लिया। देश के लिए बचा लिया। पर इस सबसे राम के नाम को आधार बना कर जी रही पार्टी को जीवनदान मिल गया। बरसों तक लौहपुरुष होने का विश्वास पाले रथ के सवार जो सब कुछ त्याग कर वनवास को चले गए थे। यकायक वनवास से लौट कर आ गए। तुरन्त हुंकार भरी। लौहपुरुष सा लौहत्व दिखाया। उनकी इस हुंकार ने एक और त्याग की मूर्ति का मन द्रवित कर दिया। अब तक केवल रोम की चिन्ता करने वाली नारी को राम की चिन्ता होने लगी। नतीजा रहा कि राम नववैश्विक करण के नए मॉडल बनने से बच गए। और अगले चुनाव तक तो सब को तार गए। अब कोई चिन्ता नहीं, चीनी, प्याज भले ही कोई भाव मिले उन्हें कोई फिकर नहीं।
मनमोहन राम में रम गए हैं, प्रकाश और सीताराम को भी राम भा गए हैं, वन टू थ्री अब नौ दो ग्यारह हो गया है।



सच ही हैराम नाम की लूट है लूट सके तो लूट........

1 comment:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है अभिषेक.
वास्तव में यह एक अजीब दुनिया है.रोजी रोटी से भी बडा स्वाल है राम का. क्या फ्रक़ पडता है कि राम सेतु किसने बनाया, बनाया भी या नहीं? मैं सलाम करना चाहता हूं राजनीति के उन उस्तादों को जो एक नॉन इस्यू को इस्यू बनाने की काबलियत रखत् हैं.इनके लिए सब कुछ आस्था पर निर्भर है, और आस्था भी वह जिसे ये निर्मित कर डालें. बोलो जय श्री राम!