लड़कियां-लड़कियां-लड़कियां ही लड़कियां, जिधर देखो उधर लड़कियां जाने अपनी अतिशय खूबसूरती के कारण या बदसूरती के कारण, लेकिन स्कार्फ बांधे चेहरा छुपाए, टाइट जींस औऱ शॉर्ट और बदन से चिपके हुए टॉप में अपने बदन के आकारों की नुमाइश करती लड़कियां। दो-दो चार चार के समूह में लड़कियां, हंसती खिलखिलाती औऱ किसी लड़के को अपनी और देखता पा कर झटका सा खाती लड़कियां। सड़क के इस छोर से उस छोर तक जहां देखो वहां खड़ी हैं लड़कियां।
शहर के एक मशहूर गर्ल्स कॉलेज के आगे से गुजरिए लड़कियां दिखाई देंगी। आप कहेंगे लड़कियां गर्ल्स कॉलेज बाहर नहीं तो क्या किसी ओनली फॉर बॉयज कॉलेज के बाहर दिखेंगी? सही है बात सामान्य है पर नजारा खास है। कॉलेज के बाह
र एक सर्कल है औऱ सर्कल जाहिर है चौराहे के बीच है। जब चौराहा है तो चार रास्ते भी हैं। एक रास्ता देश के प्रथम प्रधानमंत्री के नाम पर है तो दूसरा विश्वविद्यालय के घने जंगलों में खोना चाहता है। जो चौथा रास्ता है वो शहर की एक अन्य जीवनरेखा जा मिलता है औऱ अपने आप में मील का पत्थर है। कहने को यह रास्ता महज लिंक रोड है लेकिन जानने वाले जानते हैं कि यह आम रास्ता कितना खास है।
सूबे के बहुत से खास लोगों की ख्वाबगाह इसी रास्ते पर है। तो हम जान रहे थे कि ये लिंक रोड खास क्यों है। शुरुआत में ही जिन ढकी सी उघड़ी सी, शर्मिली सी, बेहया सी लड़कियों का जिक्र हुआ है वे अक्सर इसी लिंक रोड पर पाई जाती हैं। वैसे तो यह लिंक रोड छोटी सी है कुछ सौ मीटर लम्बी। पर आशिकमिजाज लोग इसे पार करने में घण्टों लगा देते हैं। उन्हें आशिकमिजाज कहना आशिकी की तौहीन हो सकती है। पर इस लिंक रोड पर ऐसी कई तौहीनें रोज होती रहती है।
लड़की धीमे- धीमे चली जा रही है। पीछे पीछे एक लड़का चला जा रहा है। लड़के के होठ हिल रहे हैं। मानो कुछ कह रहा है, लगता है लड़की सुन रही है, तभी तो बार बार उसका सिर हिलता जा रहा है, राम जाने हां कर रही है या नो कमेंट्स कह रही है। पर चाल बदस्तूर जारी है। सड़क खत्म हो रही है पर बात खत्म नहीं हो रही । न लड़की टल रही है न लड़का हट छोड़ रहा है। बात पूरी नहीं हुई इसलिए लड़की ने साइड बदली औऱ वापस चलना शुरु कर दिया। अब तक जो ट्रेक अप था अब डाउन हो गया है। ट्रेन पहले जा रही थी अब आ रही है। सिचुएशन वही है, अब लड़के के हाथ भी हिल रहे हैं। दोनों के बीच गैप कम हो गया है। लड़की अब सिर हिलाते हिलाते बीच बीच में कभी कभार हंस भी रही है। वापस सड़क खत्म हो रही है। और ये क्या सड़क खत्म हो गई। लड़की फुटपाथ के एक किनारे पर ठहर गई। उसे ठहरा देख लड़के ने अपना हाथ हवा में हिलाया और एक होंडा मोटरसाइकिल आ कर लड़के के पास रुक गई। मोटरसाइकिल लाने वाले सज्जन ने बड़ी आत्मीयता से उतर कर हेलमेट लड़के को थमाया। तब तक कुछ दूर खड़ी लड़की ने स्कार्फ निकाल और मुहं पर बांधने लगी। लड़के ने हेलमेट पहना औऱ मोटरसाइकिल पर सवार हो किक से उसे स्टार्ट किया। मोटरसाइकिल घुमाई और लड़की के पास रोकी। देखने वाले समझ रहे थे कि दोनों के बीच सब खत्म हो गया लेकिन ये क्या, लड़की बिना समय गंवाए मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठी और मोटरसाइकिल ये जा और वो जा.......।
इस दौरान लिंक रोड पर लड़कियों की संख्या बराबर उतनी ही बनी हुई थी। हां, इस बीच लड़कों के साथ बाइक पर बैठ कर जाने वाली लड़कियों की तादाद भी खासी थी। कुल मिला कर लिंक रोड लड़कियों को कॉलेज से शहर की जीवन रेखा मानी जाने वाली सड़क तक तो पहुंचा ही रही है, लेकिन साथ ही उनकी जीवन रेखा भी संवार रही है। है ना कमाल, लिंक रोड। आपके शहर में भी ऐसी कई लिंक रोड होंगी जरा कुछ देर रुक कर देखिएगा कैसे रोचक नजारे होते हैं। मुस्करा ना पड़ें तो कहियेगा।
शहर के एक मशहूर गर्ल्स कॉलेज के आगे से गुजरिए लड़कियां दिखाई देंगी। आप कहेंगे लड़कियां गर्ल्स कॉलेज बाहर नहीं तो क्या किसी ओनली फॉर बॉयज कॉलेज के बाहर दिखेंगी? सही है बात सामान्य है पर नजारा खास है। कॉलेज के बाह

सूबे के बहुत से खास लोगों की ख्वाबगाह इसी रास्ते पर है। तो हम जान रहे थे कि ये लिंक रोड खास क्यों है। शुरुआत में ही जिन ढकी सी उघड़ी सी, शर्मिली सी, बेहया सी लड़कियों का जिक्र हुआ है वे अक्सर इसी लिंक रोड पर पाई जाती हैं। वैसे तो यह लिंक रोड छोटी सी है कुछ सौ मीटर लम्बी। पर आशिकमिजाज लोग इसे पार करने में घण्टों लगा देते हैं। उन्हें आशिकमिजाज कहना आशिकी की तौहीन हो सकती है। पर इस लिंक रोड पर ऐसी कई तौहीनें रोज होती रहती है।
लड़की धीमे- धीमे चली जा रही है। पीछे पीछे एक लड़का चला जा रहा है। लड़के के होठ हिल रहे हैं। मानो कुछ कह रहा है, लगता है लड़की सुन रही है, तभी तो बार बार उसका सिर हिलता जा रहा है, राम जाने हां कर रही है या नो कमेंट्स कह रही है। पर चाल बदस्तूर जारी है। सड़क खत्म हो रही है पर बात खत्म नहीं हो रही । न लड़की टल रही है न लड़का हट छोड़ रहा है। बात पूरी नहीं हुई इसलिए लड़की ने साइड बदली औऱ वापस चलना शुरु कर दिया। अब तक जो ट्रेक अप था अब डाउन हो गया है। ट्रेन पहले जा रही थी अब आ रही है। सिचुएशन वही है, अब लड़के के हाथ भी हिल रहे हैं। दोनों के बीच गैप कम हो गया है। लड़की अब सिर हिलाते हिलाते बीच बीच में कभी कभार हंस भी रही है। वापस सड़क खत्म हो रही है। और ये क्या सड़क खत्म हो गई। लड़की फुटपाथ के एक किनारे पर ठहर गई। उसे ठहरा देख लड़के ने अपना हाथ हवा में हिलाया और एक होंडा मोटरसाइकिल आ कर लड़के के पास रुक गई। मोटरसाइकिल लाने वाले सज्जन ने बड़ी आत्मीयता से उतर कर हेलमेट लड़के को थमाया। तब तक कुछ दूर खड़ी लड़की ने स्कार्फ निकाल और मुहं पर बांधने लगी। लड़के ने हेलमेट पहना औऱ मोटरसाइकिल पर सवार हो किक से उसे स्टार्ट किया। मोटरसाइकिल घुमाई और लड़की के पास रोकी। देखने वाले समझ रहे थे कि दोनों के बीच सब खत्म हो गया लेकिन ये क्या, लड़की बिना समय गंवाए मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठी और मोटरसाइकिल ये जा और वो जा.......।
इस दौरान लिंक रोड पर लड़कियों की संख्या बराबर उतनी ही बनी हुई थी। हां, इस बीच लड़कों के साथ बाइक पर बैठ कर जाने वाली लड़कियों की तादाद भी खासी थी। कुल मिला कर लिंक रोड लड़कियों को कॉलेज से शहर की जीवन रेखा मानी जाने वाली सड़क तक तो पहुंचा ही रही है, लेकिन साथ ही उनकी जीवन रेखा भी संवार रही है। है ना कमाल, लिंक रोड। आपके शहर में भी ऐसी कई लिंक रोड होंगी जरा कुछ देर रुक कर देखिएगा कैसे रोचक नजारे होते हैं। मुस्करा ना पड़ें तो कहियेगा।
5 comments:
वाकई!
haan sanjeet ji,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
jara najar ghumaiye har aur gopiyan dikhengi, kanha ki talaash main.........
बहुत खूब लिखा
इस लिंक रोड से हम भी गुजरे और कनोडिया कॉलेज की लडकियों को वहां से गुजरते हुए अपन ने भी देखा
बहुत ही खूबसूरत तरीके से आपने पेश किया
बधाई
dhanyawad , rajiv ji,,,,,
लम्बे इन्तजार के बाद आिखर अिभषेक बाबू,
आपकी िजन्दगी के िलंक का पता चल ही गया। खुलासा करने की जो िदलेरी िदखाई, इसके िलए िनस्संदेह बधाई के पात्र हैं। बधाई।
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