
जयपुर को आप किस रूप में जानते हैं, जाहिर है गुलाबी शहर के रूप में या देश के पहले नियोजित शहर के रूप में ही जानते होंगे। बहुत ज्यादा हुआ तो अब रिअल एस्टेट के क्षेत्र में उभरते बड़े डेस्टिनेशन के रूप में जानते होंगे। राजस्थान की राजधानी के रूप में भी आपका इससे परिचय तो होगा ही। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि यह शहर पानी के लिए भी जाना जाएगा। और वो भी नेगेटिव रूप में। इन दिनों जयपुर में पानी अमृत नहीं है। यहां दूषित पानी पीने से लोग मर रहे हैं। भारत के सबसे बड़े राज्य की राजधानी में पिछले कई दिनों से यह कहर बरप रहा है। सड़ी गली पाइप लाइनों में मिले सीवर के मल ने नल से निकल कर लोगों के प्राण हरने शुरु कर दिये हैं। जब से जयपुर आया हूं यहां के अखबारों में एक खबर हर दूसरे तीसरे रोज एक स्थायी कॉलम की तरह पढ़ता आया हूं। नलों से निकला लाल पानी। बदबूदार पानी, या नीला पानी। यानी पानी के दूषित होने की बात कहने वाले समाचार यहां के अखबारों की पेज तीन की लीड बनते आये हैं। लेकिन जाने क्या बात है कि इतना सब होने के बाद भी कभी यहां की पेयजल व्यवस्था दुरुस्त नहीं हुई। अब जब दूषित पानी से मौतों का सिलसिला शुरु हुआ है अफसर औऱ मंत्री अपना मुंह छिपाते घूम रहे हैं । लेकिन इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ना। हम हिन्दुस्तानियों की फितरत ही एेसी है कि हमसे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, खुद हमें भी नहीं। कुछ दिन हम हल्ला मचाएंगे, जोर जोर से चिल्लाएंगे। और फिर चुप हो जाएंगे। चुप्पी तब तक जब तक फिर से कोई घटना नहीं घट जाए। फिर हल्ला औऱ फिर चुप्पी। यही क्रम है । और इस क्रम को सरकारी बाबुओं अफसरों की जमात अच्छी तरह समझ चुकी है। वो बर मौके का इन्तजार करती है,कब किस गाय से कितना दूध दूहना है,कब उसे बेकार कह उसकी बोली लगानी है,कब उसका रोम रोम बेच खाना है, और कब उसके बिक जाने पर हल्ला कर लोगों को याद दिलाना है कि है कि गाय तो हमारे लिए पूजनीय है, जो हुआ सो हुआ पर अब यह सुनिश्चित करना है कि फिर कोई दूसरा गाय का दूध न दूह पाए। लोग इकट्ठे होंगे हां, में हां मिलाएंगे, वाह क्या अफसर है, कहेंगे। और दूसरे दिन उसी अफसर के हाथों किसी अन्य गाय का दूध दूहे जाते देखेंगे। यही हाल जयपुर के जलदाय विभाग के अफसरों का है। सालों से खराब पाइप लाइन की दुहाई दे रहे हैं। लेकिन हर बार साल छह महीने में बदल जाने की खबरें प्रकाशित कर इतिश्री कर देतेहैं । जाने हकीकत में पाइपलाइन बदलती भी या नहीं। बस हमारी तो एक ही दुआ है कि कम से कम भगवान तो जयपुर पर कृपा बनाए रखें और गोविन्ददेव जी के इस शहर में अब पानी अमृत की जगह जहर न बने।

1 comment:
अिभषेकजी, पानी के बाद अब और न सही जश्न पर ही िलख दीिजए।
Post a Comment