Saturday, October 27, 2007

गोधरा को क्यों नही छोड़ता मीडिया

- अभिषेक

गोधरा और गुजरात इतने अर्से बाद भी मीडिया की सुर्खियां हैं, हर बार एक ही नजर से। लेकिन मैं आज नजर की बात नहीं करूंगा। मैं बात करूंगा मीडिया की जिम्मेदार होने की। पिछले दो दिन से स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर जो कुछ चैनलों पर जो कुछ दिखाया जा रहा है वो कितने गोधरा औऱ गुजरात रच देगा इसकी किसीको परवाह है। इसमें कोई शक नहीं कि जो हुआ वो दुखःद था। चाहे पहले की दुर्घटना सुनियोजित थी या बाद में प्रतिक्रिया के रूप में भीड़ की अराजक और अमानवीय कार्रवाई किसी साजिश का हिस्सा रही हों,कुल मिलाकर दोनों ही हादसे मानवीयता के प्रतिकूल और कलंक थे। इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं,गुनहगार हैं, उसके लिए हमारा तंत्र है, राज्य सरकार पर भरोसा नहीं तो केन्द्र सरकार है। केन्द्रीय एजेंसियां हैं। उनकी जांच में जो सामने आता है वो न्यायालय में पेश हो और वहां से जो निर्णय हो उसका पालन हो।
मीडिया को तो ऐसी किसी जांच की छूट नहीं होनी चाहिए। चलिए कोई मीडिया की खोजी ताकत को अंगीकार कर छूट ले भी लेता हो तो उससे जिम्मेदारी से काम लेने की अपेक्षा की जाती है। लेकिन लगता है टीआरपी की सुर्खियों ने मीडीया के जिम्मेदारी को निगल लिया है। तभी तहलका का कलंक पूरे उत्साह के साथ तमाम हिन्दुस्तान के लोगों को दिखाया जा रहा है। चंद लोगों के बयान से बताया जा रहा है कि गुजरात का सच क्या था। हो सकता है कि तहलका के इस स्टिंग में जो बाते कही गई हैं वो बातें उन लोगो ने कही हों। लेकिन ऐसा होने पर भी इन बयानों को सीधे सार्वजनिक करने की बजाय जांच एंजेसियों को सौंप जाना चाहिए था.जांच एजेंसियों और अन्य की राय के बाद इन्हें सार्वजनिक किया जाना था। इन दिनों एक चिन्ता और तेजी से वास्तविक समस्या के रूप में सिर उठाने लगी है, और वह है मीडिया की प्रतिबद्धता। सामान्यतया मीडिया हाउस किसी न किसी राजनैतिक दल या विचारधारा से जुड़े हुए पाए जाते रहे हैं। लेकिन फिर भी वे निष्पक्षता के एक धागे से बंधे दिखाई देते रहे हैं। लेकिन अब यह धागा टूटता दिख रहा है और मीडिया हाउस सीधे तौर पर अपने राजनैतिक विचार को पोषित करने और विरोधी विचार को हतोत्साहित करते दिखाई देने लगे हैं। आप सोचिए तहलका की स्टिंग टीम के अब तक के सारे शिकार राजग के घटक ही क्यों हुए। संघ, भाजपा से जुड़े लोगों की ही पोल खोलने के लिए तहलका क्यों जुटा रहा है। क्यों नहीं अन्य दलों के लोगों के लिए तहलका का स्टिंग जाल फैला। हो सकता हो यह संयोग वश ही हुआ कि तहलका के न्यूजरूम में एन्टी एनडीए खबरों को ही बड़ी खबर माना गया हो। लेकिन ऐसा संयोग सवाल खड़े करता है औऱ जवाब भी मांगता है।

लुआब यह कि,दूसरों कि निष्पक्षता और कर्तव्यपरायणता पर उंगली उठाने वाले मीडिया को स्वयं भी इन सबकों को याद रखना होगा तभी यह चौथा स्तंभ, स्तंभ के रूप में खड़ा रह पाएगा।

7 comments:

आस्तीन का अजगर said...

एक पत्रकार होकर आप कह रहे हैं कि मीडिया को सच जनहित में सार्वजनिक करने की बजाय उन जांच एजेंसियों को सौंप देना चाहिए, जो खुद या तो संदेह के घेरे में हैं या फिर शक्तिविहीन. ब्रिटिश पत्रकारिता के बहुत प्रसिद्ध संपादक सर हैराल्ड इवान्स ने कहा था कि ख़बर तो वही है जो कोई कहीं छिपा रहा है. चैनलों का प्रसारण रोककर गुजरात की सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी अपनी आपराधिक भूमिका से बचने और उसे छिपाने की कोशिश कर रही है. पत्रकारिता परिभाषा एन एक्ट ऑफ करेज भी है. तभी जो बातें अभी तक सिर्फ आरोप थी और जिन बातों का भगवा लोग सुबूत मांग रहे थे, अब सुबूतों के साथ सामने आ रही हैं. मीडिया सच का धंधा है, बॉस. भले ही खटकता हो.

राजीव जैन said...

अभिषेक जी शायद

अजगर साहब ज्‍यादा सही फरमा रहें हैं।
खैर जो भी हो, लेकिन एक बात है क‍ि तब का सच आज गुजरात में चुनाव से ऐन पहले क्‍यूं दिखाया जा रहा है। कहीं न कहीं दाल काल है और इतने सारे को इन्‍सीडेन्‍स एकसाथ नहीं होते।

निशाचर said...

Janab Azagar saheb aapka sting kahan tak sahi hai....... wah badbolapan bhi ho sakta hai........ Kya kaha, Nahi?? ........ to phir suniye GANDHI JI KO GOLI MAINE MARI THEE..ye main khuleaam kaheta hoon .....kisi sting operation ki jarurat nahi........ KYA AAP ISE SACH MANENGE?????????

Anonymous said...

अभिषेक साहब, आज क्‍यों जलन हो रही है। पत्रकार होकर ऐसी बातें करना आपको शोभा नहीं देती है।

Anonymous said...

आप औरंगजेब को क्‍यों नहीं भूलते?

आस्तीन का अजगर said...

आपके या नाथूराम गोड़से के मारने से गांधीजी मर तो नहीं गये, मौर्य जी. दुनिया को देने के लिए भारत के पास दो ही लोग हैं - गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी. और ये बात कहने वाले लोगों में नेल्सन मंडेला, आइंस्टाइन, चार्ली चैपलिन, बर्टंड रसल जैसे लोग शामिल हैं. नोबेल शांति पुरस्कार समिति ने अफसोस जताया है बापू को नोबेल नहीं दे पाने पर. और आपकी मासूमियत पर बलिहारी हैं कि भगवा ब्रिगेड की बातों को बड़बोला कहकर आप रक्तरंजित सच को सबसिडाइज करने की ग़लत कोशिश कर रहे हैं. तहलका एक्सपोज की जो बातें हैं वे सिर्फ भगवा ब्रिगेड के बारे में नहीं है, वे सरकारी और संवैधानिक पदों की गरिमा और शुचिता को अशुद्ध करने के भी बारे में हैं. अगर ये बड़बोलापन हैं मौर्य साहब तो नरसंहार कैसे हो गया 2000 इंसानों का.

आस्तीन का अजगर said...

और गांधी को आपने या गोड़से ने मारा तो नरेंद्र मोदी उनका और उनके गुरूजी लालकृष्ण आडवानी जिन्ना का गुणगान उसी मुंह से कैसे कर लेते हैं, जिस मुंह से नरसंहारों को सही बताते हैं. औरंगजेब के समय भारत कोई गणराज्य नहीं था, कोई संविधान नहीं था. संघ और भाजपा भी नहीं थी. अगर औरंगजेब इतना बुरा था तो उसका हिसाब तभी क्यों नहीं किया.तब भी तो हिंदू बहुसंख्य थे.अगर औरंगजेब बुरा था तो जिन्ना इतने अच्छे कैसे हो गये. मौर्य साहब.