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6 अक्टूबर के ब्लॉग में भाजपा-शिवसेना के बीच वोटों के ध्रवीकरण और बिखराव के दोस्ताना मैच के बारे में बताया गया था। |
शाह आधुनिक चाणक्य तो मोदी चंद्रगुप्त मौर्य
लो जी महाराष्ट्र और हरियाणा में ईवीएम से जिन्न निकल आया। और यह जिन्न कोई अकस्मात नहीं निकला। इसके लिए ईवीएम को भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने बहुत करीने से अलग अलग अंदाज में कई तरीके से घिसा। तब ही तो महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना की महायुति ने बहुत अच्छे तरीके से दोस्ताना लड़ाई लड़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वियों को चारों खाने चित्त कर दिया। दोनों ने 288 सदस्यों वाले सदन में 177 सीटों पर बढ़त बनाई है जो स्पष्ट बहुमत से कहीं आगे है। यह परिणाम तमाम राजनीतिक पंडितों के लिए भले ही चौंकाने वाले हों पर इस ब्लॉग में गत 6 अक्टूबर को ही यह स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूटना एक सोची समझी रणनीति के तहत उठाया गया कदम है। वोटों के बिखराव और ध्रुवीकरण को ध्यान में रख कर यह बिसात बिछाई गई और वह बिसात पूरी तरह कामयाब साबित हुई। भाजपा ने 112 और शिवसेना 63 सीटों पर बढ़त बना रखी है। पूरे चुनाव अभियान के दौरान इसी वजह से भाजपा ने बाला साहेब ठाकरे के सम्मान के नाम पर शिवसेना के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की। अमित शाह की रणनीति में शिवसेना अपने आपको ज्यादा सहज नहीं पा रही थी, क्योंकि उसे पहले से ही यह पता था कि उसका कद हर हाल में घटने जा रहा है, इसलिए सेना ने सामना के जरिए नरेंन्द्र मोदी पर जम कर जहर उगलने की कोशिश की और उनकी तुलना अफजल खान तक से कर दी। पर कहते हैं न कि अन्त भला तो सब भला। महाराष्ट्र में भाजपा-सेना का भगवा एक बार फिर से लहरा रहा है।
वहीं हरियाणा में भाजपा
अकेले के दम पर सरकार बनाने जा रही है। कभी तीन लाल, देवीलाल-बंसीलाल-भजनलाल, की
राजनीति का अखाड़ा रहे हरियाणा में कोई भी भाजपा को स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ता नहीं
देख रहा था। वहां कि जातिवादी राजनीति के तार इस तरह से गुंथे हुए हैं कि पार्टी
से ज्यादा खाप हावी रहती है इसलिए दशकों तक पहले तीनों लाल और फिर उनके
उत्तराधिकारियों ने हरियाणा को अपनी बपौति की तरह बनाए रखा। वहां महज चार विधायकों
के साथ बिना किसी चेहरे को आगे कर भाजपा ने जीत दर्ज की है तो इसमें भी सारी
रणनीति अमित शाह की ही है। अमित शाह ने ही चुनाव से पहले ही चुन चुन कर नेताओं को
भाजपा में शामिल किया। किसी को भी नेता घोषित नहीं किया। कुलदीप विश्नोई की पार्टी
से चल रहे गठबंधन को बाहर का रास्ता दिखाया। अकालियों के जरिए आईएनएलडी को हवा दी
ताकि वह कांग्रेस के वोट काटे और अंततः भाजपा प्रत्याशी विजयी वोट हासिल करे।
साफ है कि भाजपा ने यह
चुनाव विचारधारा, एजेंडे से कहीं ज्यादा पूरी तरह से चुनावी वोट की कतर ब्यौंत के
फार्मुले पर लड़ा और मोदी के चेहरे को आगे कर अमित शाह की रणनीति ने भाजपा को एक
वटवृक्ष की सी स्थिति दी है। इस जीत का पूरे हकदार सही मायनों में यदि कोई है तो
वह केवल और केवल अमित शाह हैं। वे भाजपा के चाणक्य और मोदी चंद्रगुप्त मौर्य हैं।
अब साफ तौर पर अमित शाह का अगला अभियान जम्मू कश्मीर में भाजपा के मुख्यमंत्री की
ताजपोशी करना होगा। पश्चिम बंगाल और दक्षिण में केरल-तमिलनाडु के अभेद्य गढ़ को
भेदने जैसे दुष्कर काम का करना शाह का स्वप्न है।
पिछले पोस्ट में यह जिक्र
था कि भाजपा में यह बहुत पहले ही तय हो चुका था कि नतीजे चाहे कुछ भी हों चुनाव के
बाद सरकार भाजपा-शिवसेना की ही होगी। और भाजपा शिवसेना को राजनीतिक तोहफा दे कर
सारे गिले शिकवे दूर कर देगी। तो भाजपा वह तोहफा देने की और कदम बढ़ा चुकी है और
जल्द ही यह सामने आ जाएगा वह तोहफा क्या होगा।