Thursday, September 25, 2014

MARS,mom, MANGAL,अरूण यह मंगलमय देश हमारा

अरूण यह मंगलमय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
इन पंक्तियों को पढ़ कर आपको सहज ही याद आ रही होगी इन पंक्तियों के रचयिता महाकवि जयशंकर प्रसाद की । अर...आप सोच रहे होंगे.. इस पंक्ति में तो गलती है, पर नहीं जी, ये पंक्ति बिल्कुल दुरुस्त है, बस कालखंड बदल गया है। दशकों पहले इन पंक्तियों को रचने वाले आदरणीय प्रसाद जी शायद आज इस पंक्ति को इसी तरह लिखते। आखिर हमारा देश मंगल तक जो पहुंच गया है। तो कहिए क्या वे अरूण यह मधुमय देश हमारा की जगह अरूण यह मंगलमय देश हमारा नहीं कहते। जरूर कहते ।

1 comment:

suryakant said...

vakai sahee baat kahee aapanay... yah mangalmay to hua hee hai.... isliya arunmay bhi ho hee jayaga.... sadhuwad....