Wednesday, February 20, 2008

बजट बसंती से रंग दे बसंती

हा सखी बसंत आयो,बजट आयो। अबके फागुन तो चुनावी बयार है तो बजट भी बसंती टच लिए होगा। बसंत की ये बयार जिस ओर भी बहेगी, बस निहाल कर देगी। रुपया आएगा और खो जाएगा। हमें इक्कीसवीं शती में ले जाने वाले हमारे एक स्व. भारत रत्न तो कह भी गए थे कि जो रुपया दिल्ली से चलता है वो अपने गंतव्य तक पहुंचने पर घिस कर चौदह पैसे मात्र का रह जाता है। और ये होता है जनकल्याणकारी योजनाओं में। तो भाई इसमें बुराई भी क्या है, जब योजना जन कल्याणकारी है तो उसे बनाने और अमलीजामा पहनाने वाले भी तो जन ही हैं उनका कल्याण क्यों जरूरी नहीं होना चाहिए। हां, लेकिन एसी जनकल्याणकारी योजनाओँ की गुंजाइश बसंत वाले बजट में ही होती है।इस बार तो डबल झटका है, हमारा सूबा औऱ केन्द्र का निजाम दोनों ही जन अदालत में जाने वाले हैं तो मिलकर लुटाने का इरादा है। देखिए क्या क्या लुटता है। पर सवाल है कि पिछले बजट में हुई घोषणाओं का क्या होने वाला है। वैसे यह सवाल बेमानी है क्योंकि हर नए सवाल के उठने पर पुराना सवाल खारिज हो जाता है। यह भी वैसे ही खारिज है, क्योंकि हमसे पहले भी बहुतों ने उठाया था आगे भी उठाया जाएगा। नियति हर बार एक ही होनी है। पता चला है कि सालों पहले आंध्रप्रदेश में सुपर स्टार एनटीआर का आजमाया फार्मुला इस बार सूबे में भी आजमाया जा सकता है। चावलों के भरोसे आंध्रा की गद्दी पाने वाले एनटीआर का प्रतिपादित किया हुआ सस्ता अनाज फार्मुला कई जगह जम कर चला। अबके सूबे की रिआया को भी एसे ही किसी फार्मुले के जरिए लुभाने की कवायद हो सकती है। पर सवाल उठता है कि क्या दिनों दिन बिगड़ते घर के बजट को नियंत्रित करने की कोई कवायद इन बजटों में होगी? पट्रोल, रसोई गैस को सरकार ने कमाई का साधन क्यों समझ रखा है। क्या ये कोई विलासिता की वस्तु है। केन्द्र और राज्य दोनों ही सरकारें इस इंधन पर जमकर कमाई करते हैं। जैसे लोग इसे मजे के लिए उड़ाते हैं। अब जबकि हर घर में साइकिल नहीं मोटरसाइकिल है, औसतन हर मध्यम वर्गीय घर में एक छोटी कार है, क्यों नहीं सरकार इन पर लगा टैक्स हटा देती और इन्हें पूरी तरह बाजार के हवाले कर देती। हमें नारा मिलता है सब्सिडी का। ये खेल है दस रुपए छीन कर दो रुपए एहसान के साथ वापस देने का।क्या कोई हमें इस खेल से मुक्ति दिलाएगा। सही मायनों में तो बजट का बसंत तभी बहारों वाला होगा जब हर साल बढ़ती पैट्रोल डीजल की किमतों पर से सरकार अपना हिस्सा लेना बंद कर दे। क्या होगा एसा रंग दे बसंती बजट?????????? नहीं तो ये बसंत भी हा हंत ही साबित होगा।