Friday, February 1, 2008

धोनी को धोया मीडिया ने

कहते हैं क्रिकेट बाय चांस, पर मीडिया टेक्स नो चांस। जी हां कुछ ऐसा ही होता है जब क्रिकेट में जीत होती है, धोनी का बल्ला चमकता है तो हैडलाइन होती है मैदान के सूरमा,धोनी के शेरों ने जीता जग लेकिन जब हार होती है तो हैडलाइन बनती है बन गया चूरमा, धोनी के शेर कागज के शेर। कुछ यही हाल है हमारे मीडिया का। हर दिन नई कहानी औऱ नई इबारत लिखता है, जो आज कहा जा रहा है वह कल नहीं कहा जाएगा, जो कल कहा जाएगा उसकी खबर खुद कहने वाले को ही नहीं है। आत्मविश्वास से लबरेज महेन्द्र सिंह धोनी ने कहा प्रेक्टिस मैच हो जाएगा, तो मीडीया भी यही कह रहा था, विश्वचैम्पियनों के लिए बहुत आसान साबित होगा २०२० का यह खेल। मैच हुआ नतीजा आया वो हम सब जानते हैं, लेकिन मीडिया के सुर बदले और पूरी टीम के धराशायी होने के चलते हारने वाले इण्डिया के मीडिया का निशाना बने धोनी। अब हर चैनल के अपने अपने विशेषग्य हैं, एक महिला विशेषग्य है, क्रिकेट विश्लेषक हैं और अपने क्रिकेट प्रेमी तो हैं ही, सब मिल कर ठोंकना शुरु करते हैं, दे दना दन। नतीजा होता है हर नया बोलने वाला पहले वाले से कुछ ज्यादा बोलता है,सनसना कर बोलता है क्यों सनसनी बिकती है। कार्यक्रम जब अन्त तक पहुंचता है तो कार्यक्रम के साथ ही किसी का क्रियाकर्म हो जाता है। ये तो शुक्र है कि हमारी टीम का चयन मैदान के प्रदर्शन और बोर्ड के संबंध के तालमेल से होता है, कहीं जनमत या इन विश्लेषकों के भरोसे होता तो सोचिए कब क्या हो जाता किसी को भी दूसरा मौका तो मिलता ही नहीं। खैर अपनी बात तो बहुत हुई पर एक सवाल है, ये इलेक्ट्रोनिक वाले इतना क्यों बोलते हैं, इतना बोलना जरूरी है तो ऐसा क्यों बोलते हैं, भई आपको चाहे ये ट्रेड ट्रिक लगती हो पर यकीन मानिए हिन्दुस्तानी घरों में तो आप किसी लाफ्टर शो के कैरेक्टर से ज्यादा तवज्जो नहीं पा रहे हैं। आपकी हर अतिरंजित टिप्पणी पर एक ठहाका होता है और रिमोट अगले चैनल की तरफ कदम बढ़ा देता है। पर यदि फिर भी इलेक्ट्रोनिक के इस कारनामे में आपको कोई तर्क नजर आता हो भई मुझे जरूर बताना कुछ ग्यान वृद्धि ही सही................

1 comment:

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बिलकुल अभिषेक जी, मैं भी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि मीडिया क्रिकेट खिलाड़ियों के पीछे हाथ धोकर पड़ा रहता है। हार गए तो मरे और जीते तो खुश-खुश हो कर मार देते हैं।