Sunday, February 28, 2016

लोकतंत्र या कर तंत्र, आखिर budget हमें क्या बनाता जा रहा है?

 
हम लोकतंत्र में जी रहे हैं। यानी ऐसा तंत्र जो अपने नागरिकों द्वारा चलाया जाए। जाहिर है जब अपने नागरिकों द्वारा चलाया जाएगा तो इसका व्यय भी इसके ही नागरिकों द्वारा ही उठाया जाएगा। और जितना बड़ा देश उसके उतने ही बड़े खर्चे। तो जितने बड़े खर्चे उतनी ही ज्यादा राशि की जरूरत होगी खर्च करने के लिए। अब देश कोई कॉरपोरेट हाउस तो है नहीं जो कोई व्यवसाय कर अपनी कमाई करने लगे और लाभ की राशि से देश चलाए। जाहिर है पहली बात ही दोबारा कहनी होगी। यानी इसका खर्च चाहे कम हो या ज्यादा उसे नागरिकों द्वारा ही वहन किया जाएगा। बार बार कहने का मतलब यह कि देश का खर्च चलाने के लिए इसके नागरिकों को अपनी जेब से कुछ न कुछ रकम देनी ही होगी अब चाहे वह हंस कर दें या दुखी मन से दें। पर एक आम नागरिक के रूप में जब अपनी ओर से दी गई हिस्सेदारी की ओर नजर करता हूं तो पाता हूं कि अब तो सरकार मुझसे लगभग हर कार्य पर कर वसूलने लगी है। सबसे पहले आय कर यानी जो वेतन मिलता है उसके अनुरूप सरकार कर कटौती करती है। फिर उसके बाद जब बारी आती है उस वेतन को खर्च करने की तो फिर हर खर्च पर कर देना होता है। वैट के रूप में। आपने जो पैसा कमाते समय पहले ही उस कमाई के हिस्से के रूप में सरकार को कर दे दिया है उसी पैसे से आप फोन खरीदिए, कार खरीदिए, कपड़े खरीदिए, सिनेमा देखिए, या और कुछ भी खरीदिए आपको वैट के रूप में कुछ न कुछ कर चुकाना होगा। कार के साथ तो और भी विडंबना है। कार खरीदते समय वैट चुकाइए। फिर सरकार आपसे कार सड़क पर चलाने के लिए वनटाइम रोड टैक्स वसूलती है। उसके बाद आप जितनी बार कार में पेट्रोल डीजल डलवाएंगे उतनी बार आप एक लीटर पर
उत्पाद से कहीं ज्यादा कर राशि के रूप में चुकाएंगे। फिर जब आप उस कार को सड़क पर चलाएंगे तो आपको कई जगह टोल टैक्स देना होगा। इतना ही नहीं। कार को जब आप कहीं पार्क करेंगे तो आपको पार्किंग भी देनी होगी यह पार्किंग भी कहीं न कहीं सरकार को राजस्व लाभ देती है। इस सबके बाद आता है सेवा कर। यह सेवा कर आपको हर तरह की सेवा लेने पर देना होता है। मोटा मोटा समझिए तो मोबाइल का फोन बिल, बाहर किसी रेस्टोरेंट में खान- पान और जितना कितना क्या क्या।  मैंने एक उत्सुकतावश नेट पर सर्च किया कि भारत में कितने तरह के कर लागू होते हैं तो एक प्रतिष्ठित बिजनेस अखबार की वेबसाइट ने डायरेक्ट टैक्स की श्रेणी में बैंकिंग कैश ट्रांजेक्शन टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, कैपिटल गेन्स टैक्स,डबल टैक्स अवॉइडेंस ट्रीटी, फ्रिंज बेनिफिट टैक्स, सिक्युरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स, पर्सनल इन्कम टैक्स, टैक्स इन्सेंटिव जैसे करों और इनडायरेक्ट टैक्स की श्रेणी में एंटी डंपिंग ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी, एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) और इनके अलावा भी कई सारे टैक्स का जिक्र पाया। मैं चूंकि करों के इस गड़बड़झाले को ज्यादा नहीं समझता पर जितना समझा वो यह है कि  अभी तक बस जिंदा रहने और सांस लेने पर कर नहीं लगा है। और जो एक बात समझ में आई वो यह कि ये मुआ बजट ही है जो एक नया टैक्स हम पर लाद जाता है। वित्तमंत्री जी बहुत सुहाने भाषण के बीच धीरे से एक लाइन में किसी नए टैक्स की घोषणा कर जाते हैं। दरअसल ऐसा शायद इसलिए होता है कि जो मौजूदा टैक्स लागू होते हैं उन्हें ही कई रसूखदार लोग ठीक प्रकार से जमा नहीं करवाते वहीं दूसरी तरफ सरकार भी अनुत्पादक कार्यों में अपने व्यय को लगातार बढ़ाती जा रही है। मेरा तो बस इतना सा अनुरोध है वित्तमंत्री जी कृपया कर नहीं चुकाने वालों का बोझ आप आम आदमी पर मत लादिए। ये इतने सारे करों का झंझट हटा कर बस केवल एक या दो ही तरह के कर रखें जो साल में एक बार चुका दिए जाएं। अन्यथा मेरे जैसा निरीह प्राणी तो इस लोक तंत्र को कर तंत्र के रूप में ही देखने लगेगा। और मुझ जैसे आम आदमी का सबसे बड़ा डर ये मुआ बजट ही होगा। जैसे कि मुझे आज यह डर लग रहा है कि कल जब वित्त मंत्री जी लोकसभा में बजट पेश करेंगे तो देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए किसी कड़वी दवा के रूप में कोई नया कर न लाद जाएं। भगवान करे ऐसा न हो। मेरी आप से गुजारिश है कि आप भी यही दुआ करें।

2 comments:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

बहुत अच्छी पोस्ट. बधाई. आपने एक विडम्बना की तरफ़ तो इशारा कर दिया कि कुछ लोग हैं जो अपना टैक्स नहीं चुकाते हैं और उनका टैक्स भार अन्य भले लोगों को वहन करना पड़ता है. एक और विडम्बना है और वह यह कि नागरिक जो टैक्स चुकाता है, उसका सदुपयोग होता नहीं दीखता है. अगर मुझे लगे कि जो टैक्स मैंने चुकाया है वह सही तरह से खर्च किया जा रहा है तो मुझे नहीं अखरेगा. लेकिन जब मेरा चुकाया गया टैक्स फिज़ूल के कामों पर बर्बाद किया जाएगा तो मुझे बुरा लगेगा. फिज़ूल के कामों को गिनने की ज़रूरत नहीं है.

abhishek said...

सच यही है हम कर न चुकाने वालों का बोझ ढोए जा रहे हैं...