Friday, February 26, 2016

शीशे के घर वाला मीडिया

इक रहें ईर 
एक रहेंन बीर 
एक रहें फत्ते 
एक रहें हम 
ईर कहेंन चलो लकड़ी काट आई 
बीर कहेंन चलो लकड़ी काट आई 
फत्ते कहेंन चलो लकड़ी ड़ी काट आई 
हम कहें चलो, हमहू लकड़ी काट आई
ईर काटें ईर लकड़ी 
बीर काटें बीर लकड़ी 
फत्ते काटें तीन लकड़ी 
हम काटा करिलिया 

यह पंक्तियाँ हैं  हरिवंश राय बच्चन की  मशहूर कविता की मुझे याद इसलिए आ गई क्योंकि ये देखादेखी का माहौल है ईर बीर फत्ते बहुत हो गए हैं। हर कोई लकड़ी काटने में जुटा है नतीजा भले ही करिलिया ही क्यों ना हो।  अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर बहुत बात हुई। कोई कुछ बोला तो किसी ने कुछ कहा।  अपने राम को ज्यादा कुछ समझ नहीं आया। सही कहूं तो हमें तो यही समझ नहीं आया कि आखिर इतना हड़कंप मचा काहे। पर जो हो इस पूरे मामले में सबका ठेका लेने वाले हमारे मीडिया तंत्र के खेमों की खेमेबंदी जरूर खुल कर सामने आ गई। हालात ये हो गए कि मीडिया ने अपने प्रतिद्वंद्वी की कलई न खोलने के अलिखित नियम की धज्जियां उड़ा दीं। इस कलई खोल अभियान ने स्वयं उनकी भी कलई खोल दी। टेप के आधार पर देश के जानने की चाह का हवाला देने वाले की दुकान उठाई भारत आजतक का दावा करने वाले ने तो टीवी की चिल्ल पौं से परे शांत अंदाज में अपना एजेंडा बढ़ाने वाले ने टीवी के पर्दे को रेडियो बना कर दूसरे प्रस्तोताओं की आवाज के अंशों को अपनी विचारधारा के तर्कों के पक्ष में पेश किया। तो  हॉट सीट पर एक हॉट अभिनेत्री का  सुपर हॉट इंटरव्यू करने के चक्कर में खुद की किरकिरी करवा चुके प्रस्तोता ने मीडिया पर न्यूज को पीछे कर  अपना निजी एजेंडा  लागू करने की रिपोर्ट पेश कर दी। 
अब मन ही मन हंसता मेरा मन राजकुमार का वह मशहूर डायलॉग याद कर ठहाका  लगाने को मचलने लगता है कि
..... जिनके घर शीशे के होते हैं वे दूसरे के घरों पे पत्थर नहीं फेंका करते... 
समझे साब.... 

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