Thursday, March 13, 2014

चायवाला, टोपीवाला, साइकिल वाला....या चॉकलेटी बॉय


चचा हंगामीलाल बहुत दिनों बाद फिर अवतरित हुए हैं। बड़े परेशान हैं। भिड़ते ही न दुआ न सलाम। बस बहुत गंभीर। विचार मग्न। उन्हें अचरज से देखते हुए हमने कहा चचा, चाय मंगा देता हूं, चाय पियोगे। जवाब मिला,, भाई, चाय पीने तुम्हारे पास क्यों आऊंगा। हर नुकक्ड़ पर चाय चौपाल लग रही है। वहीं खूब पी है। जम कर। फिर ,,, अरे वो क्या है ना कि अब से एक महीने बाद चुनाव हैं...। सोच रहे हैं इस बार किसे वोट दिया जाए।.. हम कहे.. अरे चचा जिसे जमे उसे ही दे दो..। कहने लगे अरे बहुत मुश्किल हो रही है। एक तो अच्छा भला विकास पुरूष खुद को चाय वाला चायवाला बनाने पर तुला है,,,। दूसरा कभी मां की दुहाई दे कर कहता है सत्ता जहर है,,, और खुद ही नीलकंठ बनने चला है। और तीसरा जो की खुद को आम आदमी बताता है.. कभी नेताओं को कोसता है, कभी उद्योगपतियों को कोसता है.. कुछ साफ साफ समझ नहीं आता कि आखिर वो है किस तरफ...।
तो चचा आप बताओ क्या करें..। गुमसुम चचा बोले,, देखो भाई अभी तो लड़ाई शुरू हुई है...। छुटभैय्यै नेता इधर से उधर होना शुरू हुए हैं। एक बार सब सेटल हो जाने दो फिर ही देखेंगे... कि किसे वोट देना है...। इतना कह कर चचा तुरंत उड़न छू हो गए। चलिए हम भी जरा लड़ाई का  आनंद लें..।

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