Thursday, March 20, 2014

खुशवंत... जो शब्दों को बना देता था जीवंत...


खुशवंत सिंह नहीं रहे....। यह टीप अभी अभी फेसबुक पर पढ़ी।  मन में धक्का सा लगा। तुरन्त समाचार वेबसाइट्स खंगालनी शुरू की और,,,,। आखिर उस शब्द चितेरे को काल अपने साथ ले ही गया। 99 साल की शानदार पारी में खुशवंत सिंह जिन्हें हम एक पत्रकार, उपन्यासकार, इतिहासकार, स्तम्भलेखक के रूप में जानते हैं अपनी लेखनी से खुशवंत ने मानव मन के कई रूपों को लगातार उजागर किया। कई लोग उनकी बोल्ड लेखनी को जबरन ठूंसा गया यौन वृतांत मानते रहे हैं पर यह भी सच है कि उनकी पुस्तकें बेस्ट सेलर रहीं।  ए कम्पनी ऑफ वुमन तो इस लिहाज से बहुत आगे रही। खुशवंत सिंह खुद कहते थे कि सेक्स के बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। उनकी किताबों का जिक्र करते समय हर किसी की आंखों में एक शरारती मुस्कान तैर जाती रही है। पर फिर भी उनका लिखा इतना प्रवाहवान होता है कि उसे सिंगल सिटिंग में खत्म करने की इच्छा सदैव बलवती रही।  मुझे तो लगता है कि वे आधुनिक दौर के बाबू देवकी नंदन खत्री थे। भले ही उनके उपन्यासों  में ऐयार, जासूस, रहस्य नहीं हो पर उनकी लेखनी में बांधे रखने की गजब क्षमता थी।
          देश की राजधानी जिस लुटियन्स दिल्ली में बसती है उसे बनाने वालों में थे उनके पिता सोभा सिंह। 2 फरवरी 1915 को पंजाब के हडाली ( अब पाकिस्तान ) में जन्मे खुशवंत सिंह पर विभाजन का गहरा असर पड़ा था। उन्होंने उस पीड़ा को ट्रेन टू पाकिस्तान में जाहिर भी किया। अस्सी से ज्यादा पुस्तकें लिख चुके खुशवंत सिंह योजना जैसी सरकारी पत्रिका के सम्पादक भी रहे तो इलेस्ट्रेड वीकली साप्ताहिक के संपादक भी। सिंह ने  विदेश मंत्रालय की नौकरी भी की। खुशवंत का साप्ताहिक कॉलम लोगो की स्मृतियों में लम्बे समय तक बना रहेगा। उनकी सक्रियता की मिसाल इससे ही ली जा सकती है कि 98 की उम्र में भी वे खुशवंतनामाः द लेसंस ऑफ माई लाइफ लिख रहे थे। सिंह 80 से 86 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इससे पहले 1974 में ही उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका था। पर बाद में 1984 में स्वर्ण मंदिर की कार्रवाई के विरोध में उन्होंने इसे लौटा दिया था। उन्हें 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।सिंह की इंदिरा गांधी से नजदीकियां थीं और इसी वजह से वे कांग्रेस के काफी करीब थे। उन्होंने सिक्ख इतिहास पर गहन काम किया था और खूब लिखा भी । खुशवंत पर बहुत कुछ लिखने का मन है,, अभी तो बस भारी मन से उन्हें आदरांजलि।

2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

विनम्र नमन

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

आपने बहुत सलीके से स्मरण किया है उन्हें! आभार!