Sunday, February 24, 2013

कोई है जो प्यार से कह सकेः "हेलो?"

आज अर्से बाद एकाएक कुछ पढ़ने का मन हुआ सो किताबों के रैक में किताबें पलटते पलटते एक पुरानी पत्रिका पर उंगलियां अटक गईं। पत्रिका थी सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट अमरीका की प्रतिष्ठित पत्रिका रीडर्स डाइजेस्ट का हिन्दी अनुवाद। अंक था अक्टूबर 1993 का। मुझे सही मायनों में पढ़ने की आदत डालने का श्रेय बाबू देवकीनंदन खत्री के बाद इसी पत्रिका को जाता है। पन्ने पलटते हुए वो बचपन के दिन याद आ गए जब मैं बेसब्री से डाकबाबू का इन्तजार किया करता था। इसी बीच इसी पत्रिका से जुड़ी कल आई खबर याद  आ गई। और मन की अजीब सी स्थिति हो गई। खबर थी रीडर्स डाइजेस्ट ने फिर दिवालिया घोषित होने के लिए आवेदन किया है। एक बढ़िया पत्रिका की यह गति विचलित करने वाली है।
 तो अक्टूबर 1993 का उस अंक के पन्ने पलटते समय एक पन्ने पर टाइम्स, न्यूयॉर्क में प्रकाशित हुए एक छोटे से उद्धरण ने तत्कालीन अमरीका और आज के भारत की सामयिकता को उजागर कर दिया और मेरा मन इस विचार से उल्लसित हो गया कि जो स्थिति अमरीका ने आजादी के  217 साल बाद हासिल की वह हमने 66 साल में ही हासिल कर ली। तो पेश है सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट के अक्टूबर 1993 के अंक में पृष्ठ 26 पर प्रकाशित यह अंश-
 "
हेलो! हेलो?
आप एकमी रबर डक कंपनी में पहुंच गए हैं.आप भुगतान विभाग में किसी से बात करना चाहते हैं तो 1 नम्बर दबाइए. यदि आप कुं करने वाले विभाग में किसी से बात करना चाहें तो 3 दबाइए. यदि आप को पता न हो कि आप किस से बात करेंगे तो नंबर 4 दबाइए.
अतः मैं 4 दबाता हूं और फ़िल्म '2001'के कंप्यूटर हॉल की सी लिंग भ्रामक आवाज आती हैः धन्यवाद, कृपया खामोशी के साथ प्रतीक्षा करें.
यह क्या समझता है इस बीच मैं हाथी का शिकार करने निकल पड़ूगा ?
हमें खेद है, सर, खामोशी के दौरान आप के अनधिकृत रूप से चॉकलेट की पन्नी फाड़ने की आवाज कर देने के कारण आपकी यह कॉल समाप्त कर दी गई है.
अब बारी आती है हिज्जे परीक्षण की. मुझे मिस्टर क्रैमर से बात करने का संदेश मिला है. आप जिस से बात करने आए हैं उस का एक्सटेंशन नंबर नही जानते तो उस के नाम के पहले चार अक्षर भरिए---अब.
मैं लिखता हूं  के-आर-ए-एम. यह मेल क्रैमिंस्की का दफ्तर है. मैं यहां नहीं हूं. यदि आप संदेश छोड़ दें तो मैं आपसे संपर्क कर लूंगा.
"सॉरी," मैं बुदबुदाता हूं."रांग नंबर." हो सकता है वह के-आर-इ-एम-इ-आर लिखता हो. और इस तरह से मुझे जिल क्रैम्स्की मिल जाता है. सी-आर-ए-एम से मिलता है हारवी क्रैमस्टन.
ऐसी कुंठा की तुलना तो बस संगीतमय स्विच बोर्ड से ही हो सकती है. मैं एक नई नौकरी के लिए साक्षात्कार का समय निश्चित करने के लिए फ़ोन करता हूं. मेरे संभावित बॉस की सचिव मुझे होल्ड करने को कहती है. मैं लिंडा रॉनस्टैड की संगीतमय चीखें सुनता हूं, "यूं आर नो गुड !"
इलेक्ट्रॉनिक स्विचबोर्ड से संपर्क का आनंद लेने के लिए उस के टक्कर का कोई चीज़ होनी चाहिए ----- जैसे  कि ऑटोमैटिड टेलीमार्केटिंग मशीन. यह चीज आप को गुसलखाने से बाहर खींच कर कहती हैः यह बहुत महत्वपूर्ण सर्वेक्षण है. यदि आप इन प्रश्नों का उत्तर दें तो इस से हमें आप की अधिक प्रभावकारी सेवा देने में सहायता मिलेगी. दोनों मशीनें अंतहीन पुशबटन वाले कूंकूं, पींपीं और चुप्पियों के माध्यम से एक दूसरे से कलोल करती रहेंगी---और बीच बीच में मोट्सार्ट या मैडोना का संगीत भी चलता रहेगा.
कहिए---- आज के जमाने में कहीं कोई है जो प्यार से कह सकेः "हेलो?"
- मार्टिन ऐशर, 'टाइम्स 'न्यू यॉर्क

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तो अब भारत में भी गहरे तक पैठ चुके आईवीआरएस के युग में क्या आप और हम भी नहीं कहते हैं--- आज के जमाने में कहीं कोई है जो प्यार से कह सके..... हेलो....
क्या कहते हैं......

2 comments:

Anupam Dixit said...

सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट का धुर प्रशंसक मैं भी रहा हूँ आयर कैसा संयोग है कि मैंने भी पहले चंद्रकांता और फिर रीडर्स डाइजेस्ट ही बेचैनी से पढनी शुरू की थी . यह हिंदी का दुर्भाग्य है कि यह पत्रिका समय से पहले ही बंद हो गयी "सार्थक सार सामग्री का चिर स्थायी संकलन" अब शायद दुबारा न मिले . धन्यवाद इस लेख को साझा करने के लिए.

MUKESH SHARMA said...

हैलो