Tuesday, October 6, 2009
प्याज तो बहाना है,,
आज के अखबारों की हेडलाइन थी, एक ही दिन में प्याज के दाम दुगने हुए,,,। इससे पहले चीनी, दाल, आलू आटे के भावों को लेकर कुछ न कुछ छपता ही रहता है,,। दाम का बढ़ना अब एक सुर्खी भर रह गया है। कहीं कोई हलचल नहीं। अपने हितों के लिए वेतन भत्तों के लिए,, धरना प्रदर्शन करने वालों को महंगाई कहीं से मुद्दा नहीं लगती है। हां, राजनीतिक दलों के लिए यह एक मुद्दा है जो सनातन है। हर पक्ष वाला विपक्ष के लिए यह मुद्दा जरूर रखता है। दरअसल यह अण्डरग्राउण्ड पैक्ट का नतीजा है। क्योंकि जो आज सत्ता में उसे कल विपक्ष में आना है तब एक मुद्दा रहना चाहिए और वह है महंगाई। सो अभी भी उसे विपक्ष के लिए रहने दो अगली बार जब हम विपक्ष में होंगे तो यह हमारे काम आएगा। तो नेताओं की यह बन्दरबांट अब जनता खूब समझने लगी है इसलिए महंगाई विरोधी धरना प्रदर्शनों में उस दल के ब्लॉक पदाधिकारियों के अलावा कोई शामिल नहीं होता। सो यह आम आदमी की आवाज नहीं बन पाता। लेकिन क्यों नही आम आदमी सड़क पर उतर जाता । क्यों नहीं वो महंगे आलू प्याज को यों ही खरीद (उठा) लाता। आखिर आम आदमी को कोई महंगा बेच जाए और बच जाए। यह क्यो संभव होता है। क्यों नहीं आम आदमी सरकारी दफ्तरों की ईंट से ईंट बजा देता। क्यो नहीं मंत्रियो के काफिलों की हवा निकाल देता। क्यों नहीं वो बता देता कि आम आदमी के पास वोट ही एक मात्र बेचारगी भरा हथियार नहीं है। जो पांच साल बाद खरबूजे पर पड़ने वाली छूरी सरीखा हर बार आम आदमी पर ही गिरता है। क्यों नेता एयरकंडिशन्ड सर्किट हाउस में रियायती दर पर सब्जी दाल उड़ाता है, क्यों नहीं आम आदमी उसकी थाली में से एक सब्जी हटा नहीं देता। क्यों क्यों क्यों,,, आपके पास कोई जवाब हो तो बताना ,, प्याज तो सिर्फ एक बहाना है ,, मेरे सवालों का सिलसिला मुझे चैन नहीं लेने दे रहा ,,,।
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1 comment:
शाबास! आपके इस आलेख को तो हज़ारों-लाखों की संख्या में छपवा कर बांटा जाना चाहिए, ताकि कुछ तो चेतना पैदा हो. यह हमारी उदासीनता ही है जो ऐसा होने देती है. असल में तो हम सब मौके का फायदा उठाने की फिराक़ में रहते हैं. आखिर प्याज़ को महंगी कीमत पर बेचते भी हम ही हैं और खरीदते भी हम ही हैं.
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