Thursday, July 9, 2009

चलो आम आदमी को मजबूत बनाएं

आज जब दरवाजे पर दस्तक हुई तो बड़ा अजीब लगा। जब से नए शहर में आए हैं तब से हमारे दरवाजे पर यह पहली दस्तक थी। सच पूछो तो शायद इस शहर में दरवाजों पर दस्तक देने का रिवाज ही नहीं है। खैर हम अचकचाए से, हड़बड़ाए से दौड़ते दौड़ते से दरवाजे तक पहुंचे और एकदम से दरवाजा खोला, तो जो चेहरा हमें देख रहा था, या यूं कहूं की घूर रहा था, उसे देख हमारी तो बांछें ही खिल गई। दरवाजे पर खड़े थे अपने चचा हंगामी लाल। बेसाख्ता मुंह से निकला,, अरे चचा आप और यहां।

क्या करते बरखुरदार तुम तो वहां से चले आए और हमारा हाल भी नहीं लिया सोचा चलो एक पंथ दो काम कर आऊं।

यह तो बहुत बढ़िया किया चाचा आपने पर ये एक पंथ दो काम वाला चक्कर समझ नहीं आया।

अरे भतीजे बड़ा सीधा सा चक्कर है। मैं घर से निकला था आम आदमी की तलाश में। सोचा चलो तुम्हारे शहर के आस पास ही तलाशा जाए आम आदमी, सो चला आया।

पर चचा ये आम आदमी की तलाश.. वो भी एकाएक,,, भला ऐसी भी क्या सूझी।

अरे भाई आम आदमी का जमाना फिर से लौट आया है। गरीब की बात करने वाले अब आम आदमी की बात कर रहे हैं। केन्द्र से लेकर राज्य तक आम आदमी को ही मजबूत करने की बात हो रही है। सो हम भी चल पड़े हैं उसे ढूंढने और मजबूत करने।

पर चचा आप कैसे मजबूत करोगे।

अरे भाई जैसे ये सरकार वाले करेंगे हम बिना कार करेंगे। सर तो हमारे पास है ही।

चचा बात कुछ समझ नहीं आई।

अरे इसमें समझ नहीं आने वाली क्या बात है। वो भी मजबूती की बात कर रहे हैं हम भी मजबूती की बात कर रहे हैं। जैसे ही आम आदमी मिला नहीं कि उसे पकड़ कर खट से खड़ा कर देंगे। देखो ये फट्टे देख रहे हो..(वो हमें अपने साथ लाए लकड़ी के फट्टे दिखाने लगे.. ) बस इनसे उसके पैरों को घुटनों से बांध देंगे।

इससे क्या होगा..

अरे इतना भी नहीं समझते..। खड़ा आदमी बैठता कैसे है.. घुटने मुड़ने से ही न.. लेकिन हम तो ऐसा इंतजाम करेंगे की वो अपने घुटने मोड़ ही नहीं पाए। उसके घुटनों को पक्की मजबूती देंगे।

लेकिन चचा ये तो केवल पैरों का इंतजाम हुआ..

चिन्ता मत करो भतीजे हमने सब सोच लिया है,, हमें यह भी पता है कि आम आदमी बहुत कमजोर है,,, इसलिए हम भी सरकार की तरह पट्टों का खूब सारा स्टॉक साथ लेकर चल रहे हैं.. जहां भी कमजोर होगा वहीं मजबूती के लिए पट्टे बांध देंगे... बोलो है ना पुख्ता इंतजाम...।

अब चचा के इतने पुख्ता इंतजामों के बाद भी असहमत होने की गुस्ताखी कौन कर सकता है,,,,। कम से कम मेरी तो हिम्मत नहीं है.. आपकी आप बताएँ...।

5 comments:

Udan Tashtari said...

ऐसे में गुस्ताखी तो हम भी न करेंगे.

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

जब चाचा हंगामी लाल उतारु हो ही गये हैं, तो आम आदमी को मज़बूत होना ही

नदीम अख़्तर said...

हम भी आम आदमी को खोज रहे हैं...देखिये कब मिलता है ये आम आदमी.....
रांचीहल्ला

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

हम भी आम आदमी को खोज रहे हैं...

varsha said...

hamzuban hone ke liye shukriya.....ooofffffffff.....ye aam aadmi ko khada karne ka dhang...