Friday, November 30, 2007

इसके बाद नो मजा.........

कुछ दिन पहले की बात है, दफ्तर में अपने साथियों से चर्चा हो रही थी,कुछ क्रिएटिव करने की। बात चली कैम्पेन बनाने की, याद आया एक दिसम्बर, और थिंक पोजिटिव की जगह थिंक नेगेटिव का विज्ञापन। सोचा कुछ एसा हो जाए जो याद रहे बहुत सोचा, बहुत विचार, खूब खोपड़ी लड़ाई पर पर इसके बाद नो मजा...........।


हां, यही तो बात है जो कहना चाह रहे थे। अब बन गई लगता है। वाकई एड्स के बारे में जितना सुना है, एड्स पीड़ितों से मिलने के बाद लगता है वाकई यह उतना ही भयावह भी है। इससे बचने के लिए लोगों को जितना अवेयर किया जा रहा है वो जरूरी है। भले ही प्रचार की बहती गंगा मे से एनजीओ के लोग अपने खेतो की भी निराई गुड़ाई कर लें। कभी-कभी तो सारी गंगा ही अपने खेत में बहा लें, तो भी जितनी दीवारें पुत रही हैं, जितने स्लॉट बिक रहे हैं, जितने कॉलम सेन्टीमीटर छप रहे हैं उससे कुछ तो हो ही रहा होगा।ये दूसरी बात है कि मस्ती का मौका मिलने पर लोग बचाव की परवाह नहीं करते। उस समय तो साथी की रजामंदी ही महत्व रखती है, एड्स से बचाव नहीं। पर हां प्रोफेशनल्स को जरूर चिंता करते देखा है। शहर के नाइट क्लब के पास एक चौबीसघंटे की मेडिकल शॉप है, रात में अपना काम निपटा कर जाते समय वहीं से दवाई आदि की खरीद करता हूं। अक्सर देररात को भी हाई -फाई लड़कियों को उस स्टोर स इस भयावह दैत्य से बचाव के साधन को खरीदते हुए उन्हें देख लगता है वाकई सरकारी अभियानो का कुछ तो असर है।

लेकिन इसका सबसे उम्दा असर हमारे झोला बाबा पर देखा, वे एक एनजीओ चलाते हैं, चार पांच साल पहले तक कुछ नहीं चलाते थे, पर जब से एड्स से बचाव के रेड रिबन बांधने का काम शुरु किया है, बड़ी वाली होंडा सिटी चला रहे हैं। एक बार ऐसे ही शाम की पार्टी के दौरान बात चल निकली की यार ये एड्स होना बंद हो जाए तो क्या हो, एक रसिया मित्र का जवाब था, यार, मजा आ जाए, लेकिन हमारे झोला बाबा ने जो कहा वो अंतिम सत्य था,,,, इसके बाद नो मजा.....। नो पार्टी.. सब एड्स के ही भरोसे जो है।...तो समझ गए ना कि....

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