Sunday, December 1, 2019

बचा रहता है आसमान

और एक रोज़ 
फिर 
चाँद मुस्कुराया
अपनी दोनों हथेलियों को उसने 
एक दूजे से मिलाया 
जैसे मिला रहा हो 
दो ध्रुवों के आसमान 
चांदनी मुस्काई
भाग्य का क्यूँ करते हो भरोसा 
ज़ब कहते हो भरम है जीवन 
क्यूँ देखते हो बार बार हथेलियाँ 
छिपती नहीं बेबस चाँद की फीकी हँसी 
किसी बादल की ओट में 
ज़बरन ओढ़ चपलता 
पगली
तुम साथ हो तो रेखाएँ भी हैं 
परिक्रमा पथ पर सितारे भी हैं 
जगमग 
भले अमावस्या की राह बढ़ रहे हैं 
पर पूनो के उजियारे का भरोसा है
कौन जाने कितना वक़्त
बने रहे हम यूँ ही नादान 
जब जागेगी समझदारी 
बनेगी चौकीदार दुनियादारी 
तपेगा क़ायदों का सूरज 
उड़ जाएगी संबंधों की नमी 
रह जाएगी यादों की उष्णता
तब भले ही बदल जाएँ 
इन रेखाओं की दशा 
रहेगा अँजुरी भर जल का वचन 
अटका छिपा सहेजा हुआ 
रेखाओं की इन खाईयों में 
गुज़रते समय में स्मृति पाषाण बन 
गहरे गहरे और गहरे 
धँसता चला जाएगा वो जल 
उन्हीं इन हथेलियों में 
जिनमें सदा रहेगा तुम्हारी हथेलियों का ताप
सच है हथेलियाँ मिलाने से 
नहीं मिल जाते दो ध्रुव 
रह जाता है बीच में आसमान

1 comment:

ओमप्रकाश जांदू said...

एक कवि ही आसमान की गहराइयों का अनुभव अपने कविता के माध्यम लोगों ओतप्रोत करवाता है