Sunday, August 25, 2019

कृष्ण हैं जीवनाधार

कृष्ण की बात होती है तो अक्सर बात बस कृष्ण को चाहने वालों तक ही सीमित रह जाती है। राधा की बात होती है। मीरां की बात होती है। उनकी गोपियों की बात होती है। हर ओर उन पर मोहने वालों की बात होती है। कृष्णप्रिया, कनुप्रिया की बात होती है। हर कोई कृष्ण से अपनी बात कहता है और अपनी उम्मीद जताता है। इतनी बातों के बीच कृष्ण की अपनी भी तो कुछ बात होती होगी, अपनी कुछ उम्मीद होती होगी । कृष्ण नीति नियंता हैं। उनकी यही छवि चहुंओर है। रण, राग और प्रेम में कृष्ण जीवन यात्रा की बारीकियों को सिखाते समझाते पथ प्रदर्शित करते नजर आते हैं। पर कान्हा भी तो रुक्मिणी, राधा, मीरां, गोपियों, अपने ग्वालसखाओं, मित्रों बांधवों  और उन पर मोह रखने वालों से कुछ चाहते होंगे। वो भी हर सुबह, दोपहर, शाम, रात्रि में जब अपने चाहने वालों के दरवाजों पर दस्तक देते होंगे तो उनके मन में भी तो कुछ होता होगा? ग्रंथों आख्यानों में इस चाहत को अटूट आस्था के रूप में रेखांकित किया है। कर्मण्येवाधिकारस्ते माफलेषु कदाचन् के रूप में शायद कृष्ण की इसी चाहत को निरूपित किया गया है। निष्काम आस्था। कर्म करते जाएं, कृष्ण ने अलग अलग भूमिकाओँ के लिए जो पथ प्रदर्शित किया है उसका अनुसरण करते जाएं और कृष्ण में आस्था रखते जाएं, कि वह सदैव साथ है। नाजुक रास्तों, रिश्तों और भ्रमों के आवरण वाले इस संसार में कृष्ण के समर्पण को ध्यान में रख यह आश्वस्ति सदैव मन में बनी रहनी चाहिए कि कृष्ण सदैव साथ हैं, हर रूप में। हर समय में। हर भ्रम में। हर वास्तविकता में। कृष्ण अनुरोध करते हैं विश्वास करने का। कृष्ण आग्रह करते हैं भरोसा करने का। कृष्ण निवेदन करते हैं अवसर देने का। और इसी प्रकार कृष्ण जीवन पर्यन्त साथ रह कर जीवन को परिणति प्रदान करते हैं।  कृष्ण जन्म की बधाई।

2 comments:

मन की बात, अपनों के साथ said...

बहुत उम्दा लिखा है आपने सर।

Unknown said...

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