Tuesday, January 24, 2012

जेएलएफः आवो नी पधारो म्हारे देस

आजकल पता नहीं क्या हो रहा है कि चचा हंगामी लाल जब भी मिलते हैं, उदास ही मिलते
हैं, आज ही शाम की बात ले लो, सुबह तो बड़े उत्साह से बोले थे कि भतीजे आज जा रहा हूं
जरा कुछ देख कर आता हूं साहित्य का कुछ मजमा चल रहा है शहर में, वहां जरा कुछ भाई लोग
आए हुए हैं उनसे बतिया कर आता हूं। सो हम तो शाम को उनसे बहुत सारी दुनिया भर की बातें
सुनने की उम्मीद लगाए बैठे थे। लेकिन ये क्या शाम को जब आए तो सुबह सूरजमुखी सा खिला
चेहरा शाम को डाल से टूटे पत्ते की तरह मुरझाया हुआ था। हमारी सवालिया नजरों को ताड़
कर बिना कुछ पूछे ही वे बोलना शुरू हो गए।
भतीजे का बताएं तुमको, आज हम तो बहुत अरमान से गए थे कि अपने पुराने यार लोग आए हुए हैं
उनसे गप करेंगे, कुछ कविता की बात होगी, कुछ गजल की। कुछ किस्से सुनेंगे कुछ कहानी कहेंगे।
बड़ी मुश्किल से तो हम जैसे तैसे उस मजमे में अन्दर घुस पाए, लेकिन घुसने से पहले ही हमें लग
गया था कि आज कुछ शगुन ठीक नहीं लग रहे। पता चला वहां कोई वीसी उसी होने वाली
जिसमें कोई अपनी बात कहना चाह रहा था, पर कुछ लोग चाह रहे थे कि वो अपनी बात नहीं
बोले, ...। हम तो जैसे तैसे बचते बचाते अन्दर पहुंचे और अपने मित्रों को ढूंढने में लग गए। एक
आध मिला भी, पर किसी का भी मिजाज कुछ जमता नहीं लग रहा था। जरा कुरेद कर पता
किया तो सबके मन में एक ही सवाल गूंज रहा था क्या वाकई हिन्दुस्तान में इसे ही आजादी
कहते हैं। सरकारें ऐसे ही संविधान के रक्षा करती हैं। उसकी पालना करती हैं। अरे भाई जो
चीज प्रतिबंधित है वो वाकई प्रतिबंधित है उस पर कोई बोले तो जो जायज हो वो कार्रवाई
करो, कानून में गलती है तो माननी ही पड़ेगी। अब जो कहें कि कानून ने गलत रोक लगाई है
तो उसका भी निस्तार है,, गुहार लगाओ,, भाई लोग लगा भी रहे हैं,,,। जो कहते हैं कानून
सही है और उसकी पालना हो, तो यह भी ठीक है,, । कानून का पालन तो होना ही
चाहिए। जहां कुछ गलत लगे वहीं रोक दो।
हमने कहा चचा, सरकार ने, इस मजमे ने जमाने वालों ने सबने कुछ सोच कर ही सारा मामला
जमाया होगा,,हालात देखे होंगे तभी तो फैसला किया होगा?
कहते तो तुम ठीक हो भतीजे, हमने वहां लोगों को यही समझाया, अरे भाई जो टीवी पर दिख
रहा है, सैंकड़ो किलोमीटर दूर बैठा है, बात की बात में, भावावेश में कुछ ऐसा ही कह बैठे जो
यहां के कानून की सीमा से परे हो तो, अंजाम तो इस मजमे को ही भुगतना पड़ेगा ना। बताओ
तो सही कितनी मेहनत करके वो तीनों ने ये महफिल जमाई है, सालों लगे हैं, कई विवाद आए,
कई गए। पर वो कहते हैं न शो मस्ट गो ऑन की तईं। नमिता बेन, संजोय बाबू और वो
विलियम ने मिलकर एक एक सितारा इस ओढ़नी पर काढ़ा है। हमारी बात से कुछ विलियम भाई
भी मुतमईन थे, कहने लगे हंगामीलाल जी, हमारे लिए तो इस मेले को चलाए रखना महत्वपूर्ण
है, मेला रहेगा तो बात रहेगी, आप चाहे कुछ भी कह दो, भले ही कितना ही गरिया लो पर
एक बात तो मानते हो न कि बच्चों को कुछ किताबों का शौक लगा है, कुछ तो वो साहित्य
की बात कर रहे हैं, कुछ नए लोगों को मंच मिला है, कईयों की किताबें बिकी हैं, कईयों को
मीडिया ने तरजीह दी है, आखिर कुछ तो फायदा हुआ या नहीं।
भतीजे मुझे विलियम की बात में दम लगता है, तुम भी तो जयपुर के वाशिंदे हो तुम को क्या
लगता है.
देखो चचा अपन तो शुरु से ही कहते हैं कि ऐसे मेले ठेले ही गुलाबीनगर की शान हैं, हम तो शुरु
से ही आवो नी पधारो म्हारे देस के संस्कृति के लोग रहे हैं, पावणों को स्वागत करना ही
हमारी परम्परा है। मैं तो कहता हूं जो भी हो विवादों पर मिट्टी डालो और ऐसे आयोजनों के
लिए जुटे रहे हो।
सही कह रहे हो भतीजे, मैं भी तुम्हारी बात से सहमत हूं, मैं तो जरा यूं ही दिन बेकार हो
जाने से उदास हो रहा था, पर तुमसे बात करके सारी उदासी दूर हो गई।

2 comments:

babulal sharma said...

Good..badhai ho aapko. Sateek kaha...maja aa gaya.

abhishek said...

thanks BL bhai